21 मई को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि अमेरिका, स्वयं को ओपन स्काई ट्रीटी से अलग करने का इरादा जताने के लिए नोटिस जारी कर रहा है. यह संधि 1992 में हुई थी और इसे वर्ष 2002 में लागू किया गया था. इस वक़्त इस समझौते के 35 सदस्य हैं.[i] (किर्गीज़िस्तान ने इस समझौते पर दस्तख़त किए थे, परंतु अभी उसने इसे मंज़ूरी नहीं दी है). कनाडा और हंगरी इस संधि के ‘डिपॉज़िटरी’ देश या संरक्षक राष्ट्र हैं. अमेरिका ने इस समझौते से ख़ुद को अलग करने के लिए जो कारण बताया है, उसके अनुसार रूस इस संधि की शर्तों का लगातार उल्लंघन कर रहा है. और इसी आधार पर अमेरिका इस नतीजे पर पहुंचा है कि अब इस संधि का हिस्सा बने रहना उसके हित में नहीं है. हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप ने ये भी कहा कि, अमेरिका का मुक्त आकाश संधि से अलग रहने का फ़ैसला छह महीने बाद लागू होगा (जैसा कि इस संधि की शर्तों में उल्लेख किया गया है). लेकिन, अमेरिका अपने इस फ़ैसले पर फिर से विचार करने को राज़ी है अगर रूस, इस समझौते की शर्तों का पूरी ईमानदारी से पालन करने को सहमत हो.
इस वर्ष के आरंभ में अमेरिका ने ये शंका ज़ाहिर की थी कि रूस और चीन चोरी छुपे कम शक्ति वाले परमाणु परीक्षण कर रहे हैं, जिनसे विकिरण बिल्कुल भी नहीं होता. अमेरिका का कहना है कि रूस और चीन ऐसा करके सीटीबीटी की शून्य विकिरण वाले विस्फोट भी न करने की शर्त का उल्लंघन कर रहे हैं
शस्त्र नियंत्रण की बिखरती संरचना
इस बात की अपेक्षा काफ़ी पहले से ही की जा रही थी कि अमेरिका स्वयं को ओपन स्काई ट्रीटी से अलग कर लेगा. क्योंकि, हाल के कुछ वर्षों में अमेरिका ने कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से ख़ुद को अलग कर लिया है. जैसे कि, उसने ईरान से परमाणु समझौते (ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन- JCPOA) से ख़ुद को अलग किया था. ये समझौता एक तरफ़ तो अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, चीन, जर्मनी और यूरोपीय संघ व दूसरी तरफ़ ईरान के बीच हुआ था. लेकिन, 8 मई 2018 को ट्रंप ने इस संधि से अमेरिका को अलग करने का एलान किया था. इसके बाद, 2 अगस्त 2019 को अमेरिका ने रूस के साथ इंटरमीडियेट रेंज न्यूक्लियर फ़ोर्सेज ट्रीटी (INFT) तोड़ने का भी फ़ैसला किया है.
अब दो अन्य परमाणु समझौतों के भी आने वाले समय में बिखरने की आशंका है. अमेरिका और रूस के बीच वर्ष 2010 में न्यू स्टार्ट (New START) संधि हुई थी. इस समझौते की शर्तों के अनुसार, अमेरिका और रूस के सक्रिय सामरिक परमाणु हथियारों की संख्या सीमित की गई थी. दोनों ही देश अधिकतम 700 लॉन्चर और 1550 परमाणु हथियार रख सकते हैं. इस समझौते की अवधि फ़रवरी 2021 में समाप्त हो रही है. और इसे अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाए जाने की संभावना कम ही है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वो इस संधि की समय सीमा को और आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं.
एक और परमाणु समझौता जिसपर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं, वो है कॉम्प्रिहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी या सीटीबीटी (CTBT). सदस्य देशों के बीच ये समझौता वर्ष 1996 में ही हो गया था. लेकिन, अब तक ये संधि लागू नहीं हुई है. सीटीबीटी, सदस्य देशों पर परमाणु परीक्षण के लिए विस्फोट न करने की बाध्यता लागू करती है. लेकिन, इस वर्ष के आरंभ में अमेरिका ने ये शंका ज़ाहिर की थी कि रूस और चीन चोरी छुपे कम शक्ति वाले परमाणु परीक्षण कर रहे हैं, जिनसे विकिरण बिल्कुल भी नहीं होता. अमेरिका का कहना है कि रूस और चीन ऐसा करके सीटीबीटी की शून्य विकिरण वाले विस्फोट भी न करने की शर्त का उल्लंघन कर रहे हैं. हालांकि, अमेरिका ने इस समझौते पर हस्ताक्षर तो कर दिए थे. लेकिन अभी उसने इस संधि को मंज़ूरी नहीं दी है. और अमेरिका ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वो भविष्य में परमाणु परीक्षण करने की योजना बना रहा है.
ओपन स्काई ट्रीटी की मूल परिकल्पना ये है कि इसके सदस्य देश, एक दूसरे के क्षेत्र में बिना हथियारों वाले विमान की उड़ान भर सकते हैं. इस संधि का मक़सद, सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और स्थिरता उत्पन्न करना था.
कैसे हुई थी ओपन स्काई ट्रीटी?
ओपन स्काई ट्रीटी की मूल परिकल्पना ये है कि इसके सदस्य देश, एक दूसरे के क्षेत्र में बिना हथियारों वाले विमान की उड़ान भर सकते हैं. इस संधि का मक़सद, सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और स्थिरता उत्पन्न करना था. ताकि, संभावित विरोधी राष्ट्रों के बीच भरोसा पैदा किया जा सके. सबसे पहले वर्ष 1955 के मध्य में उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइज़नहॉवर ने इस संधि का प्रस्ताव जेनेवा में सोवियत संघ के प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन के सामने रखा था. हालांकि, तब सोवियत संघ ने इस समझौते में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. लेकिन, बर्लिन की दीवार गिरने के बाद दिसंबर 1989 में उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने इस विचार को दोबारा ज़िंदा किया. और तब के सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. समझौते के लिए नाटो (NATO) और वार्सा संधि के सदस्य देशों के बीच बातचीत शुरू हुई. इस संधि की बातचीत को यूरोप के ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर सिक्योरिटी ऐंड को-ऑपरेशन (OSCE) ने भी अपना समर्थन दिया. आज भी मुक्त आकाश सलाहकार आयोग का संचालन (OSCE) ही करता है. मुक्त आकाश संधि के लिए वार्ता 24 मार्च 1992 समाप्त हो गई. और ये संधि एक जनवरी 2002 से लागू हुई थी. 1991 के मध्य में वार्सा संधि का अस्तित्व समाप्त हो गया. इससे कई महीने पहले सोवियत संघ का भी विघटन हो गया था. आज नाटो (NATO) के 29 में से 27 देश मुक्त आकाश संधि के सदस्य हैं.
ओपन स्काई ट्रीटी के माध्यम से सदस्य देशों के बीच ऐसी व्यवस्था की स्थापना होती है, जिसके अंतर्गत, बहुत कम समय के नोटिस पर बिना हथियारों वाले विमान, सदस्य देशों के क्षेत्रों में उड़ान भर सकते हैं. ये उड़ानें हर सदस्य देश के आरक्षित कोटे के हिसाब से होती हैं. एक देश किसी दूसरे देश के यहां अपने कितने विमानों की उड़ान का हक़दार है, ये बात किसी देश के क्षेत्रफल के हिसाब से तय होती है. मिसाल के तौर पर, अमेरिका ऐसी निगरानी वाली 42 उड़ानें भर सकने का हक़दार है. रूस के पास भी इतनी ही फ्लाइट का अख़्तियार है. हालांकि, इसमें बेलारूस का भी थोड़ा हिस्सा है. वहीं, पुर्तगाल केवल दो उड़ानें भर सकता है. इस कोटे से न सिर्फ़ सदस्य देशों की अपनी फ्लाइट की संख्या तय होती है. बल्कि, उनके यहां दूसरे सदस्य देशों के विमानों की उड़ान की संख्या भी तय होती है. इसे ‘पैसिव कोटा (passive quota)’ कहते हैं. जबकि उड़ानों के अधिकार को ‘एक्टिव कोटा (active quota)’ कहते हैं. मुक्त आकाश संधि के सदस्य देश आपस में मिलकर अपने अपने हिस्से की फ्लाइट का नए सिरे से आबंटन कर सकते हैं. वर्ष 2002 के बाद से इस समझौते के तहत सभी देशों ने मिलकर 1500 से अधिक उड़ानें भरी हैं. वहीं, हाल के बरसों में अमेरिका ने सालाना लगभग 14 से 16 उड़ानें दूसरे देशों को भेजी हैं. वहीं, रूस ने हर साल चार से नौ के बीच फ्लाइट दूसरे देशों में भेजी हैं.
मुक्त आकाश संधि के तहत हर देश को दूसरे सदस्य देश के ऊपर अपने विमान भेजने के लिए तय सीमा के तहत नोटिस देनी होती है. और ज़रूरत पड़ने पर ये भी बताना पड़ता है कि उसका विमान कहां ईंधन भरने की ज़रूरत पड़ने पर उतर सकता है. ख़ासतौर से अमेरिका, कनाडा और रूस के विशाल क्षेत्रों में. जिस देश की निगरानी की जा रही होती है, वो इन फ्लाइट के क्षेत्रों में बदलाव करने का प्रस्ताव रख सकता है. और इन उड़ानों के रास्ते बदलने के नियम भी संधि के तहत तय हैं. सदस्य देश, दूसरे देशों की निगरानी के लिए कौन से विमान इस्तेमाल करेंगे, ये भी मुक्त आकाश संधि के तहत तय किया गया है. ओपन स्काई ट्रीटी के तहत, दूसरे देशों के ऊपर उड़ान भरने वाले विमानों में चार तरह के सेंसर लगाने पर सहमति बनी है. ऑप्टिकल, पैनोरामिक और फ्रेमिंग कैमरा, इन्फ्रा रेड लाइन स्कैनिंग यंत्र, और बगल से निगरानी करने वाले सिंथेटिक एपरचर वाले रडार. हर उड़ान के दौरान जो भी आंकड़े एकत्र किए जाते हैं, उसकी एक प्रति उस देश को भी मुहैया कराई जाती है, जिसके ऊपर विमान ने उड़ान भरी होती है. अन्य देश भी आवश्यकतानुसार ये आंकड़े हासिल कर सकते हैं. नई सेंसर तकनीक विकसित करने जैसे मसलों पर चर्चा के लिए संधि के तहत नियमित रूप से समीक्षा बैठकें भी होती हैं. ताकि, नई सेंसर की मंज़ूरी की नई लिस्ट पर सदस्य देशों के बीच सहमति बनाई जा सके.
जहां एक ओर रूस और अन्य देशों ने अपने निगरानी विमान और सेंसर को बहुत हद तक अपग्रेड कर लिया है. वहीं, अमेरिका फंड की कमी के चलते ऐसा नहीं कर पाया है
अमेरिका मुक्त आकाश संधि से क्यों हट रहा है?
जहां एक ओर रूस और अन्य देशों ने अपने निगरानी विमान और सेंसर को बहुत हद तक अपग्रेड कर लिया है. वहीं, अमेरिका फंड की कमी के चलते ऐसा नहीं कर पाया है. इसकी एक वजह ये भी है कि अमेरिका अपने सैटेलाइट की मदद से दूसरे देशों के बारे में उसी गुणवत्ता के आंकड़े हासिल कर लेता है, जैसे विमानों से निगरानी के ज़रिए किए जाते हैं. कोई अन्य देश अमेरिकी उपग्रहों की निगरानी की क्षमता का मुक़ाबला नहीं कर सकता है. सदस्य देशों के बीच सैटेलाइट से जुटाए गए आंकड़े साझा करने पर पाबंदी है. और इसीलिए, अमेरिका इन आंकड़ों को अन्य सदस्य देशों के साथ आपसी रज़ामंदी के हिसाब से साझा करता है. ऐसे में अमेरिका के ओपन स्काई ट्रीटी का कोई ख़ास महत्व नहीं रह गया है. क्योंकि वो सैटेलाइट से ही बेहतर ख़ुफ़िया आंकड़े जुटा लेता है. जैसे-जैसे अमेरिका और रूस के बीच तनाव बढ़ रहा है, वैसे-वैसे अमेरिका रूस के साथ अपने क्षेत्र में पारदर्शिता स्थापित करने से बच भी रहा है.
2015 के बाद से ही, अमेरिका इस बात को लेकर चिंता जताता आ रहा है कि रूस, मुक्त आकाश संधि की शर्तों का पालन करने में आनाकानी कर रहा है. या तो वो अपने यहां उड़ान भरने की इजाज़त देने में देर करता है. या फिर इसके लिए बहुत कड़ी शर्तें लगा देता है. अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा हाल ही में मुक्त आकाश संधि के अनुपालन के बारे में जारी की गई रिपोर्ट में इसका विस्तार से ज़िक्र किया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2019 में रूस ने कालिनिनग्राड के ऊपर केवल 500 किलोमीटर के दायरे में उड़ान भरने की शर्त लगाई. इसी तरह, जॉर्जिया के अब्ख़ाज़िया और साउथ ओसेशिया इलाक़ों में उड़ान के लिए भी रूस ने अमेरिकी विमानों पर कड़ी शर्तें लगाई थीं. साथ ही साथ अमेरिकी विदेश विभाग का ये भी कहना था कि रूस ने पूर्वी यूक्रेन और क्राइमिया के ऊपर भी उसके विमानों के उड़ने पर कई पाबंदियां लगा दी थीं. ऐसे में अमेरिका के ओपन स्काई ट्रीटी से हटने की भूमिका पहले से ही बन रही थी.
अमेरिका के सहयोगी देशों ने उसके इस संधि से हटने के फ़ैसले पर निराशा जताई है. वहीं, रूस ने संधि की शर्तों का पालन न करने के अमेरिका के सभी आरोपों का सख़्ती से खंडन किया है
अमेरिका के सहयोगी देशों ने उसके इस संधि से हटने के फ़ैसले पर निराशा जताई है. वहीं, रूस ने संधि की शर्तों का पालन न करने के अमेरिका के सभी आरोपों का सख़्ती से खंडन किया है. रूस ने कहा है कि अमेरिका सभी बहु-पक्षीय समझौतों से हटने के लिए ये बहानेबाज़ी कर रहा है. वो ख़ासतौर से शस्त्र नियंत्रण के आपसी समझौतों से हटना चाहता है. इसके लिए रूस ने ईरान के साथ परमाणु समझौते और आईएनएफ ट्रीटी से हटने के अमेरिका के क़दमों का हवाला दिया है. हालांकि, अमेरिका के इस क़दम के बदले में वो क्या क़दम उठाएगा, इसके संकेत रूस ने नहीं दिए हैं. साफ़ है कि अगर अमेरिका, मुक्त आकाश संधि से हटता है, तो रूस के लिए भी इसके कोई ख़ास मायने नहीं रह जाएंगे. क्योंकि तब रूस के विमान अमेरिका के ऊपर निगरानी वाली उड़ान नहीं भर सकेंगे. और ये फ्लाइट सिर्फ़ यूरोप और कनाडा तक सीमित रह जाएंगी. हो सकता है कि अगले छह महीने बाद अमेरिका के हटने के बाद मुक्त आकाश संधि कुछ और दिनों तक घिसट-घिसटकर चलती रहे. लेकिन, तय है कि इसके अंत का काउंटडाउन शुरू हो गया है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.