Author : Manoj Joshi

Published on Mar 20, 2020 Updated 0 Hours ago

सबसे बुरी स्थिति की बात करें, तो अमेरिकी सीमाओं की लंबे समय तक तालाबंदी, पूरी दुनिया की मांग को प्रभावित करेगी. और हो सकता है कि विश्व अर्थव्यवस्था की वृद्धि नकारात्मक हो जाए. इसका चीन जैसे देशों पर बहुत बुरा प्रभाव होगा. क्योंकि चीन, अमेरिका का बड़ा व्यापारिक साझीदार है. हालांकि, भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा.

पूरे भारत को अपनी गिरफ़्त में लेता जानलेवा कोविड-19

कोरोना वायरस (कोविड-19) का प्रकोप जिस तीव्रता से बढ़ रहा है, उसके बाद कोई भारत सरकार पर ये आरोप नहीं लगा सकता कि उसने इसकी रोकथाम में लापरवाही बरती. जिस दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे एक महामारी घोषित किया, उसी दिन भारत से बड़ा क़दम उठाते हुए, भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों के वीज़ा रद्द कर दिए. साथ ही, विदेश से भारत आने वाले लोगों के प्रवेश को सीमित कर दिया. अधिकारियों ने ये क़दम मंत्रियों के समूह के निर्देश पर उठाए हैं. जो 1897 के एपिडेमिक डिज़ीज़ एक्ट के अंतर्गत आते हैं. इस क़ानून के तहत भारत सरकार के पास ये अधिकार है कि वो विदेश से आने वाले किसी भी जहाज़ या व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है.

कोरोना वायरस जिन देशों से होते हुए भारत तक पहुंचा है, उसे देखते हुए हमें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि इसके संक्रमण में अचानक से बहुत वृद्धि हो सकती है. विश्व स्तर पर इस वायरस के प्रकोप का जो प्रवाह दिख रहा है, उससे ये बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इसे सीमित रखने के प्रयास पूरी तरह से सफल नहीं होंग

भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के अनुसार भारत में अभी कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दो सौ से भी कम है. और इन सभी का संबंध उन लोगों से पाया गया है, जो विदेश से आए थे. अभी तक इस बात का कोई साक्ष्य नहीं मिला है कि भारत में कोरोना वायरस का प्रकोप सामुदायिक संक्रमण के स्तर पर पहुंच गया है. जब ऐसा होता है तो वायरस उन लोगों के बीच बड़ी तेज़ी से फैलता है, जो बाहर कहीं यात्रा पर नहीं गए, या फिर किसी ऐसे शख़्स से भी नहीं मिले, जो विदेश से होकर आए हैं. भारत सरकार का कहना है कि अब तक उसने दस लाख से ज़्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की है. लेकिन, ये वो हैं जो एयरपोर्ट में हो रही पड़ताल से गुज़र रहे हैं. भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण कितनी बड़ी चुनौती बन गया है, ये तभी पता चलेगा, जब उन लोगों की जांच होगी, जो पहले से संक्रमित लोगों के संपर्क में आए हैं. अभी तक तो हमारे पास ये जानकारी नहीं है कि ऐसे लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण का परीक्षण किस हद तक किया जा रहा है.

कोरोना वायरस जिन देशों से होते हुए भारत तक पहुंचा है, उसे देखते हुए हमें इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि इसके संक्रमण में अचानक से बहुत वृद्धि हो सकती है. विश्व स्तर पर इस वायरस के प्रकोप का जो प्रवाह दिख रहा है, उससे ये बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इसे सीमित रखने के प्रयास पूरी तरह से सफल नहीं होंगे. और इसके विस्तार को रोकने के लिए हमें और क़दम उठाने पड़ेंगे. और तय है कि इससे भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव बहुत बढ़ जाएगा. जो कि दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले से ही कोई अच्छी स्थिति में नहीं है. अंत में, वायरस का प्रकोप कितना बढ़ता है, या सीमित रहता है, ये देश के राजनीतिक नेतृत्व और उन राष्ट्रीय नीतियों पर निर्भर करेगा, जो आने वाले समय में सामने आएंगी. और, भारत इस वायरस से निपटने के लिए कितने संसाधन को जुटा पाने की क्षमता रखता है, ये तय करेगा कि हम इससे निपटने में कितना सफल रहते हैं.

18 मार्च तक इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 150 से अधिक हो चुकी थी. जबकि तीन लोगों की इससे मौत हो चुकी थी. वहीं, छह संक्रमित लोग वायरस के प्रकोप से उबर चुके थे. भारत जितना विशाल देश है, उसे देखते हुए ये संख्या बहुत कम है. छोटे से डेनमार्क में ही वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या एक हज़ार के पार हो चुकी है. फ्रांस, जर्मनी और स्पेन में हज़ारों की संख्या में लोग संक्रमित हैं. इन देशों में मरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. 18 मार्च तक फ्रांस में कोरोना वायरस से 175, स्पेन में 623 और जर्मनी में 27 लोगों की मौत हो चुकी है. ऐसे में वायरस का प्रकोप बढ़ने से रोकने के लिए उठाया गया हर क़दम स्वागत योग्य है.

12 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने कहा था कि उनके संगठन ने दो कारणों के आधार पर वायरस के प्रकोप को महामारी घोषित किया है. पहली बात तो ये कि इस वायरस का संक्रमण बहुत अधिक रफ़्तार और व्यापकता से बढ़ा. 12 मार्च तक सवा लाख लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका था. और चीन के बाहर इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या पिछले दो हफ़्तों की तुलना में 13 गुना अधिक हो गई थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक का ये भी कहना था कि इस महामारी की रोकथाम की जा सकती है. लेकिन, उन्होंने ये चेतावनी भी दी कि, ‘हमारे बार-बार आगाह करने के बावजूद, हमें इस बात की बहुत चिंता है कि कई देशों ने इस ख़तरे का सामना उस राजनीतिक प्रतिबद्धता से नहीं किया, जिसकी इसकी रोकथाम के लिए आवश्यकता है.’

कोविड-19 वायरस की महामारी का वैश्विक प्रभाव देखने को मिलेगा. बीमारी और मौत के अलावा इस वायरस के कारण कई देशों को अपनी सीमाएं बंद करनी पड़ी हैं. कई क्षेत्रों के बीच हवाई यात्राओं को स्थगित कर दिया गया है. इससे दुनिया के वित्तीय बाज़ार धराशाई हो गए हैं. व्यापार ठप हो रहा है. और देशों के अंदर आप देख रहे हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण चीन का वुहान शहर और इटली हैं. एक विश्लेषण के अनुसार, जो देश इस आपदा से निपटने के लिए तैयार हैं, उनके यहां वायरस के संक्रमण से मृत्यु दर 0.5 से 0.9 प्रतिशत के आस-पास रहने की संभावना है. जबकि जो देश इसके लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हैं, वहां संक्रमित लोगों की मृत्यु दर 3 से पांच प्रतिशत के बीच रह सकती है.

वायरस के संक्रमण को सीमित रखने के शुरुआती उपाय

कोरोना वायरस का दुनिया में जो प्रकोप देखने को मिल रहा है, भारत उनसे अछूता नहीं रहेगा. ये तो है कि हमारी सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि वायरस के संक्रमण से मृत्यु दर कम से कम रहे. ऐसे उपाय किए जाएं, ताकि पहले से ही दबाव झेल रही हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था इस चुनौती से निपट सके. वायरस के प्रसार को रोकने का अर्थ ये सुनिश्चित करना है कि सभी मामलों की पहचान हो जाए. उन्हें आइसोलेशन में रख कर संक्रमण को नियंत्रित किया जाए. इसके पीछे सोच ये होती है कि बाहर से आ रहे लोगों की आमद को सीमित रखा जाए. बीमार लोगों को पहचान करके, उन्हें तुरंत अलग किया जाए. उनके संपर्क में आए सभी लोगों का तुरंत पता लगाया जाए और फिर उन्हें भी अलग-थलग रखा जाए. अब तक तो ऐसा लग रहा है कि भारत में ये असरदार साबित हो रहा है. मार्च महीने की शुरुआत में भारत में 31 लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई थी. हवाई अड्डों पर पहले ही 3500 से ज़्यादा सैंपल लिए जा चुके हैं और छह लाख आगंतुकों की स्क्रीनिंग हो चुकी है. मार्च की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि वो किसी भी होली मिलन समारोह में शामिल नहीं होंगे. उन्होंने यूरोपीय यूनियन के साथ ब्रसेल्स में होने वाली शिखर वार्ता के लिए बेल्जियम की अपनी यात्रा भी रद्द कर दी थी. इसके बाद प्रधानमंत्री ने अपनी बांग्लादेश की यात्रा भी रद्द कर दी थी.

पांच मार्च को संसद में अपनी तरफ़ से दिए गए एक बयान में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि, कोरोना वायरस से उत्पन्न स्थिति पर नज़र रखने के लिए विदेश मंत्री, नागरिक उड्डयन मंत्री, गृह राज्य मंत्री और जहाजरानी राज्य मंत्री की सदस्यता वाले एक मंत्री समूह का गठन कर दिया गया है, जिसकी अध्यक्षता वो स्वयं करेंगे. कैबिनेट सचिव भी कई मंत्रालयों के सचिवों के साथ लगातार संपर्क में हैं और स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं. इनमें विदेश मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय के सचिव शामिल हैं. इनके अतिरिक्त, कैबिनेट सचिव राज्यों के मुख्य सचिवों के भी संपर्क में हैं. तीन मार्च को जापान, दक्षिण कोरिया और ईरान से आने वाले लोगों के सभी वीज़ा रद्द कर दिए गए थे. इससे पहले चीन से आने वाले लोगों के वीज़ा एक महीने पूर्व ही यानी पांच फरवरी को रद्द कर दिए गए थे. बाद में इन देशों से आने वाले लोगों का आगमन भी रद्द कर दिया गया. देश के प्रमुख हवाई अड्डों पर यात्रियों की स्क्रीनिंग जनवरी के मध्य में ही शुरू कर दी गई थी. अब देश के 21 से अधिक हवाई अड्डों पर आने वाले हर यात्री की पड़ताल हो रही है. और बाद में देश के 12 प्रमुख बंदरगाहों और 75 छोटे बंदरगाहों पर आने वाले सभी लोगों की जांच की जाने लगी.

इसके अतिरिक्त, भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी की पंद्रह प्रयोगशालाओं में वायरस के जांच की सुविधा है. और स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार ने 19 अन्य लैब को भी कहा है कि वो कोरोना वायरस के संक्रमण के परीक्षण करें. पांच मार्च को दिए अपने बयान में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने ये भी बताया कि पूरे देश में नियमित रूप से होने वाली निगरानी को भी सक्रिय कर दिया गया है. और इसके अंतर्गत क़रीब 28 हज़ार लोगों का पता लगाकर उनकी निगरानी की जा रही है. ये काम इंटीग्रेटेड डिजीज़ सर्विलांस नेटवर्क के माध्यम से किया जा रहा है, जिसे राज्य और जिलों के सर्विलांस नेटवर्क चलाते हैं. संक्रमण के लक्षण दिखाने वाले लोगों को अलग रखने के लिए दो क्वारंटीन सेंटर बनाए गए हैं. इनमें से एक हरियाणा के मानेसर में है. और इसे आर्म्ड फ़ोर्सेज मेडिकल सर्विस द्वारा संचालित किया जा रहा है. वहीं, दूसरा क्वारंटीन केंद्र दिल्ली के छावला कैम्प में बनाया गया है, जिसका प्रबंधन भारत-तिब्बत सीमा पुलिस कर रही है.

संक्रमण का शमन

अगर हम प्रकोप को नियंत्रित रखने की बात करें, तो अब तक भारत ने इस मोर्चे पर कोई बहुत बुरा प्रदर्शन नहीं किया है. लेकिन, हमें इस संक्रमण के शमन के लिए कड़े क़दमों के तैयार रहना चाहिए. जैसे कि लोगों को सामाजिक रूप से दूरी बनाने के लिए बाध्य करना. स्कूल, दुकानें, सिनेमाघर बंद करना. सार्वजनिक कार्यक्रमों के आयोजन पर रोक, और सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर पाबंदी जैसे क़दम उठाने पड़ सकते हैं. इनमें से कुछ की तो शुरुआत भी हो चुकी है. दिल्ली सरकार और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने इस दिशा में कुछ क़दम उठाए हैं. इसका दूसरा तत्व होगा बीमार लोगों के रख-रखाव का ध्यान रखना. इस मोर्चे पर हमारे लिए बड़ी चुनौती हो सकती है. अगर हम बहुत विनम्रता से भी कहें, तो भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था ‘पैबंद लगी है.’ भारत के अस्पतालों में पहले ही बहुत भीड़ रहती है. और कई अस्पतालों में तो बुनियादी उपकरणों तक का अभाव है. इस समय भारत अपनी कुल जीडीपी का केवल 1.3 प्रतिशत स्वास्थ्य पर व्यय करता है.

दिल्ली में जहां सरकारी अस्पतालों में 24 हज़ार 383 बिस्तर हैं. तो, वहीं उत्तर प्रदेश में केवल 37 हज़ार 156 हैं. अगर कोविड-19 का संक्रमण भारत में तेज़ी से फैलता है, तो अस्पताल में दसियों लाख नए बेड की ज़रूरत पड़ेगी

जुलाई 2018 तक भारत के सरकारी अस्पतालों में लगभग 12 लाख बेड उपलब्ध थे. इनमें से अधिकतर शहरी इलाक़ों के अस्पतालों में हैं. इसके अलावा, अस्पतालों का वितरण भी बहुत असमान है. इसीलिए, दिल्ली में जहां सरकारी अस्पतालों में 24 हज़ार 383 बिस्तर हैं. तो, वहीं उत्तर प्रदेश में केवल 37 हज़ार 156 हैं. अगर कोविड-19 का संक्रमण भारत में तेज़ी से फैलता है, तो अस्पताल में दसियों लाख नए बेड की ज़रूरत पड़ेगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं चीन की साझा रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 से संक्रमित पांच प्रतिशत लोगों को सांस लेने में बाहर से मदद की ज़रूरत होती है. इनके अतिरिक्त अन्य 15 प्रतिशत को बेहद सघन ऑक्सीजन कक्ष में सांस लेने की ज़रूरत होती है. और ये आवश्यकता केवल कुछ दिनों के लिए नहीं होती. बल्कि, गंभीर रूप से संक्रमण के शिकार लोगों को ठीक होने में तीन से छह हफ़्तों के औसत समय तक आवश्यक होती है. हल्के संक्रमण के शिकार लोगों को केवल दो सप्ताह की मेडिकल मदद चाहिए होती है. इसीलिए उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा की ज़रूरत कुल संक्रमित लोगों में से बीस प्रतिशत को होगी. इसका अर्थ होगा कि इन्हें आईसीयू स्तर की मेडिकल सुविधाओं की ज़रूरत होगी. एक अध्ययन के अनुसार भारत में इस समय आईसीयू के केवल 70 हज़ार बेड उपलब्ध हैं. ये संख्या छोटे-बड़े अस्पतालों और नर्सिंग होम को मिलाकर है. ये लोग हर साल आईसीयू में भर्ती होने की ज़रूरत वाले क़रीब पांच लाख लोगों को सेवा उपलब्ध कराते हैं. यानी, आईसीयू के लिए पहले से ही लंबी क़तार है.

चूंकि कोविड-19 हमारे सांस लेने के सिस्टम पर हमला करता है, तो ऐसे में गंभीर रूप से संक्रमण के शिकार लोग बिना वेंटिलेटर के नहीं रह सकते हैं. सर्वे से मिले साक्ष्य बताते हैं कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में वेंटिलेटर की भयंकर कमी है

चूंकि कोविड-19 हमारे सांस लेने के सिस्टम पर हमला करता है, तो ऐसे में गंभीर रूप से संक्रमण के शिकार लोग बिना वेंटिलेटर के नहीं रह सकते हैं. सर्वे से मिले साक्ष्य बताते हैं कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में वेंटिलेटर की भयंकर कमी है. दिल्ली की ही बात करे, तो यहां सरकारी अस्पतालों में केवल 440 वेंटिलेटर होने का अनुमान है. अगस्त 2019 तक इनमें से 44 काम ही नहीं कर रहे थे. इसके अतिरिक्त मरीज़ों के हाइजीन को बनाए रखने की भी चुनौती होगी. क्योंकि अस्पतालों में उपलब्ध अधिकतर बेड प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ही उपलब्ध हैं. साफ़ है कि इनमें उस उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है, जिसकी इस संक्रमण से निपटने में आवश्यकता होगी. जिसकी कमी की वजह से ही वुहान में भारी संख्या में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मृत्यु हुई थी.

एक और समस्या ये है कि देश की 1.3 अरब की जनसंख्या में केवल 44 प्रतिशत आबादी के पास ही किसी न किसी तरह का स्वास्थ्य बीमा है. इनमें से अधिकतर का भुगतान या तो सरकार करती है, या कंपनियां करते हैं. और बाक़ी का बीमा कराने वाले स्वयं करते हैं. कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के इलाज की गुणवत्ता तय करने में ये बहुत बड़ा कारक होगा. अधिकतर निजी अस्पताल केवल वेंटिलेटर सपोर्ट के लिए प्रति दिन 15 से 20 हज़ार रुपए लेते हैं. सच तो ये है कि चाहे अस्पताल में मरीज़ों के लिए बेड की उपलब्धता की बात हो, या फिर डॉक्टरों की संख्या, या फिर वेंटिलेटर सपोर्ट जैसी विशेषज्ञ सुविधा की बात हो, यूपी, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की स्थिति पहले से ही नाउम्मीदी भरी है.

कोरोना वायरस के आर्थिक प्रभाव

कोविड-19 के संक्रमण ने शेयर बाज़ार पर पहले ही बहुत बुरा असर डाला है, जहां हम लगातार ऐतिहासिक गिरावट होते देख रहे हैं. इसके अलावा अन्य सेक्टर जैसे पर्यटन और यात्रा पर भी वायरस के प्रकोप का बुरा प्रभाव हुआ है. इससे जुड़े हुए नागरिक उड्डयन सेक्टर पर भी वायरस के प्रकोप का असर पड़ेगा. क्योंकि उड़ाने कैंसिल होंगी. वीज़ा पर पाबंदियां तो पहले से ही लगा दी गई हैं. अगर भारत में हालात बिगड़ते हैं, तो भारत में आर्थिक गतिविधियों में बहुत बड़ी उठा-पटक देखने को मिलेगी. चीन के साथ भारत का व्यापार पहले ही इससे प्रभावित हुआ है. चीन हमें संचार के उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक कल-पुर्ज़े, कंप्यूटर हार्डवेयर और अन्य सामानों के साथ-साथ औद्योगिक मशीनरी और ऑर्गेनिक केमिकल का भी निर्यात करता है. फौरी चिंता की बात ये है कि भारत की दवा कंपनियां दवाएं बनाने के लिए जिन एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इनग्रेडिएटंस का आयात करती हैं, उनका 85 प्रतिशत आयात चीन से ही आता है. इस समय भारतीय दवा कंपनियों के पास एपीआई का दो महीने का स्टॉक है. और इस मामले में भारत को चुनौती से निपटने में सक्षम होना चाहिए.

भारत को कच्चे तेल की क़ीमतों में भारी गिरावट का लाभ तो मिलेगा. लेकिन, इससे विश्व अर्थव्यवस्था में जो सुस्ती आएगी, उसका झटका भी झेलना पड़ेगा. क्योंकि भारत इसके कारण जितने सामान का निर्यात कर सकता है, वो नहीं कर पाएगा इसके अलावा तेल से होने वाली आमदनी की कमी से भारत की आमदनी पर भी असर पड़ेगा. क्योंकि, तेल निर्यातक देशों जैसे अरब प्रायद्वीप में रह रहे भारतीय, अपने देश को ज़्यादा पैसे नहीं भेज पाएंगे. क्योंकि इन जगहों पर काफ़ी संख्या में नौकरियों में छंटनी होने की आशंका भी है. सबसे बुरी स्थिति की बात करें, तो अमेरिकी सीमाओं की लंबे समय तक तालाबंदी, पूरी दुनिया की मांग को प्रभावित करेगी. और हो सकता है कि विश्व अर्थव्यवस्था की वृद्धि नकारात्मक हो जाए. इसका चीन जैसे देशों पर बहुत बुरा प्रभाव होगा. क्योंकि चीन, अमेरिका का बड़ा व्यापारिक साझीदार है. हालांकि, भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा.

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