अमेरिका में कोरोना वायरस के मामलों की संख्या 2 लाख के क़रीब होने, मरने वालों की संख्या 4 हज़ार होने और सबसे ख़राब हालत में 2 लाख मौतों के लिए अमेरिका के तैयार होने के साथ ही डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्यकर्मी और देखभाल करने वाले न सिर्फ़ अपने काम-काज के अवतार में बल्कि बेचैन आम लोगों, मेडिकल उपकरणों के सह-निर्माता और कहानीकार के रूप में भी नज़र आते हैं जो एक महामारी पर काम कर रहे हैं.
मेडिकल सेवा अब हर किसी की व्यक्तिगत चीज़ बन चुकी है, देखभाल करने वाले कोविड-19 संस्कृति के रॉक स्टार बन चुके हैं और मज़बूत सरकारें उनकी सामूहिक समझ के आगे सिर झुका रही हैं
वायरस से अपने ख़ुद के जोखिम को लेकर विचलित, पर्सनल प्रोटेक्टिव उपकरणों की कमी और बहुत ज़्यादा शारीरिक तनाव से परेशान ये समुदाय ऐसी जगह से लोगों से बात कर रहा है जहां कैमरा नहीं जा सकते और जहां लोग पूरी तरह एकांत में आख़िरी अलविदा कह रहे हैं. डॉक्टर और नर्स हमें एक-दूसरे से जुड़े डर का आईना दिखा रहे हैं, उन्होंने इस भ्रम को तोड़ दिया है कि अमेरिका इस ख़तरे के लिए तैयार था. मेडिकल भाषा के लिए ये शुरू होने का समय है. कब आख़िरी वक़्त आपने ‘कोमॉरबिडिटीज़’, ‘इम्युनोकंप्रोमाइज़्ड’, ‘वायरल लोड फैक्टर’, ‘अटैक रेट’, और ‘अंडरलाइंग कंडीशन्स’ जैसे शब्दों को दिन रात सुना होगा? मेडिकल सेवा अब हर किसी की व्यक्तिगत चीज़ बन चुकी है, देखभाल करने वाले कोविड-19 संस्कृति के रॉक स्टार बन चुके हैं और मज़बूत सरकारें उनकी सामूहिक समझ के आगे सिर झुका रही हैं.
अमेरिकी की नई सामाजिक व्यवस्था की ये तीन नतीजे हैं
1. किस तरह दो डॉक्टरों ने ट्रंप को यू-टर्न के लिए मजबूर कर दिया
सबसे पहले ऊपर से शुरू कीजिए और उसके बाद नीचे आइए. सबसे पहले जानिए कि कैसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ईस्टर की छुट्टी से पहले खोलने की बात करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को कुछ घंटों के भीतर 180 डिग्री मुड़ना पड़ा. अचानक बदलाव की वजह बने अमेरिका के दो सबसे मशहूर डॉक्टर- डॉ. एंथनी फौसी और डॉ. देबोराह बिर्क्स- जो व्हाइट हाउस के कोविड-19 टास्क फोर्स का नेतृत्व कर रहे थे. इन्होंने ट्रंप की मेज पर अपना चार्ट फैला दिया. फौसी ने बताया, “डॉ. डेबी बिर्क्स और मैं ओवल ऑफिस गए और मेज पर झुक कर कहा ‘ये है डाटा, इस पर नज़र डालिए.‘ उन्होंने अपना सिर झकझोरते हुए कहा, ‘मुझे लगता है कि हमें ये करना चाहिए’.“ जिस चार्ट का ज़िक्र फ़ौसी ने किया वो एक संभावना का मॉडल है जिसके मुताबिक़ अगर कोई क़दम नहीं उठाया गया तो लाखों लोगों की मौत होगी. इन दोनों डॉक्टरों में बिर्क्स ने अमेरिकी लोगों को वायरस के बारे में गहरे व्यक्तिगत संबंध के सहारे चेतावनी देने का रास्ता तलाश लिया है.
जब अमेरिकी सामाजिक दूरी के नियमों के पहले चरण को लेकर उधेड़-बुन में थे तो बिर्क्स ने लोगों को अपनी दादी लीह की कहानी सुनाई जो ज़िंदगी भर एक ग़लती का पछतावा करती रहीं. लीह को स्कूल में फ्लू हो गया और वो बीमारी लेकर घर आ गईं. घर में उनकी मां ने कुछ ही दिन पहले बच्चे को जन्म दिया था. फ्लू से लीह की मां की मौत हो गई. 1918 की इनफ्लूएंज़ा महामारी से दुनिया भर में मरने वाले अनुमानित पाँच करोड़ लोगों में से वो एक थीं. बिर्क्स ने कहा, “मैं आपको कह सकती हूं कि मेरी दादी उस ग़लती को अपने साथ लेकर 88 साल तक ज़िंदा रहीं.“ आगे उन्होंने जोड़ा, “ये सैद्धांतिक नहीं है. ये वास्तविकता है.“ अमेरिका में संक्रामक बीमारियों के सबसे बड़े डॉक्टर, फौसी आंकड़ों के सहारे कहानी कहने की कला के कारण राष्ट्रीय सितारे बन गए हैं. रोनाल्ड रीगन के समय से हर राष्ट्रपति को सलाह देने वाले कर्कश आवाज़ के मालिक फौसी इंस्टाग्राम, यूट्यूब और टीवी पर बेहद लोकप्रिय हो गए हैं. बास्केटबॉल खिलाड़ी स्टीफन करी के साथ उनकी 30 मिनट की इंस्टाग्राम बातचीत बेकार की बातों से मुक्त लोगों को शिक्षित करने का पैमाना बन गया है. इस बदलाव की
घड़ी में दौलतमंद, संक्रमित सेलिब्रिटी अब मापदंड नहीं रह गया है. बदली हुई दुनिया में उनकी जगह बहादुर, बिना नींद वाले तुच्छ आदमी ने ले ली है.
2016 के अमेरिकी चुनाव के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भले ही आलोचना हुई हो लेकिन कोविड-19 महामारी दिखा रहा है कि ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब और दूसरे प्लेटफॉर्म फिर से अपने मूल वादे के मुताबिक़ लोगों की मदद करने का अपना वादा निभा रहे हैं
2. वादे के मुताबिक़ सोशल प्लेटफॉर्म पर डिलीवरी
2016 के अमेरिकी चुनाव के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भले ही आलोचना हुई हो लेकिन कोविड-19 महामारी दिखा रहा है कि ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब और दूसरे प्लेटफॉर्म फिर से अपने मूल वादे के मुताबिक़ लोगों की मदद करने का अपना वादा निभा रहे हैं. अस्पताल, देखभाल करने वाले और मोर्चे पर तैनात कर्मचारी जब मरीज़ों की देखभाल नहीं कर रहे होते हैं तो मीडिया रिपोर्टिंग का सहारा बन गए हैं.
ज़िम्मेदार लोग वास्तविक समय में एक संकट को समझने में मदद कर रहे हैं. स्टैनफ़ोर्ड की एक डॉक्टर जब ट्वीट करके घर में बने मास्क के बारे में पूछती हैं तो तकाजे का पता चलता है. उन्होंने लिखा, “सिलाई का पैटर्न ? सबूत ? फिल्टर पॉकेट ? मैटेरियल ?” शिफ्ट ख़त्म करने के बाद लाल आंखों से डॉक्टर दुनिया को अपना अनुभव बता रहे हैं. “ बीती रात न्यूयॉर्क के एक अस्पताल के ICU में मैंने 20 मरीज़ों की देखभाल की जो सभी कोविड-19 की वजह से वेंटिलेटर पर थे. कुछ नौजवान (20 साल) भी थे जिन्हें कोई बीमारी नहीं थी. हर कोई बहुत बुरी तरह बीमार है. लेकिन बीमार मरीज़ बड़ी तादाद में आते ही जा रहे हैं.“ एक तरफ़ फौसी और बिर्क्स ने चार्ट की तैयारी की, वहीं व्हाइट हाउस के बाहर डॉक्टरों ने दबाव बनाए रखा. ट्रंप के बयानों पर सतर्कता से प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका के सबसे अच्छे मेडिकल प्रोफेशनल्स ने अमेरिकी राष्ट्रपति के सबसे पसंदीदा प्लेटफॉर्म पर उन्हें ललकारा. पुलित्ज़र पुरस्कार पाने वाले कैंसर के डॉक्टर और लेखक डॉ. सिद्धार्थ मुखर्जी ने ट्वीट किया, “अगर आप स्वास्थ्य संकट ख़त्म नहीं करते हैं तो आप आर्थिक संकट ख़त्म नहीं करेंगे”. उन्होंने कहा, “15 दिन का क्वॉरन्टीन प्लान तबाही है”. जहां कहीं भी प्रांतीय सरकारें कठोर फ़ैसले लेने से परहेज करती हैं, डॉक्टर बिना किसी डर के दखल देते हैं. क्या हम सभी को मास्क पहनना चाहिए ? सरकार ने हमें कहा कि मास्क की ज़रूरत नहीं है लेकिन डॉक्टरों ने इसे खारिज कर दिया और अस्पताल में न सिर्फ़ मोर्चे पर तैनात लोगों के लिए बल्कि सभी के लिए मास्क पहनना ज़रूरी कर दिया. सोशल मीडिया की मदद से मास्क के समर्थन में चलाये गये अभियान ने चेहरा ढंकने को लेकर अमेरिका के लोगों की सोच बदल दी.
इससे पहले स्कूल बंद करने का मामला था. यहां भी सरकार की तरफ़ से कहा गया, “सरकार इसकी सिफ़ारिश नहीं करती.“ अपने फ़ोन पर डॉक्टर और नर्स की पोस्ट से प्रेरणा लेकर लोगों ने यहां भी जीत हासिल की. डॉक्टरों और आम लोगों के बीच इतनी कम दूरी शायद ही कभी रही हो.
3. डॉक्टर के सवाल में हम जवाब हासिल करते हैं
डॉक्टर से कहानीकार बने लोग अपनी कहानी लोगों के पास लेकर गए. वो जो सवाल पूछते हैं, उससे पता चलता है कि हम कितना नहीं जानते. और इस दूरी को हम बार-बार हाथ धोकर, मास्क पहनकर और ख़ुद को संक्रमण मुक्त रखकर भरते हैं. ये ऐसे काम हैं जो हमें ज़्यादा सुरक्षित बनाते हैं. क्या हम कोविड-19 के संपर्क में आने का जोखिम तय कर सकते हैं ? शुरुआती संपर्क की कठिनाई क्या है ? कोई कितना बीमार पड़ता है उसमें पहले मरीज़ से संपर्क की कितनी भूमिका है ? क्या इसको लेकर कोई डाटा है कि वायरस शरीर के भीतर कैसे इधर से उधर करता है ? दूसरे देशों में बीमार लोगों की संख्या कम करने के लिए सिंगापुर-हांगकांग की नीति कितनी ज़रूरी है ? जहां हम इन सवालों को समझने की कोशिश कर रहे हैं, उसी वक़्त हमारी सोशल मीडिया फीड पर अजीब चीज़ें आने लगती हैं. डेविड लैट को ले लीजिए जो ख़ुद को 44 साल का एथलेटिक बताते हैं, “एक सामान्य अस्पताल के रूम में सोया हुआ था और उसके बाद मुझे पता चला कि में इमरजेंसी रूम में हूं. मुझे दवाई दी जा रही है और एक ट्यूब मेरे गले तक घुसेड़ा जा रहा है.“ दूसरी तरफ़ नेवादा से एक महिला हमें याद दिलाती हैं कि, “अगर आप कर सकते हैं तो आज रात अपने प्रिय लोगों को मज़बूती से थामे रहें“ और इसके 10 घंटे बाद कोविड-19 से अपनी दादी के निधन की ख़बर बताती हैं. जैसे-जैसे बंद जगह में हम नये रिवाज़ पाते हैं, बार-बार हाथ धोने से मुरझाई हमारी उंगलियां ग़लती से नये कहानीकार की खोज में जुट जाती हैं.
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