Author : Harsh V. Pant

Published on May 16, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत के थल सेनाध्यक्ष ये कहकर नहीं बच सकते हैं कि उनका बयान हड़बड़ी में तैयार किया गया था और इसमें असावधानियां बरती गईं. क्योंकि, इससे ऐसा लगता है कि भारत अपने सबसे बड़े विरोधी चीन को सामरिक रूप से चुनौती देने के लिए तैयार ही नहीं है. भारत को अपने सैन्य नेतृत्व से और बेहतर तैयारी और गंभीर बयान की अपेक्षा है.

पहले तौले, फिर बोले क्योंकि बात दूर तलक जाती है

जब दुनिया की सबसे बड़ी ज़मीनी सेना का प्रमुख बोलते हैं, तो ज़ाहिर है पूरी दुनिया उन्हें बड़े ध्यान से सुनती है. और जब वो देश चारों तरफ़ से अपने विरोधियों और दुश्मनों से घिरा हो और पूरी दुनिया में अपनी एक ज़िम्मेदार वैश्विक शक्ति की छवि बनाने का प्रयास कर रहा हो. और उसके विरोधी उसकी तरक़्क़ी की राह में रोड़े डाल रहे हों, तो ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि शब्दों का चयन बेहद सावधानी से किया जाए और उन्हें उससे भी अधिक सावधानी से बयां किया जाए. दोस्तों और दुश्मनों के अलावा जो अन्य देश किसी खेमे में नहीं हैं, वो भी इन शब्दों को सुन कर सावधानी से अपनी प्रतिक्रिया देते हैं. ताकि वो जो संदेश देना चाहते हैं, वो शब्दों के भ्रमजाल में गुम न हो जाएं. वो सेनाएं और उनके प्रमुख, जो ऐसे भाषणों को गंभीरता से नहीं लेते, उनकी नियति यही होती है कि उन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेता. उनकी बातों को अहमियत नहीं देता. आज के दौर में, सूचना और उसको सही तरीक़े से प्रस्तुत करना, शक्ति का स्रोत बनाते हैं. जो या तो किसी देश और उसकी सेना का कद छोटा कर देते हैं. या फिर, उनकी मदद से किसी देश की नियति तय करने और उसका सेना के इरादे मज़बूत करने में मदद मिलती है.

और, इसीलिए जब हाल के दिनों में भारत और चीन की सीमा पर हुई घटनाओं के बारे में भारत के थल सेनाध्यक्ष ने जो बयान दिया, उससे लोगों को भयंकर निराशा हुई है. पिछले हफ़्ते भारत और चीन के सैनिकों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास कई स्थानों पर झड़पें हुई थीं. भारत और चीन के सैनिकों के बीच टकराव की एक घटना सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में हुई और दूसरी वारदात, लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के विवादित क्षेत्र के पास हुई. भारत और चीन के बीच क़रीब 3 हज़ार 488 किलोमीटर लंबी सीमा है. ये दुनिया की सबसे लंबी सरहद है, जो दोनों देशों के बीच स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है. और दोनों ही देश इसे लेकर अलग अलग दावे करते रहे हैं. ये पहली बार नहीं था जब भारत और चीन के सैनिक सीमा पर आपस में टकराए हों. और ज़ाहिर है ये आख़िरी बार भी नहीं होगा. असल में भारत और चीन की सीमा की प्रकृति ही ऐसी है कि, दोनों देशों के सैनिकों के बीच ‘अस्थायी और कम समय की तनातनी’ अक्सर देखने को मिल जाती है. और जैसे-जैसे भारत, चीन से लगी सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे और सैन्य क्षमता का विकास कर रहा है और भारतीय सेना की सरहदी इलाक़ों में गश्त तेज़ व असरदार हो रही है, तो चीन के सैनिकों के साथ भारतीय सैनिकों का ये टकराव, आने वाले समय में और आम हो जाएगा.

भारत के लिए चीन के साथ संबंधों को संतुलित रखना, उसकी सबसे बड़ी सामरिक चुनौती है. ऐसे में इन छोटी झड़पों के चक्कर में हमें भारत और चीन के व्यापक संबंधों की दिशा और दृष्टि नहीं गंवानी चाहिए

एक देश के तौर पर हमारे लिए ये बहुत ज़रूरी है कि हम सैनिकों के बीच इस सरहदी झड़प को चीन के साथ अपने संबंधों का केंद्र बिंदु न बनाएं. भारत के लिए चीन के साथ संबंधों को संतुलित रखना, उसकी सबसे बड़ी सामरिक चुनौती है. ऐसे में इन छोटी झड़पों के चक्कर में हमें भारत और चीन के व्यापक संबंधों की दिशा और दृष्टि नहीं गंवानी चाहिए. चीन के साथ हमारे संबंध मुश्किल हैं और ऐसे में चीन से संतुलित संबध बनाए रखने के लिए हमें अपनी रणनीति पर बेहद सावधानी से अमल करना होगा. यही वजह है कि 2017 में भारत और चीन के बीच, सिक्किम के डोकलाम में 73 दिनों की तनातनी के बाद, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वुहान शिखर सम्मेलन की पहल की, ताकि दोनों देशों के संबंधों में स्थिरता लाई जा सके. क्योंकि इस तनातनी के कारण दोनों देशों के बीच हालात क़ाबू से बाहर होते जा रहे थे.

लेकिन, जब बात भारतीय सेना की आती है, तो इसकी भूमिका ये है कि सेना, चीन के साथ लगी सीमा का उचित एवं असरदार तरीक़े से प्रबंधन करे. साथ ही साथ सेना को चाहिए कि वो भारत के दुश्मनों के ख़िलाफ़ अपनी क्षमताओं में लगातार वृद्धि करती रहे, ताकि वो भारत की जनता के साथ-साथ पूरी दुनिया को ये संदेश दे सके कि वो चीन की ऐसी चालों से निपट पाने में पूरी तरह से सक्षम है. लेकिन, भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के बाद भारत के थल सेनाध्यक्ष ने हाल में जो बयान दिया, वो इनमें से किसी भी लक्ष्य की पूर्ति कर पाने में विफल रहा है.

अपने बयान में थल सेनाध्यक्ष जनरल एम एम नरवणे ने दो अजीब तर्क दिए हैं. पहले तो उन्होंने इस झड़प के लिए ‘दोनों ही पक्षों के आक्रामक बर्ताव’ को ज़िम्मेदार ठहराया, जिससे दोनों ही देशों के सैनिक ज़ख़्मी हो गए. और भारत व चीन के सैनिकों के बीच झड़प को लेकर जनरल नरवणे ने जो दूसरा अजीब आकलन प्रस्तुत किया वो ये था कि भारत और चीन के बीच ‘झड़प की इन दो घटनाओं का न तो आपस में कोई संबंध है और न ही वैश्विक अथवा स्थानीय गतिविधियों से कोई ताल्लुक़ है.’

दोनों ही देशों के सैनिकों के आक्रामक होने की बात कहकर, ऐसा लगता है कि थल सेनाध्यक्ष ने चीन के साथ तनाव के लिए अपने ही सैनिकों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया. अगर ये बात सही भी है, तो भी क्या इस बारे में भारतीय सेना के प्रमुख को ऐसे सार्वजनिक बयान देने की ज़रूरत थी

किसी भारतीय थल सेनाध्यक्ष के लिए ऐसे बयान देना कई मायनों में बेहद असाधारण बात है. पहली बात तो ये है कि हम वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के आक्रामक बर्ताव पर उसे रियायत देने को बेक़रार हैं. दोनों ही देशों के सैनिकों के आक्रामक होने की बात कहकर, ऐसा लगता है कि थल सेनाध्यक्ष ने चीन के साथ तनाव के लिए अपने ही सैनिकों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया. अगर ये बात सही भी है, तो भी क्या इस बारे में भारतीय सेना के प्रमुख को ऐसे सार्वजनिक बयान देने की ज़रूरत थी.

और दूसरी बात ये कि हम चीन की तरफ़ से बोलने के लिए इतने बेक़रार क्यों हैं? जब थल सेनाध्यक्ष ने ये कहा कि इन झड़पों का न तो स्थानीय और न ही वैश्विक गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है, तो सवाल ये उठता है कि उन्हें चीन के इरादों और रणनीति के बारे में कहां से जानकारी मिल गई? पिछले दो महीनों में चीन ने ताइवान से लेकर, जापान और दक्षिणी चीन सागर तक जिस तरह से आक्रामक सैन्य रवैया अपनाया है, उसे लेकर पूरी दुनिया में चिंता जताई जा रही है.  मगर, भारत के थल सेनाध्यक्ष को ये बात पक्के तौर पर मालूम हो गई कि चीन और भारत के सैनिकों के बीच सीमा पर हुई झड़प का चीन की मौजूदा दौर में व्यापक सैन्य आक्रमकता से कोई संबंध नहीं है. यहां पर भी हम ये कहना चाहेंगे कि हो सकता है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के पीछे अपना अलग तर्क हो सकता है. लेकिन, भारत के थल सेनाध्यक्ष का काम ये नहीं है कि वो चीन की गतिविधियों की व्याख्या अपने देश की जनता से करे.

इस बारे में चीन की प्रतिक्रिया आशा के अनुरूप ही रही है. चीन ने कहा है कि, ‘भारत इस बारे में कोई पेचीदा क़दम उठाने से बचे तो बेहतर है.’ चीन का ये छोटा सा बयान उसके इरादों को पूरी तरह से स्पष्ट कर देता है. वहीं, यहां भारत में हम भारतीय, चीन के क्रियाकलापों का बचाव कर रहे हैं.

इस बात की भी पूरी संभावना है कि हम थल सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे के बयान का ग़लत अर्थ निकाल रहे हों और उनसे सहानुभूति रखने वाला विमर्श भी किया जा सकता है. लेकिन, जब थल सेनाध्यक्ष के बयान में भारत और चीन के बीच सीमा पर हुई झड़प का अन्य वैश्विक या स्थानीय गतिविधियों से संबंध न होने की बात कही जा रही हो, तो इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि इसे कोविड-19 की महामारी के संदर्भ में व्यापक वैश्विक परिदृश्य से जोड़ कर देखा जा रहा हो. अगर ऐसी बात है, तो भी भारत के थल सेनाध्यक्ष का बयान बहुत असावधानी से तैयार किया गया था. इससे ऐसा लगता है कि भारत की सेना में गंभीरता की कमी है. उसे अपने लक्ष्यों के बारे में भी कुछ पता नहीं. और ये बात अपने आप में बहुत परेशान करने वाली है. क्योंकि अगर चीन की ये हरकतें, भारतीय सेना के सामने खड़े लक्ष्य को स्पष्ट और गंभीर रूप से परिभाषित नहीं कर सकती हैं, तो फिर सेनाध्यक्ष को गंभीर होने के लिए और कितनी बड़ी चुनौती की अपेक्षा है?

भारत के थल सेनाध्यक्ष ये कहकर नहीं बच सकते हैं कि उनका बयान हड़बड़ी में तैयार किया गया था और इसमें असावधानियां बरती गईं. क्योंकि, इससे ऐसा लगता है कि भारत अपने सबसे बड़े विरोधी चीन को सामरिक रूप से चुनौती देने के लिए तैयार ही नहीं है. भारत को अपने सैन्य नेतृत्व से और बेहतर तैयारी और गंभीर बयान की अपेक्षा है. और वो इसका हक़दार भी है.

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