Published on Jul 06, 2020 Updated 0 Hours ago

कुछ देर के लिए भले ही अर्थव्यवस्था की कहानी थम गई हो लेकिन कोविड-19 की दुनिया ने दिखा दिया है कि ये एशियाई वापसी की कहानी भी है.

कोविड-19 का जन्म भले ही एशिया में हुआ है, लेकिन तबाही पश्चिमी देशों में ज़्यादा हुई है

भौगोलिक नियम सरल हैं: सूरज पूरब से निकलता है और पश्चिम में अस्त होता है. लेकिन भूराजनीतिक मामलों में कम-से-कम पिछले 200 सालों में, तकनीकी आविष्कार से लेकर संप्रभुता और उदारवादी लोकतांत्रिक नियम तक, सभी चीज़ें पश्चिम से पूरब की तरफ़ आई है.

पश्चिमी लोकतंत्र को लेकर ‘आदर्शवाद’ की अनुभूति रही है. पूर्वी यूरोप और उत्तर अमेरिकी देशों को लंबे समय से विकसित समाज की मिसाल के तौर पर देखा जाता रहा है. मज़बूत बुनियादी ढांचे के साथ सुदृढ़ अर्थव्यवस्था, कथित क्वालिटी हेल्थकेयर, लोगों को मत देने का अधिकार, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ज़्यादातर समय तानाशाही से परहेज करना- ये वो ख़ूबियां हैं जिनकी वजह से पश्चिमी देशों को विकसित समाज माना जाता है.

ये देश प्लेग और दूसरी महामारी के उत्पति स्थल से दूर माने जाते रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद कोविड-19 ने बेरहमी से स्पेन, इटली, जर्मनी, फ्रांस, यूके और यहां तक कि अमेरिकी के हेल्थकेयर सिस्टम की ख़ामियों को भी उजागर कर दिया है. एशिया और पश्चिमी देशों के बीच कोविड-19 से मौतों और सरकार के जवाब की तुलना करें तो दोनों बिल्कुल अलग-अलग हैं.

वियतनाम की आपातकालीन योजना “किसी भी चीज़ के अत्यावश्यक बनने से पहले उसे करो” के दृष्टिकोण की प्रतीक है. ये ऐसा दृष्टिकोण है जिसे पश्चिमी देशों ने नहीं अपनाया

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपने बयानों में तीखे रहे हैं. वो अपने प्रशासन की आलोचना से ध्यान भटकाने के लिए कोविड-19 को चीनी संकट के तौर पर पेश कर रहे हैं. वो भले ही कुछ भी कहें लेकिन आम तौर पर एशिया के देशों ने संकट को ज़्यादा असरदार ढंग से संभाला है.

बावर ग्रुप एशिया का ताज़ा कोविड-19 ट्रैकर बताता है कि वियतनाम, कंबोडिया और लाओस- इन तीनों देशों में कोविड-19 से एक भी मौत नहीं हुई है. ये ‘उभरते हुए बाज़ार’ हैं लेकिन पड़ोसी देश सिंगापुर की डिजिटल और हेल्थकेयर विशेषज्ञता से दूर हैं. चीन से उनकी नज़दीकी, जहां सबसे पहले वायरस मिला था, ने उन्हें कोरोना वायरस की चर्चा के केंद्र में डाल दिया.

चीन से लंबी सरहद और 10 करोड़ से कुछ ही कम आबादी के बावजूद वियतनाम ने मरीज़ों के ठीक होने में शानदार कामयाबी हासिल की और वहां एक भी मौत नहीं हुई. वियतनाम में 300 से कुछ ही ज़्यादा कोविड-19 के मामले आए हैं.

प्रधानमंत्री गुयान शुआन फू ने महामारी को काबू करने के लिए सरकारी अधिकारियों और लोगों की कोशिशों की तारीफ़ की है. वियतनाम अब पाबंदियों में ढील देने के लिए अच्छी हालत में है. जब वियतनाम में जनवरी के आख़िर में वुहान से लौटे एक यात्री में कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि हुई तो देश ने तेज़ी से काम किया.

वियतनाम की आपातकालीन योजना “किसी भी चीज़ के अत्यावश्यक बनने से पहले उसे करो” के दृष्टिकोण की प्रतीक है. ये ऐसा दृष्टिकोण है जिसे पश्चिमी देशों ने नहीं अपनाया. नज़दीकी के मामले में ताइवान पर संक्रमण का सबसे ज़्यादा ख़तरा था क्योंकि चीन और ताइवान के बीच बड़ी तादाद में लोग आते-जाते थे. लेकिन इसके बावजूद महामारी को जवाब देने में ताइवान आगे रहा. इस लड़ाई में ताइवान ने आंकड़ों का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया.

दूसरे देशों को बताने के लिए ताइवान के पास कई अनुभव हैं लेकिन विडंबना है कि भू-राजनैतिक अव्यवस्था की वजह से ताइवान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का हिस्सा नहीं है

2003 में जब SARS महामारी फैली थी तो एशिया के कई देशों को इसने दर्द दिया था. यही वजह है कि ताइवान का स्वास्थ्य विभाग किसी भी अप्रिय स्थिति के लिए तैयार था. स्वास्थ्य विभाग ने शुरुआत में ही कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, मास्क के आयात और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) की सप्लाई को लेकर क़दम उठाए.

दूसरे देशों को बताने के लिए ताइवान के पास कई अनुभव हैं लेकिन विडंबना है कि भू-राजनैतिक अव्यवस्था की वजह से ताइवान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का हिस्सा नहीं है. अगर कोविड-19 की तेज़ रफ़्तार को रोकने में किसी देश का नाम लिया जाएगा तो वो दक्षिण कोरिया है. एक समय में चीन, इटली और ईरान के साथ दक्षिण कोरिया दुनिया के 4 सबसे ज़्यादा संक्रमित देशों में शामिल था लेकिन 3 हफ़्ते के भीतर असरदार कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के ज़रिए महामारी की रफ़्तार थाम दी और कोविड-19 की दूसरी लहर को बिना किसी बड़े लॉकडाउन के रोक दिया.

दक्षिण कोरिया के ठीक पीछे मलेशिया है जहां हर 10 लाख की आबादी पर क़रीब 200 केस हैं. मलेशिया के इकोहेल्थ अलायंस के एक वैज्ञानिक के मुताबिक़ मलेशिया जहां कोविड-19 का अच्छे तरीक़े से जवाब दे रहा था, वहीं देश के स्वास्थ्य अधिकारी ख़ास तौर पर स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉ. नूर हिशम बिन अब्दुल्ला हर रोज़ लोगों को इस लड़ाई के बारे में जानकारी दे रहे थे. मौजूदा समय में मलेशिया में 8 हज़ार से कम मामले हैं और ज़्यादातर दिनों में एक, दो या किसी की मौत नहीं हो रही है (फिलहाल ये आंकड़ा कुल मिलाकर 120 है). मलेशिया ने संक्रमित इलाक़ों में अपने मूवमेंट कंट्रोल ऑर्डर (MCO) और कुछ मामलों में एन्हांस्ड मूवमेंट कंट्रोल ऑर्डर (EMCO) के ज़रिए ख़तरे की आशंका वाली आबादी के बड़े हिस्से को क्वॉरंटीन और आइसोलेट किया.

लेकिन आर्थिक आधिपत्य, मज़बूत घरेलू संस्थान और किसी संकट से निपटने की क्षमता की वजह से क्षेत्रीय सेनापति की उपाधि सिंगापुर को दी जाती है. चीन के नये साल के मौक़े पर जब बड़ी संख्या में चीनी सैलानियों का सिंगापुर आना शुरू हुआ तो वैश्विक समुदाय की नज़र महामारी से लड़ने और वायरस को बेअसर करने में सिंगापुर की ओर थी.

सिंगापुर के संस्थानों के असरदार होने के अलावा ये देश SARS के समय से ही महामारी से निपटने के लिए तैयार था. दो दशक पहले SARS ने एशिया के बड़े हिस्से को उजाड़ दिया था. सिंगापुर में उस वक़्त 33 लोगों की मौत हुई थी. सिंगापुर ने सख़्ती से लॉकडाउन लागू किया, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की, सीमित संख्या में लोगों को अपने देश आने दिया. इन क़दमों की वजह से लंबे वक़्त तक सिंगापुर में किसी की मौत नहीं हुई.

लेकिन सिंगापुर में अब 23 लोगों की मौत हो चुकी है और 10 हज़ार से ज़्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. हाल के दिनों में मामले बढ़े हैं. शुरुआत में ज़्यादा मरीज़ दूसरे देशों से आए थे लेकिन अब इसकी वजह स्थानीय संक्रमण को बताया जा रहा है. लेकिन सिंगापुर ने लोगों की आवाजाही पर सख़्त पाबंदी लगाई है, लोगों को इकट्ठा होने से रोका जा रहा है, गैर-ज़रूरी कारोबार को बंद किया गया है और कठोरता से वर्क फ्रॉम होम को लागू किया गया है.

कोविड-19 के ख़िलाफ़ मिली-जुली लड़ाई लड़ने वाला एक और देश जापान है. चीन के बाहर जापान उन पहले देशों में है जिसने 16 जनवरी को बीमारी का पता लगाया था. जापान की राजधानी टोक्यो, जो 2020 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाला था, अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों का स्वागत करने के लिए तैयारी कर रहा था. मेजबानी के सम्मान के अलावा मंदी को टालने के मक़सद से भी जापान के लिए ओलंपिक बेहद ज़रूरी था. लेकिन ओलंपिक रद्द होने और कोविड-19 की समस्या के कारण जापान की दिक़्क़त और भी बढ़ गई है.

जापान ने जताया कि वहां मामले काबू में हैं और मार्च के आख़िर तक अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी और विश्व समुदाय को ये मनाने की कोशिश में लगा था कि जुलाई तक हालात सामान्य हो जाएंगे और ओलंपिक समय पर होना चाहिए. लेकिन अचानक मामलों में तेज़ी की वजह से जापान कामयाब नहीं हो पाया.

इस बीच भारत महामारी में फंसा रहा। जब वायरस फैला और सोशल डिस्टेंसिग नियम बन गया तो भारत जैसा भीड़-भाड़ वाला देश, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा ख़ुद को आइसोलेट नहीं कर सकता, मजबूर हो गया

जापान के तट पर खड़ा संक्रमित क्रूज़ शिप डायमंड प्रिंसेज़ महामारी का बड़ा केंद्र बन गया. डायमंड प्रिंसेज़ की वजह से जापान चर्चा में आ गया. जापान के क्वॉरंटीन के तरीक़ों की आलोचना हुई. जापान में मामले बढ़ने पर आपातकाल लागू किया गया. जापान को महामारी की दूसरी और तीसरी लहर का भी सामना करना पड़ा.

जनवरी की शुरुआत में पहला केस आने के बाद जापान की 12.6 करोड़ आबादी में से एक हज़ार से कम लोगों की ही मौत हुई है. इस बात को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि न्यूयॉर्क सिटी में बीमारी के चरम पर होने के दौरान जितने लोगों की मौत एक दिन में होती थी, उससे कम पूरे जापान में अब तक हुई है.
14 मई को जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने जापान के 47 में से 39 परफेक्चर से आपातकाल हटाने का एलान किया. 25 मई को आबे ने घोषणा की कि जापान में आपातकाल और महामारी का संकट ख़त्म हो गया है. लेकिन इसके बावजूद वहां के लोगों ने जापान की सरकारी की उतनी तारीफ़ नहीं की है जितनी दक्षिण कोरिया की हुई है. वास्तव में प्रधानमंत्री आबे की लोकप्रियता रेटिंग में तब से गिरावट आई है.

इस बीच भारत महामारी में फंसा रहा। जब वायरस फैला और सोशल डिस्टेंसिग नियम बन गया तो भारत जैसा भीड़-भाड़ वाला देश, जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा ख़ुद को आइसोलेट नहीं कर सकता, मजबूर हो गया. भारत न तो चीन की तरह बेरहमी से सख़्त नियंत्रण लागू कर सकता है, न ही भारत के पास तकनीकी निगरानी की क्षमता है जिसकी मदद से 1 अरब से ज़्यादा लोगों पर नज़र रखी जा सके.

दुनिया भर में कोविड-19 के असर से कमाई की असमानता बढ़ने के बीच प्रवासी मज़दूरों और रोज़ाना कमाने वालों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा. लेकिन भारत ने दूसरे देशों के मुक़ाबले शुरुआती कुछ हफ़्तों के दौरान मामलों पर नियंत्रण रखा। इसे चमत्कार भी कहा गया. देशव्यापी लॉकडाउन लागू करने और बड़ी आबादी के बावजूद सख़्त क्वॉरंटीन उपायों की वजह से सरकार की तारीफ़ भी हुई. नौकरशाही की उलझन अपनी जगह है लेकिन प्रमुख मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों में सहमति रही.

लेकिन पिछले कुछ दिनों में मामलों में अचानक तेज़ी आई है और महाराष्ट्र महामारी का केंद्र बन गया है. चीन से ज़्यादा मौत के आंकड़े के बाद ये देखना बाक़ी है कि महामारी भारत में चरम पर पहुंची है या नहीं. कोविड-19 से पहले की दुनिया इस सदी को एशिया की सदी बता रही थी जो भारत, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया की बढ़ती अर्थव्यवस्था का सबूत है. कुछ देर के लिए भले ही अर्थव्यवस्था की कहानी थम गई हो लेकिन कोविड-19 की दुनिया ने दिखा दिया है कि ये एशियाई वापसी की कहानी भी है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.