Author : Kabir Taneja

Published on Apr 15, 2020 Updated 0 Hours ago

आज ज़रूरी है कि भारत समेत दुनिया के तमाम देश, अमेरिका से मांग करें कि वो ईरान के ऊपर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दे. ताकि, ईरान इस महामारी से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक उपकरणों और अन्य संसाधनों को दूसरे देशों से आयात कर सके. और इस तरह से कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के ख़िलाफ़ दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ सके.

कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई से ईरान को अलग नहीं रखा जा सकता है

19 मार्च को जब कोरोना वायरस की महामारी पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में ले चुकी थी. डेढ़ सौ से अधिक देश, शहर और समुदाय इस महामारी के क़हर से तबाह हो रहे थे. ठीक उसी समय, अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने ईरान के विरुद्ध नए प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. अमेरिकी विदेश मंत्री का ये बयान इराक़ में अमेरिकी सेना के कैम्प ताजी पर हमले के बाद आया था.

ईरान के बहुचर्चित सैन्य नेता जनरल क़ासिम सुलेमानी की लगभग तीन महीने पहले हुई हत्या के बाद से ही अमेरिका और ईरान के संबंध बेहद ख़राब हो चुके हैं. ये संबंध इतने बिगड़ चुके हैं कि अब कब किस ओर का रुख़ करेंगे, ये कहा नहीं जा सकता. इस भू सामरिक तनातनी के कारण अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उन्होंने ईरान की अर्थव्यवस्था और समाज को पहले ही बहुत मुश्किल में डाल रखा है. इसी बीच कोरोना वायरस की महामारी के हमले ने ईरान की हालत और ख़राब कर दी है.

दुनिया के कई देशों ने अमेरिका से मांग की है कि वो मानवता के नाते ईरान के ऊपर लगाए गए प्रतिबंधों में थोड़ी ढील दे. ताकि उसे आपातकालीन सहयोग उपलब्ध कराया जा सके. ईरान में नए कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या साढ़े चार हज़ार के क़रीब पहुंच चुकी है. ईरान में कोविड-19 वायरस से मरने वालों में कई स्वास्थ्यकर्मी जैसे कि डॉक्टर और नर्सें भी शामिल हैं, जो इस महामारी से मुश्किल में पड़े देश की मदद करने वाले योद्धाओं के पहले मोर्चे से संबंध रखते हैं. ईरान में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 70 हज़ार को पार कर चुकी है. और इसमें लगातार तीव्र गति से वृद्धि हो रही है.

इस समय ईरान जिस स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है, उसे भौगोलिक सामरिक चश्मे से देखना उचित नहीं होगा. लेकिन, इस महामारी से जूझ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और ईरान की सरकार, दोनों ही आपसी तनातनी को उसी तरह बनाए रखना चाहते हैं, जैसे कोरोना वायरस की महामारी फैलने से पहले थे. और अपनी अपनी करतूतों से दोनों देशों की सरकारें अपने यहां की जनता को ऐसे फुसला रही हैं, जिससे कि दोनों ही देश ईरान में इस वायरस से होने वाली मौतों के लिए एक दूसरे को उत्तरदायी ठहरा सकें.

अमेरिकी जनता के नाम एक ख़त में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने लिखा कि, ‘ईरान की जनता इस वायरस पर भी जीत हासिल करेगी और अमेरिका के प्रतिबंधों का भी डट कर सामना करेगी, जिसे अमेरिकी सरकार ने ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने की बेशर्म नीति के अंतर्गत लगाया है. हम ईरान के लोग इन मुश्किलों का सामना पूरी सामर्थ्य और आत्मसम्मान के साथ करेंगे.’ वहीं, ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने ट्वीट किया कि, ‘जिस तीव्रता से ईरान में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ रहा है, उसे रोकने के लिए अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के सिवा कोई और उपाय नहीं है.’

इस महामारी के प्रकोप के बीच में वैश्विक नेतृत्व के अभाव और पश्चिमी देशों की एकजुटता की कमी का लाभ उठाकर अमेरिका ने ईरान पर और प्रतिबंध लगाकर उस पर दबाव बढ़ाने का प्रयास किया है. इसी तरह से ईरान की सरकार वैश्विक व्यवस्था में अपने अलग थलग होने का कारण भी ख़ुद ही बनी है

ईरान में कोरोना वायरस की महामारी की शुरुआत संभवत: पवित्र शहर क़ूम से हुई थी. ये शिया मुसलमानों का एक पवित्र शहर है. जहां पर ईरान के धर्म गुरुओं यानी अयातुल्लाह परिवार के कई धार्मिक शिक्षण संस्थान या मकतब स्थित हैं. ख़बरों के अनुसार, ईरान में कोरोना वायरस के संक्रमण का पहला केस वो व्यापारी था, जिसने क़ूम और वुहान के बीच यात्रा की थी. वुहान से ही नए कोरोना वायरस के प्रकोप की शुरुआत हुई थी. ये व्यापारी 19 फ़रवरी को क़ूम शहर लौटा था. इसके बाद से ही कोरोना वायरस की महामारी ईरान के तमाम क्षेत्रों में फैलती चली गई. यहां तक कि ईरान के उप स्वास्थ्य मंत्री इराज हरीची भी इस वायरस से संक्रमित हो गए. उन्हें एक प्रेस कांफ्रेंस में पसीने से बुरी तरह लथपथ देखा गया था.

ईरान में कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ने का प्रभाव भारत पर भी पड़ा. भारत को ईरान में मौजूद अपने चार सौ से अधिक नागरिकों को मार्च महीने में स्वदेश वापस लाना पड़ा. इन भारतीय नागरिकों को विशेष और व्यापारिक उड़ानों के माध्यम से भारत वापस लाया गया.

ऐसे बड़े संकट के समय जब दुश्मन को देखा नहीं जा सकता, और जो राष्ट्रों की मानव निर्मित सीमाओं का भी सम्मान नहीं करता. जो दुश्मन नस्ल, धर्म और देशों के बीच आपसी संघर्ष से कोई मतलब नहीं रखता. उसने ईरान की सरकार और अमेरिका के ट्रंप प्रशासन दोनों के लिए बड़ी चुनौती पेश की है. दोनों ही देशों को कोरोना वायरस ने एक समान संकट में डाला हुआ है. ऐसे में दोनों देशों के बीच छिड़ा सामरिक संघर्ष इस महामारी को वैश्विक स्तर पर परास्त करने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन चुका है. जबकि ये महामारी, हमारे दौर में सार्वजनिक स्वास्थ्य का सबसे बड़ा आपातकाल है.

इस महामारी के प्रकोप के बीच में वैश्विक नेतृत्व के अभाव और पश्चिमी देशों की एकजुटता की कमी का लाभ उठाकर अमेरिका ने ईरान पर और प्रतिबंध लगाकर उस पर दबाव बढ़ाने का प्रयास किया है. इसी तरह से ईरान की सरकार वैश्विक व्यवस्था में अपने अलग थलग होने का कारण भी ख़ुद ही बनी है. क्योंकि ईरान की सरकार ने मदद के इच्छुक देशों के बीच अविश्वास और गफ़लत पैदा की है. ईरान की मदद के लिए तैयार देशों को इस बात का भरोसा नहीं है कि अगर उन्होंने ईरान की सरकार की इस संकट से निपटने के लिए मदद की, तो वो मदद कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों को मिलेगी. या फिर, ईरान की सरकार इस सहयोग राशि को अपनी सेना और अपने द्वारा समर्थित शिया लड़ाका संगठनों को दे देगा. ताकि सीरिया में चल रहे गृह युद्ध में ईरान के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया जा सके. और ईरान द्वारा इस मदद से मध्य पूर्व के अन्य देशों पर भी अपना प्रभाव बढ़ाया जा सके.1962 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब ईरान की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है. ताकि वो इस महामारी का मुक़ाबला कर सके. लेकिन, अमेरिका के मौजूदा प्रतिबंधों के कारण ईरान के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहयोग राशि प्राप्त कर पाना भी एक बड़ी चुनौती है. दुर्भाग्य से ईरान ने ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं कि वो अपने द्वारा समर्थित उग्रवादी संगठनों को नियंत्रित करने का प्रयास करेगा. इन संगठनों ने पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र में इज़राइल, सऊदी अरब और अमेरिका के हितों पर लगातार चोट की है. और, साथ ही साथ ईरान ऐसे क़िस्से भी गढ़ रहा है कि इस वायरस को अमेरिका ने ख़ास तौर से ईरान की जनता को निशाना बनाने के लिए तैयार किया है.

दोनों ही तरफ़ के कट्टरपंथी ज़िद पर अड़े हुए हैं. वो बेगुनाह लोगों की ज़िंदगी को क़ुर्बान करने के लिए उस समय भी राज़ी हैं, जिस समय पूरी दुनिया अपने नैतिक आत्म बल की ओर देख रही है, ताकि नैतिक परिपक्वता के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संतुलन स्थापित किया जा सके

मौजूदा संकट के समय सोशल मीडिया पर ऐसी जानकारियों और तस्वीरों की बाढ़ आई हुई है, जिनमें बताया जा रहा है कि ईरान के स्वास्थ्य कर्मी इस महामारी से संघर्ष करते हुए बड़ी तादाद में जान गंवा रहे हैं. इस दौरान अमेरिका और ईरान के बीच चल रही सामरिक तनातनी का महामारी से निपटने के अभियान पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है. दोनों ही तरफ़ के कट्टरपंथी ज़िद पर अड़े हुए हैं. वो बेगुनाह लोगों की ज़िंदगी को क़ुर्बान करने के लिए उस समय भी राज़ी हैं, जिस समय पूरी दुनिया अपने नैतिक आत्म बल की ओर देख रही है, ताकि नैतिक परिपक्वता के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संतुलन स्थापित किया जा सके. ये ठीक उसी तरह है, जैसे लंबी तलाश के बाद किसी को सोने की खान मिल जाए. आज ये बात समझने की बेहद सख़्त आवश्यकता है कि इस वैश्विक महामारी के संकट की गंभीरता को समझा जाए. इसके लिए सभी पक्षों को एकजुट हो कर इस महामारी और इससे उत्पन्न आर्थिक संकट से जूझना होगा. ताकि अगले कुछ महीनों में हालात को सामान्य किया जा सके.

यही वो लक्ष्य है जिसके लिए भारत को स्वयं को और अच्छे तरीक़े से तैयार करना होगा. जहां पश्चिमी एशिया में ईरान, कोरोना वायरस के प्रकोप का प्रमुख केंद्र बंन गया था. वहीं, अन्य देशों ने इस महामारी से निपटने के लिए कई कठोर क़दम उठाए हैं. जिससे छोटे बड़े उद्योगों को तगड़ा झटका लगा है और इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं पटरी से उतर गई हैं. बहुत से कारोबारी संगठनों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने का अवसर दिया है. तो वहीं, जो कंपनियां ऐसा नहीं कर सकी हैं, उन्होंने फिलहाल काम बंद कर दिया है. संयुक्त अरब अमीरात में लॉकडाउन है. वहीं, जॉर्डन ने बेहद सख़्त कर्फ्यू लागू किया है, जिसे तोड़ने पर और भीड़ जमा करने पर. जुर्माना और जेल जैसी सज़ाओं का प्रावधान किया गया है. पूरे पश्चिमी एशिया क्षेत्र और खाड़ी देशों पर भी आने वाले महीनों में आर्थिक दबाव पड़ने वाला है. फिर भी, इस महामारी के काल में भी भौगोलिक सामरिक तनाव बने हुए हैं. ईरान के साथ के संघर्ष का वातावरण निरंतर बना होने के कारण इस क्षेत्र के देशों के बीच कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए जिस क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता है, उसकी संभावना एक सीमा के बाद न के बराबर दिख रही है.

इसी बीच कोरोना वायरस का प्रकोप थामने के लिए जो लॉकडाउन लगाए गए हैं, उनसे खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था में मंदी आना तय है. और इसका सीधा असर खाड़ी देशों में काम करने वाले क़रीब 80 लाख भारतीयों पर भी पड़ेगा. क्योंकि इनमें से अधिकतर भारतीय कामगार, श्रमिक वर्ग से संबंध रखते हैं. दक्षिण भारत के केरल राज्य में कोरोना वायरस के संक्रमण का पहले मामले वो लोग थे, जो 12 मार्च को दुबई का सफ़र करके लौटे थे. इनके कारण ही केरल में अगले 24 घंटों में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ कर 25 पहुंच गई थी. इनमें से 23 लोग खाड़ी देशों से ही केरल वापस आए थे. आज भारत में कोरोना वायरस के प्रकोप का प्रमुख स्रोत दुबई ही है. भारत की सरकार, ईरान में फंसे भारतीयों को तो स्वदेश ला पाने में सफल रही थी. लेकिन, खाड़ी देशों में मौजूद भारतीय नागरिकों की बड़ी संख्या को स्वदेश वापस ला पाने का तो सवाल ही नहीं उठता.

भारत को भी श्रमिकों की भारी तादाद में वापसी की चुनौती से निपटना पड़ सकता है. भारत में रोज़गार का बाज़ार पहले से ही मंदी से गुज़र रहा है. ऐसे में खाड़ी देशों से लौटने वाले ये कामगार, देश की अर्थव्यवस्था के लिए और बड़ी चुनौती बन जाएंगे

विश्लेषकों का अनुमान है कि अकेले संयुक्त अरब अमीरात की अर्थव्यवस्था को इस वायरस के प्रकोप के बाद पटरी पर लाने के लिए खाड़ी सहयोग परिषद को कम से कम 40 अरब डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता पड़ेगी. हो सकता है कि लंबे समय तक चले लॉकडाउन के चलते, बहुत से लघु और मध्यम श्रेणी के औद्योगिक संस्थान तो हमेशा के लिए ही बंद हो जाएं. ऐसा हुआ तो इसका सबसे बुरा प्रभाव अप्रवासी मज़दूरों पर ही पड़ने वाला है. यानी कोरोना वायरस की महामारी ख़त्म होने के बाद इसके आर्थिक कुप्रभाव देखने को मिलेंगे, जब बड़ी संख्या में नौकरियां जाएंगी. जिन श्रमिकों की नौकरी चली जाएगी. वो अपने अपने वतन को लौटना चाहेंगे. इस मोर्चे पर भारत को भी श्रमिकों की भारी तादाद में वापसी की चुनौती से निपटना पड़ सकता है. भारत में रोज़गार का बाज़ार पहले से ही मंदी से गुज़र रहा है. ऐसे में खाड़ी देशों से लौटने वाले ये कामगार, देश की अर्थव्यवस्था के लिए और बड़ी चुनौती बन जाएंगे. उदाहरण के लिए, मार्च महीने में क़तर एयरवेज़ ने फिलीपींस के 200 कामगारों को नौकरी से निकाल दिया. क्योंकि लॉकडाउन के चलते एयरलाइन उद्योग ठप पड़ गया है. इसके अलावा एक अन्य प्रमुख कारक का भी हमें ध्यान रखना होगा. इस क्षेत्र में काम करने वाले अप्रवासी भारतीय हर साल क़रीब 40 अरब डॉलर की रक़म भारत भेजते हैं. जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से बड़ी रक़म है. जिसे भारत के सालाना बजट अनुमानों में विशेष स्थान प्राप्त है. कोरोना वायरस की महामारी के बाद आने वाली वैश्विक आर्थिक मंदी को देखते हुए भारत की सरकार को इन सभी कारकों का भी ध्यान रखना होगा.

ईरान के राजनेताओं को अमेरिका की जो धुन लगी है. ठीक उसी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी ईरान की सनक सवार है. इज़राइल और सऊदी अरब जैसे देश अमेरिका को ईरान के खिलाफ़ भड़काने का काम लगातार करते रहते हैं. इसके अलावा अमेरिका में इस साल के अंत में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के चलते ईरान में कोरोना वायरस का प्रकोप, अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था के लिए लुका छिपी का खेल बन गया है. और इस खेल में हार सिर्फ़ आम ईरानी नागरिक की हो रही है. इसकी चपेट में आकर ईरान के कई बेहतरीन स्वास्थ्य कर्मियों की जान चली गई है. विश्व की स्थिरता, पश्चिमी एशिया में शांति और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से देखें, तो ईरान में कोरोना वायरस के प्रकोप को हम इन सबसे अलग करके देखने का जोखिम नहीं ले सकते. हमें ईरान पर इस महामारी के क़हर को पूरी दुनिया के लिए चिंता के विषय के तौर पर देखना चाहिए. आज ज़रूरी है कि भारत समेत दुनिया के तमाम देश, अमेरिका से मांग करें कि वो ईरान के ऊपर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दे. ताकि, ईरान इस महामारी से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक उपकरणों और अन्य संसाधनों को दूसरे देशों से आयात कर सके. और इस तरह से कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के ख़िलाफ़ दुनिया के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ सके. क्योंकि ये महामारी मानवता के अस्तित्व के लिए बहुत बड़े ख़तरे के तौर पर देखी जा रही है.

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