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अमेरिका में इस साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं. उससे पहले 24-25 फ़रवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दो दिन के लिए अपनी पहली भारत यात्रा पर आए. इस यात्रा को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा था. ख़ासतौर से ये उम्मीद की जा रही थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर होंगे. लेकिन, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान कि, भारत के साथ ‘एक बड़े व्यापारिक समझौता’ राष्ट्रपति चुनाव के बाद होगा, इसके अलावा इस दौरे को हमें व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखना होगा. ये दोनों ही लोकतांत्रिक देश कोई निष्पक्ष और स्थायी समझौता करने की दिशा में तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब भारत और अमेरिका आपसी व्यापारिक असहमतियों का समाधान कर लें. अगर दोनों देश अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए, व्यापार समझौता करने में सफल होते हैं, तो इससे दोनों ही देशों का भला होगा.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका, व्यापार के एशियाई सहयोगी देशों के साथ अपने विशाल घाटे को पाटने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है. इनमें चीन और भारत के साथ व्यापारिक असंतुलन समाप्त करने पर ट्रंप प्रशासन का विशेष ज़ोर है. लेकिन, हाल के दिनों में अमेरिका और इन देशों के साथ व्यापारिक घाटे में बिल्कुल ही अलग-अलग तरह के प्रवाह देखने को मिले हैं. जहां तक चीन की बात है, तो उसके साथ अमेरिका का समान का व्यापारिक घाटा वर्ष 1985 से लगातार बढ़ता ही जा रहा है. वर्ष 2018 में चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 2017 के मुक़ाबले 11.6 प्रतिशत और बढ़ कर 419.2 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच गया. इसकी तुलना में भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा वर्ष 2018 के मुक़ाबले 9 प्रतिशत घट कर 20.8 अरब डॉलर हो गया. इसका प्रमुख कारण अमेरिका से भारत को हाइड्रोकार्बन उत्पादों के अनुपूरक निर्यात को जाता है. इसकी वजह से भारत न केवल ईरान से कच्चे तेल के निर्यात पर निर्भरता कम करने में सफ़ल रहा. बल्कि, एक नए स्रोत से तरल प्राकृतिक गैस का आयात करके अपनी प्राकृतिक गैस की मांग को भी पूरा करने में सक्षम हो सका. भारत ने क़तर, रूस और ऑस्ट्रेलिया से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के लिए लंबे समय के गैस आयात करने के समझौते भी कर रखे हैं.
अमेरिका के ऊर्जा सचिव डैन ब्रूइले के अनुसार, ‘पिछले दो वर्षों में अमेरिका से भारत को तेल और गैस के निर्यात में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. 2017 में 25 हज़ार बीपीडी से बढ़ कर अब ये दो लाख पचास हज़ार बीपीडी तक पहुंच गया है, जो कि दस गुना वृद्धि है. हम आने वाले समय में इसमें और वृद्धि होते देखेंगे.’
दिसंबर 2019 तक अमेरिका से भारत को क़रीब 90 लाख टन कच्चे तेल का आयात हो चुका था. ये 2018 की तुलना में अमेरिकी कच्चे तेल के आयात में 88 प्रतिशत की वृद्धि है. भारत ने ईरान से कच्चे तेल का आयात कम करने के लिए ही 2017 से अमेरिका से कच्चे तेल का आयात बढ़ाना आरंभ किया था. इस वृद्धि को हम इस सारिणी से समझ सकते हैं.
इसी तरह, वर्ष 2020 के अंत तक अमेरिका से भारत को तरल प्राकृतिक गैस का निर्यात 57.6 करोड़ टन के स्तर तक पहुंचने की संभावना है. जबकि 2017 में भारत, अमेरिका से केवल 15.5 करोड़ टन प्राकृतिक गैस का ही आयात करता था. अमेरिका के ऊर्जा विभाग के अनुसार, अमेरिका से तरल प्राकृतिक गैस का आयात करने वाले देशों में फरवरी 2016 से नवंबर 2019 के बीच भारत का नंबर छठवां था. जो अमेरिका की कुल तरल प्राकृतिक गैस के निर्यात का केवल 5.1 प्रतिशत हिस्सा ही ख़रीदता था. 2018 के पश्चात, भारत ने अमेरिका से प्राकृतिक गैस ख़रीदने में उत्तरोत्त वृद्धि की है.
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अमेरिका से भारत को कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के निर्यात में लगातार वृद्धि हो रही है. ख़ास तौर से अमेरिका में शेल गैस और तेल की खोज के बाद वहां मिले नए भंडारों और अमेरिका से तेल और गैस के निर्यात पर चार दशकों से लगे प्रतिबंधों को हटाने के बाद इसमें और बढ़त हो रही है. इससे अमेरिका को भारत के साथ अपना व्यापारिक घाटा भरने में काफ़ी हद तक सफ़लता प्राप्त हुई है. भारत के पेट्रोलियम मंत्री के अनुसार, अमेरिका और भारत के बीच, कच्चे तेल और गैस के इस व्यापार में, ‘पिछले तीन वर्षों में ज़बरदस्त वृद्धि हो रही है. और पिछले वर्ष ये 7.7 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच चुका था, जो दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार का 11 प्रतिशत बैठता है.’ अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में अपार संभावनाओं के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि, ‘ऊर्जा के क्षेत्र में हमारा कारोबार पिछले वर्ष 8 अरब डॉलर के क़रीब पहुंच गया है. याद रखें कि कुछ साल पहले इस क्षेत्र में हमारा द्विपक्षीय व्यापार शून्य ही था.’
हालांकि, अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी (SEP) न केवल हाइड्रोकार्बन के व्यापार और इस क्षेत्र में निवेश तक सीमित है, बल्कि दोनों देशों द्वारा जारी व्यापक साझा अभियान के अनुसार, उनका प्रयास है कि दोनों देश एनर्जी वैल्यू चेन में इनोवेशन के संपर्क के माध्यम से अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने का इरादा रखते हैं. जैसा कि एसईपी में कहा गया है कि इस संबंध की वजह से दोनों देशों के बीच सामरिक नज़दीकी बढ़ेगी. साथ ही इससे इन देशों के ऊर्जा क्षेत्र के औद्योगिक और अन्य हिस्सेदारों के बीच संपर्क बढ़ेगा. स्ट्रैटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप के अंतर्गत दोनों देशों ने जिन चार प्रमुख स्तंभों पर अपनी ऊर्जा साझेदारी को बढ़ाने का निर्णय लिया है, वो इस तरह हैं-तेल और गैस, बिजली एवं ऊर्जा कुशलता, पुनर्नवीकृत ऊर्जा और स्थायी विकास एवं कोयला.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दिल्ली प्रवास के दौरान, भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा क्षेत्र में आपसी सहयोग की तीन संधियों पर हस्ताक्षर होने की संभावना थी. इनका संबंध सस्ती दरों पर कच्चे तेल और तरल प्राकृतिक गैस का निर्यात बढ़ाने और भारत को परमाणु रिएक्टर की आपूर्ति से था. लेकिन, हुआ ये कि एक्सनमोबिल इंडिया एलएनजी ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और चार्ट एनर्जी ऐंड केमिकल्स के साथ सहयोग के पत्र पर हस्ताक्षर किए, ताकि दोनों देशों के बीच वर्चुअल पाइपलाइन सिस्टम को निर्मित किया जा सके. भारत में नए शहरों को प्राकृतिक गैस का वितरण और तेज़ी से बढ़ाने के लिए, ये वर्चुअल पाइपलाइन सिस्टम सड़क, रेल और जलीय परिवहन के माध्यम से तरल प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करेगा. भारतीय वर्चुअल पाइपलाइन इनीशिएटिव पर हस्ताक्षर करने वाले पक्ष एक ऐसा मूलभूत ढांचा विकसित करेंगे, जो भरोसेमंद, स्वच्छ और सस्ते माध्यम से गैस का परिवहन कर सकें, जिससे भारत को गैस आधारित ऊर्जा व्यवस्था के विकास में मदद मिल सके. साथ ही साथ एक लक्ष्य ये भी निर्धारित किया गया है कि भारत के ऊर्जा आयात में प्राकृतिक गैस के मौजूदा 6.2 प्रतिशत हिस्से को वर्ष 2030 तक बढ़ा कर 15 प्रतिशत किया जाएगा.
जहां तक उन समझौतों की बात है जिन पर ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान हस्ताक्षर होने की संभावना थी. इनमें से पहला समझौता अमेरिका से भारत को तरल प्राकृतिक गैस का निर्यात बढ़ाने को लेकर था. जिसके अंतर्गत पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड को अमेरिका की प्राकृतिक गैस कंपनी टल्यूरियन इन्कॉरपोरेशन के साथ 2.5 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर करने थे. इस समझौते के तहत भारत को अमेरिका से पचास लाख टन तरल प्राकृतिक गैस ख़रीदनी थी. भारत को ये गैस 6-8 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू (million British Thermal unit) की दर से मिलने की संभावना थी. इससे पहले भारत ने गैस ख़रीदने की जो संधियां की हैं, उनमें प्राकृतिक गैस की क़ीमत 9-10 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू के बीच है. इसका मतलब ये कि अगर ये समझौता होता, तो भारत को अमेरिका से लगभग एक तिहाई सस्ती दर पर प्राकृतिक गैस मिलती, जिससे भारत का गैस आयात का आर्थिक बोझ काफ़ी कम हो जाता. वित्तीय वर्ष 2019 में भारत ने अपनी कुल प्राकृतिक गैस की खपत का 47 प्रतिशत एलएनजी आयात किया था. हालांकि, अंग्रेज़ी समाचार पत्र द हिंदू के अनुसार, अमेरिका और भारत के बीच ये संधि इसी साल मार्च महीने के अंत तक होने की संभावना है.
जहां तक परमाणु रिएक्टर की बिक्री का प्रश्न है, तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दोनों ही नेताओं ने अमेरिकी कंपनी वेस्टिंगहाउस और भारत के न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वो रिएक्टर की ख़रीद-फ़रोख़्त की संधि जल्द से जल्द कर लें. ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान ये समझौता इसलिए नहीं हो सका, क्योंकि दोनों देश भारत के परमाणु जवाबदेही क़ानून से जुड़े विवादों को हल कर पाने में असफल रहे.
भारतीय रिफ़ाइनरी कंपनियां, चीन के लिए जाने वाले कच्चे तेल को बेहद सस्ती क़ीमत यानी क़रीब 49 डॉलर प्रति बैरल की दर से ख़रीद पा रहे हैं. क्योंकि कोरोना वायरस के कारण तेल बाज़ार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है
डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान जिस तीसरे समझौते की अपेक्षा जताई जा रही थी, वो अमेरिका से भारत की तेल रिफ़ाइनरियों जैसे इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, मैंगलोर रिफ़ाइनरी और पेट्रोकेमिकल व नयारा एनर्जी के बीच भारत को रियायती दरों पर कच्चे तेल के निर्यात से संबंधित था. अमेरिका से भारत का निर्यात पिछले कुछ वर्षों में दस गुना बढ़ कर ढाई लाख बैरल प्रति दिन तक पहुंच गया है. इससे ये उम्मीद जगी है कि अमेरिका, भारत को रियायती दरों पर कच्चा तेल निर्यात करेगा. इसी हिसाब से दुबई क्रूड के मुक़ाबले अमेरिकी कच्चे तेल की क़ीमत में भारत को 2 से 5 डॉलर प्रति बैरल तक की छूट मिल सकती है. इस समझौते के अंतर्गत भारत को अमेरिका से कच्चा तेल ख़रीदने पर इसका भुगतान करने के लिए 60 से 90 दिनों तक की मुहलत भी प्राप्त हो सकती है. भारत को ऐसी रियायतें मिलने की संभावनाएं अभी भी स्पष्ट नहीं हैं. इधर, भारतीय रिफ़ाइनरी कंपनियां, चीन के लिए जाने वाले कच्चे तेल को बेहद सस्ती क़ीमत यानी क़रीब 49 डॉलर प्रति बैरल की दर से ख़रीद पा रहे हैं. क्योंकि कोरोना वायरस के कारण तेल बाज़ार पर विपरीत प्रभाव पड़ा है.
दोनों ही देशों ने पुनर्नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के विकास को बढ़ावा देने के लिए 60 करोड़ डॉलर की वित्तीय सुविधा की घोषणा का भी स्वागत किया था. इसमें पवन एवं सौर ऊर्जा के संसाधनों का विकास शामिल है. ये समझौता भारत के अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त निगम और एक अमेरिकी विकास बैंक के बीच हुआ है.
भारत और अमेरिका को अपने साझा बयान के दायरे से आगे बढ़ कर अपनी सामरिक ऊर्जा साझेदारी को इस मज़बूत नींव के आधार पर और भी बढ़ाना होगा, ताकि ये साझेदारी अधिक स्थायी हो सके. एसईपी की पूरी क्षमता का उपयोग करने की दिशा में पहला क़दम ये होगा कि अमेरिका-भारत गैस टास्क फ़ोर्स भारत के गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के नए रास्ते तलाश करे. जिसमें शेल गैस की संभावनाएं भी शामिल हैं. भारत के तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम ने शेल गैस को तलाशने के प्रोजेक्ट को पिछले वर्ष बंद कर दिया था. परंतु इस नई व्यवस्था के अंतर्गत, भारत को अमेरिका की मदद से एक ऐसा इकोसिस्टम विकसित करना चाहिए, जो नए माध्यमों से शेल गैस के भंडार की खोज को नए सिरे से प्रारंभ कर सकें. साथ ही भारत को इसके लिए पर्याप्त नियामक व्यवस्था भी बनानी चाहिए.
इसके अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन के सख़्त नियमों एवं भारत के अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल पावर प्लांट की दिशा में बढ़ने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अमेरिका को चाहिए कि वो भारत को कोयले से स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त करने की तकनीक उपलब्ध कराए. साथ ही साथ अमेरिका, भारत के मौजूदा कोयला आधारित पावर प्लांट की कार्यकुशलता कम लागत से बढ़ाने में भी मदद करे. स्वच्छ कोयला तकनीकों के माध्यम से प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जन कम किया जा सकता है. साथ ही साथ अमेरिका को चाहिए कि वो भविष्य में भारत को कार्बन को क़ैद करने और इसे अलग थलग करने की संभावनाएं तलाशने में भी सहयोग करे.
अमेरिका को केवल ऊर्जा संसाधनों के निर्यात पर ही नहीं निर्भर रहना चाहिए, बल्कि सस्ते और स्वच्छ ईंधन के विकल्पों को भी उपलब्ध कराना चाहिए. इससे भारत को अपनी ग़रीब जनता की ज़िंदगी बेहतर बनाने में मदद मिलेगी
इसके अतिरिक्त, ऊर्जा से जुड़े अच्छे आंकड़े किसी भी ऊर्जा नीति की उचित निगरानी और उनकी प्रगति का हिसाब-किताब रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. लेकिन, दिक़्क़त ये है कि भारत में ऊर्जा से जुड़े तमाम आंकड़ों को किसी एक जगह से प्राप्त करने का कोई ठिकाना या एजेंसी नहीं है. इस अभाव में भारत और अमेरिका के लिए मौजूदा ऊर्जा सहयोग को मज़बूत करने और एकीकृत करने का एक और अवसर विद्यमान है. इससे पहले अमेरिका की एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवेलपमेंट और नीति आयोग पहले ही एक ऐसी संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जिसके अंतर्गत ऊर्जा से जुड़े आंकड़ों के प्रबंधन के लिए एक नोडल एजेंसी की स्थापना में सहयोग दिया जाएगा. इस समझौते की नए सिरे से समीक्षा करके इसे आगे कार्यान्वित किया जाना चाहिए.
इसलिए, अमेरिका के लिए बेहतर होगा कि वो भारत के ऊर्जा बाज़ार की नज़दीकी पड़ताल करे और भारत की उर्जा संबंधित चुनौतियों का समाधान, यहां मौजूद अवसरों के अनुसार उपलब्ध कराए. इसके लिए अमेरिका को केवल ऊर्जा संसाधनों के निर्यात पर ही नहीं निर्भर रहना चाहिए, बल्कि सस्ते और स्वच्छ ईंधन के विकल्पों को भी उपलब्ध कराना चाहिए. इससे भारत को अपनी ग़रीब जनता की ज़िंदगी बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. विकेंद्रीकृत स्तरों पर अवसरों को खोजने से भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा क्षेत्र का सहयोग व्यापक भी होगा और, दोनों देश इसका अधिकतम संभव लाभ भी उठा सकेंगे.
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