Author : Seema Sirohi

Published on Jun 09, 2020 Updated 0 Hours ago

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को और ज़्यादा नेतृत्व दिखाने की ज़रूरत है न कि पीछे हटने की. संयुक्त राष्ट्र को फिर से गढ़ना आसान नहीं होगा लेकिन इसे मज़बूत बनाना पूरी तरह संभव है.

महामारी का विरोधाभास: क्या सुरक्षा परिषद एकजुट हो पाएगी?

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय – अगर इस शब्द का अभी भी यही मतलब है – विरोधाभास का सामना कर रहा है. महामारी ने इसे एकजुट होकर काम करने के लिए मजबूर कर दिया है लेकिन बहुपक्षीय संस्थान अभी भी बड़ी शक्तियों की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं और पश्चिमी देश नहीं चाहते हैं कि ऐसी कोई कार्य योजना बने जिससे चीन का दर्जा या शोहरत बढ़े.

संयुक्त राष्ट्र और उसकी विशिष्ट एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन की कड़ी आलोचना सही वजह से हो रही है क्योंकि जिस वक़्त उन्हें सबसे ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है, वो नाकाम रहे

संयुक्त राष्ट्र और उसकी विशिष्ट एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन की कड़ी आलोचना सही वजह से हो रही है क्योंकि जिस वक़्त उन्हें सबसे ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है, वो नाकाम रहे. मंगलवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को अमेरिकी फंड पर रोक लगा दी. “कोरोना वायरस के फैलने में बदइंतज़ामी और इसे छिपाने” में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका की समीक्षा तक ये रोक लगी रहेगी.

अमेरिकी समीक्षकों ने तुरंत कह दिया कि ट्रंप महामारी के फैलने में अपनी बदइंतज़ामी के आरोप से ध्यान भटकाना चाहते हैं. बिल गेट्स ने कह दिया कि ये फ़ैसला ख़तरनाक है क्योंकि दुनिया के 30 प्रतिशत देश महामारी से लड़ाई में मदद के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन पर निर्भर हैं. ट्रंप के फ़ैसले के पीछे राजनीति हो सकती है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि WHO पर ख़ुद को पाक-साफ़ दिखाने का दबाव बना हो. मगर WHO के मददगारों की फ़ौज पूरी तरह राजनीति में उलझ चुके WHO पर इस वक़्त चर्चा नहीं चाहते. ये अलग बात है कि WHO ने महामारी के शुरुआती दौर में मदद करने के बदले रुकावट डाली.

बड़ा मुद्दा ये है कि जब संयुक्त राष्ट्र में चीन का असर कम करने का विचार चल रहा हो, उस वक़्त क्या UN को चीन के हवाले कर देना चाहिए. अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को और ज़्यादा नेतृत्व दिखाने की ज़रूरत है न कि पीछे हटने की. संयुक्त राष्ट्र को फिर से गढ़ना आसान नहीं होगा लेकिन इसे मज़बूत बनाना पूरी तरह संभव है. दुनिया के जीवनदर्शन को आवाज़ देने की योजना पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पहले से काम चल रहा है.

पिछले हफ़्ते आख़िरकार कोरोना वायरस महामारी पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हुई क्योंकि चीन इसे रोकने में नाकाम रहा. इसकी वजह ये है कि चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष नहीं है. अप्रैल में डोमिनिकन रिपब्लिक सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष बना और रातों-रात हालात बदल गए. मार्च में चीन एक के बाद एक बहाने बनाकर अनौपचारिक रूप से भी महामारी पर चर्चा को रोकता रहा. सुरक्षा परिषद के लिए ये बिना किसी काम का महीना रहा. जहां बाक़ी दुनिया मुलाक़ात के लिए अलग-अलग वर्चुअल टूल का इस्तेमाल कर रही थी, वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद चीन के नेतृत्व के दबाव में कांप रही थी.

अगले महीने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता डोमिनिकन रिपब्लिक से एस्टोनिया के पास चली जाएगी. एस्टोनिया ने मार्च में एक प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी लेकिन चीन ने उसे नाकाम कर दिया. एस्टोनिया के बाद फ्रांस और फिर जर्मनी अध्यक्ष बनेगा

लेकिन असली समस्या थी रूस और दक्षिण अफ्रीका की तरफ़ से चीन को मदद. ये दोनों देश चीन की इस दलील का समर्थन कर रहे थे कि महामारी विश्व शांति और सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं है और इसलिए सुरक्षा परिषद के चिंतित होने का विषय नहीं है. अप्रैल में यही महामारी वो विषय बन गई जिसको लेकर सुरक्षा परिषद चिंतित है. अगले तीन महीनों में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए मौक़ा है कि वो विश्व शांति और सुरक्षा पर महामारी के असर को लेकर मज़बूत प्रस्ताव पास करे.

अगले महीने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता डोमिनिकन रिपब्लिक से एस्टोनिया के पास चली जाएगी. एस्टोनिया ने मार्च में एक प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी लेकिन चीन ने उसे नाकाम कर दिया. एस्टोनिया के बाद फ्रांस और फिर जर्मनी अध्यक्ष बनेगा. ये क्रम चीन के लिए अच्छा नहीं है लेकिन बाक़ी देशों पर ये निर्भर करता है कि वो एक समझदारी भरी रणनीति बनाने के लिए तैयार होते हैं या नहीं. उन्हें ऐसा प्रस्ताव पास करना चाहिए जिससे पता चल सके कि वायरस कहां से फैला, चीन से पारदर्शिता की मांग करें और सभी देशों के साथ पहले, मौजूदा और भविष्य का डाटा बांटे.

चीन इसे वीटो करेगा लेकिन प्रस्ताव को आने देगा. ये ऐसा मौक़ा नहीं है कि आम राय बनाने के लिए प्रस्ताव की भाषा को कमज़ोर किया जाए और उलझाया जाए. रूस को इस बात के लिए मनाना होगा कि वो प्रस्ताव का साथ दे या गैर-हाज़िर रह जाए. रूस का रुख़ इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिका ईरान और वेनेज़ुएला से आर्थिक पाबंदी हटाने की उसकी मांग पर क्या फ़ैसला लेता है. इस भयंकर समय में रूस की ये मांग पूरी तरह जायज़ है.

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत केली क्राफ्ट ने पिछले गुरुवार को सुरक्षा परिषद को कहा, “पूरी दुनिया की निगाहें सुरक्षा परिषद के हर सदस्य देश पर है और ज़िंदगी बचाने के लिए हमें ज़रूर काम करना चाहिए.“ ये तभी हो सकता है जब पूरी तरह पारदर्शिता बरती जाए और सार्वजनिक स्वास्थ्य डाटा और जानकारी को समय पर साझा किया जाए और वायरस की शुरुआत और फैलने का सटीक विश्लेषण हो.

चीन अभी भी कोविड-19 के फैलने के बारे में पारदर्शी नहीं है और अपने वैज्ञानिकों और डॉक्टरों से रिसर्च और वैज्ञानिक डाटा छुपा रहा है. सुरक्षा परिषद के मज़बूत प्रस्ताव और सामूहिक नैतिक दबाव से छोटा-मोटा बदलाव किया जा सकता है.

निश्चित रूप से परमानेंट 5 को ये पता है कि महामारी जिसकी शुरुआत चीन से हुई थी, उसने पहले ही 1,30,700 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली है और दुनिया भर के देशों में 15 लाख से ज़्यादा लोगों को संक्रमित कर चुकी है

हालांकि 64 मिलियन डॉलर का सवाल ये है कि इस चर्चा में अमेरिका कहा है. कुछ बयान देने के बाद अमेरिका शांत पड़ा हुआ है. सच्चाई ये है कि ट्रंप प्रशासन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को अलग-थलग करने के बदले ईरान, वेनेज़ुएला, उत्तर कोरिया और यहां तक कि ग़रीब, छोटे से देश क्यूबा को तंग करने में लगा हुआ है. ट्रंप रोज़ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अपनी तारीफ़ करते हैं. इसके पीचे मक़सद है मेडिकल सप्लाई हासिल करना क्योंकि हर देश इस वक़्त चीन पर निर्भर है.

लेकिन अब जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का चर्चा के लिए खुल गया है, दो मसौदा प्रस्ताव पर विचार चल रहा है- पहला प्रस्ताव परमानेंट 5 के सदस्य फ्रांस का है जबकि दूसरा ट्यूनिशिया का जो कि सुरक्षा परिषद के 10 अस्थायी सदस्यों में से एक है. परमानेंट 5 का प्रस्ताव बेहद गुप्त होता है और अलग-अलग राजधानियों में सर्वोच्च स्तर पर प्रस्ताव को लेकर चर्चा होती है.

निश्चित रूप से परमानेंट 5 को ये पता है कि महामारी जिसकी शुरुआत चीन से हुई थी, उसने पहले ही 1,30,700 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली है और दुनिया भर के देशों में 15 लाख से ज़्यादा लोगों को संक्रमित कर चुकी है. ये किसी संघर्ष से बड़ा है जिस पर हाल के वक़्त में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने चर्चा की हो.

उन्हें बिना चीन के कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि चीन इसमें शामिल नहीं होगा. और इस बात का इंतज़ार नहीं होना चाहिए कि चीन अलग-अलग महादेशों के छोटे-छोटे देशों और ख़ास तौर पर सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों को रिश्वत या धमकी देकर मजबूर करे. प्रस्ताव में कम-से-कम ये ज़रूर कहा जाना चाहिए कि चीन या दूसरे देश वैश्विक सुरक्षा के हित में जानवरों का बाज़ार ज़रूर बंद करें.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.