Author : Samir Saran

Published on Mar 26, 2020 Updated 0 Hours ago

अंतरराष्ट्रीय संगठनों में चीन का बढ़ता दबदबा, विश्व राजनीति में संघर्ष के नए नए मोर्चे खोल रहा है. और इस संघर्ष में विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले मोर्चे पर ही शिकार बन गया है.

कोविड-19: डब्लूडब्लूए प्रमुख डॉ. टेड्रोस ने दुनिया को बताया नुकसान नुक्सान!

कहा जाता है कि तुलना घोर निंदनीय कार्य है. इसीलिए, अभी पूरी दुनिया में फैली कोरोना वायरस की महामारी की तुलना, हाल के वर्षों में फैली किसी अन्य महामारी से करने से बचना ही बेहतर होगा. लेकिन, कोरोना वायरस की वजह से जिस तरह दुनिया में कोलाहल मचा है, उसे समझने के लिए 2002-03 में फैली सार्स वायरस (SARS) की बीमारी से तुलना करने से हम बच नहीं सकते. जैसे आतंक का माहौल आज कोरोना वायरस की वजह से बना है, उसी तरह तब सार्स (SARS) ने भी पूरी दुनिया में भय, चिंता और मौत का माहौल पैदा कर दिया था. कोरोना वायरस की ही तरह, तब भी चीन ने इस महामारी के घरेलू स्तर पर फैलने की बात को स्वीकार करने में देर की थी. और विश्व समुदाय को चीन ये बताने में असफल रहा था कि ये संक्रामक रोग अन्य देशों में भी फैल सकता है.

2002-03 में सार्स (SARS) वायरस के प्रकोप के बीच में एक महत्वपूर्ण अंतर था: और वो थी उस महामारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की प्रतिक्रिया. 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सार्स वायरस के प्रकोप को वैश्विक महामारी घोषित करने में तनिक भी देर न की थी

लेकिन, अब के कोरोना वायरस के प्रकोप, और 2002-03 में सार्स (SARS) वायरस के प्रकोप के बीच में एक महत्वपूर्ण अंतर था: और वो थी उस महामारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की प्रतिक्रिया. 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सार्स वायरस के प्रकोप को वैश्विक महामारी घोषित करने में तनिक भी देर न की थी. इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उस महामारी को फैलने से रोकने के लिए यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव दिए थे. साथ ही साथ उसने इस महामारी से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराने में देरी को लेकर चीन की ये कह कर आलोचना भी की थी, कि अगर चीन ये जानकारी सही समय पर विश्व स्वास्थ्य संगठन को उपलब्ध करा देता, तो सार्स (SARS) के वैश्विक प्रकोप को थामा जा सकता था.

यहां तक कि जब विश्व स्वास्थ्य संगठन, आठ महीने के भयंकर संघर्ष के बाद सार्स (SARS) वायरस के उन्मूलन का जश्न मना रहा था. तब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी थी कि दुनिया, लंबे समय तक कोरोना वायरस की एक नई प्रजाति के संक्रमण के भय से अधिक दिनों तक मुक्त नहीं रहेगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के उस समय के महानिदेशक, डॉक्टर ग्रो हार्लेम ब्रंटलैंड ने विश्व समुदाय से विनती की थी कि वो ऐसे जानवरों के ऐसे संभावित संग्रहों की जांच करें, जो भविष्य में किसी नए वायरस के प्रकोप का कारण बन सकते हैं. और अच्छा हो कि सभी देश मिलकर जानवरों से इस वायरस के इंसानों में पहुंचने की प्रक्रिया का अध्ययन करें. उस दौर में भी सड़कों पर लगने वाले चीन के स्थानीय बाज़ारों के माहौल को ऐसे किसी नए वायरस के इंसानों तक पहुंचने के सबसे बड़े माध्यम के रूप में चिह्नित किया गया था.

वायरस के लगातार परिवर्तनशील होने की ख़ूबी और चीन के तेज़ी से हो रहे शहरीकरण, दुर्लभ जानवरों से नज़दीकी और वन्य जीवों के अवैध वाणिज्य एवं कारोबार को रोकने से चीन के इनकार को मिलाकर 2007 में एक रिसर्च पेपर में ‘टाइम बम’ की संज्ञा दी गई थी. यहां तक कि दिसंबर 2015 में कोरोना वायरस परिवार की बीमारियों को एक ऐसी प्राथमिकता सूची में शामिल किया गया था, जिनपर फ़ौरन रिसर्च एवं विकास की आवश्यकता बताई गई थी. कोरोना वायरस को ख़ासतौर से इस बात के लिए चिह्नित किया गया था कि इससे ऐसी बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं, जो वैश्विक महामारी को जन्म देने का माद्दा रखती हैं. ये एक ऐसा मूल्यांकन था, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में प्राथमिक बीमारियों की वार्षिक समीक्षा में भी दोहराया था.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस, अधानोम घेब्रेयेसस, जिन्हें डॉक्टर टेड्रोस के नाम से अधिक जाना जाता है. उन्होंने, महामारी फैलने के बावजूद, जनवरी 2020 में चीन की पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उसकी तारीफ़ की थी

ऐसे में ये चौंकाने वाली बात है कि जब दिसंबर 2019 के आख़िरी दिनों में वुहान शहर में न्यूमोनिया जैसे वायरस का पता चला था, तो भी बरसों के आंकड़ों और सार्स (SARS) के प्रकोप पर बाद में हुए रिसर्च से लैस होने के बावजूद, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस पर बहुत धीमी प्रतिक्रिया दी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस, अधानोम घेब्रेयेसस, जिन्हें डॉक्टर टेड्रोस के नाम से अधिक जाना जाता है. उन्होंने, महामारी फैलने के बावजूद, जनवरी 2020 में चीन की पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उसकी तारीफ़ की थी. जबकि उस समय तक सारे सबूत चीन की इस प्रतिबद्धता के उलट तस्वीर पेश कर रहे थे. चीन से बाहर कोरोना वायरस का पहला मरीज़ पता चलने के एक दिन बाद ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस नए कोरोना वायरस के इंसान से इंसान में फैलने की बात तक से इनकार कर दिया था. उसने ऐसा इस तथ्य के सामने आने के बाद भी किया कि ताइवान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को चेतावनी दी थी कि ये नया कोरोना वायरस इंसान से इंसान में फैल सकता है. परंतु, ताइवान को विश्व स्वास्थ्य संगठन की सदस्यता से अलग रखा गया है. ये अपनेआप में एक अलग लेख का विषय है.

हालांकि, चीन ने 31 दिसंबर 2019 को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को ये जानकारी दे दी थी कि ये नया कोरोना वायरस अक्टूबर 2019 के मध्य में ही इंसानों के बीच फैल चुका था. लेकिन, चीन के द्वारा ये जानकारी देने के बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी जांच के लिए एक टीम भेजने में कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखाई. उसे डर था कि कहीं इससे चीन की सरकार नाराज़ न हो जाए. विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन की एक संयुक्त टीम ने वुहान शहर का दौरा फरवरी 2020 में जाकर किया. और इसने जो रिपोर्ट तैयार की वो चीन की ऐसी रिपोर्ट्स की ख़ासियतों से भरपूर थी.

इस बीच कोविड-19 वायरस लगातार एक महामारी के रूप में फैलने के संकेत दे रहा था और पूरी दुनिया में तेज़ी से फैल रहा था. डॉक्टर टेड्रोस और उनकी टीम न केवल इसे वैश्विक स्वास्थ्य संकट घोषित करने में विफल रहे. बल्कि, वो तो तमाम देशों से ये अपील भी करते रहे कि वो यात्रा की पाबंदियां न लगाएं और न ही अन्य प्रतिबंध लगाकर चीन को बदनाम करें और भय का माहौल बनाएं. यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका द्वारा शुरुआत में लगाए गए प्रतिबंधों की ये कहकर आलोचना की कि ये अनावश्यक और अत्यधिक सख़्त प्रतिबंध हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह पर अमल करते हुए यूरोपीय सेंटर फॉर डिज़ीज़ प्रिवेंशन ऐंड कंट्रोल (ECDC) ने सुझाव दिया कि ऐसा लगता है कि इस वायरस के यूरोपीय देशों में संक्रमण की गति धीमी है. और संभवत: इसी कारण से यूरोपीय देशों ने अपनी सीमाओं पर सख़्ती से प्रतिबंध नहीं लगाए.

अंतरराष्ट्रीय संगठनों में चीन का बढ़ता दबदबा, विश्व राजनीति में संघर्ष के नए नए मोर्चे खोल रहा है. और इस संघर्ष में विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले मोर्चे पर ही शिकार बन गया है. याद कीजिए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, उन पहले अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक था, जिसने चीन के साथ सहमति पत्र पर दस्तख़त किए थे

लेकिन, समस्या सिर्फ़ यही नहीं है. ये बात भी स्पष्ट है कि जिस तरह से दुनिया ने कोरोना वायरस के इस नए प्रतिरूप के प्रकोप से निपटने में प्रतिक्रिया दी, उससे ये स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था भी वैश्विक प्रभुत्व की तेज़ी से बदल रही तस्वीर का एक और मोर्चा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. 1950 और 1960 के दशक में विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध के दौरान तालमेल बनाते देखा गया था. और बाद में 1990 के दशक एवं 2000 के दशक में विश्व स्वास्थ्य संगठन, दवाओं, बौद्धिक संपदा के अधिकारों और दवाओं तक पहुंच जैसे मुद्दों पर उत्तर-दक्षिण के बीच संघर्ष में उलझा रहा था.

अंतरराष्ट्रीय संगठनों में चीन का बढ़ता दबदबा, विश्व राजनीति में संघर्ष के नए नए मोर्चे खोल रहा है. और इस संघर्ष में विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले मोर्चे पर ही शिकार बन गया है. याद कीजिए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, उन पहले अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक था, जिसने चीन के साथ सहमति पत्र पर दस्तख़त किए थे. जिनके अंतर्गत विवादित बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के दायरे में स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं को बढ़ावा देना था. उस समय, विश्व स्वास्थ्य संगठन का नेतृत्व मार्गरेट चैन के हाथ में था. चैन, चीनी मूल की कनाडाई नागरिक हैं. उनके, चीन की मुख्य भूमि से मज़बूत संबंध हैं. उनके उत्तराधिकारी, इथियोपिया के डॉक्टर टेड्रोस को भी चीन समर्थित उम्मीदवार ही माना जाता था. पिछले कुछ हफ़्तों में विश्व स्वास्थ्य संगठन के व्यवहार से इस विचार की पुष्टि होती प्रतीत हुई है.

भले ही, इस नए कोरोना वायरस के प्रकोप और 2003 की सार्स महामारी के फैलने में कई समानताएं हैं. लेकिन, इसे लेकर चीन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया, वैसी नहीं है, जैसी सार्स (SARS) का प्रकोप फैलने के समय रही थी. 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आंकड़ों को प्रस्तुत करने के चीन के तौर तरीक़ों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में देरी करने के लिए चीन की कड़ी आलोचना की थी. इसके बाद चीन ने अपने स्वास्थ्य मंत्री और बीजिंग के मेयर को बर्ख़ास्त कर दिया था. ये क़दम, चीन के अपनी शुरुआती ग़लतियों को मान लेने का दुर्लभ उदाहरण था.

उस समय चीन ने आधिकारिक रूप से जानकारी दी थी कि सार्स (SARS) वायरस ने उसके 1800 नागरिकों को संक्रमित किया था. और, इनमें से 80 लोगों की जान चली गई थी. आज इस नए कोरोना वायरस से केवल चीन में 80 हज़ार से अधिक लोगों के संक्रमित होने और तीन हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान जाने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है. फिर भी, चीन ने न केवल, इस महामारी से जुड़ी आधिकारिक जानकारियों को सेंसर कर के अपनी शुरुआती नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश की है. बल्कि, विश्व स्तर पर ग़लत जानकारी फैलाने का एक व्यापक अभियान भी छेड़ दिया है. इस अभियान के तहत चीन का प्रयास ये है कि वो कोरोना वायरस के इस प्रकोप का ठीकरा अमेरिका या चीन पर फोड़ सके.

चीन के इस बर्ताव के बावजूद, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिसतरह खुलकर चीन के हितों का बचाव किया है, उसे दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों के लिए शुरुआती चेतावनी के तौर पर देखा जाना चाहिए. पिछले एक दशक में पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों, विशेष तौर अमेरिका द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगठनों की आर्थिक मदद रोकने और उनमें अपनी भागीदारी सीमित करने से रिक्त हुए स्थान को चीन लगातार भरने का प्रयास कर रहा है. इस युद्ध में भारत को भी चीन के हाथों पराजित होना पड़ा है. इसका सबसे ताज़ा उदाहरण ये है कि भारत को, विश्व खाद्य संगठन में अपने प्रतिनिधि के नामांकन को वापस लेना पड़ा था. क्योंकि, चीन के प्रतिनिधि के हाथों भारत की हार तय थी. ये हमारे दौर की विडम्बना ही है कि दुनिया का सबसे ताक़तवर तानाशाही देश चीन, आज उस संयुक्त राष्ट्र की एक चौथाई से अधिक विशेषज्ञ एजेंसियों का नेतृत्व कर रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय उदारवादी व्यवस्था का केंद्र बिंदु माना जाता था.

देर से ही सही, लेकिन, ख़ुद को मुक्त विश्व कहने वाले देशों ने चीन पर पलटवार आरंभ कर दिया है. हाल ही में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के महानिदेशक के पद पर सिंगापुर के प्रत्याशी की विजय से, चीन के उन प्रयासों को झटका लगा है. जिसके अंतर्गत चीन, दुनिया के नियम क़ायदे तय करने वाली एक प्रमुख वैश्विक संस्था पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास कर रहा था. तो क्या, विश्व स्वास्थ्य संगठन, पश्चिमी देशों एवं चीन के बीच संघर्ष का नया मोर्चा होगा? चीन द्वारा आगे बढ़ाए जा रहे वायरल ग्लोबलाइज़ेशन #ViralGlobalisation को रोकने के लिए, ऐसा होना अनिवार्य है.

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