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क्या अंतरराष्ट्रीय क़ानून में कोई ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत, कोविड-19 के कुप्रबंधन और बाद में इसकी रोकथाम में असफल रहने के लिए, चीन की सरकार और प्रशासन की जवाबदेही तय की जा सके.
एक अप्रैल को अमेरिका की संस्था ‘फ्रीडम वॉच’ ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) में चीन की सरकार, चीन की सेना, वुहान के इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी और इसके निदेशक शी झेंगली के ख़िलाफ़ एक शिकायत दर्ज कराई. इसमें फ्रीडम वॉच ने आरोप लगाया कि इन सभी ने नए कोरोना वायरस की शक्ल में एक जैविक हथियार को पहले विकसित किया और उसके बाद पूरी दुनिया में तबाही छोड़ दिया. अपनी अर्ज़ी में फ्रीडम वॉच ने इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) से मांग की है कि वो रोम स्टैट्यूट की धारा 15 के अंतर्गत इस बारे में एक जांच शुरू करे.
लेकिन, याचिका कर्ताओं का बिना किसी सबूत के ये दावा करना कि चीन ने कोरोना वायरस की शक्ल में जैविक हथियार बनाया, एक अटकल अधिक है और आरोप कम. लेकिन, इस मुक़दमे से एक बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि क्या अंतरराष्ट्रीय क़ानून में कोई ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत, कोविड-19 के कुप्रबंधन और बाद में इसकी रोकथाम में असफल रहने के लिए, चीन की सरकार और प्रशासन की जवाबदेही तय की जा सके. अब तक इस बीमारी से लाखों लोग ग्रसित हो चुके हैं और लाखों लोगों की जान जा चुकी है. ऐसे में इन सवालों का जवाब हां में है. क्योंकि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि चीन की सरकार ने पहले तो कोरोना वायरस के इस प्रकोप को छुपाने की कोशिश की और बाद में इससे निपटने में कई तरह की लापरवाहियां बरतीं.
चीन की सरकार के अप्रकाशित सरकारी रिकॉर्ड के हवाले से हॉन्ग कॉन्ग के अख़बार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने ख़बर दी है कि कोविड-19 का पहला मरीज़ पिछले साल 17 नवंबर को ही सामने आया था. लेकिन, जब पत्रकारों और डॉक्टरों ने इस नए वायरस के प्रकोप की चेतावनी दी, तो वुहान की तमाम सरकारी एजेंसियों ने पहले तो इन चेतावनियों की अनदेखी की. ज़रूरी क़दम नहीं उठाए. फिर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सही समय पर इस महामारी के प्रकोप की बात भी नहीं स्वीकार की. इसी कारण से चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने पूरी दुनिया को इस वायरस की तबाही झेलने की राह पर धकेल दिया. चीन के अधिकारियों के कई ग़लत क़दमों और अनुचित प्रतिक्रियाओं का ही नतीजा था कि 12 जनवरी तक चीन के अधिकारियों ने इस वायरस के जीनोम को विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ शेयर नहीं किया था.
और, हालांकि 17 नवंबर को पहला केस सामने आने के बाद जब इस वायरस के संक्रमण का विस्फोट हुआ. तब भी जीन के अधिकारियों ने घरेलू स्तर पर और जनता को भी इस वायरस के बारे में जानकारी देने से रोका. जबकि, 31 दिसंबर तक इस वायरस के संक्रमण के 266 मामले सामने आ चुके थे. और वर्ष 2020 के पहले दिन कोरोना वायरस के मरीज़ों की संख्या 381 पहुंच चुकी थी. जबकि, इस मोर्चे पर काम कर रहे डॉक्टर लगातार चीन के अधिकारियों को वायरस की भयंकरता के बारे में चेतावनी दे रहे थे. लेकिन, चीन के अधिकारी इस बात को छुपाने में जुटे हुए थे. हाल ये है कि एक इंसान से दूसरे इंसान को संक्रमण होने की बात को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 14 जनवरी तक छुपाए रखा गया. उस दिन तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य के आपातकाल के रूप में घोषित नहीं किया था. 20 जनवरी को जाकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सार्वजनिक रूप से ये माना था कि ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है. फिर भी वुहान शहर में 22 जनवरी तक लॉकडाउन नहीं किया गया था. और तब तक वुहान से क़रीब 50 लाख लोग हवाई सेवा के ज़रिए पूरी दुनिया में जा चुके थे. जिसके कारण पूरी दुनिया के लिए स्वास्थ्य का एक बड़ा ख़तरा पैदा हो गया था.
इन हालात के बीच, जब ये देखा गया कि कोरोना वायरस के पीड़ितों के दो तिहाई नमूनों का संबंध वुहान की हुआनान सी-फूड थोक मार्केट से है, तब जाकर इस बाज़ार को एक जनवरी को बंद किया गया. चीन ने इससे सिर्फ़ एक दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन को नए कोरोना वायरस के प्रकोप की जानकारी दी थी. फिर, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तमाम देशों से अपील की कि वो अपने यहां से चीन को आवाजाही पर प्रतिबंध न लगाएं. लेकिन, ख़ुद हुआनान के सी-फूड मार्केट को बंद करके चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने इस बात को मान लिया था कि इस वायरस के एक इंसान से दूसरे इंसान में संक्रमण होने की शुरुआत उसी सी-फूड मार्केट से हुई थी.
चीन कम्युनिस्ट पार्टी की इस त्वरित कार्रवाई के पीछे बड़ी वजह ये थी कि चीन को इस बात का एहसास हो गया था कि दक्षिणी चीन पहले ही वायरस के संक्रमण का प्रमुख केंद्र बन गया है. क्योंकि वहां पर जैविक सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम न होने के कारण, वहां के समुद्री जीवों और अन्य वन्य जीवों जैसे चमगादड़ के बाज़ारों से सार्स कोरोना वायरस जैसे वायरस के इंसानों तक पहुंचने के लिए बिल्कुल मुफ़ीद माहौल था. चीन में जंगली जीवों और स्तनधारी जीवों जैसे पैंगोलिन का मांस खाने का चलन इस समस्या को और बढ़ा रहा था. जिस कारण से कभी भी एक नया वायरस जानवरों से इंसानों तक पहुंच सकता था. ये वायरस 2003 में सामने आए सार्स से भी भयानक होने की आशंका पहले ही जताई जा रही थी.
आज भी चीन ने अपनी वेट मार्केट पर केवल अस्थायी पाबंदी ही लगाई है. जबकि जैव विविधिता के संयुक्त राष्ट्र के कार्यकारी अधिशाषी सचिव ने पूरी दुनिया में जंगली जानवरों का कारोबार करने वाले बाज़ारों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की मांग की है. इसमें वुहान का वन्य जीवों वाला बाज़ार भी शामिल है
2003 में क़हर बरपाने वाली सार्स महामारी ने चीन को इस बात के लिए मजबूर किया था कि वो ऊदबिलाव व अन्य वन्य जीवों को पालने, उन्हें लाने ले जाने और बिक्री पर रोक लगाने को मजबूर हो गया था. लेकिन, ये पाबंदी छह महीने बाद ही हटा ली गई थी. आज भी चीन ने अपनी वेट मार्केट पर केवल अस्थायी पाबंदी ही लगाई है. जबकि जैव विविधिता के संयुक्त राष्ट्र के कार्यकारी अधिशाषी सचिव ने पूरी दुनिया में जंगली जानवरों का कारोबार करने वाले बाज़ारों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की मांग की है. इसमें वुहान का वन्य जीवों वाला बाज़ार भी शामिल है. सोशल मीडिया पर इस नए कोरोना वायरस के बारे में जानकारी प्रेषित करने वाले वुहान के आठ डॉक्टरों को वहां के सार्वजनिक सुरक्षा विभाग ने हिरासत में ले लिया था. इस एक मिसाल से ही से चीन की अपारदर्शी प्रशासनिक व्यवस्था को समझा जा सकता है.
2003 में सार्स वायरस के प्रकोप से निपटने के अनुभव को देखते हुए चीन से कम से कम ये अपेक्षा तो की ही जा सकती थी कि वहां की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी, इंटरनेशनल हेल्थ रेग्यूलेशन (IHR) के मानकों का पालन करते हुए इस वायरस के प्रकोप को सीमित रखती. इसके लिए उसे इस महामारी से संबंधित सटीक जानकारी, सही समय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन से साझा करनी थी. लेकिन, चीन के प्रशासन द्वारा की गई तमाम ग़लतियों के कारण आज कोविड-19 की महामारी पूरी दुनिया में फैल गई. इससे दुनिया की सेहत और अर्थव्यवस्था पर अभूतपूर्व रूप से बहुत बुरा असर पड़ा है. इससे चीन की जान बूझकर झूठ बोलने की आदत स्पष्ट रूप से उजागर हो गई है.
इसीलिए, नियमों पर आधारित विश्व व्यवस्था को संरक्षित रखने और जीवन, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता के अधिकार को सुरक्षित बनाने के लिए, तमाम देशों के लिए ये आवश्यक है कि वो इस मुद्दे पर साथ आएं और मिलकर उन लोगों के ख़िलाफ़ उचित न्यायिक कार्रवाई की संभावनाएं तलाशें, जो इन ग़लतियों के लिए ज़िम्मेदार हैं. इन ग़लतियों के ख़िलाफ़ जो कुछ उचित क़दम उठाए जा सकते हैं, वो इस तरह से हो सकते हैं-
जहां तक अंतरराष्ट्रीय उत्तरदायित्व से बचने के प्रयास की बात है तो चीन इसका पालन करने में कई तरह से नाकाम साबित हुआ. जैसे कि उसने वायरस से संबंधित सही जानकारी उचित समय पर नहीं मुहैया कराई. इसके अलावा प्रतिबंध के आदेश देकर चीन ने इन जानकारियों को दबाने का प्रयास किया. चीन ने बायोटेक कंपनियों को टेस्ट करने से रोकने का आदेश देकर भी जानकारियों का प्रवाह रोकने की कोशिश की. उचित तत्परता किसी भी अच्छी प्रशासनिक व्यवस्था की निशानी है. इससे इस बात का मूल्यांकन किया जा सकता है कि, क्या किसी देश ने वो क़दम उठाए, जो उसे उठाने चाहिए थे, ताकि किसी को नुक़सान या ख़तरा न उत्पन्न हो. ये मानक जो कई पारंपरिक और अंतराष्ट्रीय नियमों का हिस्सा है, वो पर्यावरण, मानवाधिकार और वैश्विक जन स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर लागू होता है. ये नियम जो किसी भी देश पर उचित बर्ताव करने की पाबंदियां लगाते हैं, ताकि किसी भी देश को अंदरूनी ख़तरे या उसकी सीमा से परे नुक़सान या ख़तरे की आशंका को समाप्त किया जा सके. लेकिन, चीन ने इन नियमों का पालन नहीं किया.
इसके अतिरिक्त, आर्टिकिल 15, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट को ये अधिकार देता है कि वो अपने पास उपलब्ध जानकारी के आधार पर अपनी न्यायिक व्यवस्था के दायरे में रहते हुए, स्वत: ही इस बात की जांच करे कि क्या कोई संज्ञेय अपराध हुआ है. इस बात का ज़िक्र फ्रीडम वॉच की याचिका में भी है.
ये सभी बातें कहने के बाद भी अभी ये तय नहीं है कि क्या इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट को चीन के ऊपर न्यायिक अधिकार है अथवा नहीं. हालांकि, आम जनमानस ये चाहता है कि चीन को आईसीसी में घसीटा जाए. लेकिन, सभी क़ानूनी पहलुओं का बारीक़ी से विश्लेषण करने के बाद ही ऐसा किया जा सकता है. ऐसा आईसीसी की अपील नंबर-ICC-02/17 OA4 के साथ देखा जा चुका है. जब आरोपी के ख़िलाफ़ पड़ताल करने वाले वक़ीलों को अमेरिकी सेना के अफ़ग़ानिस्तान में बर्ताव की जांच की इजाज़त मिली थी. जबकि, अमेरिका तो इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) का सदस्य भी नहीं है.
इसके अतिरिक्त, इंटरनेशनल हेल्थ रेग्यूलेशन की धारा 75 ये कहती है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के संविधान की व्याख्या से संबंधित किसी भी विवाद का निपटारा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में होना चाहिए. इस धारा को इसके व्यापक रूप में देखें तो इस बात की संभावना भी बनती है कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय अपने विवादित न्यायिक क्षेत्र का प्रयोग करके कम से कम चीन के उत्तरदायित्व, उसकी गड़बड़ियों और कमियों की समीक्षा तो कर ही सकता है.
अगर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय, चीन के ख़िलाफ़ कोई सबूत जुटा भी लेता है, तो उनकी जवाबदेही के लिए चीन को बाध्य नहीं किया जा सकता है. लेकिन, फिर भी क़ानून के दायरे में रहते हुए व्यापक न्यायिक सबूत जुटाए जा सकते हैं
हम ज़ोर देकर ये कहना चाहते हैं कि अगर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय, चीन के ख़िलाफ़ कोई सबूत जुटा भी लेता है, तो उनकी जवाबदेही के लिए चीन को बाध्य नहीं किया जा सकता है. लेकिन, फिर भी क़ानून के दायरे में रहते हुए व्यापक न्यायिक सबूत जुटाए जा सकते हैं.
और इन सभी को चीन के ख़िलाफ़ एक मज़बूत न्यायिक और कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए रणनीतिक शस्त्र के तौर पर प्रयुक्त किया जा सकता है. ताकि उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर जवाबदेह बनाया जा सके.
आदित्य मनुबरवाला, एक वक़ील हैं जो भारत के सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं. वो अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति के पूर्व विशेष सलाहकार भी रह चुके हैं.
डिस्क्लेमर- इस लेख में व्यक्त किए गए विचार इसके लेखकों के हैं न कि उनके संबंधित संगठनों के.
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Manish Vaid is a Junior Fellow at ORF. His research focuses on energy issues, geopolitics, crossborder energy and regional trade (including FTAs), climate change, migration, ...
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