Author : Harsh V. Pant

Published on Mar 27, 2020 Updated 0 Hours ago

भारतीय नेतृत्व ने अभी तक बहुत अच्छा काम किया है लेकिन आगे आने वाले दिनों में इस तूफ़ान का असरदार तरीक़े से मुक़ाबला करने के लिए उसे देश के लोगों के समर्थन की ज़रूरत होगी.

कोरोना काल में नेतृत्व

पिछले हफ़्ते कोरोना वायरस को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र को संबोधन और जनता के बीच उसका संदेश आम तौर पर सकारात्मक रहा है. उन्होंने सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता की तरह देश के लोगों को ढाढस बंधाते (दुख की घड़ी में दिलासा देना) हुए कहा कि जहां सरकारी मशीनरी अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे रही है वहीं ज़िम्मेदारी लोगों की भी है कि वो इस बात को सुनिश्चित करें कि हालात नहीं बिगड़े. उन्होंने ये भी कहा कि इस बात को मानना कि भारत दूसरे देशों के मुक़ाबले कोविड-19 के ख़तरे से बचा हुआ है, एक भ्रम है. इसके लिए उन्होंने भारत के विशाल जनसंख्या वाले विकासशील देश होने का हवाला दिया. एक तरफ़ उन्होंने जनता के सामने कठोर वास्तविकता रखी, वहीं दूसरी तरफ़ ‘जनता कर्फ्यू’ के नाम पर देश को एकजुट भी किया और उनसे ख़तरनाक वायरस के ख़िलाफ़ मोर्चे पर लड़ने वाले डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, सफाई कर्मचारी का सार्वजनिक तौर पर आभार व्यक्त करने को कहा.

उस वक़्त जब वैश्विक नेतृत्व का अभाव पूरी दुनिया में साफ़ तौर पर महसूस किया जा सकता है, मोदी वो नेता हैं जिन्होंने घरेलू ज़रूरतों और वैश्विक ज़िम्मेदारी को एक साथ निभाया है

लोकतंत्र होने की वजह से निश्चित रूप से आलोचक इसमें भी आलोचना ढूंढ लेंगे लेकिन संकट से निपटने में अभी तक मोदी की भूमिका की सराहना होनी चाहिए. उस वक़्त जब वैश्विक नेतृत्व का अभाव पूरी दुनिया में साफ़ तौर पर महसूस किया जा सकता है, मोदी वो नेता हैं जिन्होंने घरेलू ज़रूरतों और वैश्विक ज़िम्मेदारी को एक साथ निभाया है. वो भारतीयों के साथ शुरू से ही नियमित और सीधे तौर पर संवाद कर रहे हैं और उन्हें ये मानने में भी संकोच नहीं है कि इस महामारी से मुक़ाबले के लिए असरदार वैश्विक जवाब देना होगा. इसका मुक़ाबला यूरोप के अपनी सीमाओं के भीतर अव्यवस्थित प्रदर्शन या अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप या चीन के नेतृत्व के गैर-ज़िम्मेदार बर्ताव से कीजिए जिसकी वजह से ये संकट खड़ा हुआ. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस मुश्किल घड़ी में मोदी का नेतृत्व कितना प्रभावशाली रहा है.

भारत ने चुपचाप लेकिन असरदार तरीक़े से अलग-अलग स्तर पर इस महामारी का जवाब दिया. घरेलू स्तर पर संसाधनों की कमियों और जनसंख्या के दबाव के बावजूद मोदी सरकार की नीतियों की वजह से बेकार की दहशत नहीं फैली और आम तौर पर लोग सरकार की कोशिशों के साथ खड़े दिखे.

इस वक़्त भी जब दुनिया के देश अपनी आंतरिक समस्याओं से जूझ रहे हैं और ज़्यादातर देश महामारी से निपटने के लिए अपने घर पर ज़्यादा-से-ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं, भारत ने इन मान्यताओं को उस वक़्त चुनौती दी जब मोदी ने कोविड-19 को लेकर सार्क देशों का सम्मेलन बुलाया. दक्षिण एशिया में असरदार तरीक़े से कोरोना वायरस से लड़ने के लिए सार्क देशों के एकजुट प्रयास का आह्वान करते हुए मोदी ने कोविड-19 आपातकालीन कोष बनाने का प्रस्ताव दिया. इस कोष में भारत ने शुरुआती तौर पर 1 करोड़ डॉलर का योगदान दिया. ये अच्छी तरह से जानते हुए भी कि पाकिस्तान इस कोशिश के दौरान भी राजनीति करेगा और जैसा कि उसने कश्मीर का मुद्दा उठाकर किया भी, मोदी ने कहा कि दक्षिण एशिया के देशों को मिलकर काम करना चाहिए. मोदी के मुताबिक़ सार्क देश कोरोना वायरस का मुक़ाबला एक साथ आकर कर सकते हैं न कि अलग-अलग होकर. मोदी ने डॉक्टरों की रैपिड रेस्पॉन्स टीम, टेस्टिंग उपकरणों के इंतज़ाम के अलावा आपातकालीन रेस्पॉन्स टीम को ऑनलाइन ट्रेनिंग देने की भी पेशकश की ताकि पूरे क्षेत्र में ऐसी चुनौतियों के ख़िलाफ़ क्षमता में बढ़ोतरी हो.

मोदी कोविड-19 महामारी और उसके मानवीय और आर्थिक असर को लेकर समन्वित जवाब को लेकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये जी-20 शिखर सम्मेलन की अपील करने वाले पहले वैश्विक नेता भी बन गए. इसे सऊदी अरब ने स्वीकार किया जो इस साल जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है

ये पहला मौक़ा था जब दुनिया ने देखा कि ऐसे संकट के वक़्त एक देश अपनी राष्ट्रीय चिंताओं से आगे बढ़कर काम कर रहा है. मोदी की पहल ऐसी किसी क्षेत्रीय पहल से पहले आई और न सिर्फ़ क्षेत्रीय देशों बल्कि अमेरिका और रूस के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली. मोदी कोविड-19 महामारी और उसके मानवीय और आर्थिक असर को लेकर समन्वित जवाब को लेकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये जी-20 शिखर सम्मेलन की अपील करने वाले पहले वैश्विक नेता भी बन गए. इसे सऊदी अरब ने स्वीकार किया जो इस साल जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है.

कोरोना वायरस के भीषण असर वाले देशों जैसे चीन, ईरान और इटली से भारत बड़ी तादाद में अपने नागरिकों को वापस ला रहा है. साथ ही मनीला और सिंगापुर में फंसे अपने छात्रों की भी वतन वापसी कराई. जिन्हें वापस लाया गया उनमें सिर्फ़ भारतीय नागरिक ही नहीं बल्कि मालदीव, म्यांमार, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, मैडागास्कर, श्रीलंका, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका और पेरू के नागरिक भी शामिल थे. भूटान और मालदीव से आपातकालीन मेडिकल उपकरणों के अनुरोध का भी भारत ने जवाब दिया.

ये वैश्विक संकट का मुश्किल वक़्त है जब नेतृत्व की कमी है. इन्हीं हालात में किसी देश को अटल नेतृत्व की ज़रूरत होती है. भारत के लिए मोदी अभी तक नेतृत्व और भरोसा देने में कामयाब रहे हैं. आगे आने वाले दिन मुश्किल रहेंगे और भारत की परेशानी बड़ी है. कुछ महीनों में संकट के दुष्परिणामों को संभालने से लेकर विज्ञान और तकनीकी आधार को फिर से खड़ा करने और दक्षिण एशियाई देशों की तरफ़ पहुंचने तक भारतीय नीति निर्माताओं के लिए चुनौती बहुत बड़ी है. भारतीय नेतृत्व ने अभी तक बहुत अच्छा काम किया है लेकिन आगे आने वाले दिनों में इस तूफ़ान का असरदार तरीक़े से मुक़ाबला करने के लिए उसे देश के लोगों के समर्थन की ज़रूरत होगी.


ये लेख मूल रूप से मेल टुडे में प्रकाशित हो चूका है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.