Published on Apr 27, 2020 Updated 0 Hours ago

नए कोरोना वायरस की महामारी के लिए कौन ज़िम्मेदार है, इस मुक़दमे की सुनवाई के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय सबसे उचित मंच है. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय इस मामले की सुनवाई करके इस बारे में सलाहकारी राय ज़ाहिर कर सकता है.

कोविड-19: चीन को अंतरराष्ट्रीय अदालत ले जाने का मामला तो बनता है

इक्कीसवीं सदी के शुरुआती दिनों पर एक निगाह

पिछले दो दशकों में हमने बार बार ये देखा है कि चीन दुनिया पर अपना सामरिक प्रभाव बढ़ाने की कई तरह से कोशिश करता रहा है. इसके लिए कभी चीन ने अपने भारी आर्थिक निवेश का सहारा लिया है. ताकि तमाम देशों के बाज़ार और अर्थव्यवस्थाओं पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सके. इसके अलावा, चीन ने बेहद शातिर चाल चलते हुए दुनिया के सबसे बड़े बाज़ार और अर्थव्यवस्था यानी सुपर पावर अमेरिका के ज़्यादातर सरकारी बॉन्ड ख़रीद लिए. दिसंबर 2019 के आंकड़े बताते हैं कि उस समय तक चीन के पास अमेरिका के लगभग 1.07 ख़रब डॉलर के सरकारी बॉन्ड मौजूद थे. ये बॉन्ड के अलावा अमेरिकी सरकार की प्रतिभूति वाले नोट भी थे. इसके अलावा बेहद शातिर अंदाज़ में चीन लगातार वैश्विक बहुपक्षीय संगठनों में अपनी रणनीतिक भूमिका बढ़ाता रहा है.

चीन का वायरस- इनकार, मौतें और जानकारी

आज दुनिया जिसकी गिरफ़्त में है, उस कोविड-19 महामारी के प्रकोप की शुरुआत वुहान शहर से हुई थी. जो चीन के हूबे प्रांत में स्थित है. वुहान में इस वायरस का संक्रमण नवंबर 2019 से ही फैलने लगा था. लेकिन, चीन की सरकार इस वायरस के संक्रमण की ख़बरों को शुरुआत से ही दबाने में जुट गई थी. इसके बारे में आवाज़ उठाने और चेतावनी देने वाले डॉक्टरों पर कार्रवाई करके उनका मुंह बंद कर दिया गया था. अब लगातार ऐसी ख़बरें और अध्ययन सामने आ रहे हैं, जो ये कहते हैं कि अगर चीन की सरकार ने वुहान शहर में सही समय पर वायरस का प्रकोप थामने का प्रयास किया होता, तो आज कोविड-19 का जितना क़हर दुनिया झेल रही है, उसका 90 प्रतिशत नहीं होता. चीन को चाहिए था कि वो हक़ीक़त को स्वीकार करके दिसंबर 2019 से ही लॉकडाउन व अन्य उपायों के ज़रिए वायरस को स्थानीय स्तर पर ही थामने की कोशिश करती.

लेकिन, इस वायरस की महामारी की गंभीरता और इसके सामुदायिक प्रसार से जुड़ी जानकारी होते हुए भी चीन ने वायरस का तेज़ी से होने वाला संक्रमण रोकने का सही प्रयास नहीं किया. पहले तो चीन ने इस वायरस की जानकारी ही सार्वजनिक नहीं की. इससे भी ख़राब बात तो ये हुई कि चीन के अधिकारियों ने वायरस के संक्रमण के बावजूद जनवरी के मध्य तक पूरे देश में नए साल के जश्न मनाए जाने की इजाज़त दे रखी थी. चीन के परिवार, अपने नए साल का जश्न बड़े ज़ोर शोर से मनाते हैं. तमाम सार्वजनिक कार्यक्रम होते हैं. लोग शहरों से गांवों को जाते हैं. बहुत से लोग घूमने के लिए दूसरे देशों में भी जाते हैं. लेकिन, जैसा कि चीन ने अपने तानाशाही रवैये के मुताबिक़ बाद में अपनी जनता को क्वारंटीन किया अगर चीन के अधिकारी पहले ऐसा करते तो इसका अधिक असर होता. लेकिन, उन्होंने लोगों की आवाजाही पर पाबंदियां लगाने में बहुत देर कर दी. लॉकडाउन को सख़्ती से लागू करने के बजाय चीन के अधिकारी, इस नए कोरोना वायरस को लेकर आगाह करने वाली आवाज़ों को दबाने में जुटे रहे.

चीन के पास नए कोरोना वायरस से जुड़ी जो जानकारियां थीं, वो भी उसने दुनिया को देने में देर की. यहां तक कि, चीन की सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की टीम को वुहान का दौरा करने की इजाज़त देने में भी काफ़ी देर लगाई. इस बीच हज़ारों लोग वुहान शहर से बाहर निकल कर दुनिया के कई देशों में आते जाते रहे. हज़ारों अन्य लोगों से मिलते रहे. और इन लोगों की आवाजाही पर रोक लगाने या जांच का प्रयास चीन ने किया ही नहीं. यहां तक कि इस वायरस की जेनेटिक बनावट से जुड़ी जानकारी भी चीन ने दुनिया के अन्य वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ साझा करने में बहुत देर लगाई. जबकि ख़ुद चीन के पास ये जानकारी पहले से मौजूद थी.

जब चीन में इस वायरस का संक्रमण फैल रहा था, उस दौरान चीन से मिले राजनीतिक संकेत ये बताते हैं कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार को इस वायरस के ख़तरे का बिल्कुल सही अंदाज़ा था. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव और राष्ट्रपति, शी जिनपिंग तब तक देश के सरकारी मीडिया की सुर्ख़ियों से नदारद रहे थे, जब तक चीन के अधिकारियों को इस बात का भरोसा नहीं हो गया कि वायरस का प्रकोप अब उनके नियंत्रण में है. इसके बाद ही शी जिनपिंग के वुहान दौरे का रास्ता साफ़ हुआ. लेकिन, चीन ने चुनौती का आकलन करने में भारी गड़बड़ी पहले ही कर दी थी. क्योंकि, चीन को इससे पहले भी वायरस से प्रकोप का सामना करने का अनुभव था. 2002 का सार्स वायरस प्रकोप, इनमें से एक था. सार्स वायरस से पैदा हुई महामारी का एशिया के एक बड़े हिस्से पर प्रभाव पड़ा था. हालांकि, ये महामारी पश्चिमी देशों में नहीं फैली थी. इसी कारण से पश्चिमी मीडिया ने सार्स वायरस के प्रकोप को लेकर उतनी व्यापक कवरेज नहीं की. उस महामारी का स्रोत भी नए कोरोना वायरस जैसा ही, यानी चीन की वेट मार्केट को बताया गया था. चीन के इन बाज़ारों में जंगली जानवरों को मांस के लिए अवैध रूप से बेचा जाता है. इसी कारण से जंगली जानवरों के वायरस इंसानों तक पहुंच जाते हैं.

इस वायरस को लेकर चीन के अधिकारियों ने षडयंत्र की कई बेतुकी कहानियां भी गढ़ीं. ये दावा किया कि नए कोरोना वायरस की महामारी को जान बूझ कर चीन में फैलाया गया. चीन के अधिकारियों ने जो दावे किए उनके अनुसार-

  • चीन ने अपने यहां तो जनता को क्वारंटीन किया. लेकिन, वहां से निकल रही ख़बरों को दबाया ताकि दुनिया में ख़ौफ़ का माहौल न बने.
  • चीन के विदेश मंत्रालय ने ये दावा भी किया कि अमेरिकी सैनिक, इस वायरस को चुपके से वुहान ले कर आए थे.
  • ये दावा भी किया गया कि ये वायरस असल में एक बायो एजेंट था जिसे चीन ने ख़ौफ़ फैलाने के लिए तैयार किया था. ताकि, चीन के वित्तीय संस्थान मुश्किल में पड़े देशों की संपत्तियां मिट्टी के मोल ख़रीद सकें.

आख़िर विश्व स्वास्थ्य संगठन कहां था?

चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को आधिकारिक रूप से ये बताया था कि नए कोरोना वायरस से संक्रमित पहले मरीज़ की पुष्टि आठ दिसंबर 2019 को हुई थी. 9 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान जारी किया था. इस बयान को देखें तो ऐसा लगता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, चीन की आलोचना करने के बजाय उसका महिमामंडन कर रहा था. WHO ने अपने इस बयान में कहा कि, ‘चीन के अधिकारियों ने प्राथमिक तौर पर ये पाया है कि ये वुहान शहर में एक नया कोरोना वायरस सामने आया है. ये वायरस सबसे पहले वुहान के एक अस्पताल में न्यूमोनिया के इलाज के लिए भर्ती एक व्यक्ति में मिला. चीन के जांच अधिकारियों ने इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति के सैंपल से इस वायरस को आइसोलेट करने में सफलता प्राप्त कर ली है. शुरुआती जांच में पता ये चला है कि ये एक नया वायरस है. चीन ने ये काम बेहद कम वक़्त में कर लिया, जो तारीफ़ के क़ाबिल है. इससे ये पता चलता है कि नई बीमारियों के प्रकोप से निपटने की चीन की क्षमता में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है.’

जनवरी के मध्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ये संकेत दिए कि हो सकता है नए कोरोना वायरस से सीमित स्तर का सामुदायिक संक्रमण होता हो. लेकिन, उसी दिन संगठन ने अपना ये दावा वापस भी ले लिया. 20 जनवरी को चीन ने नए कोरोना वायरस के सामुदायिक संक्रमण की क्षमता रखने की तस्दीक़ की थी. इसके बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक टीम ने 20 और 21 जनवरी को वुहान शहर का दौरा किया था. ताइवान की तरफ़ से कड़ी आलोचना के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि ज़रूरत इस बात की है कि, ‘कई बार संवेदनशील मसलों पर हमें निष्पक्ष रूप से पारदर्शी परिचर्चा की आवश्यकता होती है. इसमें ज़रूरत इस बात की होती है कि हम ऐसे संवादों की गोपनीयता को बनाए रखें.’

इस पूरे संकट के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के साथ बारीक़ संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है. जबकि कई देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर ये इल्ज़ाम भी लगाया कि वो चीन का ग़ुलाम बन गया है. WHO पर एक आरोप ये भी है कि इसके मौजूदा अध्यक्ष डॉक्टर टेड्रोस अधानोम को अध्यक्षता केवल चीन की मदद से ही मिल सकी थी. चीन, विश्व स्वास्थ्य संगठन को आर्थिक मदद देने वाला प्रमुख देश भी है. अपनी लिखित रिपोर्ट और बयानों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई बार चीन की इस बात के लिए तारीफ़ की है कि उसने कोविड-19 की महामारी से संकट से निपटने में उल्लेखनीय कार्य किया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कभी भी चीन की इस बात के लिए आलोचना नहीं की कि उसने वायरस के प्रकोप से जुड़ी जानकारियां दुनिया से साझा करने में देर की. वायरस की जेनेटिक बनावट की जानकारी अन्य देशों को देने में देर की.

क्या चीन इस वैश्विक संकट को अपनी अर्थव्यवस्था लिए अवसर में परिवर्तित कर रहा है?

चीन ने 2008 के वैश्विक वित्तीय संगठन से काफ़ी सबक़ लिया है. इसी कारण से चीन ने अपनी कंपनियों को पूरी दुनिया में विस्तार करने, कारोबार बढ़ानें और संपत्तियां अर्जित करने के लिए लगातार प्रोत्साहन और सहयोग दिया है. और इस बात का श्रेय चीन की कंपनियों को भी दिया जाना चाहिए कि उन्होंने अपने कारोबार को इतना बढ़ा लिया है कि आज वो वैश्विक आपूर्ति शृंखला को बाधित करने की शक्ति रखते हैं. भले ही उन पर कारोबार में ग़लत तौर तरीक़ों को अपनाने, ग़लत आंकड़े सामने रखने, और प्रशासनिक अपारदर्शिता के आरोप लगे हों. लेकिन, आज चीन की कई कंपनियां हैं जो अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा या घटा कर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं.

इसके अलावा चीन, 5G तकनीक, तीव्र गति की रेल, चौथी औद्योगिक क्रांति के उत्पादों और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में काफ़ी निवेश किया है. इन सभी क्षेत्रों में भारी मात्रा में आर्थिक निवेश की आवश्यकता होती है. और आने वाले समय में इन सभी तकनीकों की वैश्विक अर्थव्यवस्था में काफ़ी अहमियत होगी. दुनिया में चर्चित साज़िशों की अन्य परिकल्पनाओं के अनुसार चीन, वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई इस गिरावट से उत्पन्न अवसर का इस्तेमाल करके दुनिया के तमाम देशों में अपना निवेश बढ़ाने जा रहा है. और इसके ज़रिए वो वैश्विक संपदाओं पर रणनीतिक रूप से अपना नियंत्रण स्थापित करेगा. इससे उन देशों की स्थानीय सरकारें चीन के दबाव में काम करने को मजबूर होंगी. क्योंकि अगर चीन, किसी देश में अपने भारी निवेश को खींचने की धमकी देगा, तो उस देश की अर्थव्यवस्था के चरमराने का ख़तरा होगा.

चीन: दुनिया का कारखाना

चीन के निर्माण क्षेत्र की क्षमता और आपूर्ति श्रृंखला पर इसका ऐसा नियंत्रण है कि आज चीन आर्थिक रूप से बेहद मज़बूत स्थिति में है. इससे उसकी राजनीतिक और सामरिक शक्ति में भी वृद्धि हुई है. इसमें दवाओं और उससे जुड़े अन्य उत्पादों से जुड़ी चीन की क्षमताएं भी शामिल हैं, जो किसी वैश्विक महामारी जैसे हालात में और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं. इसके अतिरिक्त, दुनिया के कमोबेश सभी बड़े ब्रांड के वैश्विक उत्पादों के उत्पादन का प्रमुख केंद्र चीन ही है. जब तक ये कंपनियां चीन पर निर्भर हुए बिना अपनी आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण नहीं करती हैं, तब तक इन कंपनियों की चीन पर ऐसी निर्भरता है कि चीन के एक इशारे पर इन कंपनियों का राजस्व धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरेगा. हज़ारों लोगों की नौकरियां चली जाएंगी. चीन के निर्माण क्षेत्र की कुल शक्ति क़रीब 4 ख़रब डॉलर आंकी जाती है. ये दुनिया के कुल निर्माण क्षेत्र का 28 प्रतिशत है. और ख़ुद चीन की अर्थव्यवस्था में इसके निर्माण क्षेत्र का हिस्सा लगभग एक तिहाई है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका के नज़रिए से देखें तो इसका 22 प्रतिशत आयात चीन से ही होता है.

बड़ा सवाल ये है कि अगर चीन, जिसके पास अमरीकी सरकार का काफ़ी धन गिरवी पड़ा है, इन अमरीकी बॉन्ड को वैश्विक बाज़ार में जारी कर देता है. इन्हें कम क़ीमत पर बेच देता है, तो अमेरिका इसका जोखिम बर्दाश्त नहीं कर पाएगा. पर क्या चीन ऐसा कर सकता है?

अगर अमेरिकी सरकार के क़र्ज़ के बॉन्ड सार्वजनिक बाज़ार में सस्ती दरों पर बेचे जाते हैं, तो अर्थव्यवस्था की वैश्विक महामारी फैल जाएगी. क्योंकि, अमेरिका के ये सरकारी बॉन्ड और उसकी करेंसी ही दुनिया के कारोबार की बुनियाद है.

क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस महामारी से निपटने में पर्याप्त तेज़ी दिखाई थी?

अब जबकि दुनिया मध्यम और लंबे समय के लॉकडाउन के प्रभावों से निपटने की तैयारी कर रही है. कोविड-19 की महामारी से उपजी आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का सामना करने के लिए संसाधन जुटा रही है. तो इससे न केवल, इस जैसी वैश्विक महामारी से निपटने की तैयारियों और क्षमताओं पर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं. बल्कि ये सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या हमने इस वायरस के वास्तविक उद्गम का पता लगा लिया है? क्या हमने इस वायरस के वैश्विक प्रकोप का कारण जा लिया है? इस महामारी से प्रभावित देशों के ऊपर ये ज़िम्मेदारी भी है कि वो इसके लिए उत्तरदायी पक्ष की जवाबदेही सुनिश्चित करे. इस महामारी के वैश्विक प्रसार के लिए केवल और केवल चीन ज़िम्मेदार है.

2002 में सार्स (SARS) की महामारी का एशिया के एक बड़े हिस्से पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा था. इसका स्रोत भी चीन के वही वेट मार्केट थे, जिनसे इस नए कोरोना वायरस के इंसानों तक पहुंचने की बात कही जा रही है. क्योंकि चीन के इन बाज़ारों में जंगली जानवरों का मांस अवैध रूप से बेचा जाता है. और इसी कारण से जंगली जीवों में पाए जाने वाले वायरस इंसानों के संपर्क में आते हैं और इंसानों पर प्रभाव डालते हैं. ऐसे में अगर इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाया जाता है. और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज सार्वजनिक रूप से चीन को फटकार लगाते हैं, तो इससे चीन के सम्मान पर जो अंतरराष्ट्रीय स्तर की ठेस लगेगी, उसके दूरगामी प्रभाव होंगे.

इसका एक असर तो ये होगा कि चीन, अपनी इन वेट मार्केट को फिर से शुरू होने से रोकेगा. इसके अलावा बिना नियमन के जंगली जानवरों के कारोबार पर भी चीन ही नहीं, पूरी दुनिया में रोक लग सकेगी (ये जंगली जीवों के संरक्षण के लिए दुनिया भर में काम करने वालों के लिए बड़ी जीत होगी. इससे विलुप्ति के कगार पर खड़ी कई जानवरों की प्रजातियां भी बचाई जा सकेंगी). इसका एक प्रभाव ये भी होगा कि चीन की दुनिया पर अपनी दादागारी जमाने की महत्वाकांक्षाओं पर भी कुठाराघात होगा. क्योंकि चीन को अपने वैश्विक प्रभुत्व को अबाध रूप से बढ़ाते जाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है. अगर इसकी निंदा किए बग़ैर, चीन को अपने प्रभाव का विस्तार करते जाने दिया जाएगा तो इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपूरणीय क्षति पहुंचने की संभावना है.

नए कोरोना वायरस की महामारी के लिए कौन ज़िम्मेदार है, इस मुक़दमे की सुनवाई के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय सबसे उचित मंच है. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय इस मामले की सुनवाई करके इस बारे में सलाहकारी राय ज़ाहिर कर सकता है (ऐतिहासिक रूप से अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के ऐसे मशविरों की अनदेखी की मिसाल नहीं मिलती). इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने का एक तर्क ये भी है कि दुनिया के तमाम देश ये मानते हैं कि वैश्विक स्तर के विवादों के निपटारे का ये सबसे बड़ा मंच है. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ऐसा मंच भी है, जहां पर किसी देश के विरुद्ध अन्य सदस्य देश कोई कार्रवाई कर सकते हैं. न कि व्यक्तिगत रूप से.

कोविड-19 की महामारी को बिना रोक थाम के पूरी दुनिया में फैलने देने और इसके प्रति जवाबदेही स्वीकार करने के बजाय चीन ने सार्स की महामारी के बाद अपनी वेट मार्केट को फिर से खोलने का अपराध किया था. चीन जैसी बंद अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक व्यवस्था की अंतरराष्ट्रीय रूप से आलोचना करनी ज़रूरी है. हालांकि, चीन ने अपने आर्थिक प्रभुत्व का इस्तेमाल करते हुए, कोविड-19 की महामारी को पूरी दुनिया में फैलने दिया. इससे जुड़ी जानकारियों को सख़्ती से दबाया. जिसके परिणाम आज पूरी दुनिया भुगत रही है. क़रीब दो लाख लोगों की इस वायरस के कारण मौत हो चुकी है. ये चीन का, मानवता विरुद्ध अपराध है. इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य देश को सक्रिय भूमिका निभानी होगी.

संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ या अमेरिका (जो अपने आपको वैश्विक शक्ति बनाए रखना चाहेंगे) या ये सभी मिल कर, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से इस बारे में सलाह देने वाला आदेश पारित करा सकते हैं. अगर आर्थिक रूप से संपन्न सभी देश मिल कर ये काम करते हैं, तो इस बारे में कोई समझौता नहीं होगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे बहुपक्षीय संगठन की जवाबदेही भी इस बारे में सुनिश्चित होनी चाहिए. ऐसे में संगठन को चीन के विरुद्ध लाए गए प्रस्ताव में सहभागी नहीं बनाया जा सकता. क्योंकि जैसा हमने इस लेख में विस्तार से बताया है, कोविड-19 के वैश्विक महामारी बनने में चीन के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन भी बराबर का अपराधी है. वैसे भी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में केवल देश की पक्षकार बन सकते हैं. ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से फटकार लगवाने का प्रयास होना चाहिए. इससे ये सुनिश्चित हो सकेगा कि ऐसे बहुपक्षीय संगठन लापरवाही करते हैं, तो इसके नतीजे उन्हें भुगतने होंगे. और इससे ये भी होगा कि चीन जैसे देश, जो इन बहुपक्षीय संगठनों की आड़ में अपने प्रभुत्व का एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं, उनकी साज़िशों पर भी लगाम लगाई जा सकेगी. वो ऐसे संगठनों पर अपना नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकेंगे.

हालांकि, अब तक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ऐसा कोई मामला लाए जाने की मिसाल नहीं मिलती. लेकिन, पिछली सदी में स्पेनिश फ्लू की महामारी के बाद, दुनिया ने किसी वैश्विक महामारी का सामना भी नहीं किया है. और स्पेनिश फ्लू भी तब फैला था, जब अंतरराष्ट्रीय संगठनों की परिकल्पना ने साकार रूप लिया भी नहीं था. ऐसे में कोविड-19 की महामारी के केस को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने और इसके निर्णय के माध्यम से चीन को फटकार लगाने से चीन की अंतरराष्ट्रीय साख को धक्का लगेगा. अगर, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज, चीन की इस जान बूझकर की गई लापरवाही की आलोचना करते हैं, तो ये मानवता के ख़िलाफ़ चीन के अपराध का वैश्विक प्रतिकार होगा.

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