Published on Jun 11, 2020 Updated 0 Hours ago

हो सकता है कि चीन मंदी से बच जाए या हल्के रूप में मंदी को महसूस करे लेकिन भारत में मंदी का कठोर रूप देखने को मिलेगा.

कोविड-19 के बाद की मंदी से मुक़ाबला ज़रूरी, चीन से सीखे भारत

विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)- दोनों के प्रमुखों ने कहा है कि दुनिया जल्द ही मंदी की चपेट में आएगी. हर किसी को इसकी आशंका है. लेकिन हैरान करने वाली बात है कि जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र की व्यापार शाखा UNCTAD (संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन) ने एक ताज़ा अध्ययन में कहा है कि भारत और चीन मंदी से दूर रहेंगे. भारत पहले ही मंदी के दौर से गुज़र रहा है क्योंकि मौजूदा वित्त वर्ष की पहली दो-तिमाहियों की GDP काफ़ी गिर गई है. पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के मुताबिक़ तीसरी तिमाही में GDP 2 प्रतिशत कम होगी.

अच्छा होगा अगर केन्द्र सरकार के 1.7 ट्रिलियन रुपये के राहत पैकेज से मिले कर्ज़ का इस्तेमाल कर प्रवासी मज़दूर छोटा-मोटा कारोबार शुरू कर लें. इसकी वजह से बैंकों का NPA बढ़ सकता है लेकिन बड़े कारोबारियों ने जिस तरह सरकारी बैंकों से कर्ज़ लेकर चुकता नहीं किया, उसके मुक़ाबले ये कुछ भी नहीं होगा.

मंदी के दूसरे लक्षण साफ़ हैं. इनमें हर सेक्टर में बेरोज़गारी शामिल है. बेरोज़गारी की दर बढ़कर 23.4% हो गई है. अनौपचारिक सेक्टर, जिनमें हज़ारों छोटे उद्योग शामिल हैं, संकट का सामना कर रहा है. इसकी वजह से हज़ारों प्रवासी मज़दूरों को अपने घर लौटना पड़ा है. अगर दबाव का सामना कर रहे अलग-अलग सेक्टर जल्दी नहीं संभलते हैं तो इन प्रवासियों के पास लौटने के लिए कोई नौकरी नहीं बचेगी. अगर ये लौटते भी हैं तो बेहद भीड़-भाड़ वाली हालत में इन्हें रहना होगा. कुछ-कुछ मुंबई की धारावी झुग्गियों की तरह जहां 99% आबादी सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करती है (इसकी वजह से महामारी आसानी से फैलती है).

अच्छा होगा अगर केन्द्र सरकार के 1.7 ट्रिलियन रुपये के राहत पैकेज से मिले कर्ज़ का इस्तेमाल कर प्रवासी मज़दूर छोटा-मोटा कारोबार शुरू कर लें. इसकी वजह से बैंकों का NPA बढ़ सकता है लेकिन बड़े कारोबारियों ने जिस तरह सरकारी बैंकों से कर्ज़ लेकर चुकता नहीं किया, उसके मुक़ाबले ये कुछ भी नहीं होगा.

भारत को बढ़ते वित्तीय घाटे से सावधान रहना चाहिए. अगर वित्तीय घाटा बढ़ता है तो अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी भारत की क्रेडिट रेटिंग कम कर देंगी और इसकी वजह से देश में निवेश का अकाल पड़ जाएगा और रुपये की क़ीमत गिर जाएगी. रुपये की कम क़ीमत की वजह से सरकार और कॉरपोरेट के लिए विदेशी कर्ज़ महंगा पड़ेगा. वित्तीय घाटा कम राजस्व वसूली और सरकारी खर्च में बड़ी बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि में बढ़ रहा है. सरकार के पास खर्च कम करने के अलावा कोई चारा नहीं है. लेकिन इसके बावजूद छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज कम करना स्वागत योग्य क़दम नहीं है. ये बुजुर्गों पर सबसे ख़राब असर डालेगा.

भारत की ताज़ा CMIE रिपोर्ट कहती है कि शहरी क्षेत्रों के 20% के मुक़ाबले गांवों में बेरोज़गारी की दर 31% है. अभी तक मंदी का मुक़ाबला करने में हम बिना किसी तैयारी के नज़र आए हैं. मंदी के दूसरे संकेत हैं कि सभी सेक्टर जैसे विमानन, होटल उद्योग, मैन्युफैक्चरिंग और ऑटोमोबाइल सेक्टर में लोगों को नौकरी गंवानी पड़ेगी. कृषि सेक्टर भी काफ़ी दबाव में है.

चीन एक साल पहले जब वहां आर्थिक मंदी की शुरुआत हुई तभी से राहत पैकेज दे रहा है. शायद यही वजह है कि UNCTAD मानता है कि चीन मंदी को टालने में कामयाब रहेगा. चीन ने आमदनी बढ़ाने वाले कई कार्यक्रमों की शुरुआत की है और बैंकों से कहा गया है कि वो लोगों को कर्ज़ दें और पहले से लिए गए कर्ज़ को चुकता करने की अवधि बिना किसी जुर्माने और निगेटिव रेटिंग के बढ़ा दें. किराये में कटौती की गई है. चीन MSME को भी आसानी से कर्ज़ मुहैया करा रहा है और इसकी वजह से बेरोज़गारी में कमी आई है. चीन ने वित्तीय सेक्टर को 14.3 अरब डॉलर मुहैया कराए हैं.

भारत की ताज़ा CMIE रिपोर्ट कहती है कि शहरी क्षेत्रों के 20% के मुक़ाबले गांवों में बेरोज़गारी की दर 31% है. अभी तक मंदी का मुक़ाबला करने में हम बिना किसी तैयारी के नज़र आए हैं. मंदी के दूसरे संकेत हैं कि सभी सेक्टर जैसे विमानन, होटल उद्योग, मैन्युफैक्चरिंग और ऑटोमोबाइल सेक्टर में लोगों को नौकरी गंवानी पड़ेगी. कृषि सेक्टर भी काफ़ी दबाव में है.

किसानों को उनकी फसल के बदले कम पैसे मिलेंगे और उनकी आमदनी कम हो जाएगी. ऐसी हालत में वो शहर से आने वाले प्रवासी मज़दूरों की मदद कैसे करेंगे? उनके प्रवासी संबंधियों के लिए उन्हें भारी समर्थन देना पड़ेगा. आश्रय स्थल और रसोई की शुरुआत करनी पड़ेगी. साथ ही किसानों और प्रवासी मज़दूरों- दोनों को खड़ा रखने के लिए उनकी जेब में पैसे पहुंचाने होंगे. इस नाज़ुक वक़्त में सरकार को चाहिए कि वो किसी भी तरह ग़रीबों की मदद के लिए क़दम उठाए.

गांवों में छोटे उद्योगों को हर समर्थन मुहैया कराना चाहिए. देश के हर छोटे उद्योग के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक का रेपो रेट घटाना अच्छा विचार था लेकिन इस बात पर सावधानीपूर्वक नज़र रखनी होगी कि व्यावसायिक बैंक कर्ज देने की दर घटाते हैं या नहीं. अगर MSME को सक्रिय किया जाता है तो प्रवासी मज़दूर लौट आएंगे. लेकिन सबसे अच्छा विकल्प होगा कि उन्हें गांव या छोटे शहर में फिर से बसाया जाए. इससे बड़े शहरों की भीड़-भाड़ कम होगी और उनके संसाधनों पर बोझ कम होगा.

किसी भी तरह का ग्रामीण उद्योग जैसे- हथकरघा को लगातार बिजली और पानी के सप्लाई की ज़रूरत पड़ती है. साथ ही कामगारों के रहने के लिए अच्छी-ख़ासी जगह भी. इसलिए गांव के आधारभूत ढांचे को फिर से सजाना सरकार के लिए बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. सड़क बनाने से लोगों को रोज़गार मिलेगा.

कामगारों को न्यूनतम मज़दूरी नहीं बल्कि ठीक ढंग से रहन-सहन लायक मज़दूरी मिलनी चाहिए. कुछ साल पहले इस लेखिका ने कोलकाता के नज़दीक बिष्णुपुर गांव का दौरा किया था जो कपड़ों और गुड़िया बनाने के लिए मशहूर है. कारोबार की रफ़्तार धीमी थी और मशहूर बालूचारी साड़ी बुनने वाली महिलाएं जो रामायण और महाभारत की कहानियां साड़ियों पर उकेरती हैं, अपने सदियों पुराने व्यापार को छोड़कर आलू बेचने में लगी थीं क्योंकि साड़ी बुनने से रहन-सहन लायक पैसे नहीं मिल रहे थे. कुछ प्रवासी मज़दूर भी सब्ज़ियों की बिक्री में लग सकते हैं अगर उनके पास व्यापार शुरू करने लायक पूंजी हो तो.

महिलाएं रिटेल में माहिर होती हैं. ऐसे में ये अच्छी बात है कि राहत फंड का पैसा उनके पास पहुंच रहा है. इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों का प्रमुख मक़सद इस वक़्त मुसीबत में फंसे प्रवासी मज़दूरों तक पहुंचना है. भीड़-भाड़ वाली झुग्गी में रहने की वजह से उन्हें कोविड-19 का ख़तरा भी है. इसके अलावा जब तक नौकरी नहीं मिलेगी, वो नहीं लौटेंगे. अर्थव्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है और प्रभावित सेक्टर में नई नौकरी मिलने की रफ़्तार धीमी होगी और इसकी समीक्षा करनी होगी. जहां तक होटल और विमानन सेक्टर की बात है तो इसके फिर से खड़ा होने का दारोमदार बहुत कुछ दुनिया के बाक़ी देशों पर निर्भर है.

हो सकता है कि चीन मंदी से बच जाए या हल्के रूप में मंदी को महसूस करे लेकिन भारत में मंदी का कठोर रूप देखने को मिलेगा. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मुताबिक़ भारत अपनी आबादी में 40 करोड़ ग़रीबों को जोड़ेगा.

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