Author : Sunjoy Joshi

Published on Jul 11, 2020 Updated 0 Hours ago

किसी भी सक्षम, योग्य और सुदृढ़ राष्ट्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए की वो अपने मूलभूत क्रिटिकल इन्फ्राट्रक्चर में पहले ख़ुद आत्मनिर्भर हो.

डेटा, व्यापार और निवेश: चीन के साथ ज़मीन पर नहीं, इन मोर्चों पर लड़कर जीतना है ज़रूरी

भारत और चीन के बीच लद्दाख क्षेत्र में चल रही तनातनी के बीच भारत सरकार ने 59 चीनी ऐप को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया. उनके साथ ही साथ भारत के 4G अपग्रेडेशन, हाई-वे प्रोजेक्ट और इंडस्ट्रीज़ से भी चीन की कंपनियों को बाहर रखा जाएगा. इसे भारत द्वारा चीन के ख़िलाफ जो देश में माहौल बन रहा था उसके एक प्रतिक्रियात्मक क़दम के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन चीन की अघोषित इरादों को देखते हुए यह सवाल खड़ा होता है कि क्या चीन की टेक्नोलॉजी को एक हद के बाद भारत में आने की इजाज़त दी जा सकती हैं? क्या यह भारत की संप्रभुता के लिहाज से असुरक्षित नहीं है. यह हमारे क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर में किस तरह से प्रभाव डालती है? इसके अलावा इस तरह के प्रतिबंधों से क्या हासिल होगा?

किसी भी सक्षम, योग्य और सुदृढ़ राष्ट्र को पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए की वो अपने मूलभूत क्रिटिकल इन्फ्राट्रक्चर में पहले ख़ुद आत्मनिर्भर हो. यह पहली प्राथमिकता है. आज हमारा डिजिटल इकोसिस्टम उस क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की एक तरह से रीढ़ बन गई है. हमारे बैंकिंग सिस्टम, सूचना  प्रणालियां और  बिजली का ग्रिड यह सब उस क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर आधारित है. इस प्रकार क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर हमारे सुरक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग बन जाता हैं. किसी भी देश में लंबे समय तक प्लेटफ़ॉर्म और हार्डवेयर कंपनियों की मौजूदगी  उस देश के लिए ख़तरा उत्पन्न कर सकता हैं और यह ख़तरा आज से नहीं हैं बल्कि कई सालों से हैं.

क्या यह एक प्रतिक्रियावादी कदम है?

अगर हम गलवान घाटी को देखते हुए यह कदम उठाए हैं तो हां यह निश्चित रूप से प्रतिक्रियावादी कदम है. लेकिन अगर हमें अपनी मूलभूत ढांचे में सुधार करनी है तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे टेक्नोलॉजी – हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और प्लेटफ़ॉर्म इकॉनमी – में हमारी पूरी तरह से नियंत्रण हो. यह सिर्फ चीन का ही सवाल नहीं है. यह किसी भी देश को किसी भी देश से चुनौती मिल सकती है. अगर हम कुछ साल पहले की न्यूज़ को उठाकर देखें तो विकिलीक्स ख़ुद अमेरिका की सुरक्षा के लिए चुनौती बन चुका था और यह कोई दूसरा देश नहीं बल्कि ख़ुद उसके सहयोगी देश उसके गोपनीय सूचनाओं को इकट्ठा कर रहे थे.

जहां तक प्लेटफॉर्म इकोनॉमी की बात हैं तो यह लोगों के डेटा को इकट्ठा करने पर ही ज़िन्दा हैं. अगर टिकटॉक  को देखें तो इसने भारत में अपनी बहुत गहरी पैठ बना चुकी थी. पूरे दुनिया के एक तिहाई यूज़र उसके भारत के ही है लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि उसके रेवेन्यू भारत से नहीं आते थे. उसका ज्यादातर रेवेन्यू अमेरिका, चीन और यूरोप से आते थे. तो जहां तक इन ऐप कंपनियों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने की बात हो तो हम इन्हें आर्थिक रूप से नुकसान नहीं पहुंचा पाए हैं. 

ऐप बैन करने के आगे हमें क्या करने की ज़रूरत

इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि यह एक प्रतीकात्मक संदेश ज़रूर हैं. लेकिन हमें इससे आगे कार्य  करने की जरूरत है. इस बात को समझना होगा कि किसी भी ऐप का मुख्य ध्येय उसका  रेवेन्यू नहीं होता  बल्कि एंबेडेड वैल्यू होता है और उसका संबंध उसके यूज़र बेस्ड से होता है.  इन एंबेडेड वैल्यू  से प्राप्त डेटाओं का एनालिसिस करके प्रोडक्ट में इसका उपयोग किया जाता हैं इससे इनको फायदा होता था. यहां पर इनको ज्य़ादा नुकसान है.

भारत एक चीनी समाज और उसकी व्यवस्था से काफी भिन्न समाज है. चीन ने अपना पूरा डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों को प्रतिबंधित करके अपने इकोसिस्टम का निर्माण किया है. ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि क्या हम चीन का ही रास्ता अख्त़ियार करके अपने इकोसिस्टम का निर्माण करेंगे. क्या हम चीन बनकर ही चीन से जीतना चाहते हैं?

यह वैचारिक संघर्ष है. ऐप को प्रतिबंधित करने की जगह भारत को अपने प्राइवेसी नियमों को इतना मजबूत बनाना चाहिए कि किसी भी बाहरी कंपनी की यह जुर्रत ना हो की वो भारतीयों के डेटा का दुरुपयोग कर सके. और इसके लिए हमें अपनी न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था और प्राइवेसी के नियमों को सुदृढ़ करने की बहुत आवश्यकता है.    अपने नागरिकों के अधिकारों के लिए सुदृढ़ करनी होगी. इसके बाद चाहे वो चीनी कम्पनी हो, अमेरिकी कम्पनी हो या यूरोपीय कम्पनी हो भारत के नागरिकों के हितों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

ऐप को प्रतिबंधित करने की जगह भारत को अपने प्राइवेसी नियमों को इतना मजबूत बनाना चाहिए कि किसी भी बाहरी कंपनी की यह जुर्रत ना हो की वो भारतीयों के डेटा का दुरुपयोग कर सके. और इसके लिए हमें अपनी न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था और प्राइवेसी के नियमों को सुदृढ़ करने की बहुत आवश्यकता है

हम कैसा डिजिटल इकोसिस्टम का निर्माण करना चाहते हैं? क्या हम चीनी डिजिटल इकोसिस्टम का निर्माण करना चाहते हैं. या एक खुली और स्वतंत्र डिजिटल इकोसिस्टम का निर्माण करना चाहते हैं.  यह प्रमुख मुद्दा है जिसका ज़वाब हमारे नीति-निर्माताओं को एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते देना अत्यंत आवश्यक है.

स्थायी समाधान कैसे ढूढें जाय?

अकेले प्रतिबन्ध लगाने से कोई बहुत बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं होने वाला है. हमारे यहां डिजिटल चौपाल क्यों नहीं होना चाहिए? अगर अमेरिका के राष्ट्रपति को दुनिया के बड़े-बड़े सीओ के साथ कुछ मीटिंग करनी हो तो उन्हें वहां चाय पर समोसे और जलेबी की व्यवस्था करनी पड़ेगी क्योंकि उनमें ज़्यादातर भारतीय हैं. तो जो भारतीय दुनिया में जा करके नाम कमा सकते हैं, किसी भी कंपनी का सबसे अच्छा विकास कर सकते हैं, नए-नए प्रोडक्ट का इनोवेशन कर सकते है, पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं वो भारत में क्यों नहीं काम कर सकते हैं? क्यों हम भारत में इस तरह का निर्माण उनके लिए नहीं कर पाते हैं? इसका जवाब हमें ढूढ़ना पड़ेगा. और यह प्रश्न आज हमारी इंडस्ट्रीज़ बार-बार हमसे पूछती है. और इसका जवाब हमें देना पड़ेगा कि क्यों हम इन 70 सालों में अपने इंडस्ट्रीज़ को ऐसी सुविधाएँ नहीं मुहैया करा पाए जिससे कि वो कम कीमत पर अपने उत्पादों को बना सकें.

आज चीन सप्लाई चैन में इतना आगे क्यों है? क्योंकि सबसे कम कीमत पर सामानों का उत्पादन करता है. वह इतना कॉम्पिटेटिव है कि यदि भारत चीन से कच्चा माल या तैयार उत्पाद बनाने बंद कर दें तो भारत की कई कंपनियां बंद हो जाएंगी. चाहे वह फार्मास्यूटिकल में हो, चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक्स में हो या फ़िर चाहे ऑटोमोबाइल सेक्टर में हो. यदि हम चीन से इस मामले में टक्कर लेना चाहते हैं तो इस विषय में समझना बहुत जरूरी हो जाता है. यह ऐसा भी नहीं है कि यदि हम रात के 12:00 बजे चीनी आयात पर प्रतिबंध लगा दे, उन्हें घुसने मत दीजिए तो सब ठीक हो जाएगा. इससे हमारी समस्या हल नहीं हो जाती बल्कि और बढ़ जाती है क्योंकि चीन के साथ हमारी दीर्घकालिक लड़ाई है. ऐसा नहीं है कि हम नंगे पांव चलकर, लाठी फरसे लेकर ही जीत हासिल करके चले आएंगे. यह हमें समझना होगा कि चीन से इस मोर्चे पर दिमाग से लड़नी होगी जिसके लिए प्लानिंग की आवश्यकता होगी और इसके लिए हम अभी तैयार नहीं हैं.  

आपूर्ति श्रृंखला में अगर चीन की रणनीति देखें तो वह शनैः शनैः करके अमेरिकी कंपनियों को प्रलोभन देते हुए अपने यहां घुसने दिया. और इसके साथ ही साथ उसने बड़ी मात्रा में दूसरे कंपनियों का अपने तरीके से उपयोग भी किया जिससे कि वह बाद में इन्हें सशक्त बना सके

व्यापार असंतुलन को पाटने के लिए हमें किस तरह के माहौल बनाने की ज़रूरत होगी?

आपूर्ति श्रृंखला में अगर चीन की रणनीति देखें तो वह शनैः शनैः करके अमेरिकी कंपनियों को प्रलोभन देते हुए अपने यहां घुसने दिया. और इसके साथ ही साथ उसने बड़ी मात्रा में दूसरे कंपनियों का अपने तरीके से उपयोग भी किया जिससे कि वह बाद में इन्हें सशक्त बना सके. तो इस प्रकार आत्मनिर्भरता में भी परनिर्भरता की बात छुपी हुई है. इन बाहरी कंपनियों की जो विशेषताएं हैं उनको जानना और सीखना हमारे लिए बहुत आवश्यक हो जाता है और उनके लिए यदि हमें अपनी व्यवस्थाओं का निर्माण भी करना पड़े तो करने चाहिए. और इसके लिए हम किस तरह के माहौल बनाए किस तरह की नीतियां तय करें और कोविड-19 के बाद हम अपने फार्मा चैन को कैसे और अधिक सुदृढ़ बना सकें. यह सब सबसे बड़े प्रश्न हैं जो आज के समय में उठ रहे हैं. और यह हमारे लिए बहुत ज़रूरी भी है क्योंकि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट बनाता है. इस प्रकार भारत का एक बहुत बड़ा निर्यात चीन पर निर्भर है. और अगर यह आयात बंद हो जाता है तो बाज़ार में पैरासिटामोल मिलना बंद हो जाएगा. और इसकी वजह से सिर्फ भारत को ही नहीं भारत की वजह से जो दुनिया के अन्य देश – अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों – उनको इससे नुकसान होगा. अगर हम चाहते हैं कि वास्तव में हम एक फार्मास्यूटिकल पॉवर बनें तो हमें उस तरह की सारी सहूलियत अपनी भी कंपनियों को देनी पड़ेगी जैसी कि चीन अपनी इंडस्ट्रीज़ को देता है.

चीन के निवेश का क्या? 

निवेश के रास्ते अनेक है और आज के समय में यह कहना कि कौन सा निवेश किस रास्ते से और कहां से आ रहा है, बड़ा मुश्किल है, और किस माध्यम से किस देश में जा रहा है. वास्तव में कैपिटल की दुनिया ग्लोबल हैं. हालांकि, अप्रैल माह से ही यह अध्यादेश निकला था कि जो हमारे पड़ोसी देश पड़ोसी देशों से (चीन) जो एफडीआई पाते हैं वह ओपन नहीं हो सकता है. उसके लिए अलग से परमिशन लेनी पड़ेगी.  जिसका चीन ने काफी विरोध किया था. तो इस तरह से हम गलवान में हुए झड़प के बाद नहीं बल्कि उससे पहले से भी  प्रतिबंध लगाते चले जा रहे हैं. जब हमने देखा कि विश्व की पूरी व्यवस्थाएं बदल रही है तो कैसे इसका फायदा उठाया जाए. इसके लिए जो भी कदम उठाने थे हम लोगों ने अपने हित में उठाएं हैं. लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आज कोविड-19 जैसे संकट के समय में जब हमें पूंजी की आवश्यकता होगी तो वह पूजी कहां से आएगी. इसके अलावा अपने ऋण बाजार को सुदृढ़ करके आगे अर्थव्यवस्था को बढ़ाया जाए. इस बारे में चिंतन-मनन करना बहुत ज़रूरी हो जाता है. इस समय यह एक बहुत बड़ी चुनौती है. अब समय आ गया है कि हम नए सिरे से एक माइंडसेट का रिफॉर्म लेकर के आए, ताकि जो एक हमारा बहुत बड़ा इंस्पेक्टर राज बना हुआ है और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है और हम आत्मनिर्भर भारत बनाने के चक्कर में इंस्पेक्टर राज को और बढ़ावा न दे. यह एक बहुत बड़ा ख़तरा है. इससे हमें बच करके रहना है. हमें अपने इंडस्ट्रीज़ को किसी भी मायने में सशक्त बनाना है. उन्हें हमें अपने इंस्पेक्टर के चंगुल में नहीं  बांधना है.

चीन को प्रोजेक्ट से बाहर रखने का नफ़ा नुकसान

चीन को प्रोजेक्ट से बाहर रखना तो आसान है पर हमें नफा नुकसान के बारे में भी आकलन कर लेनी चाहिए. हम पहले ही इस महामारी से लड़कर अपने खर्चे को बढ़ा रहे हैं तो क्या हमें और खर्चे बढ़ाना चाहिए. और यह तो चीन की सुनियोजित रणनीति है कि वह अपने विरोधियों के खर्चे को बढ़ाना चाहता है. चीन तो यही चाहता है कि भारत की अर्थव्यवस्था जो इस समय अभी बहुत कमजोर अवस्था में है उसे कैसे और कमजोर किया जाए. यह तो चीन का दांवपेच है और इस दांवपेच में हमें फंसना नहीं है. इसी बात को हमें समझना चाहिए. हमें हमेशा  कॉम्पिटेटिव रहना चाहिए. हमें देखना चाहिए कि हर चीज़ कम कीमत पर मिले.  

चाहे हम मेक इन इंडिया की बात करें या आत्मनिर्भर की बात करें इन सभी में हमारे इंडस्ट्रीज़ को, हमारे प्रोजेक्ट को और हमारे ऐप्स को कॉस्ट बेनिफिट और प्रतिस्पर्धात्मक (कॉम्पिटीटीवनेस) होना पड़ेगा

जहां तक हार्डवेयर का सवाल है तो एक तो यह तरीका है कि आप उस पर प्रतिबंध लगा दे. और दूसरा तरीका यह होता है कि अगर आपको अपनी सुरक्षा के लिए चीन के हार्डवेयर से ख़तरा है तो क्यों न हम अपनी टेस्टिंग सिस्टम को इतना सुदृढ़ बना दिया जाए कि वो किसी भी देश से आए उसकी परख़ इतनी अच्छी हो कि वो पहले से ही  इस बात के लिए सुनिश्चित हो जाए कि ये हमारे लिए अनुकूल है. इससे हमारे डाटा सुरक्षित तो हैं. किसी तरीके से इस कुछ चुराया तो नहीं जा सकता है. और इसके लिए यदि हम सक्षम नहीं है तो और भी हमारे सहयोगी देश है जो इस तकनीकी में  सक्षम है, हमें उनसे सहायता लेनी चाहिए.  इस मामले में इज़राइल हमारी मदद कर सकता हैं. इस प्रकार यह लड़ाई दूसरे ढंग से भी लड़ी जा सकती है. लेकिन चाहे हम मेक इन इंडिया की बात करें या आत्मनिर्भर की बात करें इन सभी में हमारे इंडस्ट्रीज़ को, हमारे प्रोजेक्ट को और हमारे ऐप्स को कॉस्ट बेनिफिट और प्रतिस्पर्धात्मक (कॉम्पिटीटीवनेस) होना पड़ेगा. अगर हम चाहते हैं कि हम अपने ऐप्स बनाएं तो हमारे ऐप्स को टिपटॉप ऐप्स से क्वालिटी के आधार पर टक्कर लेनी पड़ेगी, नहीं तो आपको यूज़र्स नहीं मिलेंगे.

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रतिबंध एक वक़्ती क़दम हो सकता है पर लंबे समय के लिए भारत को कॉम्पिटेटिव होना पड़ेगा.

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