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हमें कहा जा रहा है कि भारत के रणनीतिक हितों के लिए ईरान कि�
इस टिप्पणी के प्रकाशन के साथ ही भारत के ऑब्ज़र्वर रिसर्च �
चीन की जनता का मूड भांप पाना तो मुश्किल है. लेकिन, अगर हम इं
केवल तीन महीनों में आए नाटकीय परिवर्तन ने अमेरिकी राजनीत
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे इंडस्ट्रीज़ दुनिया�
पीएम मोदी की ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र पहल’ भी समुद्री क्षेत
भारत संरचनात्मक रूप से दुनिया की सबसे तेज़ी से विकसित हो �
किसी भी सक्षम, योग्य और सुदृढ़ राष्ट्र को यह सुनिश्चित कर�
भारत हॉन्गकॉन्ग को लेकर अपने हर क्षेत्र की नीति की नए सिर�
श्रीलंका के तमाम नेताओं की भीड़ में महिंदा राजपक्षे का क�
अपने भाषण में माइक पॉम्पियो ने चीन को लेकर ट्रंप प्रशासन �
“आप दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं.” ये विचार आज भी �
बिम्सटेक (BIMSTEC) ऐसा अकेला मंच है, जो भारत के क़रीबी सामरिक क्
ऐसे समय में भारत और चीन के बीच सीमा पर सैन्य टकराव चल रहा ह�
ज़ाम्बिया के लोगों को लगता है कि चीन उनके देश पर कब्ज़ा कर
आज ऐसा दौर है, जब विश्व में डेटा का प्रवाह, सामानों के व्या�
भारत को ऐसी शक्ति के डिजिटल और आर्थिक उत्थान में योगदान न�
भारत को चाहिए कि वो अपनी आर्थिक क्षमताओं का विकास करने के
2018 में शी जिनपिंग माओ की बराबरी पर पहुंच गए. ये वो मुकाम था, �
सीमाओं की अपनी ख़ुद की भाषा, आयाम और अलग नियम होते है. इसलिए
चीन इस हालात से निपटकर साफ़-सुथरे बैलेंस शीट के साथ बाहर आ
चीन से निपटने में हमें अभी 15-20 साल लगेंगे और उसकी तैयारी हम�
आज ये सोच राजनीतिक बन गई है. जिस परियोजना का मक़सद दोनों द�
कोई भी जन नीति असरदार हो इसके लिए स्वस्थ सार्वजनिक परिचर�
अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को और ज़्यादा नेतृत्व दिखान
मौजूदा इतिहास में पहली बार लगता है कि अमेरिका का आधिपत्य �
इतिहास उठा लीजिये हर महामारी की मार सर्वाधिक आम और गरीब त�
शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले चीन को समझने में भूल मत कीजिए. �
आज भारत को एक ऐसे देश से चुनौती मिल रही है, जिसके नेतृत्व क�
गुट निरपेक्षता का एक दौर था. भारत उसका हिस्सा था. वो गुट नि�
कोरोना वायरस के असर के कारण अधिकतर भारतीय कंपनियों के शे�
अब जबकि भारत और अमेरिका के बीच बड़े मसलों पर सहमति अटक गई �
भारत बड़ी ख़ामोशी से कोविड-19 के बाद के विश्व परिदृश्य से न�
जिसतरह से महामारी को लेकर अनिश्चितता का माहौल है और जनता �
नए कोरोना वायरस की महामारी के लिए कौन ज़िम्मेदार है, इस मु
सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों को चाहिए कि वो इस चुन�
उम्मीद करनी चाहिए कि अगली बार जब चीन बहुपक्षीय मंचों पर अ�
जिस वक़्त दुनिया ज़िंदगी और मौत के भी संघर्ष देख रही है, उ�
आज ज़रूरी है कि भारत समेत दुनिया के तमाम देश, अमेरिका से म�
मानवता के इस महासंकट के समय सबसे बड़ी कमी जो हम देख रहे है�
हम अभी भी नहीं जानते कि कब, कहां और कैसे ये डर ख़त्म होगा. ल�
कोरोना वायरस से पैदा हुई महामारी ने वैश्विक समाज और प्रश�
विकसित देश इस महामारी से निपटने में पहले से ही बोझिल हैं, �
वह देश जो दुनिया के सबसे घातक वायरस का स्रोत था, उसे अब अधि�
भारतीय नेतृत्व ने अभी तक बहुत अच्छा काम किया है लेकिन आगे
अंतरराष्ट्रीय संगठनों में चीन का बढ़ता दबदबा, विश्व राजन
सरकार, सामाजिक संगठन और आम जनता मिल कर ऐसा सघन और आपसी साम�
सबसे बुरी स्थिति की बात करें, तो अमेरिकी सीमाओं की लंबे सम
ये दोनों ही लोकतांत्रिक देश कोई निष्पक्ष और स्थायी समझौत
समय की मांग ये है कि आज प्रशिक्षण एवं हुनर पर आधारित उच्च �