Author : Pulkit Mohan

Published on Jun 27, 2020 Updated 0 Hours ago

वैश्विक परमाणु व्यवस्था में हम एक बार फिर प्रमुख परमाणु शक्तियों के बीच खुल कर दुश्मनी का भाव पैदा होते देख रहे हैं. आज परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों के बीच द्विपक्षी और बहुपक्षीय संवाद में वैश्विक स्तर पर कमी देखी जा रही है

एटॉमिक विश्व व्यवस्था का तेज़ी से हो रहा है विघटन

परमाणु हथियारों की वैश्विक व्यवस्था में हम एक बार फिर प्रमुख़ परमाणु शक्तियों के बीच खुल कर दुश्मनी का भाव पैदा होते देख रहे हैं. आज परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों के बीच द्विपक्षी और बहुपक्षीय संवाद में वैश्विक स्तर पर कमी देखी जा रही है


अमेरिका के विदेश विभाग ने इसी वर्ष अप्रैल महीने में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसका शीर्षक था. ‘शस्त्र नियंत्रण, अप्रसार और निरस्त्रीकरण की संधियों और प्रतिबद्धताओं की स्वीकार्यता और अनुपालन’. इस रिपोर्ट में अमेरिका द्वारा चीन के परमाणु परीक्षण के क्षेत्र लोप नुर में वर्ष 2019 में बढ़ती गतिविधि को लेकर चिंता जताई गई थी. अमेरिकी विदेश विभाग की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन, लोप नुर में बेहद कम शक्ति वाले परमाणु परीक्षण कर रहा है. जिनसे लगभग ‘शून्य विकिरण’ उत्पन्न होता है. अमेरिका का कहना था कि चीन ऐसे परमाणु परीक्षण करके व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर हस्ताक्षर करने वाले देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के लिए अपनाए जाने वाले मानकों का उल्लंघन है. अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, ‘पिछले एक वर्ष से चीन के लोप नुर में लगातार एक संभावित परमाणु परीक्षण की तैयारी होते देखा गया है. वहां पर बड़े पैमाने पर खुदाई होते देखा गया है. साथ ही साथ चीन ने लोप नुर में विस्फोटक को नियंत्रित करने के लिए चैम्बर बनाए हैं.’ दुनिया की दो बड़ी ताक़तों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंदिता और विश्व परमाण्विक व्यवस्था पर इसके प्रभाव को देखते हुए, लोप नुर में चीन की गतिविधियां, इस व्यवस्था में आई दरारों को और स्पष्ट रूप से उजागर करती हैं. इनसे साफ़ पता चलता है कि परमाणु अप्रसार की संधि और परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने की कोशिशों का लगातार क्षय हो रहा है.

यहां ये बात ख़ास तौर से ध्यान देने लायक़ है कि अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट चीन के परमाणु परीक्षण करने के ठोस सबूत नहीं पेश कर सकी है. लेकिन, इस रिपोर्ट में अमेरिका ने चीन द्वारा अपने परमाणु परीक्षण के ठिकाने पर उपरोक्त गतिविधियां चलाने को लेकर चिंता जताई गई है

यहां ये बात ख़ास तौर से ध्यान देने लायक़ है कि अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट चीन के परमाणु परीक्षण करने के ठोस सबूत नहीं पेश कर सकी है. लेकिन, इस रिपोर्ट में अमेरिका ने चीन द्वारा अपने परमाणु परीक्षण के ठिकाने पर उपरोक्त गतिविधियां चलाने को लेकर चिंता जताई गई है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा लगाए गए कम शक्ति के परमाणु परीक्षण के आरोपों को ख़ारिज करने में बिल्कुल भी देर नहीं की. चीन ने इस पर जो प्रतिक्रिया दी, उसमें विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ज़ोर देकर ये कहा कि चीन अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संधियों का ज़िम्मेदारी से अनुपालन करता है. परमाण्विक मामलों के विशेषज्ञ भी ये मानते हैं कि चूंकि चीन ने 1980 और 1990 के दशक में कम शक्ति वाले कई एटमी टेस्ट कर लिए थे. तो उसके नए परमाणु परीक्षण करने की संभावना कम ही है. क्योंकि, चीन के पास इस मामले में आवश्यक पर्याप्त आंकड़े पहले से ही मौजूद हैं. साथ ही साथ वो कंप्यूटर सिमुलेशन के माध्यम से भी अपने इन आंकड़ों को अपडेट कर रहा है. तो, उसे ऐसा करने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है. अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए आरोप और उनके जवाब में चीन की सफाई इस बात की ओर साफ़ इशारा करती हैं कि दुनिया की प्रमुख परमाणु शक्ति संपन्न ताक़तें परमाणु हथियारों की स्थिरता को लेकर किए गए अंतरराष्ट्रीय संधियों की भूमिका को ख़ारिज कर रहे हैं.

चूंकि, चीन का परमाणु हथियारों का कार्यक्रम और इससे संबंधित उसकी महत्वाकांक्षाएं हमेशा ही रहस्य के दायरे में रही हैं. इसलिए, विदेश विभाग की इस रिपोर्ट के माध्यम से अमेरिका को इस बात का अवसर प्राप्त हुआ है कि वो दुनिया की प्रमुख एटमी शक्तियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय समझौतों के पालन के विषय तो परिचर्चा के केंद्र में ले आए. अमेरिकी विदेश विभाग की ये रिपोर्ट आने के बाद एक अमेरिकी सीनेटर ने ट्रंप प्रशासन से ये मांग की कि अमेरिक परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने वाली संधि यानी CTBT से ख़ुद को अलग कर ले. क्योंकि चीन इस संधि की शर्तों का पालन नहीं कर रहा है. एक बयान में इस अमेरिकी सीनेटर ने कहा कि, ‘चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किए जाने वाले किसी भी दावे पर यक़ीन करना मूर्खता है. ख़ास तौर से परमाणु परीक्षण जैसे गंभीर मसलों पर तो चीन की बातों पर बिल्कुल ही विश्वास नहीं किया जा सकता. एक तरफ़ चीन अपने परमाणु हथियारों के ज़ख़ीरे का आधुनिकीकरण कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ़ शस्त्र नियंत्रण की इकतरफ़ा संधियों के चलते अमेरिका के हाथ बंधे हुए हैं. चीन ने ये बात बार बार साबित की है कि ये हमारे साथ ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ काम नहीं कर सकता. इसीलिए हमें व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) से ख़ुद को अलग कर लेना चाहिए.’

चीन और अमेरिका दोनों ने ही इस संधि पर हस्ताक्षर किए हुए हैं. लेकिन, अब तक दोनों ने इसकी पुष्टि नहीं की है. दोनों ही देशों की सरकारें ये दावा करती रही हैं कि वो इस संधि की सभी शर्तों का पालन कर रही हैं. लेकिन, अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट और इसके बाद अमेरिका और चीन में हुई बयानबाज़ी हमारा ध्यान परमाण्विक विश्व व्यवस्था की स्थिरता और इसके भविष्य की ओर खींचती हैं. हाल के वर्षों में परमाणु हथियारों की एक नई होड़ छिड़ने और इससे संबधित शक्ति संतुलन में बदलाव को लेकर वाद विवाद और परिचर्चाएं तेज़ हो गई हैं.

चीन ने अपने परमाणु हथियारों और इन्हें ले जाने के सिस्टम को लेकर हमेशा एक राज़दाराना तरीक़ा अपनाए रखा है. इस बात को लेकर पूरी दुनिया में चिंता है कि चीन के परमाणु हथियारों का ज़ख़ीरा आधिकारिक अनुमानों से कई गुना ज़्यादा हो सकता है. और इसके विश्व की परमाणु व्यवस्था की स्थिरता को ख़तरा हो सकता है. कई बार इस बात की मिसालें दी गई हैं कि चीन अपने परमाणु हथियारों के ज़खीरे को बढ़ा रहा है और उन्हें बेहतर बनाने पर पूरा ध्यान लगाए हुए है.

वहं दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय संधियों के भविष्य में अनुपालन को लेकर अमेरिका में मचने वाले शोर शराबे के रुख़ में भी बदलाव आया है. ख़ास तौर से परमाणु संबंधी संधियों जैसे कि CTBT. ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका के परमाणु हथियारों के ज़ख़ीरे को नए सिरे से आधुनिक बनाने और सुधारने की ओर फिर से ध्यान केंद्रित किया है. अमेरिकी प्रशासन लगातार चीन के साथ नए परमाणु समझौते करने की बात कर रहा है. और इसके साथ साथ अमेरिका अपने परमाणु हथियारों की कुल क्षमता बढ़ाने और बेहतर बनाने की बात भी कर रहा है.

इससे भी आगे जाकर अमेरिका ने मांग की है कि रूस के साथ शस्त्र नियंत्रण की परिचर्चाओं में चीन को भी शामिल किया जाना चाहिए. परमाणु हथियारों की संख्या सीमित करने को लेकर वार्ताएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं. क्योंकि चीन और रूस इस मुद्दे पर अमेरिका की दरख़्वास्तों को लेकर आशंकित हैं. और वो इस मुद्दे पर वार्ता करने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. अमेरिका और रूस के बीच इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फ़ोर्स ट्रीटी (INF Treaty) के विघटन के बाद अब दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों की संख्या सीमित करने को लेकर हु स्टार्ट संधि (START) पर भी ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में ये बात बिल्कुल साफ़ हो जाती है कि अंतरराष्ट्रीय संधियों की विश्वसनीयता में लगाार गिरावट आती जा रही है.

वैश्विक परमाणु व्यवस्था में हम एक बार फिर प्रमुख परमाणु शक्तियों के बीच खुल कर दुश्मनी का भाव पैदा होते देख रहे हैं. आज परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों के बीच द्विपक्षी और बहुपक्षीय संवाद में वैश्विक स्तर पर कमी देखी जा रही है. अब जबकि कई देशों की परमाणु नीति में आक्रामक परिवर्तन आ रहा है. और कई देश अपने परमाणु हथियारों के ज़ख़ीरे की शक्ति का विस्तार और सुधार करने की ओर बढ़ रहे हैं. इस संबंध में नई तकनीकों के आने और परमाणु हथियार ले जाने के सिस्टम में लगातार बेहतरी होते जाने के साथ साथ अमेरिका और चीन के बीच लगातार बिगड़ते संबंध परमाणु विश्व व्यवस्था के लिए भयंकर ख़तरा पैदा कर रहे हैं. अब परमाणु विश्व व्यवस्था में हम प्रमुख एटमी ताक़तों के बीच नई महत्वाकांक्षाओं और प्रतिद्वंदिता के उसी दौर का एक बार फिर उदय होते देख रहे हैं, जैसा हमने अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध के दौरान होते देखा था.

चीन और अमेरिका के बीच अविश्वास की गहरी खाई केवल परमाणु हथियारों के मसले तक सीमित नहीं है. इस अविश्वास के दायरे में व्यापार भी है और हाल में उत्पन्न हुए कोविड-19 के संकट ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को बढ़ा दिया है. हालांकि, अमेरिका और चीन के बीच इस तनातनी को विश्व में आ रहे बाक़ी परिवर्तनों से अलग करके देखना ग़लत होगा. आज अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के बीच असरदार सामारिक परिचर्चाओं की आवश्यकता और अहमियत पर बल देने की ज़रूरत है. लेकिन, इन शक्तियों के बीच वार्ता की सफलता में मौजूदा दौर के तनाव और पेचीदा परिस्थितियां बाधाएं खड़ी कर रही हैं. और संभवत; ये तनाव अभी आगे और बढ़ेगा. परमाणु हथियारों के संदर्भ में कहें तो दुनिया की बड़ी ताक़तों के बीच बढ़ती दुश्मनी परमाणु अप्रसार की मौजूदा व्यवस्था के दायरे से भी आगे जाती है. और महाशक्तियों के बीच बढ़ती इस तनातनी से हमें ये संकेत मिल रहे हैं कि परमाणु संतुलन की मौजूदा विश्व व्यवस्था तेज़ी से विघटन की ओर बढ़ रही है. और इसका नतीजा हम परमाणु हथियारों की बेहद महंगी होड़ के और तेज़ होने के तौर पर देख सकते हैं.

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