Author : Harsh V. Pant

Published on Jul 01, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत को चाहिए कि वो अपनी आर्थिक क्षमताओं का विकास करने के लिए लंबी अवधि की योजनाएं योजनाए बनाए और उन पर अमल करे. तभी, भारत स्वयं को कोविड-19 के बाद की विश्व व्यवस्था के केंद्र में रखने में सफल हो सकेगा.

आर्थिक शासन नीति भी एक कला है, इसका इस्तेमाल सावधानी से होना चाहिए

इस समय जब भारत, सीमा पर चीन के आक्रामक रुख़ का सामना कर रहा है. इससे निपटने के लिए भारत सरकार अलग अलग क्षेत्रों से तमाम विकल्प आज़माने पर विचार कर रही है. ताकि, चीन को उसके दुस्साहस की भारी क़ीमत चुकाने के लिए बाध्य किया जा सके. चीन के ख़िलाफ़ भारत की कार्रवाई के तमाम विकल्पों में से व्यापार और आर्थिक क्षेत्र के उपाय आज़माने की बड़ी चर्चाएं हो रही हैं. ये विडम्बना ही है कि आज भारत में ऐसी चर्चा हो रही है. क्योंकि अधिक आर्थिक सहयोग की वक़ालत करने वाले अक्सर ये दावा करते रहे हैं कि इससे दो देशों के बीच सहयोग का माहौल बनता है. भारत व चीन जैसे दो देशों के बीच संबंध 1962 के बाद से ही कड़वाहट भरे रहे हैं. दो देशों के बीच ऐसे रिश्तों में व्यापारिक सहयोग को शामिल करने को अविश्वास घटाने और चोटिल संबंधों पर मरहम लगाने का दर्जा दिया जाता है. और आज बहुत से भारतीय ये मानते हैं कि सीमा पर चीन की नापाक हरकत का जवाब देने के लिए भारत को अपने व्यापारिक विकल्पों को आज़माने पर ज़ोर देना चाहिए.

आज भारत के कुल आयात में से चीन की हिस्सेदारी लगभग 11.8 प्रतिशत है. जबकि, भारत के कुल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी केवल तीन प्रतिशत है

कोरोना वायरस के प्रकोप के शुरुआती दौर में चीन ने इससे निपटने में जो ग़लतियां कीं, उसी वजह से आज कोविड-19 की महामारी वैश्विक संकट बन गई है. इस महामारी के कारण दुनिया में जो आर्थिक संकट पैदा हुआ, उसने चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के ख़िलाफ़ पूरे विश्व में माहौल बनाया. चीन के सभी सामानों के बहिष्कार की जो मांग भारत में समय समय पर उठती रही थी, वो हाल के कुछ महीनों में और तेज़ ही होती जा रही है. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच भिड़ंत से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये सलाह दे रहे थे कि कोविड-19 की महामारी से हमें जो सबसे बड़ा सबक़ मिला है, वो ये है कि हमें आत्मनिर्भर बनना होगा. हालांकि भारत जो आत्मनिर्भर बनने की बात कह रहा है उसका ये अर्थ बिल्कुल नहीं है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाज़े दूसरे देशों के लिए बंद करेगा. न ही आत्मनिर्भरता का लक्ष्य चीन या किसी अन्य देश को निशाना बनाना है. हालांकि पिछले कुछ महीनों से भारत बड़ी शिद्दत से ये कोशिश कर रहा है कि वो चीन से होने वाले आयात और निवेशों पर अपनी निर्भरता को कम करे. और जबसे चीन के साथ सीमा पर संघर्ष हुआ है, तबसे ये बात बिल्कुल साफ हो गई है कि अब भारत चीन को लेकर कोई रियायत बरतने के मूड में नहीं है और वो चीन से निपटने के लिए अपने पास उपलब्ध सभी विकल्पों को आज़माने पर विचार कर रहा है. इसमें चीन के साथ व्यापारिक और वाणिज्यिक संबंधों को बेहद सीमित करने का क़दम भी शामिल है.

पिछले कुछ दिनों में भारत ने इस दिशा में कुछ क़दम उठाए हैं. जैसे कि भारतीय रेल ने उत्तर प्रदेश में सिग्नल के काम के लिए चीन की कंपनी को दिए गए 470 करोड़ के ठेके को रद्द कर दिया है. वहीं, सरकार ने भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) और महानगर टेलीफ़ोन निगम लिमिटेड (MTNL) से कहा है कि वो अपनी 4G सुविधाओं को अपग्रेड करने में चीन के उपकरणों का इस्तेमाल न करें. भारत ने इससे भी आगे जाकर अब चीन के 59 ऐप्स पर पाबंदी लगा दी है. इनमें टिक टॉक, शेयरइट और यूसी ब्राउज़र जैसे बेहद लोकप्रिय ऐप्लिकेशन शामिल हैं. भारत का कहना है कि चीन के ये ऐप, ‘भारत की संप्रभुता, अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं.’

चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर भारत अगर बिना सोचे समझे फ़ैसले लेता है, तो इससे न केवल चीन के कारोबारियों पर असर पड़ेगा. बल्कि इसका सबसे ज़्यादा झटका भारत के ग़रीब तबक़े को झेलना पड़ेगा

ख़बर ये है कि भारत ऐसे देशों की लिस्ट बना रहा है, जो भारत को ऐसे कुछ महत्वपूर्ण उपकरणों और अवयवों की आपूर्ति कर सकते हैं, जो भारत ख़ुद नहीं बना सकता. ताकि, इन्हें चीन से होने वाले आयात के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके. कन्फेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) काफ़ी दिनों से ये मांग कर रही है कि दिसंबर 2021 तक भारत, चीन से अपने आयात को घटा कर 13 अरब डॉलर के स्तर तक ले आए. वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने चीन से लगभग 70 अरब डॉलर का सामान आयात किया था. आज भारत के कुल आयात में से चीन की हिस्सेदारी लगभग 11.8 प्रतिशत है. जबकि, भारत के कुल निर्यात में चीन की हिस्सेदारी केवल तीन प्रतिशत है. इस कारण से चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा, लंबे समय से एक बड़ा सिरदर्द बना हुआ है. निवेश के मोर्चे पर देखें, तो वर्ष 2015 से भारत में चीन का निवेश लगातार बढ़ ही रहा है. चीन की कंपनियों ने भारत के स्टार्ट अप सेक्टर में क़रीब चार अरब डॉलर का निवेश कर रखा है.

चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर भारत अगर बिना सोचे समझे फ़ैसले लेता है, तो इससे न केवल चीन के कारोबारियों पर असर पड़ेगा. बल्कि इसका सबसे ज़्यादा झटका भारत के ग़रीब तबक़े को झेलना पड़ेगा. और ख़ासतौर पर जब भारत की अर्थव्यवस्था कोविड-19 के बाद के हालात से तालमेल बिठाने की कोशिश कर रही है, तब ये उठा-पटक बहुत नुक़सानदेह साबित हो सकती है. इस समय भारत पूरी ताक़त से ये कोशिश कर रहा है कि वो वैश्विक निवेश की नई मंज़िल बन जाए. साथ ही साथ, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं भी नए सिरे से बन और बिगड़ रही हैं. ऐसे में भारत को चीन का स्थान ले पाने में अभी काफ़ी समय लग जाएगा. भारत अपने यहां के निर्माण क्षेत्र की क्षमता को विकसित करने में ध्यान लगा रहा है, जो बिल्कुल उचित क़दम है. लेकिन, ऐसा लक्ष्य रातों रात या एक दो वर्षों में नहीं हासिल किया जा सकता है. भारत के नीति निर्माताओं के लिए उचित होगा कि वो इसे लंबी अवधि का लक्ष्य बना कर उस दिशा में काम करें. क्योंकि सच तो ये है कि बेहद कम अवधि में प्रक्रिया संबंधी इन चुनौतियों से पार पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव है. अगर चीन से होने वाले आयात पर अचानक पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो इससे कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था के सुस्ती से उबरने की प्रक्रिया बाधित हो जाएगी. और इसी के साथ भारत के तैयार माल का निर्माण केंद्र बनने की आकांक्षा भी अधूरी ही रह जाएगी. यही कारण है कि परिवहन और MSME नितिन गडकरी ये अपील कर रहे हैं कि भारतीय बंदरगाहों पर अटके चीन के माल को तुरंत जारी किया जाए. वरना ये भारत के कारोबारा पर बहुत बुरा असर डालेगा.

यहां पर भारत के दुनिया का एक ज़िम्मेदार देश होने का मसला भी है. भारत ने हमेशा ही ये तर्क दिया है कि दुनिया की आर्थिक स्थिरता के लिए विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के हिसाब से कारोबार करना ज़रूरी है. ऐसे में अगर भारत व्यापार के क्षेत्र में इकतरफ़ा बर्ताव करेगा, तो चीन को दुनिया की स्थिरता के लिए चुनौती साबित करने और उसे घेरने के भारत के कूटनीतिक अभियान की राह में दिक़्क़तें आएंगी. अगर दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ता है, तो उस सूरत में भारत को चीन के साथ वाणिज्यिक संबंध ख़त्म करने से कोई नहीं रोक सकता. लेकिन, ऐसा करना भारत के लिए आख़िरी विकल्प होना चाहिए.

चीन पर लगाम लगाने के लिए भारत को चीन के साथ व्यापारिक संघर्ष को बढ़ाने की धमकी का इस्तेमाल  करना चाहिए. किसी ऐसे संबंध में जहां आपके पास फ़ायदा उठाने की वास्तविक क्षमता न हो, तो हर विकल्प को बहुत सोच समझकर ही आज़माना चाहिए

इसीलिए, मध्यम से कम अवधि के लिए चीन के साथ व्यापारिक संबंध पूरी तरह से ख़त्म करना न ही उचित है और न ही ऐसा करना ज़रूरी है. इसके बजाय, चीन पर लगाम लगाने के लिए भारत को चीन के साथ व्यापारिक संघर्ष को बढ़ाने की धमकी का इस्तेमाल  करना चाहिए. किसी ऐसे संबंध में जहां आपके पास फ़ायदा उठाने की वास्तविक क्षमता न हो, तो हर विकल्प को बहुत सोच समझकर ही आज़माना चाहिए. जैसे सीमा पर संघर्ष बढ़ने की सूरत में किसी भी सैन्य विकल्प को आज़माने के पीछे अपना तर्क होता है. उसी तरह आर्थिक टकराव को भी आख़िरी विकल्प के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. बल्कि इसे एक ऐसे क़दम के तौर पर देखा जाना चाहिए, जिसे उठाने के लिए भारत तैयार है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत को लंबी अवधि में चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने का लक्ष्य रखना चाहिए. लेकिन मध्यम से कम अवधि के दौरान बेहतर ये होगा कि भारत कुछ ख़ास क्षेत्रों में अपने आर्थिक विकल्पो को आज़माए, ताकि चीन को अपने गंभीर इरादों का संकेत दे सके. अपने हालिया बर्ताव के ज़रिए चीन ने साफ़ तौर पर ये संकेत दे दिया है कि उसकी नज़र में भारत के साथ आर्थिक संबंधों की कोई अहमियत नहीं है. ऐसे में भारत को जज़्बाती होकर कोई फ़ौरी फ़ैसला लेने से बचना चाहिए. बल्कि, भारत को चाहिए कि वो अपनी आर्थिक क्षमताओं का विकास करने के लिए लंबी अवधि की योजनाएं बनाए और उनपर अमल करे. तभी, भारत स्वयं को कोविड-19 के बाद की विश्व व्यवस्था के केंद्र में रखने में सफल हो सकेगा.

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