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चीन को लेकर नीतियां बनाने से पहले भारत को चाहिए कि वो अपने
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे इंडस्ट्रीज़ दुनिया�
भारत की सुस्त अर्थव्यवस्था देश की रक्षा तैयारी पर असर डा�
किसी भी सक्षम, योग्य और सुदृढ़ राष्ट्र को यह सुनिश्चित कर�
भारत हॉन्गकॉन्ग को लेकर अपने हर क्षेत्र की नीति की नए सिर�
अपने भाषण में माइक पॉम्पियो ने चीन को लेकर ट्रंप प्रशासन �
“आप दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं.” ये विचार आज भी �
वर्तमान में रक्षा पर ज़्यादा ख़र्च को प्रोत्साहन पैकेज की
कुछ देर के लिए भले ही अर्थव्यवस्था की कहानी थम गई हो लेकिन
ऐसे समय में भारत और चीन के बीच सीमा पर सैन्य टकराव चल रहा ह�
ज़ाम्बिया के लोगों को लगता है कि चीन उनके देश पर कब्ज़ा कर
आज ऐसा दौर है, जब विश्व में डेटा का प्रवाह, सामानों के व्या�
भारत को ऐसी शक्ति के डिजिटल और आर्थिक उत्थान में योगदान न�
किसी भी मुद्दे को लेकर चीन की रणनीति आमतौर पर दबी ढंकी होत
आज के भारत के पास अपनी छोटी अर्थव्यवस्था और संरचनात्मक व �
भारत को चाहिए कि वो अपनी आर्थिक क्षमताओं का विकास करने के
2018 में शी जिनपिंग माओ की बराबरी पर पहुंच गए. ये वो मुकाम था, �
सीमाओं की अपनी ख़ुद की भाषा, आयाम और अलग नियम होते है. इसलिए
समस्या का सबसे आसान समाधान तो ये होगा कि चीन अपनी कल्याणक�
चीन इस हालात से निपटकर साफ़-सुथरे बैलेंस शीट के साथ बाहर आ
वैश्विक परमाणु व्यवस्था में हम एक बार फिर प्रमुख परमाणु �
चीन से निपटने में हमें अभी 15-20 साल लगेंगे और उसकी तैयारी हम�
चीन जहां मुख्य रूप से अफ़्रीकी देशों में स्वयं का राजनीति�
दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप नए सिरे
ख़ुफ़िया जानकारियां जुटाने की नज़र से अमेरिका के लिए ओपन
लद्दाख की सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प
हो सकता है कि चीन मंदी से बच जाए या हल्के रूप में मंदी को मह
कोई भी जन नीति असरदार हो इसके लिए स्वस्थ सार्वजनिक परिचर�
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को और ज़्यादा नेतृत्व दिखान
मौजूदा इतिहास में पहली बार लगता है कि अमेरिका का आधिपत्य �
इस तरह से उथल-पुथल का समय जब आता है और ऐसे में जो सरकारें है
दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी – 55 प्रतिशत- शहरों में रहती
इतिहास उठा लीजिये हर महामारी की मार सर्वाधिक आम और गरीब त�
शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले चीन को समझने में भूल मत कीजिए. �
चीनी घोटाले की रिपोर्ट में जिन लोगों का नाम है, उनमें से ए�
क्या अंतरराष्ट्रीय क़ानून में कोई ऐसी व्यवस्था है जिसके
आज भारत को एक ऐसे देश से चुनौती मिल रही है, जिसके नेतृत्व क�
भारतीय सेना पहले भी महामारी से निपट चुकी है और कोलरा, चेचक
जिस तेज़ी और साफ़-सुथरे तरीक़े से ये बदलाव शुरू हुए हैं उस
जिस अति उग्र भूमंडलीकरण ने चीन को औद्योगिक महाशक्ति बनाय
भारत के थल सेनाध्यक्ष ये कहकर नहीं बच सकते हैं कि उनका बया
गुट निरपेक्षता का एक दौर था. भारत उसका हिस्सा था. वो गुट नि�
कोरोना वायरस के असर के कारण अधिकतर भारतीय कंपनियों के शे�
पूंजीवाद और नव-उदारवाद का दोष निकाला जा सकता है लेकिन उसक�
जब अमेरिकी सामाजिक दूरी के नियमों के पहले चरण को लेकर उधे�
ऑस्ट्रेलिया की अप्रवासन नीति यहां के राजनेताओं के लिए या
लग्ज़ेमबर्ग की रियासत अपनी मर्ज़ी से भी और हालात के कारण �
जिसतरह से महामारी को लेकर अनिश्चितता का माहौल है और जनता �
नए कोरोना वायरस की महामारी के लिए कौन ज़िम्मेदार है, इस मु