भारत और चीन अपने पुराने तज़ुर्बे को फिर से दोहरा रहे हैं. सीमा पर दोनों देशों के सैनिक आपस में टकरा रहे हैं. सीमा का उल्लंघन बढ़ रहा है. दोनों ही देशों के कूटनीतिज्ञ, तल्ख़ी भरे बयान दे रहे हैं. और, दोनों देशों की सीमा के महत्वपूर्ण सेक्टर पर फौज की तैनाती बढ़ाई जा रही है. भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव का लंबा इतिहास बताता है, कि ये तनाव अक्सर ठीक उसी समय होता है, जब उसकी बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं होती. इस वक़्त पूरी दुनिया कोविड-19 की महामारी से जूझ रही है. और तमाम देशों की सरकारें सिर जोड़ कर इस आर्थिक और स्वास्थ्य की चुनौती का समाधान तलाशने के प्रयास में जुटी हैं. क्योंकि, कोविड-19 की महामारी ने तमाम देशों की व्यवस्थाओं को पंगु बना दिया है. भारत की स्थिति भी इससे अलग नहीं है. भले ही भारत में ये स्वास्थ्य संकट अपने शीर्ष पर अभी न पहुंचा हो. लेकिन, इसके कारण से तेज़ी से बढ़ रहे आर्थिक संकट ने भारत के नीति नियंताओं को कड़ी चुनौती दी है. हमें बताया जा रहा है कि, अर्थव्यवस्था से जुड़ी बड़ी चुनौतियों से फिलहाल आंखें फेरी जा सकती हैं. क्योंकि इस वक़्त ज़रूरत तेज़ी से बढ़ रहे मानवीय संकट के समाधान को प्राथमिकता देने की है.
लेकिन, हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हमारे पास चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी हैं, जो भारत के लिए इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट का सामना करना मुश्किल बनाने में कोई क़सर नहीं छोड़ रहे हैं. पाकिस्तान से तो भारत निपट सकता है. लेकिन, जब चीन आक्रामक रुख़ अपनाता है, तो भारत के लिए खेल पूरी तरह से बदल जाता है. और इसीलिए, वैश्विक स्वास्थ्य महामारी के बीच, भारत और चीन के बीच 3448 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उबाल आया हुआ है. भारत और चीन के सैनिकों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई जगह संघर्ष हुए हैं. जो 2015 के बाद से दोनों देशों के बीच सबसे गंभीर टकराव है. चीन की सेना ने नियंत्रण रेखा पर लद्दाख की पैंगॉन्ग त्सो झील के आस पास और गलवान अपने सैनिकों की संख्या को बढ़ा दिया है. भारत की सेना की तरफ़ से भी चीन की सैन्य टुकड़ियों को पीछे धकेलने का प्रयास चल रहा है. चीन ने भारत के सैनिकों पर आरोप लगाया है कि वो उसकी सीमा में घुस आए थे. चीन का दावा है कि, भारत के सैनिकों ने सिक्किम और लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा की यथास्थिति को एकतरफ़ा तरीक़े बदलने का प्रयास किया. जबकि, भारत ने कहा है कि सीमा प्रबंधन को लेकर उसका रवैया हमेशा ज़िम्मेदारी भरा रहा है. और ये असल में चीन के सैनिक हैं, जो भारत के सैनिकों को नियंत्रण रेखा पर अपने इलाक़े में गश्त लगाने से रोक रहे हैं. दोनों ही देशों के स्थानीय कमांडरों ने विवाद को सुलझाने के लिए कई बैठकें की हैं. मगर इन बैठकों से नियंत्रण रेखा पर तनाव ख़त्म करने में कोई सफलता नहीं मिली है.
पिछले कुछ वर्षों में भारत की सीमाओं के बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है. इससे भारत की सेना को एक नया आत्मविश्वास मिला है. और अब सीमा पर वो उन जगहों पर भी गश्त लगा रहे हैं, जहां पर पहले चीन के सैनिक, भारतीय सैनिकों को नहीं देखते थे
चीन के साथ लगी सीमा का प्रबंधन, भारत की सबसे बड़ी सामरिक प्राथमिकता है. और पिछले कुछ वर्षों में भारत ने इसके लिए कई विकल्प आज़माए हैं. सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच कई औपचारिक व्यवस्थाएं बनी हुई हैं. और 2018 के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के शीर्ष नेतृत्व के साथ भी अनौपचारिक शिखर वार्ता शुरू की है. प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार अप्रैल 2018 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ वुहान में शिखर वार्ता की थी. इस शिखर वार्ता के नतीजे में दोनों देशों की सेनाओं को आपसी संवाद बढ़ाने के लिए सामरिक दिशा निर्देश दिए गए थे. इसका मक़सद दोनों ही देशों की सेनाओं के बीच विश्वास और आपसी समझदारी बढ़ाना था. ताकि, सीमा से जुड़े मामलों के प्रबंधन को प्रभावी और अपेक्षा के अनुरूप बनाया जा सके. दोनों नेताओं ने अपनी अपनी सेनाओं को ये निर्देश भी दिया था कि वो आपसी विश्वास बढ़ाने के उन अन्य उपायों को भी ईमानदारी से लागू करें, जिनपर दोनों देशों में सहमति बनी है. इसमें आपसी और समान सुरक्षा का सिद्धांत और सीमा पर किसी घटना को रोकने के लिए मौजूदा व्यवस्थागत ढांचे को मज़बूत करना भी शामिल था. इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी और जिनपिंग की अनौपचारिक शिखर वार्ता से दोनों देशों के बीच तेज़ी से बिगड़ते संबंध स्थिर बनाने में काफ़ी मदद मिली थी. लेकिन, ये बात भी बिल्कुल स्पष्ट है कि इस शिखर वार्ता से सीमा पर स्थिरता स्थापित करने में कोई सफलता नहीं प्राप्त हुई है.
भारत के साथ लगी सीमा पर चीन के बढ़ते आक्रामक रुख़ की एक वजह ये भी है कि भारत ने अपने आस पास के क्षेत्रों का बेहतर ढंग से प्रबंध किया है. पिछले कुछ वर्षों में भारत की सीमाओं के बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है. इससे भारत की सेना को एक नया आत्मविश्वास मिला है. और अब सीमा पर वो उन जगहों पर भी गश्त लगा रहे हैं, जहां पर पहले चीन के सैनिक, भारतीय सैनिकों को नहीं देखते थे. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना की गश्त ज़्यादा प्रभावी हुई है. और चीन के सीमा पार करने की गतिविधियों का अब भारत असरदार तरीक़े से जवाब दे रहा है. दोनों देशों के बीच सीमा पूरी तरह से परिभाषित और तय नहीं है. ऐसे में सीमा को लेकर बढ़ते दावे और प्रतिदावों के कारण क्षेत्रीय स्तर पर अस्थिरता उत्पन्न होती है. अब दोनों ही देशों की सेनाओं को लगभग हर दिन टकराव की इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है.
लेकिन, अगर भारत और चीन के बीच सीमा पर टकराव को हम स्थानीय कारकों का नतीजा कहते हैं, तो ये पूरे विवाद का सरलीकरण करने जैसा होगा. अगर भारत ऐसा करता है तो उसे अपनी नीतियों के वैसे अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे, जिनकी उसे आवश्यकता है. भारत के प्रति चीन के मौजूदा बर्ताव का अगर गंभीरता से आकलन करना है, तो इन्हें व्यापक संस्थागत एवं ढांचागत दृष्टिकोण से देखना होगा. आज की तारीख़ में भारत को किसी अन्य देश से चुनौती नहीं मिल रही है. आज भारत को चुनौती उस देश से मिल रही है, जो ये सोचता है कि उसका दुनिया की नई महाशक्ति के रूप में अभ्युदय हो चुका है, जो अमेरिका की जगह लेने को तत्पर है. आज भारत को चुनौती उस देश से मिल रही है, जहां एक असुरक्षित तानाशाही व्यवस्था वाली कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है. आज भारत को एक ऐसे देश से चुनौती मिल रही है, जिसके नेतृत्व के तीव्र आर्थिक विकास दर दे पाने की क्षमता पर बड़े सवाल उठ रहे हैं. भारत को एक ऐसे देश से चुनौती मिल रही है, जो ख़ुद कई अंदरूनी चुनौतियों का सामना कर रहा है. जो हॉन्ग कॉन्ग से लेकर शिन्जियांग और ताइवान तक मुश्किलों का सामना कर रहा है. चीन को आज विश्व समुदाय के बढ़ते विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. आज दुनिया, कोविड-19 की महामारी की रोकथाम में किए गए कुप्रबंधन के लिए चीन से जवाब तलब कर रही है.
अति महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव से लेकर, कोविड-19 के शुरुआती दौर में कुप्रबंधन तक, हॉन्ग कॉन्ग के विरोध प्रदर्शनों के प्रति सख़्त रवैये से लेकर ताइवान की नाराज़गी को बढ़ाने तक, शी जिनपिंग के नेतृत्व के तरीक़े को लेकर पूरे चीन में सवाल उठाए जा रहे हैं
अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन ने चीन के साथ तकनीकी और व्यापार युद्ध छेड़ा हुआ है. इसका नतीजा ये हुआ है कि चीन को स्वयं के आर्थिक विकास के अनुमानों का नए सिरे से आकलन करना पड़ रहा है. कोविड-19 महामारी की शिकार वैश्विक अर्थव्यवस्था में शायद चीन को अपेक्षित आर्थिक विकास दर हासिल करने में सफलता न मिल सके. चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने माना है कि उसके सामने एक भयावह आर्थिक संकट है. 1990 के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है, जब चीन ने अपनी वार्षिक विकास दर के आकलन को समाप्त कर दिया है. अब इस बात को लेकर सवालों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है कि क्या चीन वैश्विक आर्थिक भूमंडलीकरण की आड़ में अपने भौगोलिक सामरिक हित साधने का प्रयास कर रहा है. कोविड-19 महामारी के दौरान चीन का जो रवैया रहा है, उसे दुनिया देख रही है. इसीलिए, तमाम देशों में चीन के प्रति नाराज़गी बढ़ती ही जा रही है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन काल की सफलता को, ‘चीनी राष्ट्र के महान कायाकल्प’ से जोड़ा जा रहा था. मगर, ऐसा लगता है कि ये अपेक्षाएं एक मुश्किल दौर से गुज़र रही हैं. आज दुनिया के तमाम देश चीन के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं और घरेलू स्तर पर भी जिनपिंग की सत्ता पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है. अति महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव से लेकर, कोविड-19 के शुरुआती दौर में कुप्रबंधन तक, हॉन्ग कॉन्ग के विरोध प्रदर्शनों के प्रति सख़्त रवैये से लेकर ताइवान की नाराज़गी को बढ़ाने तक, शी जिनपिंग के नेतृत्व के तरीक़े को लेकर पूरे चीन में सवाल उठाए जा रहे हैं.
हाल के कुछ महीनों में भारत ने चीन को कई मोर्चों पर चुनौती दी है. भारत ने अपने विदेशी निवेश के क़ानूनों को सख़्त बनाया है. साथ ही साथ भारत ने उन देशों का समर्थन किया है, जिन्होंने कोरोना वायरस की उत्पत्ति की स्वतंत्र रूप से जांच करने की मांग की है
और इसीलिए, चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की बैठक के समय जिनपिंग की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए, चीन की सेना उनकी मदद के लिए आगे आई है. अन्य देशों से सीमा विवाद को उठा कर चीन में राष्ट्रवाद की लहर पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है. दक्षिण एशिया की सामुद्रिक सीमा पर हलचल से लेकर दक्षिण एशियाई सीमा तक, हम चीन की ओर से दबाव को बढ़ते देख रहे हैं. ऐसा लगता है कि इन विवादों के माध्यम से शी जिनपिंग अपने देश के नागरिकों को संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि हालात पूरी तरह से नियंत्रण में हैं. इसके अलावा वो ये बात भी साफ कर देना चाहते हैं कि जो देश निशाने पर हैं, वो चीन के प्रति अपना बर्ताव सुधार लें. हाल के कुछ महीनों में भारत ने चीन को कई मोर्चों पर चुनौती दी है. भारत ने अपने विदेशी निवेश के क़ानूनों को सख़्त बनाया है. साथ ही साथ भारत ने उन देशों का समर्थन किया है, जिन्होंने कोरोना वायरस की उत्पत्ति की स्वतंत्र रूप से जांच करने की मांग की है. और, भारत के दो सांसदों ने तो ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में भी हिस्सा लिया था.
सीमा पर तनाव बढ़ा कर चीन असल में भारत को ये संदेश देने का प्रयास कर रहा है कि वो अपनी महत्वाकांक्षाओं को लगाम दे. भारत के नेतृत्व को ये समझना होगा कि वो अगर ये सोच रहे हैं कि चीन के आक्रामक रवैये के आगे झुक कर वो शांति स्थापित कर लेंगे, तो ये बहुत बड़ी भूल है. भारत के प्रति चीन के आक्रामक रवैये के पीछे चीन की अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाएं और घरेलू असुरक्षाएं हैं. भारत, चीन के इस आक्रामक रवैये से निपटने के लिए जो सबसे प्रभावी क़दम उठा सकता है, वो ये है कि चीन जैसे ताक़तवर पड़ोसी के ख़िलाफ़ अपनी सामरिक क्षमताओं को और बढ़ाए. अपने मोर्चे पर मज़बूती से खड़े रह कर भारत ये संदेश दे सकता है कि वो चीन के ख़िलाफ़ अपनी शक्ति में वृद्धि कर रहा है. और, सीमा पर दोनों देशों के बीच संघर्ष और तनाव के मौजूदा हालात को देखते हुए, अपने सख़्त रुख़ पर क़ायम रह पाना भारत के लिए चुनौती बना हुआ है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.