Author : Prithvi Iyer

Published on Apr 06, 2020 Updated 0 Hours ago

विकसित देश इस महामारी से निपटने में पहले से ही बोझिल हैं, ऐसे में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की दुर्दशा पर अभी वो विचार नहीं कर पाएंगे. लेकिन वायरस विकसित और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में कोई फर्क नहीं करता

कोरोना वायरस और युद्ध; जहन्नुम में बनी जोड़ी!

चीन के वुहान शहर से शुरू कोरोना महामारी तेज़ी से दुनिया के 150 देशों में फैल गई है और 19 मार्च 2020 तक के आंकड़ों के मुताबिक़ 2 लाख से ज़्यादा लोगों को संक्रमित कर चुकी है. वायरस पूरी दुनिया में तेज़ी से अपना असर दिखा रहा है. बेकाबू तरीक़े से वायरस के फैलने की वजह से इस पर काबू पाना दुनिया भर की सरकारों के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता बन चुका है और इस पर सभी सरकारें एकमत हैं. विकासशील और विकसित- सब देशों के लिए एक समान ख़तरे की आशंका को देखते हुए महामारी के ख़िलाफ़ एकजुट रणनीति की चर्चा ज़ोर-शोर से हो रही है.

इतने बड़े ख़तरे के बावजूद सीरिया, लेबनान, लीबिया, यमन और कश्मीर घाटी जैसे संघर्ष वाले इलाक़ों में वायरस के प्रवेश करने के संभावित जोखिम और नतीजों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. इनमें से कई इलाक़े महामारी से बुरी तरह प्रभावित देशों जैसे ईरान और अपेक्षाकृत नये प्रभावित देशों जैसे मिस्र और तुर्की के बेहद नज़दीक हैं. ऐसे में संघर्ष वाले क्षेत्रों के महामारी से लड़ने की क्षमता को समझना ज़रूरी है ताकि इसके ख़िलाफ़ एकजुट होकर रणनीति बनाई जा सके. सीरिया और यमन जैसे देश दावा करते हैं कि उन पर वायरस का कोई असर नहीं पड़ा है, वहीं नज़दीक के देश जैसे अफ़ग़ानिस्तान, तुर्की और पाकिस्तान में वायरस के मामले नियमित रूप से बढ़ते जा रहे हैं. संघर्ष वाले क्षेत्रों जैसे सीरिया में कम लोगों के टेस्ट करने के प्रोटोकॉल की वजह से इस बात पर यकीन नहीं होता कि वो वायरस से अप्रभावित है. इसलिए सभी संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में वायरस के आने वाले ख़तरे को वास्तविक मान कर विचार करना चाहिए.

इस महामारी से प्रभावित ज़्यादातर विकसित और विकासशील देश फिलहाल अपनी-अपनी सीमाओं और लोगों में ही उलझे हुए हैं, ऐसे में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की ज़िंदगी पर किसी का ध्यान नहीं गया है

शक्तिशाली अमेरिका, चीन और यूरोपियन यूनियन के देश भी कोरोना महामारी के शिकार हैं. ऐसे में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में वायरस कैसा असर डालेगा, इस बात को बख़ूबी समझा जा सकता है. इसलिए महामारी की कवरेज और रिपोर्टिंग इस बात को समझने की कोशिश है कि संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में वायरस कैसा असर डालेगा. इस महामारी से प्रभावित ज़्यादातर विकसित और विकासशील देश फिलहाल अपनी-अपनी सीमाओं और लोगों में ही उलझे हुए हैं, ऐसे में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की ज़िंदगी पर किसी का ध्यान नहीं गया है. त्रासदी के वक़्त अपनी सीमा में ही उलझे रहने की प्रवृत्ति सीरिया में लोगों की मदद में जुटे कार्यकर्ताओं के वायरस और पुनर्वास की कोशिशों पर उसके असर को लेकर उनकी मूल चिंता बताती है. सेव द चिल्ड्रेन के मीडिया मैनेजर जोएल बसाउल को डर है कि फ्रांस और अमेरिका जैसे विकसित देशों की तरफ़ से फंडिंग में संभावित कटौती से संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास कार्यक्रमों पर असर पड़ेगा. उन्हें फंडिंग के साथ-साथ इस बात का भी डर है कि यात्रा पर पाबंदी की वजह से विदेशी राहत कार्यकर्ता इन देशों में मदद के लिए नहीं आ पाएंगे. यही वजह है कि संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में कोरोना वायरस के केस से निपटने की क्षमता का संदर्भ के साथ संवेदनशील विश्लेषण होना चाहिए.

संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक दूरी और उसका सीमित दायरा

संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर चर्चा के दौरान इस बात को समझना ज़रूरी है कि राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल यहां के लोगों की ज़िंदगी पर असर डाल रहा है. सामाजिक दूरी के ज़रिए वायरस की रोकथाम का यूरोप केंद्रित विचार सीरिया जैसे युद्ध क्षेत्र में संभव नहीं है. जोएल बसाउल के मुताबिक़ सीरिया में तुर्की और अमेरिका के तीन महीनों तक निर्मम ड्रोन हमलों की वजह से बड़ी तादाद में लोगों के विस्थापन का भारी संकट बना हुआ है. आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी की वजह से शरणार्थी कैंप लोगों से भरे हुए हैं और ऐसे माहौल में सामाजिक दूरी बनाना संभव नहीं है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन से ख़ुलासा हुआ है कि उत्तरी सीरिया के प्रांत इदलिब में शरणार्थी कैंप के आकार में 177 फ़ीसद की बढ़ोतरी हुई है. इन कैंपों की सीमित जगह में 3 से 4 शरणार्थी परिवार एक साथ रह रहे हैं. इसलिए वायरस से निपटने में राजनीतिक उथल-पुथल की इन दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकताओं को ध्यान में रखना वक़्त की ज़रूरत है.

सीरिया के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर इहसान ईदी के मुताबिक़ सीरिया के सबसे अच्छे अस्पताल में सिर्फ़ एक वेंटिलेटर है. इतना ही नहीं बल्कि महामारी से निपटने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर भी नहीं हैं. इसके अलावा सीरिया में युद्ध की वजह से इलाक़े के आधे से ज़्यादा डॉक्टर को बेहतर भविष्य की तलाश में देश छोड़ना पड़ा

संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का ख़राब ढांचा

संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में एक और सेक्टर जहां वायरस से निपटने को लेकर तैयारी नहीं है, वो है वहां की ख़राब स्वास्थ्य सुविधाएं. ईरान से नज़दीकी की वजह से संघर्ष प्रभावित जो 2 देश सबसे ज़्यादा कोरोना वायरस के ख़तरे का सामना कर रहे हैं, वो हैं सीरिया और यमन. अक्टूबर 2019 में पूरी दुनिया के 195 देशों के वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा इंडेक्स से पता चलता है कि अगर विश्व में कोई महामारी फैली तो क्या होगा. संभावित अंतर्राष्ट्रीय चिंता वाली महामारी के पता लगाने और रिपोर्टिंग में सीरिया की रैंकिंग जहां 194 (दूसरी सबसे ख़राब) थी वहीं यमन 179वें नंबर पर था. सीरिया के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर इहसान ईदी के मुताबिक़ सीरिया के सबसे अच्छे अस्पताल में सिर्फ़ एक वेंटिलेटर है. इतना ही नहीं बल्कि महामारी से निपटने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर भी नहीं हैं. इसके अलावा सीरिया में युद्ध की वजह से इलाक़े के आधे से ज़्यादा डॉक्टर को बेहतर भविष्य की तलाश में देश छोड़ना पड़ा. इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप की वरिष्ठ लीबिया विश्लेषक क्लाउडिया गज़िनि डॉक्टर ईदी की चिंताओं से इत्तेफाक़ रखती हैं और लीबिया की स्वास्थ्य प्रणाली को बेहद ख़राब बताती हैं. उनके मुताबिक़ अगर युद्धग्रस्त क्षेत्र में वायरस ने हमला किया तो यहां की स्वास्थ्य सेवा उसका मुक़ाबला नहीं कर पाएगी.

संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में विरोधी शासनों के बीच राजनीतिक लड़ाई भी असरदार स्वास्थ्य सेवा की मौजूदा दिक़्क़तों को और बढ़ाती हैं. उदाहरण के तौर पर लीबिया में दो सरकारें एक-दूसरे से युद्ध लड़ रही हैं. संयुक्त राष्ट्र के समर्थन वाली त्रिपोली की सरकार सिपहसालार ख़लीफ़ा हफ़्तार से युद्ध लड़ रही है और गज़िनी के मुताबिक़ ये राजनीतिक लड़ाई इस आम राय में बाधक है कि क्षेत्र में किस तरह स्वास्थ्य सेवा बेहतरीन ढंग से पहुंचाई जाए. यमन में भी सरकार और ईरान के समर्थन वाले हूथी बाग़ियों के बीच युद्ध चल रहा है. ऐसे में वायरस से निपटने की तैयारी बेहद ख़राब है.

लीबिया के एक नागरिक ने कहा कि, कोरोना को लीबिया आने में डर लगता है क्योंकि युद्ध वायरस को डराता है. इसलिए इस बात को मानना महत्वपूर्ण है कि युद्ध के शिकार लोगों के ख़तरे और युद्ध मुक्त देशों में रहने वाले लोगों के ख़तरे में अंतर है

त्रासदी की संवेदनशीलता कम करना 

उपर्युक्त कठिनाइयों के अलावा संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में सदमे के शिकार लोगों के मनोवैज्ञानिक हालात भी ठीक नहीं हैं. इसकी वजह से महामारी की सच्चाई का सही-सही अंदाज़ा नहीं लग पाता. पिछले कुछ दशकों में मनोवैज्ञानिकों ने विस्तृत रूप से ख़तरे का परीक्षण किया है. संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में जहां ज़िंदगी, संपत्ति और मानसिक स्वास्थ्य को ख़तरा रोज़ का संघर्ष है, वहां एक वायरस का डर महामारी के ख़तरे का सही अंदाज़ा नहीं लगा पाता. उदाहरण के लिए कोरोना वायरस को लेकर जवाब में लीबिया के एक नागरिक ने कहा कि, कोरोना को लीबिया आने में डर लगता है क्योंकि युद्ध वायरस को डराता है. इसलिए इस बात को मानना महत्वपूर्ण है कि युद्ध के शिकार लोगों के ख़तरे और युद्ध मुक्त देशों में रहने वाले लोगों के ख़तरे में अंतर है. इसलिए वायरस से लड़ने में बुनियादी सुविधाओं के साथ युद्ध के शिकार लोगों के दिमाग़ पर ध्यान देने की भी ज़रूरत है.

कश्मीर में भी वायरस के मामले सामने आए हैं. इसकी वजह से अनुच्छेद 370 ख़त्म करने के बाद इंटरनेट पर जो पाबंदियां लगी हैं, उन्हें शिथिल करने की मांग की जा रही है. हालांकि, ज़रूरी सेवाओं जैसे अस्पताल में 2जी इंटरनेट और फिक्स्ड लाइन इंटरनेट को फिर से बहाल किया जाएगा, वहीं भारतीय सरकार ने हाई स्पीड 3जी और 4जी नेटवर्क पर 26 मार्च 2020 तक पाबंदी लगा दी है. इंटरनेट पर पाबंदी की वजह से असरदार सामाजिक दूरी में दिक़्क़त आने के साथ-साथ संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों जैसे सीरिया और यमन में वायरस से निपटने में आने वाली दूसरी परेशानियां कश्मीर में भी लागू होती हैं. क्या पाबंदियों वाली इंटरनेट सेवा और राजनीतिक हिंसा का पुराना अनुभव वायरस का असर कश्मीर में और बढ़ाएगा ? डिरैडिकलाइज़ेशन कैंप स्थापित करने की योजना के बीच सामाजिक दूरी घाटी में कैसे काम करेगी ?

जहां वायरस से लड़ाई में समग्र दृष्टिकोण की ज़रूरत है, कोई जोड़ने वाली रणनीति संघर्ष और युद्धग्रस्त क्षेत्रों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती. हर संघर्ष प्रभावित क्षेत्र की ख़ास सामाजिक-डेमोग्राफिक परिस्थिति के हिसाब से वैकल्पिक रणनीति तैयार करनी चाहिए. विकसित देश इस महामारी से निपटने में पहले से ही बोझिल हैं, ऐसे में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों की दुर्दशा पर अभी वो विचार नहीं कर पाएंगे. लेकिन वायरस विकसित और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में कोई फर्क नहीं करता जैसा कि अलग-अलग देश करते हैं.

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