Author : Sunjoy Joshi

Published on Jun 26, 2020 Updated 0 Hours ago

चीन से निपटने में हमें अभी 15-20 साल लगेंगे और उसकी तैयारी हमें अभी से करनी होगी. बीच-बीच में घटनाएं होते रहेंगे. हमें उसके पीछे के उद्देश्य को समझना होगा और उसे समझते हुए काफी गहन चिंतन-मनन कर हमें एक दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी.

गलवान घाटी घटना: अब समय आ गया है कि भारत चीन के संदर्भ में लॉन्ग टर्म रणनीति बनाए

तकरीबन 45 वर्षों के बाद, भारत और चीन के बीच इस तरह के हिंसक झड़प हुए हैं. भारत का कहना है कि चीन ने उन संधियों का उल्लंघन किया है जो दोनों देशों के बीच हुई है. गलवान घाटी में हुए इस झड़प में भारत की तरफ से 20 जवान शहीद हुए हैं. वहीं चीन ने अपने सैनिकों के मरने की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है. प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने कहां है कि इन जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगा. इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि भारत इसका जवाब किस तरह से देगा? क्या अब समय आ गया है कि भारत को चीन के साथ अपने आर्थिक, कूटनीतिक और सामरिक संबंधों पर पुनर्विचार करनी चाहिए. दोनों देशों के बीच बातचीत कूटनीतिक स्तर पर भी हो रही है  और  सैन्य स्तर पर भी हो रही है लेकिन अभी तक उसका कोई नतीजा सामने नहीं आया हैं. दि गलवान घाटी की भू-रणनीतिक स्थिति देखी जाए तो चीन के सैनिक भारतीय सैनिकों की अपेक्षा काफी बेहतर  स्थिति में है.

भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों का इतिहास देखा जाए तो भारत की तरफ से एक स्ट्रैटेजिक गैप (सामरिक निर्वात) बन गया था. चीन इस मामले में काफी सशक्त हो चुका  है और भारत कहीं ना कहीं पीछे छूटता ही जा रहा था. अपने इसी रिक्तता को भरने के लिए भारत ने जो प्रयास किए हैं उसी की बौखलाहट चीन की तरफ से देखी जा रही है

क्या है चीन की साज़िश?

गलवान घाटी में जो घटना घटी है वो अनायास ही नहीं घटी है.अप्रैल माह के अंत से लगातार चार घटनाएं घट चुकी है- पहली घटना सिक्किम नाथुला दर्रे के पास और बाकी तीन लद्दाख में घटी हैं. इसके कई कारण है और इसके पीछे एक लंबा इतिहास भी है. पर प्रमुख रूप से तीन कारण कहे  जाते हैं. सबसे पहला कारण यह घटना क्यों बढ़ रहीं है? इस बारे में प्रधानमंत्री ने खुद कहा कि हम अपने बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर को सशक्त करने में लगे हुए हैं और हम आगे इनका निर्माण कर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण श्योक-दौलत बेग माली से जुड़ना चाहते है जिससे चीन खुश नहीं है. भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों का इतिहास देखा जाए तो भारत की तरफ से एक स्ट्रैटेजिक गैप (सामरिक निर्वात) बन गया था. चीन इस मामले में काफी सशक्त हो चुका  है और भारत कहीं ना कहीं पीछे छूटता ही जा रहा था. अपने इसी रिक्तता को भरने के लिए भारत ने जो प्रयास किए हैं उसी की बौखलाहट चीन की तरफ से देखी जा रही है और यही वजह है कि चीन अब यह दावा करने की कोशिश कर रहा है कि गलवान वैली हमारी है.

दूसरी घटना कोरोना महामारी के कारण है. कोविड-19 की घटना से चीन अपने-आप को वैश्विक पटल पर अलग-थलग महसूस कर रहा है और उसे लगता है दूसरे देश चीन को कमजोर देखना चाहते हैं या अमेरिका के साथ मिलकर संयुक्त रूप से सप्लाई चेन न को चीन से बाहर अपने यहां लाने की कोशिश कर रहे हैं. चीन का 21वीं सदी से सफाया हो चुका है. इस प्रकार चीन के ज़हन में एक दूसरा तनाव अंदर ही अंदर पैठ करता जा रहा है.

तीसरी जो सबसे बड़ी बात है चाहे हम बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करें या कोविड-19 के बाद जो उत्पन्न आर्थिक संकट उत्पन्न हुई है उसकी बात करें तो चीन यह सोचता है कि जो देश उसे कमजोर देखना चाहते हैं उनके लिए कैसे कठिनाइयां उत्पन्न की जाए जिससे कि वह उसके राह में ज्यादा कठिनाई उत्पन्न न कर पाए. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने कहा (बिना किसी देश का नाम लिए सिर्फ़ इशारा किया है) कि उसके ऊपर बड़े ही सुनियोजित ढ़ंग से साइबर अटैक हमले (state-based actor) शुरू कर दिए हैं. इसी तरह चीन पूर्वी चीन सागर में और दक्षिण चीन सागर में भी ज्य़ादा आक्रमक होता जा रहा है. इन सबके पीछे चीन की एक सोची समझी रणनीति है. हमें चीन की इस स्ट्रेटजी को समझने की ज़रूरत है ताकि हम उसके अनुसार एक बेहतर रणनीति का निर्माण कर सकें.

क्या हम चीन के चरित्र व्यवहार से परिचित नहीं हैं?

इस तरह की जो भी घटना घट रही है यह सिर्फ चीन के बृहद रणनीति का एक लक्षण मात्र है. चीन अब सोच रहा है कि किस प्रकार से आगे कार्य करूं? जो वर्तमान परिस्थितियां उसके ख़िलाफ़ बन रही हैं उनसे मैं कैसे सशक्त होकर बाहर निकलूं? इसलिए भारत को भी बड़ी सूझबूझ के साथ इन छोटी-छोटी घटनाओं के पीछे जो एक शतरंज का बिसात बिछा हुआ है उसे समझना बहुत जरूरी हो जाता हैं. चीन इस तरह की चाल काफी समय से चलता आ रहा है कि जो देश उसके पक्ष में नहीं हैं उन्हें कैसे कमजोर किया जाए, कैसे उनके खर्चे बढ़ाकर उन्हें कंगाल कर दिया जाए. जब चीन को साउथ चाइना सी में दक्षिणी चीन सागर में अमेरिका को उलझाना होता है तो उसके लिए ज्यादा ख़र्चीला नहीं होता. 2 – 4 मछुआरों को भेजकर कुछ-कुछ चट्टानों पर झंडा गाड़ देता है. इसके बाद प्रतिक्रिया स्वरूप दूसरे देश अपना पांचवा बेड़ा भेज देते हैं सातवां बेड़ा भेजकर ज़वाबी कार्रवाई करते हैं जिससे उनके खर्चे बढ़ जाते हैं.

अभी हम कोविड-19 के आर्थिक दुष्प्रभाव से उबरे नहीं है, हमें अपने सभी क्षेत्रों– आर्थिक सुदृढ़ीकरण, बेरोज़गारी और ढांचागत स्वास्थ्य विकास– को दुरुस्त करना है. हमें सबसे पहले इस संकट से बाहर निकलना है. ऐसे में चीन यह चाहता है कि कैसे  भारत से भी खर्चे बढ़ाकर उसे आसानी से सीमित और संकुचित कर दिया जाए. चीन के साथ हमारे लगभग साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी सीमा है उसमें इस तरह से उलझाया जाए कि वो फिर हथियार खरीदने पर विवश हो जाए. हम अभी भी अपने हथियार के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हुए है. इन सब को सोच समझकर भारत को आगे की नीति अपनानी होगी न कि चीन के इस  बिछाई हुई वृहद नीति की तरफ खींचते चले जाना है. इनके साथ भारत के संबंध– चाहे दोस्ती के हो या दुश्मनी के– यह लंबे समय तक चलेगा.  यदि चीन को हमें जवाब देना है तो एक-दो दिन या सालभर की झपकी लगाने से काम नहीं चलेगा.

अगर चीन के साथ भारत को अपने रिश्ते पुनः परिभाषित करनी है तो सबसे बड़ा रिसेट जो होनी चाहिए और यही होगा कि हम अपना दृष्टिकोण चीन के प्रति आगे आने वाले समय में दोनों देशों के बीच जो टकराव उत्पन्न होने वाले हैं उसकी तैयारी हम अभी से शुरू कर सके हैं.

नीतिगत स्तर पर किस तरह के वृहद नीति होनी चाहिए

निर्णायक कार्यवाही तो किसी को नहीं करनी है. इसलिए यदि हम गौर करें तो दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के स्टेटमेंट थोड़ी रुक-रुक कर आने लगे हैं. बहुत ज्यादा इसे तूल देना न अभी भारत ने उचित समझा है और न ही चीन ने उचित समझा हैं. जहां तक स्ट्रेटजी का सवाल है तो भारत को यह समझना चाहिए और समझ भी रहा है कि चीन को नियंत्रित करने के लिए लॉन्ग टर्म स्ट्रैटजी  के तहत काम करने की ज़रूरत है. इसलिए हमें सोच समझकर इसकी रक्षा योजना, आर्थिक योजना, सुरक्षा योजना और रणनीतिक योजना बनाने की जरूरत है. अगर चीन के साथ भारत को अपने रिश्ते पुनः परिभाषित करनी है तो सबसे बड़ा रिसेट जो होनी चाहिए और यही होगा कि हम अपना दृष्टिकोण चीन के प्रति आगे आने वाले समय में दोनों देशों के बीच जो टकराव उत्पन्न होने वाले हैं उसकी तैयारी हम अभी से शुरू कर सके हैं. वह बदलाव हमारे टेक्नोलॉजी में आएगा, स्ट्रेटजी में आएगा, हमारे इकोनॉमिक्स में आएगा और इन्हीं सबसे हमारे सुरक्षा के आयाम उभर कर सामने आएंगे.

बायकॉट चाइना कितना नामुमकिन है?

चीन की सप्लाई चेन हमारी अर्थव्यवस्था में बुरी तरह से जुड़ चुकी हैं. और अगर हम आज वास्तव में बॉयकॉट चाइना करते हैं तो हमारा मेड इन इंडिया प्रभावित हो जाता है. हमारा बहुत बड़ा क्षेत्र फार्मास्युटिकल का है इसमें जो चीजें उपयोग की जाती हैं उसका 70% चीन से आती हैं. इलेक्ट्रॉनिक का 38% सामान चीन से आते हैं. ऑटोमोबाइल सेक्टर जो हमारा बहुत ही स्ट्रांग सेक्टर है इसमें हमने बहुत सारी उपलब्धि हासिल की है. इससे भी  20 से 28% कल पुर्जे चीन से ही आते हैं. इसलिए सप्लाई चैन एकदम से डिस्कनेक्ट कर देना भारत के लिए संभव नहीं है.

नीति के तौर पर हमारे पास क्या विकल्प हैं?

हां, नीति के तौर पर यह संभव है. हम अपने आर्थिक क्षेत्र में जो कई वर्षों से करना चाह रहे हैं पर कर नहीं पा रहे हैं वो करने ज्यादा ज़रूरी हो जाते हैं. चीन बाघ और बकरी के खेल के तहत कैसे अपने विरोधी देशों को उलझाए रखा जाए और उनके खर्चे इतने बढ़ा दिया जाए कि वह अंत में चरमरा जाएं. इस नीति को वह बखूबी खेलना जानता है और निरंतर इस प्रयास में रहता है. चीन के इस तरह की नीति को समझते हुए हमें भी उसके साथ बाघ और बकरी के खेल में निपुण होना पड़ेगा. इस दुनिया में एलायंसेज करने होंगे और वह एलायंसेज अपने हित में होने चाहिए. आज के समय में हिंद-प्रशांत क्षेत्र थोड़ा धीमा पड़ गया है. पर इसके अलावा, हमें  द्वि-पक्षीय संबंध– ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों के साथ करने होंगे. और यह करना बहुत ज़रूरी हो जाता है.

हमारे नेताओं के जिस तरह के बयान आ रहे हैं उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि उनको पूरी तरह भान है कि यह समय चीजों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का नहीं है या मामले को उलझाने वाला समय नहीं है. हमारे आर्थिक मोर्चे पर जो लड़ाई जारी है उसको सुलझाना है, हमारे हेल्थकेयर में जो समस्याएं हैं उसे देखना है और यह हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. चीन से निपटने में हमें अभी 15-20 साल लगेंगे और उसकी तैयारी हमें अभी से करनी होगी. बीच-बीच में घटनाएं होते रहेंगे. हमें उसके पीछे के उद्देश्य को समझना होगा और उसे समझते हुए काफी गहन चिंतन-मनन कर हमें एक दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी.

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