Published on Jul 17, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत की सुस्त अर्थव्यवस्था देश की रक्षा तैयारी पर असर डाल रही है. लेकिन सवाल है कि क्या भारत अस्थायी आर्थिक मंदी के आधार पर तीसरा एयरक्राफ्ट करियर नहीं बनाने का फ़ैसला ले सकता है?

भारतीय सुरक्षा का भविष्य और एयरक्राफ्ट करियर की भूमिका

भारत को बड़े एयरक्राफ्ट करियर की ज़रूरत है- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए, शांति बरकरार रखने के लिए, व्यापार के रास्ते को सुरक्षित रखने के लिए, क्षेत्रीय सुरक्षा मुहैया कराने के लिए और युद्ध की हालत में घातक गोलाबारी के लिए. लेकिन सुस्त अर्थव्यवस्था के कारण संसाधनों की कमी से, जो कि कोविड-19 की वजह से और ज़्यादा बिगड़ गई है, अब 65,000 टन के प्रस्तावित एयरक्राफ्ट करियर विशाल को ख़रीदने पर सवालिया निशान लग गया है. चीफ़ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि नौसेना को तय करना होगा कि पनडुब्बी और एयरक्राफ्ट करियर में से उसकी प्राथमिकता क्या है. नौसेना ने साफ़ किया है कि उसे तीन करियर की ज़रूरत है ताकि हर वक़्त कम-से-कम दो ऑपरेशन के लिए तैयार रहें. यानी भारत के हर समुद्री किनारे के लिए एक करियर.

नौसेना से ये कहना कि एयरक्राफ्ट करियर और पनडुब्बी में से प्राथमिकता तय करे ठीक उसी तरह है जैसे वायुसेना को लड़ाकू विमानों और एयर डिफेंस सिस्टम में से कोई एक चुनने के लिए कहा जाए

एक दशक से कम में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा. भारत की GDP में व्यापार का हिस्सा 40% है और भारत के क़रीब 2 करोड़ लोग विदेशों में रहते हैं जिनमें से कई अस्थिर क्षेत्र हैं. ऐसे में नौसेना को देश के हितों की रक्षा के लिए सभी संसाधनों की ज़रूरत है. नौसेना से ये कहना कि एयरक्राफ्ट करियर और पनडुब्बी में से प्राथमिकता तय करे ठीक उसी तरह है जैसे वायुसेना को लड़ाकू विमानों और एयर डिफेंस सिस्टम में से कोई एक चुनने के लिए कहा जाए. जहां पनडुब्बी समुद्र को सुरक्षित करने के लिए ज़रूरी है, वहीं एयरक्राफ्ट करियर समुद्र पर नियंत्रण और ताक़त दिखाने के लिए है. दोनों महत्वपूर्ण हैं और भारत जैसी बड़ी शक्ति के लिए ज़रूरी हैं.

एयरक्राफ्ट करियर के ख़िलाफ़ दलील दी जाती है कि वो बहुत महंगे, प्रचलन से बाहर और नई पीढ़ी के मिसाइल से असुरक्षित हैं. ये दलील ठीक उसी तरह है जैसे टैंक को ख़त्म मान लिया गया था. कहा गया कि अत्याधुनिक एंटी टैंक मिसाइल, अटैक हेलीकॉप्टर और एयर सपोर्ट एयरक्राफ्ट के सामने टैंक का कोई महत्व नहीं है. लेकिन इसके बावजूद टैंक अस्तित्व में हैं.

अनुमान के मुताबिक़ विशाल को बनाने की लागत 7 अरब डॉलर है और फिर उसे लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टर और सर्विलांस एयरक्राफ्ट से लैस करने पर 5-8 अरब डॉलर और ख़र्च होंगे. एयरक्राफ्ट करियर की लागत पर अलग करके विचार नहीं किया जा सकता है. ये देश को चलता-फिरता हवाई बेस मुहैया कराता है जिसका इस्तेमाल ज़रूरत पड़ने पर विश्व के किसी भी हिस्से में किया जा सकता है ख़ासतौर पर उन क्षेत्रों में जहां भारत के हित जुड़े हैं. ऐसा फ़ायदा तट या द्वीप में मौजूद एयरक्राफ्ट से नहीं उठाया जा सकता है. करियर को बनाने में दशक भर का समय लगता है और ऐसे में लागत पर एक बार में ख़र्च नहीं होता है. इस पर काम शुरू करने के लिए शुरुआती फंडिंग की ज़रूरत होगी और जैसे-जैसे काम आगे बढ़ेगा, ख़र्च भी बढ़ेगा और निर्माण के बाद के वर्षों में लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया जाएगा. इसके अतिरिक्त एक एयरक्राफ्ट करियर की उम्र क़रीब 50 साल होती है जो कि युद्धपोत के मुक़ाबले दोगुना है. ऐसे में ये ख़राब निवेश नहीं है.

एयरक्राफ्ट करियर की लागत पर अलग करके विचार नहीं किया जा सकता है. ये देश को चलता-फिरता हवाई बेस मुहैया कराता है जिसका इस्तेमाल ज़रूरत पड़ने पर विश्व के किसी भी हिस्से में किया जा सकता है

2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था बढ़कर चार ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी और 2030 तक सात ट्रिलियन डॉलर. अगर ये मान लिया जाए कि मौजूदा समय में GDP का 1.5% ख़र्च रक्षा पर बरकरार रहता है तो 2025 तक 60 अरब डॉलर और 2030 तक 100 अरब डॉलर ख़र्च होगा और इस दशक के दौरान कुल मिलाकर 600 अरब डॉलर रक्षा पर ख़र्च होंगे. इसमें से नौसेना को मौजूदा 15% आवंटन के हिसाब से उसे 90 अरब डॉलर मिलेंगे जिसमें से 50 अरब डॉलर पूंजीगत व्यय होंगे.

नौसेना के बड़े प्रोजेक्ट यानी पनडुब्बी को दशक भर के पूंजीगत व्यय का क़रीब 40% हिस्सा मिलेगा. छह P75i पनडुब्बी की लागत सात अरब डॉलर होने की उम्मीद है. नौसेना मौजूदा स्कॉर्पीन क्लास को एयर इंडिपैंडेंट प्रॉपल्शन के साथ रखने के विकल्प को चुन सकती है. दूसरा प्रोग्राम छह परमाणु क्षमता वाली अटैक पनडुब्बी है जिस पर क़रीब 14 अरब डॉलर लागत आने की उम्मीद है. भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए रक्षा के क्षेत्र में ज़्यादा आवंटन और नौसेना के हिस्से में बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता है. थियेटर कमांड, बेहतर अंतर-सेवा ख़रीदारी समन्वय और महंगे आयात को कम करने के लिए स्वदेशी उत्पादन में बढ़ोतरी से आधुनिकीकरण के लिए पैसे की बचत होगी. हालांकि मौजूदा हालात कठिन हैं लेकिन इसके बावजूद तीसरे एयरक्राफ्ट करियर के लिए पैसे की व्यवस्था की जा सकती है.

एयरक्राफ्ट करियर चलन से बाहर नहीं होते. अमेरिका के पास 10 एयरक्राफ्ट करियर हैं और अब वो नई क्लास का करियर बना रहा है जिसमें से पहले करियर का ट्रायल किया जा रहा है. यूनाइटेड किंगडम भी करियर की ज़रूरत को लेकर काफ़ी विचार-विमर्श के बाद आगे बढ़ा और दो करियर का इस्तेमाल शुरू किया. चीन के पास दो एयरक्राफ्ट करियर हैं और कम-से-कम छह की योजना है. चीन की बढ़ती समुद्री ताक़त से ख़तरा महसूस कर रहे शांतिप्रिय जापान ने भी इज़ुमो क्लास के दो हेलीकॉप्टर करियर को एयरक्राफ्ट करियर में बदलने का एलान किया है. फ्रांस के पास अमेरिका के अलावा अकेला परमाणु शक्ति से लैस एयरक्राफ्ट करियर है.

धारणाओं के उलट एक एयरक्राफ्ट करियर ऐसा नहीं होता है कि उस पर आसानी से आक्रमण कर दिया जाए. इसके पास डिस्ट्रॉयर, युद्धपोत, लड़ाकू जलपोत और पनडुब्बी होती है. भारत के संदर्भ में कहें तो एयरक्राफ्ट करियर 290 किमी. की रेंज वाली ब्रह्मोस सुपरसोनिक एंटी शिप क्रूज़ मिसाइल से लैस हैं जो 3,700 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से दुश्मन के युद्ध पोत पर 5 मिनट में निशाना साध सकती हैं. समुद्र मंथन करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को मार गिराना दुश्मन के जहाज़ के लिए आसान नहीं होगा. अब भारत ज़्यादा दूरी वाली ब्रह्मोस मिसाइल पर काम कर रहा है जो 600 किमी तक निशाना साध सकती है. करियर पर मौजूद एयर डिफेंस सिस्टम और इन हथियारों के साथ दुश्मन की आने वाली मिसाइल का मुक़ाबला किया जा सकता है. अगर करियर पर किसी मिसाइल का हमला हो जाता है तब भी ये आसानी से डूबता नहीं है.

करियर का लड़ाकू विमान, जो फिलहाल भारत के INS विक्रमादित्य पर मिग-29K है और जिसकी मारक रेंज 850 किमी है, दुश्मन के लंबी दूरी के हथियार को करियर के नज़दीक आने से पहले ही ख़त्म कर सकता है. भविष्य में करियर को और भी आधुनिक और शक्तिशाली लड़ाकू विमान से लैस किया जाएगा. इसके लिए बोइंग का F-18 सुपर हॉर्नेट और दसॉ का रफाल दौड़ में है. भारत करियर के लिए स्वदेशी लड़ाकू विमान की योजना बना रहा है जिस पर कम लागत आएगी. करियर के लिए एंटी-सबमरीन हेलीकॉप्टर होते हैं और भारतीय नौसेना के पास आधुनिक P-8 सर्विलांस, एंटी-सबमरीन और एंटी-सरफेस वॉरशिप एयरक्राफ्ट हैं जो एंटी-शिप मिसाइल और टॉरपीडो से लैस हैं. भविष्य में ऊर्जा आधारित डिफेंस सिस्टम होंगे.

भविष्य में करियर को और भी आधुनिक और शक्तिशाली लड़ाकू विमान से लैस किया जाएगा. इसके लिए बोइंग का F-18 सुपर हॉर्नेट और दसॉ का रफाल दौड़ में है. भारत करियर के लिए स्वदेशी लड़ाकू विमान की योजना बना रहा है

हवाई हमले की क्षमता के साथ करियर दूसरे सतही हथियारों के मुक़ाबले समुद्र में विशाल ख़र्च को नियंत्रित करने में सक्षम हैं. युद्ध की हालत में- मान लीजिए पाकिस्तान के साथ- करियर पाकिस्तान की नौसेना को उसके तट के क़रीब रोकने में सक्षम होगा और पाकिस्तान की सप्लाई को काटने और उसके ख़िलाफ़ आक्रामक कार्रवाई करके पूरी तरह समुद्र में वर्चस्व स्थापित करेगा. या हमला करने के लिए चीन की नौसेना को हिंद महासागर में घुसना मुश्किल कर देगा.

एक विचार ये भी है कि भारत को शायद एक और विक्रांत क्लास करियर बनाना चाहिए जो कि फिलहाल निर्माणाधीन है. विक्रांत INS विक्रमादित्य की तरह 45,000 टन का करियर है. लेकिन इसके पास सिर्फ 26 मिग-29K रखने की क्षमता है जो स्की-जंप से ऑपरेट कर सकते हैं. स्की-जंप की वजह से लड़ाकू विमानों में सीमित मात्रा में ईंधन भरा जा सकता है और उसे सीमित हथियारों से लैस किया जा सकता है. उपलब्धता 50% से कम होने के कारण क़रीब एक दर्जन जेट ही ऑपरेशन के लिए मौजूद हैं. इसकी वजह से आक्रमण के मिशन में बाधाएं आती हैं. कम फ़्यूल लोड की वजह से मारक रेंज में भी कमी आती है. ऐसे में करियर को आक्रमण करने के लिए दुश्मन के क़रीब जाना पड़ता है. दुश्मन के क़रीब जाने का मतलब है ज़्यादा ख़तरा. 65,000 टन वाले करियर में लड़ाकू विमान पूरे ईंधन क्षमता और हथियार से लैस होकर रह सकते हैं. ये लड़ाकू विमानों के उड़ान भरने के लिए आदर्श होते हैं जिसकी वजह से ज़्यादा आक्रामक मिशन लॉन्च किए जा सकते हैं. अगर नौसेना को रफाल या सुपर हॉर्नेट हासिल हो जाता है तो उसकी आक्रमण क्षमता काफ़ी बढ़ जाएगी. ऐसा करियर सर्विलांस और अर्ली वॉर्निंग एयरक्राफ्ट भी लॉन्च कर पाएगा.

भारतीय नौसेना की ज़िम्मेदारी का क्षेत्र अफीक्रा के पूर्वी तट से लेकर पश्चिमी प्रशांत महासागर तक है जहां वो नियमित तौर पर साझा अभ्यास, सद्भावना मिशन, सैन्य कूटनीति, मानवीय सहायता और आपदा राहत के लिए अपने जहाज़ तैनात करती है. भारत के व्यापार का क़रीब 50% हिस्सा दक्षिणी चीन सागर से गुज़रने और पूरे दक्षिणी चीन सागर पर चीन के हक़ जताने की वजह से भारतीय नौसेना को भारत के व्यापार की रक्षा करने के लिए बुलाया जाएगा और उम्मीद जताई जा रही है कि चीन की नौसेना इसको चुनौती देगी क्योंकि वो दक्षिणी चीन सागर में किसी दूसरे देश की नौसेना पर आपत्ति जताती है. भारत दक्षिणी चीन सागर में किसी तरह का ऑपरेशन नहीं चलाता लेकिन इसके बावजूद चीन भारतीय नौसेना की मौजूदगी पर विरोध जताता है.

पश्चिमी क्षेत्र के ज़रिए भारत का बाक़ी 50% व्यापार होता है और 80% तेल सप्लाई इसी रास्ते के ज़रिए आता है. खाड़ी क्षेत्र में भारत के 80 लाख नागरिक रहते हैं और ये दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों में से एक हैं. बढ़ती हुई ताक़त के तौर पर भविष्य में नौसेना की ज़िम्मेदारी का क्षेत्र अफ्रीका का पश्चिमी तट भी होगा जहां भारत ने काफ़ी निवेश किया है. वास्तव में अफ्रीकी देशों में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार नाइजीरिया है.

दलील, कम-से-कम सैन्य स्तर पर, एयरक्राफ्ट करियर के ख़िलाफ़ नहीं है बल्कि पैसे को लेकर है जिसकी वजह से प्राथमिकता तय करने का सवाल खड़ा हो रहा है. भारत की सुस्त अर्थव्यवस्था देश की रक्षा तैयारी पर असर डाल रही है. लेकिन सवाल है कि क्या भारत अस्थायी आर्थिक मंदी के आधार पर तीसरा एयरक्राफ्ट करियर नहीं बनाने का फ़ैसला ले सकता है? वो सैन्य साजो-सामान जिसे बनाने में कम-से-कम 10 साल लगेंगे और जो 2080 तक देश की रक्षा करेगा. अगर भारत ये फ़ैसला नहीं में लेगा तो सैन्य कूटनीति के सबसे शक्तिशाली औज़ार से ख़ुद को दूर रखेगा.

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