Author : Navdeep Suri

Published on May 02, 2020 Updated 0 Hours ago

ऑस्ट्रेलिया की अप्रवासन नीति यहां के राजनेताओं के लिए याद ताज़ा कराने वाला मुद्दा रहा है और सत्ताधारी गठबंधन की ख़ासियत रही है कि उसने किसी भी तरह के अवैध अप्रवासन के ख़िलाफ़ कठोर रुख़ अपना रखा है.

कोविड-19 की महामारी से दोराहे पर आ खड़ा हुआ है ऑस्ट्रेलिया

जिस तरह कहावतों में ऊंट के रीढ़ की हड्डी टूट जाती है, कोविड-19 उसी तरह है. ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पिछले क़रीब एक दशक से घिसट-घिसट कर चल रही है. तरक़्क़ी की रफ़्तार उम्मीद से कम थी लेकिन ‘भाग्यशाली देश’ का तमगा बरकरार रहा. OECD अर्थव्यवस्था में ऑस्ट्रेलिया एकमात्र देश था जिसने 1990 से आर्थिक मंदी नहीं देखी थी. 1997 के एशियाई वित्तीय संकट और 2000-01 की व्यापक आर्थिक मंदी को ऑस्ट्रेलिया ने झेला. ऑस्ट्रेलिया के लौह अयस्क, कोयला और तांबा को लेकर चीन की लालची नज़र के दम पर इसने 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट को भी मात दे दी.

ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था पिछले क़रीब एक दशक से घिसट-घिसट कर चल रही है. तरक़्क़ी की रफ़्तार उम्मीद से कम थी लेकिन ‘भाग्यशाली देश’ का तमगा बरकरार रहा

वो युग अब अचानक थम रहा है. कुछ यूरोपीय देशों के मुक़ाबले ऑस्ट्रेलिया में लागू लॉकडाउन कम सख़्त है लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसका असर साफ़ दिखने लगा है. ब्लूमबर्ग के अनुमान के मुताबिक़ ऑस्ट्रेलिया तीन दशकों में पहली बार न सिर्फ़ मंदी का सामना करेगा बल्कि 1931 के ग्रेट डिप्रेशन के बाद सबसे बड़ा आर्थिक दबाव झेलने वाला है. 2020 के शुरुआती तीन तिमाही में GDP 10% तक गिरने का अनुमान है और अर्थव्यवस्था को 2019 के स्तर तक पहुंचने में तीन साल तक का समय लग सकता है. प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और उनकी टीम ने कई महत्वाकांक्षी मौद्रिक और वित्तीय उपायों का एलान किया है जिससे कि कारोबार को दिवालिया होने से बचाया जा सके और बेरोज़गारी की दर को नियंत्रण में रखा जा सके. सबको मिलाया जाए तो अभी तक जिन राहत पैकेज का एलान किया गया है, वो 320 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (165 अरब अमेरिकी डॉलर) के बराबर हैं या GDP के 16.4% के बराबर. लेकिन कोविड-19 के हमले से अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से, पर्यटन, रिटेल, शिक्षा और मनोरंजन के लड़खड़ाने की वजह से ये मुमकिन है कि ऑस्ट्रेलिया के लोगों की एक पूरी पीढ़ी ज़िंदगी में पहली बार लंबी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करेगी. इसकी वजह से एक ऐसे देश में सरकार और समाज- दोनों के सामने महत्वपूर्ण चुनौती पेश होगी जो हमेशा ‘दूरियों के ज़ुल्म’ को लेकर सतर्क रहा है.

ऑस्ट्रेलिया को अपने साथी देशों के मुक़ाबले लंबी और गहरी आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा लेकिन जब-जब ऑस्ट्रेलिया ने अर्थव्यवस्था को खोलने का फ़ैसला लिया उसे अपने साथी देशों के मुक़ाबले छोटी और हल्की आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा

प्रतिष्ठित पत्रकार जॉर्ज मेगालोजेनिस की 2015 की एक किताब जिसका नाम ‘ऑस्ट्रेलियाज़ सेकेंड चांस: व्हॉट आवर हिस्ट्री टेल्स अस अबाउट द फ्यूचर’ में कुछ दिलचस्प संकेत हैं. मेगालोजेनिस 150 साल के अप्रवास और आर्थिक आंकड़ों को देखते हैं और इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि जब-जब ऑस्ट्रेलिया में आर्थिक मंदी आई है, उसके नेतृत्व ने दो में से एक विकल्प को चुना है: मुश्किल के लिए ख़ुद को तैयार करना, विदेशी प्रवासियों के लिए देश को बंद करना और नौकरियों की रक्षा के लिए टैरिफ बढ़ा देना या प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए टैरिफ को कम करना और देश को विदेशी प्रवासियों के लिए इस उम्मीद में खोलना कि उनकी तरफ़ से पैदा डिमांड अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर ले जाएगी. उनके आंकड़े बताते हैं कि जब-जब नेतृत्व ने अर्थव्यवस्था को बंद किया, ऑस्ट्रेलिया को अपने साथी देशों के मुक़ाबले लंबी और गहरी आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा लेकिन जब-जब ऑस्ट्रेलिया ने अर्थव्यवस्था को खोलने का फ़ैसला लिया उसे अपने साथी देशों के मुक़ाबले छोटी और हल्की आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा. उपनिवेश के दौरान ऑस्ट्रेलिया 19वीं सदी के मध्य से लेकर 1890 तक प्रवासियों के लिए सबसे ज़्यादा खुला रहा. 1890 तक क़रीब 32% निवासियों का जन्म विदेशों में हुआ था और इस दौरान ऑस्ट्रेलिया ने ख़ुशहाली का लंबा वक़्त देखा, समय-समय पर आने वाली आर्थिक मंदी का आसानी से सामना किया और 19वीं सदी के आख़िर तक दुनिया का सबसे समृद्ध देश बन गया.

लेकिन इसके बावजूद विदेशी लोगों को न पसंद करने की प्रवृत्ति बनी रही. चीन के नागरिक जो सोने की बढ़ती मांग के दौरान बड़ी संख्या में आए थे और दूसरे लोग (भारतीय शामिल) ब्रिटिश प्रजा के तौर पर आते रहे. 1901 में लागू श्वेत ऑस्ट्रेलियाई नीति ने प्रभावी ढंग से गैर-यूरोपीय प्रवासियों के लिए देश को बंद कर दिया. ये नीति 1940 तक बनी रही. देश के दूसरे प्रधानमंत्री और इस नीति के उत्साही निर्माता अल्फ्रेड डीकिन को चीन, जापान और भारत के प्रवासियों से शिकायत थी: ‘ख़राब बातें नहीं बल्कि अच्छी बातों की वजह से ये विदेशी हमारे लिए ख़तरनाक हैं. उनकी कभी न ख़त्म होने वाली ऊर्जा, ख़ुद को नये काम के लिए तैयार करने की उनकी शक्ति, उनकी सहनशीलता और निचले दर्जे का उनके रहन-सहन का स्टैंडर्ड उन्हें इस तरह का प्रतिस्पर्धी बनाता है.‘  विकास से ज़्यादा सरपरस्ती को तरजीह दी गई और इस दौरान, जब दो विश्व युद्धों के दौरान ऑस्ट्रेलिया को काफ़ी नुक़सान झेलना पड़ा, देश की क़िस्मत भी डूबती चली गई.

उस नीति को धीरे-धीरे ख़त्म करने में अगले 30 साल लग गए. 1975 में प्रधानमंत्री गफ व्हिटलैम के नस्लीय भेदभाव अधिनियम के साथ ये ख़त्म हुआ. इस क़ानून ने ऑस्ट्रेलिया को फिर से बिना किसी भेदभाव के प्रवासियों के लिए खोल दिया. अगले चार दशकों के दौरान चीन और भारतीय प्रवासी ऑस्ट्रेलिया के क्रमश: दूसरे और तीसरे बड़े जातीय समूह बन गए. ऑस्ट्रेलिया ने कठोर लेकिन निष्पक्ष प्वाइंट आधारित सिस्टम बनाकर सम्मान हासिल किया और 2018 तक विदेश में पैदा नागरिक देश की कुल आबादी के 28% हो गए. विदेश में पैदा चीन और भारतीय समुदाय के लोगों की औसत आबादी सिर्फ़ 34 साल है और जैसा कि मेगालोजेनिस इशारा करते हैं, नौजवान और आकांक्षापूर्ण समुदायों ने इस दौरान देश के मज़बूत आर्थिक विकास में योगदान दिया है.

लेकिन आंकड़े हैं तो राजनीति भी है. ऑस्ट्रेलिया की अप्रवासन नीति यहां के राजनेताओं के लिए याद ताज़ा कराने वाला मुद्दा रहा है और सत्ताधारी गठबंधन की ख़ासियत रही है कि उसने किसी भी तरह के अवैध अप्रवासन के ख़िलाफ़ कठोर रुख़ अपना रखा है. हाल के दिनों में इसकी शुरुआत 2001 में प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड की मशहूर पंक्तियों से हुई, ‘हम तय करेंगे कि कौन इस देश में आएगा और किस हालात में वो आएगा’. लेकिन उनके उत्तराधिकारी भी इस मंत्र पर कायम रहे. पिछले दशक के दौरान ऑस्ट्रेलिया में नये आने वाले प्रवासियों की संख्या 2009 के 3 लाख से घटकर 2018 में 2 लाख 28 हज़ार रह गई. वास्तव में 2018 के आंकड़े पिछले साल के मुक़ाबले 10% की कमी दिखाते हैं.

इस तरह ऑस्ट्रेलिया एक बार फिर दोराहे पर है. ऑस्ट्रेलिया का आकार भारत के आकार से क़रीब ढाई गुना है (76 लाख वर्ग किमी) और आबादी 2 करोड़ 60 लाख है जो कि दिल्ली के बराबर है. ऐसे में आर्थिक दलीलें ज़्यादा प्रवासन के पक्ष में हैं. मेगालोजेनिस के शब्दों में इतिहास भविष्य की राह दिखाने वाला हो सकता है. युवा प्रवासियों के आने पर देश को कोविड-19 से प्रेरित आर्थिक मंदी से बाहर आने के लिए जिस राहत की उम्मीद है वो मिल जाएगी. लेकिन क्या राजनीति इसे मंज़ूर करेगी?

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