Author : Sushant Sareen

Published on Jun 18, 2020 Updated 0 Hours ago

लद्दाख की सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प की ख़बरों और इस तथ्य के बावजूद कि दोनों देशों के बीच सीमा पर कई अन्य जगहों पर भी तनातनी है, पाकिस्तान में अभी भी लोग भारत की मुश्किल पर जश्न मनाते नहीं दिख रहे हैं.

लद्दाख में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद संघर्ष के दौरान पाकिस्तानी मीडिया की चुप्पी रहस्यमय!

आमतौर पर जब भी भारत और चीन के बीच तनातनी होती है, तो पाकिस्तान के मीडिया में एक ख़ास तरह की ख़ुशी मनाने वाला बर्ताव दिखता है. वो भारत की मुश्किल पर खुल कर जश्न मनाते हैं. जोश में आ जाते हैं और ये उम्मीद लगा कर बैठ जाते हैं कि जल्द ही चीन और भारत के बीच गोलीबारी शुरू हो जाएगी. पाकिस्तान के लोगों को इस बात का पक्का यक़ीन होता है कि अगर चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ, तो तय है कि भारत को भारी नुक़सान पहुंचेगा. उन्हें लगता है कि पाकिस्तान का पक्का दोस्त चीन, उनके पुराने दुश्मन भारत को उसकी औक़ात दिखा देगा और उसे काग़ज़ी शेर साबित कर देगा. पाकिस्तान के बहुत से सामरिक विशेषज्ञ ख़ासतौर से रिटायर्ड कूटनीतिज्ञ और जनरल, जो हमेशा इस बात पर अफ़सोस जताते हैं कि पाकिस्तान ने 1962 में भारत से कश्मीर छीनने का मौक़ा गंवा दिया. जबकि उस वक़्त भारत, चीन के साथ युद्ध में उलझा हुआ था. पाकिस्तान के ये सामरिक विशेषज्ञ, ये तर्क देते बाज़ नहीं आते कि अगली बार अगर चीन और भारत के बीच जंग छिड़ती है, तो पाकिस्तान को कश्मीर पर क़ब्ज़ा जमाने का साहसिक दांव चल ही देना चाहिए. भारत के सामरिक विशेषज्ञ लंबे समय से अपने सामरिक समीकरणों में इस बात को ख़ास तवज्जो देते आ रहे हैं कि कभी भारत को एक साथ दो मोर्चों पर संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है. यानी भारत के एक्सपर्ट ये मानते हैं कि चीन और पाकिस्तान एक दूसरे के साथ मिलकर भारत के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ सकते हैं और इसके लिए सैन्य रणनीति भी लंबे समय से बनाई जा रही है. इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत के लिए एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध लड़ना सबसे बड़ी चुनौती होगी. लेकिन, पाकिस्तान ये ख़्वाब बरसों से पाल रहा है.

पाकिस्तान के ये सामरिक विशेषज्ञ, ये तर्क देते बाज़ नहीं आते कि अगली बार अगर चीन और भारत के बीच जंग छिड़ती है, तो पाकिस्तान को कश्मीर पर क़ब्ज़ा जमाने का साहसिक दांव चल ही देना चाहिए

ऐसे में, लंबे समय से ये ख़्वाब पालने वाले पाकिस्तान की ख़ामोशी तब चुभने लगती है, जब चीन और भारत के बीच, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर संघर्ष एक महीने से भी ज़्यादा पुराना हो चुका हो. और, जिसके जल्द ख़त्म होने की उम्मीद न दिखाई देती हो. लेकिन, ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के मीडिया ने लद्दाख में इस सैन्य संघर्ष को बिल्कुल अनदेखा ही कर दिया है. जबकि, भारत और चीन के बीच नियंत्रण रेखा पर हुए हिंसक संघर्ष में भारत के बीस से अधिक सैनिकों की मौत हो गई है. और दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई जगह तनातनी बढ़ गई है. फिर भी, ये बात हैरान करने वाली है कि पाकिस्तान में अभी भारत की इस मुश्किल का जश्न नहीं मनाया जा रहा है. भारत और चीन के बीच सीमा पर तनातनी को लेकर, पाकिस्तान के मीडिया में कुछ गिनी चुनी ख़बरें भी आई हैं. और वो भी भारत के मीडिया के हवाले से. इसके अलावा, पाकिस्तान का मीडिया इस मसले पर पूरी तरह से ख़ामोशी की चादर ओढ़े हुए है. भारत के मीडिया में ऐसी कुछ ख़बरें आने के बाद कि चीन ने भारत की कुछ ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया है, पाकिस्तान में थोड़ी हलचल देखी गई है. हालांकि, ये चर्चा भी सोशल मीडिया तक ही सीमित है.

जब से चीन के भारत की ‘ज़मीन हड़पने’ ख़बरें भारत के मीडिया में आई हैं, तब से पाकिस्तान के कुछ सोशल मीडिया हैंडल तो इस हद तक चले गए हैं कि वो कह रहे हैं कि, चीन ने ‘तकनीकी रूप से भारत पर आक्रमण’ कर दिया है. अब इस ख़बर को लेकर पाकिस्तान में कुछ उत्साह देखा जा रहा है. इसी ट्विटर हैंडल ने ये पोल भी कराया कि अगर भारत को एक साथ अगर चीन और पाकिस्तान से जंग लड़नी पड़ी, तो भारत इससे कैसे निपटेगा? इसके अलावा, पाकिस्तान के ट्विटर हैंडल आमतौर पर इस ख़बर को लेकर संयम से काम ले रहे हैं. हालांकि, वो अपनी आदत के अनुसार भारत की मुश्किल का लुत्फ़ ज़रूर उठा रहे हैं. भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने तो ये एलान कर दिया है कि, ‘भारत इस पूरे क्षेत्र में अलग थलग पड़ चुका है. चीन और पाकिस्तान ही नहीं, नेपाल और यहां तक कि बांग्लादेश को भी भारत से गंभीर शिकायतें हैं. भूटान भी चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने को लेकर आतुर है. और श्रीलंका व तालिबान के नेतृत्व वाला भविष्य का अफग़ानिस्तान तो भारत पर कभी भी भरोसा नहीं करेंगे.’ ख़ुद के निरपेक्ष और संतुलित होने का दावा करने वाले पाकिस्तान के एक अकादेमिक विद्वान ने तो भारत और यहां के मीडिया का मखौल उड़ाते हुए ट्विटर पर लिखा कि, ‘क्या ऐसा करके चीन, भारत को ये धमकी दे रहा है कि भारत उसे पाकिस्तान समझकर अपनी हद लांघने की ग़लती बिल्कुल भी न करे? चीन की ये ग़लती सुधारने के लिए क्या भारत कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करेगा? चीन के भारत की सीमा में दाख़िल होने पर भारत के मीडिया में कोई हंगामा नहीं है? कोई चर्चा नहीं है.’ अपने एक अन्य ट्वीट में इस अकादेमिक शख़्स ने ये उम्मीद जताई है कि चीन के भारतीय सीमा में घुसपैठ करने के बाद, भारत अपना ध्यान वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर लगाएगा. इससे पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर तनाव कम होगा.

भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने तो ये एलान कर दिया है कि, ‘भारत इस पूरे क्षेत्र में अलग थलग पड़ चुका है. चीन और पाकिस्तान ही नहीं, नेपाल और यहां तक कि बांग्लादेश को भी भारत से गंभीर शिकायतें हैं

लेकिन, पाकिस्तान के मुख्यधारा के मीडिया में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रहे इस संघर्ष को लेकर कोई चर्चा या विश्लेषण होता नहीं दिख रहा है. जिस दिन चीन के भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण की ख़बरें आईं, उस दिन पाकिस्तान के एक पूर्व वायुसेना अधिकारी ने एक लेख लिख कर ये चिंता जताई थी कि क्या दक्षिण एशिया एक और जंग की ओर बढ़ रहा है. हालांकि, इस लेख का केंद्र बिंदु कश्मीर था और इसमें नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान के बीच गोलीबारी की अधिक चर्चा थी. लेकिन, पाकिस्तान के इस पूर्व वायुसेना अधिकारी ने अपने लेख में चीन और भारत के संघर्ष और नेपाल के साथ भारत के हालिया सीमा विवाद का भी ज़िक्र किया था. और ये तर्क दिया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ‘आक्रामक भारत’ का निर्माण करना चाह रहे हैं. और, इसके लिए वो जिस तरह अपनी राजनीति को धार्मिक पहचान से जोड़ रहे हैं, उससे ये पूरा इलाक़ा एक भीषण युद्ध क्षेत्र में तब्दील हो सकता है. इस लेख के अनुसार अमेरिका, भारत पर इस बात का दबाव बना रहा है कि वो चीन के बढ़ते प्रभाव क्षेत्र को चुनौती दे. इसके चलते, चीन इस क्षेत्र पर अपना ध्यान लगाने को मजबूर होगा, ताकि वो सीपीईसी जैसे अपने आर्थिक और सामरिक हितों का संरक्षण कर सके. इससे पहले 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था. और भारत के लिए इसके नतीजे अच्छे नहीं रहे थे. इससे पहले, पाकिस्तान के मीडिया में कुछ ख़बरें ये दावा करते हुए भी आई थीं कि भारत धीरे-धीरे नेपाल की ज़मीन हड़प रहा है और नेपाल इसका कड़ा विरोध कर रहा है. अब ये कहना बेमानी है कि पाकिस्तान के मीडिया में आए ऐसे लेखों में न तो निष्पक्षता से पूरी स्थिति का विश्लेषण किया गया और न ही इसे लिखने वालों ने अपनी बात के हक़ में कोई ठोस तर्क दिए. पाकिस्तान के इन सभी विशेषज्ञों ने तनातनी का पूरा ठीकरा भारत पर फोड़ने में कोई देर नहीं की. जिस दिन ये लेख प्रकाशित हुआ था, उसी दिन पाकिस्तान में भविष्यवक्ता कहे जाने वाले एक न्यूज़ चैनल के एंकर ने भी इस विषय को उठाया था. क़यामत को लेकर इस एंकर की सनक को देखते हुए, उसके विरोधी उसे ‘डॉक्टर डूम’ के नाम से ही बुलाते हैं. क्योंकि, वो हर वक़्त हर घटना से तबाही की ही बात करता है. इन छोटे-मोटे ज़िक्रों को छोड़ दें, तो पाकिस्तान के मीडिया ने भारत और चीन के संघर्ष को कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी है.

अगर हम 2017 के डोकलाम संकट की बात करें, तो उस दौरान पाकिस्तान के मीडिया ने ज़ोर-शोर से इस मसले को उठाया था. सैकड़ों लेख लिखे गए थे. टीवी चैनलों पर इस विषय को लेकर लगातार डिबेट किए गए थे. लेकिन, इस बार लद्दाख में भारत और चीन के संघर्ष पर पाकिस्तान के मीडिया में कुछ ख़ास चर्चा देखने को नहीं मिल रही है. डोकलाम संकट के दौरान, पाकिस्तान के लोगों को इस बात का यक़ीन था कि सीमा पर भारत और चीन के बीच ये तनातनी कभी भी हिंसक संघर्ष में तब्दील हो सकती है. और अगर पूरी तरह युद्ध नहीं भी छिड़ा, तो भी चीन और भारत के बीच छोटी-मोटी जंग हो ही जाएगी. 2017 में जब भारत और चीन के बीच कई हफ़्तों तक संघर्ष नहीं छिड़ा, तो उस वक़्त पाकिस्तान की फ़ौज के प्रवक्ता आसिफ़ ग़फ़ूर ने फ़ेक न्यूज़ के माध्यम से तनातनी को जंग में तब्दील करने की नाकाम कोशिश भी की थी. पाकिस्तान के कई मीडिया संस्थानों को उस वक़्त एक व्हाट्सऐप मैसेज भेजा गया था. जिसमें ये दावा किया गया था कि भारत और चीन के बीच एक बड़ी झड़प हुई है. और इसमें भारत के 150 से अधिक सैनिक मारे गए हैं. ये फ़ेक न्यूज़ बहुत जल्द वायरल हो गई थी. पाकिस्तान की फ़ौज को ये उम्मीद थी कि इस फ़ेक न्यूज़ के चलते भारत की सरकार अपना संयम खो देगी और चीन के साथ हिंसक संघर्ष के लिए मजबूर हो जाएगी. जबकि, उस समय न तो भारत और न ही चीन किसी युद्ध के इच्छुक थे. इसीलिए, चीन के अधिकारियों ने फ़ौरन ही इस फ़ेक न्यूज़ को ग़लत ठहराया. जल्द ही ये पता चल गया कि ये फ़ेक न्यूज़, पाकिस्तान की फ़ौज की मीडिया एजेंसी आईएसपीआर (ISPR) ने फैलायी थी. उस दौरान इस बात की अटकलें लगाई जा रही थीं कि इस फ़ेक न्यूज़ के पीछे ख़ुद आईएसपीआर के प्रमुख मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर का हाथ था. और उन्होंने पाकिस्तान के ‘स्वतंत्र मीडिया’ को ये निर्देश दिया था कि वो इस फ़ेक न्यूज़ को फैला दें और इसे कुछ विश्वसनीयता प्रदान करें. उसी दौरान ये ख़बरें भी आई थीं कि चीन ने पाकिस्तान को हड़काया था कि वो ऐसी हरकतों से बाज़ आए. मगर, इस बार लद्दाख में संघर्ष के दौरान पाकिस्तान की ओर से कोई भी आधिकारिक बयान तक नहीं आया है. फ़र्ज़ी ख़बरों की तो बात ही छोड़ दें.

पाकिस्तान के इस पूर्व वायुसेना अधिकारी ने अपने लेख में चीन और भारत के संघर्ष और नेपाल के साथ भारत के हालिया सीमा विवाद का भी ज़िक्र किया था. और ये तर्क दिया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ‘आक्रामक भारत’ का निर्माण करना चाह रहे हैं

अब सवाल ये है कि लद्दाख में चीन और भारत के संघर्ष को लेकर पाकिस्तान की इस चुप्पी की वजह क्या है? इसके कुछ संभावित कारण हो सकते हैं. इसकी पहली वजह तो ये है कि आईएसपीआर के प्रमुख बदल गए हैं. इसके नए प्रमुख प्रचारक से ज़्यादा एक ज़िम्मेदार सैनिक का बर्ताव करते हैं. वो संयमित हैं और ऐसी अफ़वाहों को लेकर सशंकित भी. और दूसरी वजह ये हो सकती है कि भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव अब एक आम बात हो गई है और पाकिस्तानियों को ये लगता है कि उनके लिए ऐसी घटनाओं को लेकर उत्साहित होने की कोई ख़ास वजह नहीं बनती. क्योंकि सीमा पर तनातनी के इन मामलों में आमतौर पर होता यही है कि नतीजे उनकी उम्मीद से बिल्कुल ही उलट होते हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो भारत और चीन के बीच सीमा पर संघर्ष को लेकर पाकिस्तानियों में उत्साह अब तभी जगेगा, जब कोई असाधारण घटना होगी. वरना ये उनके लिए रूटीन बात हो गई है.

और आख़िर में, इस वक़्त पाकिस्तान के मीडिया के पास ख़बर के मसलों का ढेर लगा हुआ है. पहले तो कोविड-19 की महामारी का बढ़ता प्रकोप और पाकिस्तान की सरकार द्वारा इसका कुप्रबंधन ही बड़ी ख़बर है. पाकिस्तान की सरकार अभी यही नहीं तय कर पा रही है कि वो नए कोरोना वायरस से प्रभावित अपने मुल्क में लॉकडाउन को खोले या फिर जारी रखे. फिर, कोविड-19 के बुरे आर्थिक प्रभाव भी पाकिस्तान को झेलने पड़ रहे हैं. जबकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही बुरे हाल में थी. अब इस महामारी के चलते लोगों की नौकरियां जा रही हैं और अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर गई है. इसके अलावा पाकिस्तान में सियासी स्कैंडलों की भी बाढ़ सी आ गई है. साथ ही साथ कुछ वित्तीय घोटालों की जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद पाकिस्तान के सियासी समीकरण बड़े पैमाने पर बदलने के संकेत भी दिख रहे हैं. पाकिस्तान की सरकार द्वारा राष्ट्रीय वित्त आयोग में संशोधन को ज़बरदस्ती पास कराने की कोशिश एक बड़ी ख़बर बनी हुई है. क्योंकि, पाकिस्तान की मौजूदा सरकार इसके लिए 18वें संशोधन से छेड़छाड़ कर रही है. जिसके कारण, पाकिस्तान की संघीय और सूबों की सरकारों के बीच पहले से तय व्यवस्था में उलट पुलट होने का अंदेशा है. पाकिस्तान में हाल ही में एक विमान हादसा भी हुआ था. साथ ही साथ वहां के मीडिया को अफ़ग़ानिस्तान में अमन बहाली के हालिया प्रयासों में भी काफ़ी दिलचस्पी है. इसके अलावा पाकिस्तान के क़बायली इलाक़ों और उथल पुथल के शिकार बलूचिस्तान में आतंकवाद की घटनाओं में बहुत तेज़ी आ गई है. इसके अलावा, पाकिस्तान के मीडिया में कश्मीर के हालात और भारत के साथ नियंत्रण रेखा पर तनातनी और भारत व मोदी के ख़िलाफ़ नियमित रूप से होने वाली बयानबाज़ी में दिलचस्पी है. साथ ही साथ हाल के दिनों में गुज़रे ईद के त्यौहार ने भी भारत चीन के विवाद से पाकिस्तान के मीडिया का ध्यान हटाए रखा.

2017 में जब भारत और चीन के बीच कई हफ़्तों तक संघर्ष नहीं छिड़ा, तो उस वक़्त पाकिस्तान की फ़ौज के प्रवक्ता आसिफ़ ग़फ़ूर ने फ़ेक न्यूज़ के माध्यम से तनातनी को जंग में तब्दील करने की नाकाम कोशिश भी की थी

इस बात की पूरी संभावना है कि ईद की छुट्टियां ख़त्म होने के बाद, पाकिस्तान के मीडिया में चीन और भारत के संघर्ष को लेकर दोबारा वही दिलचस्पी हमें देखने को मिलेगी. तय है कि पाकिस्तान के टीवी चैनल और अख़बार दावे के साथ ये कहेंगे कि चीन ने भारत पर ‘आक्रमण’ कर दिया है. ताकि वो अपने अवाम की हौसला अफज़ाई कर सकें. क्योंकि पाकिस्तान की जनता एक ऐसे समाज में रहती है, जहां सोच ये है कि पड़ोसी की दीवार हर हाल में गिराई जानी चाहिए, भले ही ऐसा करने में आप ख़ुद उसके मलबे के नीचे दब जाएं. लेकिन, जल्द ही पाकिस्तान में बजट पेश होने वाला है. और साथ ही अन्य ख़बरें भी होंगी, जो पाकिस्तान के मीडिया को व्यस्त रखेंगी. ऐसे में अगर भारत और चीन के बीद लद्दाख या अन्य क्षेत्रों में हालात अगर बहुत बिगड़ जाते हैं, तभी वहां के मुख्य धारा का मीडिया इस ख़बर को प्रमुखता देगा. वरना तो इस मसले पर पाकिस्तान के सोशल मीडिया के योद्धा ही की-बोर्ड पर उंगलियां चटखाते रहेंगे. जबकि, मुख्य धारा का मीडिया पाकिस्तान की अन्य प्रमुख ख़बरों और चुनौतियों को तवज्जो देने में उलझा रहेगा.

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