Author : Harsh V. Pant

Published on May 05, 2020 Updated 0 Hours ago

भारत बड़ी ख़ामोशी से कोविड-19 के बाद के विश्व परिदृश्य से निपटने के लिए अपने प्रयास जारी रखे हुए है. इसके लिए भारत अपनी सीमित क्षमताओं के बावजूद अन्य देशों की मदद कर रहा है, और इस महामारी से निपटने के लिए वैश्विक आम सहमति बनाने की कोशिश भी कर रहा है.

कोविड-19 की महामारी के दौर में भारतीय कूटनीति

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर, ब्रिक्स (BRICS) देशों के विदेश मंत्रियों के वर्चुअल सम्मेलन में शामिल हुए थे. इस बैठक में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि भारत, कोरोना वायरस की महामारी से लड़ने के लिए क़रीब 85 देशों को दवाओं और अन्य उपकरणों के माध्यम से मदद पहुंचा रहा है, ताकि ये देश भी महामारी का मुक़ाबला करके उस पर विजय प्राप्त कर सकें. कोविड-19 के वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौर में भारत ने अन्य देशों के साथ व्यापक स्तर पर संवाद बनाया है. इस महामारी के दौरान भारत की ‘स्वास्थ्य कूटनीति’ ने इस बात को स्पष्ट तौर से स्थापित किया है कि वैश्विक स्वास्थ्य परिदृश्य में भारत की भूमिका कितनी अधिक महत्वपूर्ण है.

इस महामारी की शुरुआत से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये बिल्कुल ही स्पष्ट मत था कि घरेलू चुनौती से पार पाना उनकी सरकार की प्राथमिकता होगी. इसीलिए, कोरोना वायरस का प्रकोप थामने के लिए मोदी सरकार ने कई सख़्त क़दम उठाए. पर, इसके साथ साथ पीएम मोदी ने ये भी साफ़ कर दिया था कि इस महामारी से निपटने में भारत, विश्व स्तर पर अन्य देशों से सहयोग और समन्वय का भी मज़बूती से प्रयास करेगा. इसीलिए, पहले प्रधानमंत्री मोदी ने सार्क (SAARC) देशों के प्रमुखों के साथ वर्चुअल शिखर सम्मेलन किया. इसके बात उन्होंने G-20 देशों के प्रमुखों के साथ भी वर्चुअल शिखर सम्मेलन करने का प्रस्ताव रखा. इन दोनों ही शिखर सम्मेलनों के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने कोविड-19 की महामारी से निपटने के लिए विभिन्न क्षेत्रीय एवं बहुतपक्षीय मंचों का उपयोग किया. जबकि एक समय पर ये सभी मंच नेतृत्वविहीन लग रहे थे.

जब से कोरोना वायरस की महामारी फैली, तब से दुनिया के अधिकतर देश अपने घरेलू संकट से निपटने में ही उलझे हुए थे. उन्हें ये महसूस ही नहीं हुआ कि इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए विश्व स्तर पर सहयोग एवं समन्वय को प्राथमिकता देने की आवश्कयता है. इस वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान, विश्व में नेतृत्व का जो अभाव दिखा, भारत ने उसे ही भरने का प्रयास किया है. इस दौरान भारत की सरकार ने चीन के वुहान शहर में फंसे अपने सभी पड़ोसी देशों के नागरिकों सुरक्षित उनके देश पहुंचाने का प्रस्ताव रखा. इसके बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर लगातार विश्व के तमाम नेताओं से नियमित रूप से संवाद क़ायम किए हुए हैं.

भारतीय सेना के डॉक्टरों को नेपाल, मालदीव और कुवैत जैसे देशों में भेजा गया. ताकि वो इस महामारी से निपटने में उन देशों के प्रशासन की मदद कर सकें. इसके अलावा भारत के मेडिकल कर्मचारी, सार्क (SAARC) व अन्य देशों को ऑनलाइन प्रशिक्षण भी उपलब्ध करा रहे हैं. ताकि ये देश भी अपने यहां स्वास्थ्य की ज़रूरी क्षमताओं का निर्माण कर सकें

इन कूटनीतिक अनुबंधों के अतिरिक्त, भारत ने ‘दुनिया के दवाखाने’ की अपनी छवि के अनुरूप भूमिका निभाने का भी सतत प्रयत्न जारी रखा है. इसके लिए भारत ने मलेरिया निरोधक दवा हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन (HCQ) का निर्यात पूरी दुनिया को किया है.हालांकि, इस दवा के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति की ‘धमकी’ की बहुत अधिक चर्चा हुई. लेकिन, इससे पहले ही भारत सरकार ने हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा को अन्य देशों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से देने का फ़ैसला कर लिया था. विकसित देशों के साथ साथ भारत ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देशों को इस भारी मांग वाली दवा का निर्यात किया है. कई बार तो इसकी खेप को भारतीय वायुसेना के विमानों की विशेष फ्लाइट से अन्य देशों को भेजा गया. इसके अलावा विदेश में फंसे लोगों को निकालने और कूटनीतिक मालवाहक विमानों के ज़रिए भी इस दवा को दूसरे देशों तक पहुंचाया गया है.

भारत ने अपने स्वास्थ्य सेवा के पेशेवर लोगों को भी अन्य देशों की मदद के लिए भेजा है. भारतीय सेना के डॉक्टरों को नेपाल, मालदीव और कुवैत जैसे देशों में भेजा गया. ताकि वो इस महामारी से निपटने में उन देशों के प्रशासन की मदद कर सकें. इसके अलावा भारत के मेडिकल कर्मचारी, सार्क (SAARC) व अन्य देशों को ऑनलाइन प्रशिक्षण भी उपलब्ध करा रहे हैं. ताकि ये देश भी अपने यहां स्वास्थ्य की ज़रूरी क्षमताओं का निर्माण कर सकें.

खाड़ी देशों से कुछ नकारात्मक ख़बरें आने के बावजूद, इस क्षेत्र के साथ भारत ने व्यापक स्तर पर अपनी मेडिकल कूटनीति का इस्तेमाल किया है. इसकी एक वजह ये भी है कि वहां रहे भारतीयों का बड़ी संख्या में स्वदेश पलायन रोका जा सके. मोदी सरकार, शुरुआत से ही खाड़ी सहयोग संगठन (GCC) के सदस्य देशों के साथ निरंतर संवाद करती रही है. इन सभी देशों में कुल मिलाकर लगभग पचास लाख भारतीय रहते हैं. और ये हर साल भारत को लगभग 40 अरब डॉलर की रक़म भेजते हैं. जब कई खाड़ी देशों ने भारत से हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन और पैरासीटामॉल दवाओं के निर्यात की अपील की, तो भारत ने इन देशों को दोनों दवाओं की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करने का प्रयास किया है.

कोविड-19 की इस महामारी से निपटने में भारत के इन प्रयासों की विश्व स्तर पर बड़ी सराहना की गई है. ये विश्व के कई नेताओं के ट्वीट से ही स्पष्ट हो जाता है. लेकिन, इस सराहना से परे हम चीन और भारत के वैश्विक दृष्टिकोण में परस्पर विरोधाभास और टकराव को भी स्पष्ट होते देख रहे हैं. इस संकट के समय भी चीन का अन्य देशों के साथ बर्ताव बेहद आक्रामक, ग़ैर ज़िम्मेदाराना और अहंकार से भरा रहा है. इस वायरस के प्रकोप से निपटने में शुरुआती स्तर पर नाकाम रहने के बाद चीन, ख़ुद को विश्व को स्वास्थ्य संसाधनों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के तौर पर पेश करने का प्रयास कर रहा है. मगर, चीन के मेडिकल उपकरणों की ख़राब गुणवत्ता ने उसके इन प्रयासों पर पानी फेर दिया है. इसके अलावा, चीन अपने आस पास के कमज़ोर देशों पर दबाव बढ़ाता जा रहा है. जिन देशों ने इस महामारी को लेकर चीन के विचारों को चुनौती दी है, उन देशों के साथ चीन कूटनीतिक विवादों में भी उलझ रहा है. जबकि, इस दौरान भारत बड़ी ख़ामोशी से कोविड-19 के बाद के विश्व परिदृश्य से निपटने के लिए अपने प्रयास जारी रखे हुए है. इसके लिए भारत अपनी सीमित क्षमताओं के बावजूद अन्य देशों की मदद कर रहा है, और इस महामारी से निपटने के लिए वैश्विक आम सहमति बनाने की कोशिश भी कर रहा है.

जिस तरह से भारत की कूटनीति में अन्य देशों से संवाद बढ़ाने की ये नई धार आई है, वो भारत की विदेश नीति के उस व्यापक दृष्टिकोण का ही हिस्सा है, जिसके ज़रिए भारत ख़ुद को एक ज़िम्मेदार और भरोसेमंद वैश्विक भागीदार के तौर पर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा है

इस संकट के शुरुआती दौर से ही मोदी सरकार ने अपना ध्यान अन्य देशों पर केंद्रित रखा है. जबकि, भारत की तुलना में अन्य बड़ी ताक़तें अपने घरेलू संघर्षों में ही उलझी रही हैं. वहीं, भारत ने इस महामारी से निपटने के लिए वैश्विक संवाद की ज़रूरत को समझा है. भारत की दुनिया के तमाम देशों से महामारी को लेकर संवाद क़ायम करने की कोशिश, भारत की कूटनीति की पहले की छवि से बिल्कुल अलग है, जब भारत ख़ुद को सीमित क्षमताओं वाला ऐसा देश मानता था, जो वैश्विक संवाद को दशा दिशा देने में समर्थ नहीं है. लेकिन, जिस तरह से भारत की कूटनीति में अन्य देशों से संवाद बढ़ाने की ये नई धार आई है, वो भारत की विदेश नीति के उस व्यापक दृष्टिकोण का ही हिस्सा है, जिसके ज़रिए भारत ख़ुद को एक ज़िम्मेदार और भरोसेमंद वैश्विक भागीदार के तौर पर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा है.

कोविड-19 की महामारी के इस संकट के दौरान, चाहे विश्व का एजेंडा तय करने की बात हो या फिर सबसे प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों को निकालने की कोशिश हो, या फिर अपनी दवा बनाने की शक्ति से अन्य देशों की मदद करनी हो. इन प्रयासों से भारत के बारे में  आगे चलकर दुनिया का नज़रिया बदलना तय है. हो सकता है कि इस महामारी के दौरान भारत का प्रयास बहुत शानदार न रहा हो. लेकिन, ज़रूरत के वक़्त भारत ने अपने कूटनीतिक बल का संतुलित इस्तेमाल करके ज़रूर दिखाया है. आने वाले समय में किसी अन्य वैश्विक संकट के वक़्त, भारत अपनी व्यापक भूमिका निभाने के लिए निश्चित रूप से तैयार है. और ये भूमिका बामक़सद होगी.

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