Author : Manish Tewari

Published on Mar 13, 2024 Updated 0 Hours ago

मानवता के इस महासंकट के समय सबसे बड़ी कमी जो हम देख रहे हैं, वो है किसी वैश्विक नेतृत्व का अभाव. जिसके न होने के कारण ही हम कोरोना वायरस के प्रकोप को बढ़ने से नहीं रोक सके.

कोरोना वायरस की महामारी के बाद कैसी होगी दुनिया?

अगर सामने मौत खड़ी हो, तो दिमाग़ में उसके सिवा कुछ और नहीं आता. इस वक़्त दुनिया ठीक उसी मोड़ पर खड़ी दिखाई देती है. एक सीमाविहीन विश्व से अब मानवता उस दिशा में बढ़ रही है जहां पर सरहदें हमारे घरों के दरवाज़ों तक आ गई हैं. चलती फिरती दुनिया अब सहम कर खड़ी हो गई है. वहीं, इसके उलट साइबर दुनिया में हलचल तेज़ हो गई है.

इस मोड़ पर मैं उस बात को एक बार फिर दोहराना चाहता हूं, जो मैं लगातार कहता रहा हूं: ईंट और पत्थरों वाली जो मानव सभ्यता पिछले कई हज़ार वर्षों में विकसित हुई है, और वर्चुअल मानव समाज जो हालिया दशकों की देन है, वो दोनों ही नए रंग रूप में ढल रहे हैं. मानवता का इतिहास आज इन्हीं दो सभ्यताओं का मेल कराने वाले चौराहे पर खड़ा है. आज सोशल डिस्टेंसिंग ही नई संप्रभुता है.

आज नए कोरोना वायरस का संक्रमण दो सौ दस से अधिक संप्रभु देशों में फैल चुका है. इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या पंद्रह लाख से ज़्यादा हो गई है. जबकि इस महामारी ने अब तक एक लाख लोगों को काल के गाल में डाल दिया है. इसलिए अब इस महामारी को वास्तविक रूप में हम वैश्विक महामारी कह सकते हैं. हालांकि, ये संकट इतना बड़ा है कि लोग ये सोच ही नहीं पा रहे हैं कि इस महामारी के संकट के बाद जो दुनिया बचेगी, उसका रंग रूप कैसा होगा? ये नई दुनिया दिखने में कैसी होगी? क्या ये महामारी इक्कीसवीं सदी की पहले दोराहे पर खड़ी दुनिया की चुनौती है? ये वो प्रश्न हैं जिनके उत्तर तलाशने का प्रयास हमें करना होगा.

बीसवीं सदी में कम से कम पांच ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने मानव सभ्यता के भौगोलिक और सामरिक इतिहास का रुख़ मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. 1914 से 1918 के बीच लड़ा गया पहला विश्व युद्ध. 1939 से 1945 के दौरान लड़ा गया दूसरा विश्व युद्ध. इसके बाद साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का पतन और इसी के  साथ साथ एशिया, अफ्रीका, लैटिन और दक्षिणी अमेरिका में नए स्वतंत्र राष्ट्रों का उदय भी हुआ. 1945 से 1991 के दौरान अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का सोवियत संघ और उसके साथी देशों के साथ चला शीत युद्ध. इस दौरान दुनिया दो ध्रुवों में बंट गई. जबकि कई देशों ने गुट निरपेक्षता की राह पर चलने का निर्णय किया. और आख़िर में 1991 में शीत युद्ध का अंत और एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था के उदय के साथ साथ अमेरिका के नेतृत्व में भूमंडलीकरण

ये सभी घटनाएं अपने आप में युगांतकारी थीं. इनके पहले की दुनिया अलग थी. इनके बाद का विश्व परिदृश्य बिल्कुल ही अलग था. एक घटना के कारण ही दूसरी बड़ी घटना हुई. हालांकि, इन सभी घटनाओं ने विश्व इतिहास पर बहुत व्यापक एवं गहरा असर डाला था. फिर चाहे वो ख़ूनी तरीक़े से रहा हो या शांतिपूर्ण ढंग से. इतिहासकार आने वाले समय में कोरोना वायरस की महामारी को भी इसी रूप में याद करेंगे.

हम ये बात कह सकते हैं कि ये आधुनिक विश्व की कोई पहली महामारी नहीं है. 1918-20 में हमने स्पेनिश फ्लू का क़हर देखा था. 1957 में एशियाई फ्लू कई देशों में फैल गया था. तो 1968 में हॉन्ग कॉन्ग फ्लू ने क़हर बरपाया था. 2002 हमने सार्स वायरस का प्रकोप कई देशों में देखा था. तो, 2009 में H1N1 फ्लू की महामारी फैली थी. और 2016-18 के दौरान पश्चिमी अफ्रीका में इबोला वायरस ने अपना प्रकोप दिखाया था. लेकिन, ये बात भी सच है कि इनमें से कोई भी महामारी, नए कोरोना वायरस सरीखे भौगोलिक दायरे में नहीं फैली थी. जिसे असल संदर्भों मे वैश्विक महामारी कहा दर्जा दिया जाए. इसीलिए, सवाल ये है कि कोरोना वायरस अन्य महामारियों से किस तरह से अलग है? जबकि, हो सकता है कि अंत में जा कर हम ये देखें कि इस महामारी से जितने लोगों की जान जाने की आशंका है, उससे कम ही लोगों की मौत हो.

कोरोना वायरस की महामारी बाक़ी महामारियों से अलग है क्योंकि ये असल मायनों में वैश्विक है. आज ये दुनिया भर के दो सौ दस देशों और क्षेत्रों में फैल चुकी है. इससे पहले की जिन पांच महामारियों का हमने ज़िक्र किया, उनका दायरा इतना व्यापक नहीं था. उन्होंने क्षेत्रीय स्तर पर ही क़हर बरपाया था. इस समय कोरोना वायरस के चलते दुनिया के आठ में से तीन अरब लोग अभूतपूर्व लॉकडाउन में रह रहे हैं. सौ से ज़्यादा देशों ने अपने यहां के नागरिकों पर तरह तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं. वैश्विक स्तर पर एक देश से दूसरे देश की यात्रा लगभग ठप पड़ी है. सामानों की आपूर्ति भी बुरी तरह बाधित है. आज सोशल डिस्टेंसिंग के नए नाम से बीमारी की रोकथाम के सबसे पुरातन तरीक़े, यानी एक दूसरे से दूर रहने के सिद्धांत को लागू किया जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि इस महामारी से निपटने के लिए तमाम देशों की सरकारों के पास बस यही एक अस्त्र उपलब्ध है. आज दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं के विशेषज्ञ, वायरस से गंभीर रूप से पीड़ित लोगों की जान बचाने के लिए तरह तरह की दवाओं के प्रयोग कर रहे हैं. ताकि, कोई कारगर दवा तो पता चल सके.

मानवता के इस महासंकट के समय सबसे बड़ी कमी जो हम देख रहे हैं, वो है किसी वैश्विक नेतृत्व का अभाव. जिसके न होने के कारण ही हम कोरोना वायरस के प्रकोप को बढ़ने से नहीं रोक सके. इस वक़्त वो कौन सी बातें हैं जो हम सबको मालूम हैं? 20 मार्च को विश्व आर्थिक मंच ने जानकारी दी थी कि, ‘दिसंबर 2019 में किसी वक़्त कोरोना वायरस से संक्रमित 41 में से 27 व्यक्ति यानी 66 प्रतिशत संक्रमित लोग, चीन के हूबे प्रांत के वुहान शहर के उस बाज़ार से गुज़रे, जो शहर के बीचो बीच स्थित है. लेकिन, वुहान के एक अस्पताल में किए गए अध्ययन के अनुसार, कोरोना वायरस से संक्रमित जिस पहले इंसान की जानकारी सामने आई थी, वो कभी भी इस बाज़ार से नहीं गुज़रा था. इसके बचाया, वायरस पर किए गए एक जैव रासायनिक अध्ययन के अनुसार सार्स कोरोना वायरस का जीनोम सीक्वेंस ये बताता है कि ये वायरस नवंबर महीने में पहली बार सामने आया था.’

लेकिन, चीन ने 31 दिसंबर 2019 को जाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को जानकारी दी कि उसके यहां निमोनिया के कई असामान्य केस सामने आए हैं, जिन्हें वुहान शहर में पाया गया है. इनमें से कई संक्रमणों का सीधा संबंध वुहान के हुआनन सीफूड मार्केट से पाया गया था. इस बाज़ार को अगले दिन बंद कर दिया गया था.

विश्व स्वास्थ्य संगठन 9 और 11 जनवरी 2020 तक ये कहता रहा कि ये वायरस बहुत ज़्यादा ख़तरनाक नहीं है. WHO की तरफ़ से इस वायरस को लेकर कई उल्टे पुल्टे ट्वीट किए गए. जिनमें हालात को दबाने का प्रयास दिखा. देशों को यात्रा प्रतिबंध लगाने से बचने की सलाह भी ये संगठन देता दिखा.

9 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कहा गया कि, ‘नए कोरोना वायरस आम तौर पर नियमित रूप से सामने आते रहे हैं. हमने ऐसा पहले भी होते हुए देखा है. 2002 में सार्स कोरोना वायरस का प्रकोप हुआ था. 2012 में मर्स कोरोना वायरस सामने आया था. कोरोना वायरस परिवार के कई वायरस इस समय भी जानवरों में सक्रिय हैं और इनका इंसानों पर कोई असर देखने को नहीं मिला है.’ 11 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक ट्रैवल एडवाइज़री जारी की, ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन वुहान आने और जाने वालों के लिए सुरक्षा के किसी विशेष स्वास्थ्य क़दम का सुझाव नहीं दिया गया. ऐसा आम तौर पर माना जाता है कि प्रवेश के वक़्त यात्रियों की स्क्रीनिंग से कोई विशेष लाभ नहीं होता. जबकि इसमें बहुत अधिक संसाधन लगते हैं.’ यानी कि वुहान से आ रहे लोगों की जांच को भी विश्व स्वास्थ्य संगठन जनवरी के मध्य तक गैर ज़रूरी बता रहा था.

अब इस बात का पता लगाना दिलचस्प होगा कि 23 जनवरी को वुहान में लॉकडाउन लगाने से पहले वहां से कितने लोग आए और गए. 20 और 21 जानवरी को जाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक टीम ने वुहान शहर का दौरा किया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का अवलोकन करने पर ये पता चलता है कि चीन के विश्व स्वास्थ्य संगठन को जानकारी देने के लगभग तीन हफ़्ते बाद तक इस महामारी के पूरे प्रभाव का सही आकलन WHO नहीं कर सका था. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 11 मार्च 2020 को जाकर नए कोरोना वायरस को वैश्विक महामारी घोषित किया था. यानी वुहान में WHO के अधिकारियों के दौरे के पूरे पांच हफ़्ते बाद, संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस ने इसे महामारी बताया.

ये बात एकदम साफ़ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का नेतृत्व पूरी तरह से असफल रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन, इस महामारी पर पर्दा डालने की चीन की कोशिश में अगर बराबर का आपराधिक साझीदार नहीं भी रहा, तो कम से कम उसकी अनदेखी ज़रूर की थी

इन बातों से विश्व स्वास्थ्य संगठन के चीन से इस बारे में सख़्त सवाल पूछने में असफल रहने पर भी प्रश्नचिह्न लगते हैं कि नए वायरस के प्रकोप की बात उठाने वाले ली वेनलियांग का क्या हुआ. ली वेनलियांग ने दिसंबर 2019 की शुरुआत में ही निजी तौर पर ये जानकारी दी थी कि एक नए तरह के सार्स वायरस की बीमारी फैल रही है. यानी डॉक्टर वेनलियांग ने चीन के विश्व स्वास्थ्य संगठन को जानकारी देने से एक महीने पहली चेता दिया था कि एक नए वायरस का प्रकोप फैल रहा है. ये और बात है कि नई महामारी की चेतावनी देने वाले इस बहादुर डॉक्टर की आज मौत हो गई है और उसी वायरस से, जिसके प्रकोप की चेतावनी उसने दी थी.

इसलिए, ये बात एकदम साफ़ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का नेतृत्व पूरी तरह से असफल रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन, इस महामारी पर पर्दा डालने की चीन की कोशिश में अगर बराबर का आपराधिक साझीदार नहीं भी रहा, तो कम से कम उसकी अनदेखी ज़रूर की थी. इसलिए, आज इस बात की सख़्त आवश्यकता है कि इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (ICJ), इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संयुक्त तत्वावधान में एक संयुक्त जांच टीम, विश्व स्वास्थ्य संगठन की इन तमाम नाकामियों की जांच करे. अब अगर अफ़सरशाही के प्रभाव में आकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इस जांच का अधिकार न होने की बात कहकर इनकार करे, तो संयुक्त राष्ट्र महासभा को चाहिए कि वो सुरक्षा परिषद के अधिकार क्षेत्र में परिवर्तन करे.

दूसरी बात ये है कि संयुक्त राष्ट्र भी इस संकट के समय दुनिया को नेतृत्व देने में असफल रहा है. इस महामारी से उपजे संकट के प्रति तमाम देशों के बीच सहयोग और समन्वय स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की प्रतिक्रिया बेहद धीमी रही है. ऐसा लगता है कि महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने अपनी सभी सांगठनिक ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया है. कोरोना वायरस के संकट के समय संयुक्त राष्ट्र संघ की ढिलाई के बारे में यूएन फाउंडेशन की केसी ब्राउन और मेगन रॉबर्ट्स ने काउंसिल फॉर फॉरेन रिलेशन्स के ब्लॉग पोस्ट में 24 मार्च 2020 को लिखा था कि, ‘कोरोना वायरस का संकट दुनिया के सामने तब खड़ा हुआ है, जब दुनिया एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ी है. इस साल हम संयुक्त राष्ट्र संघ की 75वीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं. इस मुद्दे पर महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने वैश्विक परिचर्चा की शुरुआत की है. ताकि, इस मुद्दे पर हम ढेर सारे विचार जुटा सकें कि हम कैसा संयुक्त राष्ट्र चाहते हैं और हमें कैसे संयुक्त राष्ट्र की ज़रूरत है. ये बिल्कुल सही समय पर शुरू किया गया प्रयास है. ये ठीक भी है क्योंकि, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना एक संकट के समय ही हुई थी. ठीक उसी तरह जैसे एड्स के लिए ग्लोबल फंड की स्थापना हुई थी. जैसे 2020 में टीबी और मलेरिया के लिए प्रयास शुरू किए गए थे. और जैसे 2008 के वित्तीय संकट को देखते हुए G-20 की स्थापना की गई थी.’

अगर इस महासंकट के समय भी संयुक्त राष्ट्र विश्व परिदृश्य से अनुपस्थित रह रहा है. तो ये सवाल उठना बिल्कुल उचित है कि क्या संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व की चुनौतियों का समाधान देने में सक्षम है? क्या अब भी इसे चलते रहने देना चाहिए?

लेकिन, जैसा होना चाहिए था, हो उसके उलट रहा है. जैसा कि फॉरेन पॉलिसी पत्रिका के वरिष्ठ कूटनीतिक संवाददाता कॉलम लिंच ने 18 मार्च 2020 को लिखा था, ‘संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की बैठक ऐतिहासिक चैम्बर की मशहूर टेबल पर होनी लगभग बंद हो चुकी है. और अब इस चैम्बर के निकट भविष्य में खुलने की संभावना भी बेहद कम है. अब ये अपने फ़रमान कहीं दूर किसी कंप्यूटर से जारी कर रही है. सुरक्षा परिषद के एक राजनयिक ने बताया कि संवेदनशील मसलों पर सुरक्षा परिषद की बंद दरवाज़ों के पीछे होने वाली बैठकों के जल्द शुरू हो पाने की संभावना बेहद कम है. जबकि ये बैठकें महत्वपूर्ण विषयों पर मतभेद दूर करने में महती भूमिकाएं निभाती थीं.’ चीन ने कोरोना वायरस पर बैठक बुलाने के प्रस्ताव को वीटो कर दिया. जबकि एस्टोनिया ने इस मुद्दे पर पारदर्शिता की मांग की. ऐसे में इस संकट काल में सुरक्षा परिषद की नाकामी ज़ाहिर करने वाले और सबूतों की अब हमें कोई आवश्यकता नहीं.

संयुक्त राष्ट्र में कई देशों ने तो अपने दूतावास बंद कर दिए हैं. वहीं अन्य ने अपने राजनयिकों की संख्या बहुत कम कर दी है. ये ऐसे समय पर हो रहा है जब दुनिया को इस संकट से उबरने के लिए वैश्विक नेतृत्व की सख़्त आवश्यकता है. अब अगर इस महासंकट के समय भी संयुक्त राष्ट्र विश्व परिदृश्य से अनुपस्थित रह रहा है. तो ये सवाल उठना बिल्कुल उचित है कि क्या संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व की चुनौतियों का समाधान देने में सक्षम है? क्या अब भी इसे चलते रहने देना चाहिए? शायद अब ऐसा समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कार्यालय को ऐसी जगह ले जाया जाए, जहां पर ये उस समय भी काम करती रह सके, जब विश्व को इसकी सख़्त आवश्यकता है. इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार दुनिया का सबसे बड़ा एजेंडा होना चाहिए. हमें इसका दायरा बढ़ाने के साथ साथ बदनाम हो चुकी वीटो पावर की व्यवस्था को ख़त्म करने पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए.

जैविक हथियार संधि की समीक्षा करने वाले सम्मेलन की नौवीं बैठक नवंबर 2021 में होनी तय है. इस बैठक को और पहले बुलाया जाना चाहिए. ताकि इस बात की पड़ताल की जा सके कि कैसे कोरोना वायरस से उपजे हालात, जैविक हथियारों को लेकर हुई संधि पर असर डाल रहे हैं

तीसरी बात ये है कि G-20 देश भी इस महामारी के समय दुनिया को नेतृत्व प्रदान करने में असफल रहे हैं. इस संगठन की स्थापना 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय की गई थी. जब कोरोना वायरस की महामारी फैली, तो G-20 देशों का पहला वर्चुअल सम्मेलन 26 मार्च को हुआ. ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोरोना वायरस के प्रकोप पर रिपोर्ट देने के पूरे ग्यारह हफ़्तों बाद हो सका. ज़्यादा देश और शहर अपने आपको और अपने नागरिकों को बचाने के लिए बाक़ी दुनिया से ख़ुद को अलग थलग कर रहे हैं. ये भूमंडलीकरण पर दक्षिणपंथी लोगों की ओर से लगातार हो रहे हमलों का नतीजा है. साथ ही साथ जो नई उदारवादी विश्व व्यवस्था उभर रही है, उसके केंद्र में एक कमज़ोर संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था ही है.

चौथी बात है त्वरित क़दम उठाने की. जैविक हथियार संधि की समीक्षा करने वाले सम्मेलन की नौवीं बैठक नवंबर 2021 में होनी तय है. इस बैठक को और पहले बुलाया जाना चाहिए. ताकि इस बात की पड़ताल की जा सके कि कैसे कोरोना वायरस से उपजे हालात, जैविक हथियारों को लेकर हुई संधि पर असर डाल रहे हैं.

अब समय आ गया है कि हर तरह के जैव रक्षा के या जैविक हमले वाले हथियारों पर पूरी तरह से पाबंदी लगे. वास्तविकता तो ये है कि जैविक हथियार संधि का सचिवालय लोगों की भारी कमी से जूझ रहा है. इसे और शक्तिशाली और सक्षम बनाने की आवश्यकता है. ताकि ये जैविक तकनीक के विकास और रिसर्च पर कड़ी निगरानी कर सके

इस बात के पार्श्व परिदृश्य की बात करें, तो ये याद करना दिलचस्प होगा कि जैविक हथियार संधि एक ऐसा वैधानिक समझौता है, जो सदस्य देशों को जैविक हथियारों का प्रयोग न करने के लिए बाध्य करता है. 1969 में संयुक्त राष्ट्र के निरस्त्रीकरण मंच के तत्वावधान में शुरू किए गए जैविक हथियार समझौते पर 10 अप्रैल 1972 से हस्ताक्षर होने शुरू हुए थे. इस संधि की शर्तें, 26 मार्च 1975 को सदस्य देशों पर लागू हुई थीं.

इस संधि के अंतर्गत कोई भी देश न तो जैविक हथियारों का विकास कर सकता है, न उन्हें जमा कर सकता है, न ही उन्हें ख़रीद सकता है, न ही उनका भंडारण कर सकता है. और न ही ऐसे ज़हरीले जीवों और ज़हरीले तत्वों का भंडारण मेडिकल रिसर्च, शांति पूर्ण एवं रक्षात्मक मक़सद के अलावा किसी अन्य कार्य के लिए कर सकता है. ऐसे जैविक हथियार, उपकरण और ज़हरीले तत्व ले जाने वाले वाहनों को युद्ध क्षेत्र में या किसी दुश्मन के विरुद्ध इस्तेमाल करने पर भी सदस्य देशों को मनाही है. ऐसे जैविक तत्व एवं ज़हरीले तत्व व हथियार को ख़रीदने या किसी अन्य देश को देने पर भी इस संधि के तहत रोक है. साथ ही, जैविक हथियार संधि इन जैविक हथियारों को ले जाने वाले उपकरणों, वाहनों और हथियारों की ख़रीद-फ़रोख़्त पर भी पाबंदी लगाती है.

इस संधि के अंतर्गत सदस्य देशों को चाहिए कि वो जैविक हथियारों, जैविक रूप से ज़हरीले तत्वों, उपकरणों, और ढोने वाले वाहनों को भी ये संधि लागू होने के नौ महीने के भीतर नष्ट करें. हालांकि जैविक हथियार संधि जैविक हथियारों और ज़हरीले तत्वों को इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाती. लेकिन ये कन्वेंशन 1925 के जेनेवा प्रोटोकॉल पर मुहर लगाती है, जिसके तहत ऐसे जैविक हथियारों के इस्तेमाल पर पाबंदी है. ये संधि जैविक सुरक्षा के कार्यक्रमों पर भी रोक नहीं लगाती.

अब समय आ गया है कि हर तरह के जैव रक्षा के या जैविक हमले वाले हथियारों पर पूरी तरह से पाबंदी लगे. वास्तविकता तो ये है कि जैविक हथियार संधि का सचिवालय लोगों की भारी कमी से जूझ रहा है. इसे और शक्तिशाली और सक्षम बनाने की आवश्यकता है. ताकि ये जैविक तकनीक के विकास और रिसर्च पर कड़ी निगरानी कर सके. फिर चाहे वो किसी देश की सरकार द्वारा किया जा रहा रिसर्च हो या फिर कोई निजी कंपनी ये काम कर रही हो. कोरोना वायरस की महामारी के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक लंबी बैठक होनी चाहिए. इस दौरान महासभा के सदस्य देश स्वयं को आपस में विशेष कमेटियों में विभाजित कर लें. जिनमें, संयुक्त राष्ट्र में तमाम देशों के स्थायी प्रतिनिधि या फिर उनके समकक्षों को शामिल किया जाना चाहिए. ताकि संयुक्त राष्ट्र से जुड़े हर संगठन के कार्य की समीक्षा हो सके. फिर चाहे वो मौजूदा संकट में कोई भूमिका निभाने वाले संगठन रहे हों या कोई और संगठन हों.

इसी तरह वैश्विक प्रशासन से जुड़े अन्य संगठनों के कामकाज की भी फिर से समीक्षा होनी चाहिए, उनका पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए. ताकि उनके अंदर वो सक्षमता, कार्यकुशलता और फुर्ती आए. जिससे वो किसी वैश्विक संकट से त्वरित गति से निपट सकें. इसके अतिरिक्त तमाम देशों और संस्थानों को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह बनाना होगा. फिर चाहे उन्होंने जान बूझ कर कोई कार्य किया हो, या उनसे अनजाने में कोई ग़लती हो गई हो. जिसके कारण ये महामारी फैली और मानवता ख़तरे में पड़ गई. और जो दुनिया भर के देशों की राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की क्षमताओं को हर क्षण परख रही है.

विकसित देश हों या फिर विकासशील देश, दोनों ही ध्रुवों में सार्वजनिक स्वास्थ्य के आयाम और राष्ट्रीय आर्थिक प्राथमिकताएं, विशेष तौर पर, समाज के सबसे कमज़ोर तबके को सामाजिक सुरक्षा के ढांचे के पुनर्निर्माण की आवश्यकता होगी. उनके लिए अन्य बजट व्यवस्थाएं करनी होंगी. क्योंकि कोरोना वायरस की महामारी के बाद की दुनिया व्यापक आर्थिक मंदी वाली होगी.

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