Author : Prachi Mittal

Published on Mar 06, 2020 Updated 0 Hours ago

समय की मांग ये है कि आज प्रशिक्षण एवं हुनर पर आधारित उच्च शिक्षा को लेकर नई रणनीति बनाई जाए.

बिम्सटेक देशों में वैश्विक वैल्यू चेन की संभावनाएं: एक सही अवसर

द बे ऑफ़ बेंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल ऐंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन (BIMSTEC), दक्षिण एशिया के पांच देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका)का एक संगठन है. इसमें दक्षिणी-पूर्वी एशिया के दो देश (म्यांमार और थाईलैंड) भी शामिल हैं. अगर भारत के दृष्टिकोण से देखें, तो पिछले कुछ वर्षों में हमने बिम्सटेक के सदस्य देशों के बीच सहयोग की प्रासंगिकता और महत्ता बढ़ते हुए देखी है. इसकी प्रमुख वजह ये है कि दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी के कारण, सार्क की पहल अटक कर रह गई है. इसी कारण से ऐसे वैकल्पिक भू-सामरिक गठबंधनों की आवश्यकता महसूस की गई, जिससे इस क्षेत्र का समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास हो सके. 2016 में भारत ने ब्रिक्स-बिम्सटेक (BRICS-BIMSTEC) आउटरीच शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था. इस सम्मेलन के माध्यम से भारत ने अपनी विदेश नीति के ‘एक्ट ईस्ट’ प्रयासों के अंतर्गत बिम्सटेक देशों को ज़्यादा तवज्जो देने की गंभीरता का एहसास कराया था. इसके अतिरिक्त, बिम्सटेक देश, दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों के केंद्र में स्थित है. इसका अर्थ ये है कि आज हिंद महासागर क्षेत्र दुनिया का सबसे अधिक गति से विकसित हो रहा आर्थिक क्षेत्र है.

व्यापार एवं निवेश, लंबे समय से बिम्स्टेक देशों के मूलभूत स्तंभ रहे हैं. आज वैश्विक स्तर पर एक दूसरे से बढ़ती नज़दीकी और निर्भरता का अर्थ ये है कि कोई भी देश बाक़ी राष्ट्रों से कट कर नहीं रह सकता. और व्यापार-फिर चाहे वो क्षेत्रीय हो या वैश्विक, वो दुनिया की अर्थव्यवस्था की धड़कन एवं सांस बन चुका है. विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित, विश्व विकास रिपोर्ट 2020 इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि आज निर्माण क्षेत्र की उत्पादकता एवं ग्लोबल वैल्यू चेन की भागीदारी वाले विकास में सीधा एवं सकारात्मक संबंध है. अतएव, हाल के दिनों में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को ग्लोबल वैल्यू चेन से जोड़ने को त्वरित गति से औद्योगिकीकरण और विकास करने का प्रमुख माध्यम माना जाने लगा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकासशील देशों के अलग-अलग बंटे हुए निर्माण क्षेत्रों को ग्लोबल वैल्यू चेन से जोड़ना उनकी अर्थव्यवस्था से जोड़ना लाभप्रद माना जाता है. इससे सभी देशों को अलग-अलग क्षेत्रों की विशेषज्ञता विकसित करने की आवश्यकता नहीं होती. साथ ही इससे उन्हें अपने निर्यात में विविधता लाने का भी अवसर प्राप्त होता है.

आज ज़रूरत है कि बिम्सटेक देश ग्लोबल वैल्यू चेन का हिस्सा बनें, ताकि उनके यहां आर्थिक विकास की गति तीव्र हो. और इससे रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न किए जा सकें

किसी भी देश के जीवीसी यानी ग्लोबल वैल्यू चेन से जुड़ने की पहली शर्त होती है, कम मज़दूरी वाली लागत. हालांकि ये शर्त पूरी करने के बावजूद, थाईलैंड को छोड़ दें तो, बिम्सटेक के किसी भी देश ने दुनिया के किसी भी ग्लोबल वैल्यू चेन में शामिल होने के लक्षण नहीं दिखाए हैं. आज ज़रूरत है कि बिम्सटेक देश ग्लोबल वैल्यू चेन का हिस्सा बनें, ताकि उनके यहां आर्थिक विकास की गति तीव्र हो. और इससे रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न किए जा सकें. इन सभी लाभों के अतिरिक्त, ये देश अपनी सामूहिक क्षमताओं का भी फ़ायदा उठा सकते हैं. ओईसीडी-डब्ल्यूटीओ-वर्ल्ड बैंक ग्रुप की रिपोर्ट (2014) के अनुसार, ‘जीवीसी से मिलने वाले लाभ स्वत: स्फ़ूर्त नहीं होते हैं. इसके फ़ायदे इस बात पर भी निर्भर होते हैं कि कोई देश वैल्यू चेन के शीर्ष पर बैठा है अथवा वो सबसे निचली कतार में है.’ विकासशील देश अक्सर ग्लोबल वैल्यू चेन के निम्नतम स्तर की गतिविधियों में क़ैद हो जाते हैं. इसके प्रमुख कारण उनके यहां विशेष हुनरमंद लोगों की कमी, आवश्यक मूलभूत ढांचे का अभाव और कार्यकुशल सहयोग की कमी होती है. इसके अतिरिक्त वो तकनीक, इनपुट, बाज़ार, सूचना और ऋण प्राप्त करने में भी मुश्किलों का सामना करते हैं. और इन सभी कारणों से किसी भी विकासशील देश की प्रगति में नई बाधाएं खड़ी हो जाती हैं. इसका नतीजा ये होता है कि ऐसे देश, दुनिया की वैल्यू चेन में ख़ुद को मध्यम दर्जे की उत्पादन क्षमता में फंसे रह जाते हैं.

इस संदर्भ में एशियाई आर्थिक महाशक्ति चीन ने एक परिवर्तनशील विकास का शानदार पथ दिखाया है. अगर ग्लोबल वैल्यू चेन की बात करें, तो चीन ने इस मोर्चे पर अपने बूते अपना विकास करने की उच्च स्तरीय क्षमता का प्रदर्शन किया है. 2005 के बाद से चीन विश्व आर्थिक पटल पर ग्लोबल वैल्यू चेन का महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन कर उभरा है. यहां तक कि उसने ग्लोबल वैल्यू चेन में दुनिया के तीन शीर्ष देशों में से एक, जापान को पीछे छोड़ दिया. और 2011 में तो चीन इस मामले में अमेरिका से भी आगे निकल गया था. ग्लोबल वैल्यू चेन में चीन के गहराई से सम्मिलित होने की प्रमुख वजह ये थी कि उसके पास भारी मात्रा में मज़दूर थे और उन लोगों की मज़दूरी भी कम थी. हालांकि, हाल के विकास के आंकड़े इशारा करते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है. और अब चीन में हुनरमंद श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है. जिससे अंतत: मज़दूरी में भी बढ़ोत्तरी होती है. इन कारकों की वजह से आने वाले दशक में ग्लोबल वैल्यू चेन में चीन की महत्ता बढ़ने की उम्मीद है. और आने वाले समय में चीन, उच्च स्तरीय उत्पादन गतिविधियों में शामिल होगा. इससे विश्व के बाज़ार में निम्न स्तर की उत्पादन गतिविधियों के क्षेत्र में कमी आने की संभावना दिख रही है. उत्पादन क्षमता की ये कमी कई उत्पादों के जीवन चक्र में अपना प्रभाव छोड़ेंगी. इन परिस्थितियों में भारत एवं बिम्सटेक के अन्य देशों के पास इस बात का अच्छा अवसर होगा कि वो विश्व बाज़ार में चीन द्वारा खाली किए गए स्थान को भर सकते हैं और ग्लोबल वैल्यू चेन के कई स्तरों में प्रवेश कर सकते हैं.

आज आवश्यकता इस बात की है कि तमाम देश मानवीय पूंजी के विकास में निवेश करें. इसके लिए वो पेशेवर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं, जिससे हुनरमंदर श्रमिक वर्ग का निर्माण हो सके

हालांकि, पर्याप्त मात्रा में बाज़ार पर क़ब्ज़ा सुनिश्चित करने एवं परिष्कृत एकीकरण को बढ़ावा देने, और बाज़ार में गहरी पैठ बनाने के लिए बिम्स्टेक देशों को अपने यहां के उत्पादन क्षेत्र के प्रशासन की कुछ प्राकृतिक कमियों एवं समेकित सोच को बदलने की ज़रूरत होगी. उदाहरण के तौर पर इन देशों को तमाम क्षेत्रों में अपनी तुलनात्मक श्रेष्ठता का लाभ उठा कर विशेषज्ञीकरण को बढ़ावा देना होगा. इससे उत्पादन प्रक्रिया की कार्यकुशलता में और वृद्धि की जा सकेगी. बिम्सटेक देशों को ये सुनिश्चित करना चाहिए इस क्षेत्र में जो भी वैल्यू चेन उभरे वो कार्यकुशल हो. इन देशों को अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में अपना ध्यान पुन: केंद्रित करना होगा. ताकि, उत्पादन एवं निर्माण की कम लागत वाले तरीक़ों का विकास सुनिश्चित हो सके. इसके अतिरिक्त, ग्लोबल वैल्यू चेन की स्थापना के साथ हर सदस्य के पास ये अवसर होगा कि वो उत्पादन प्रक्रिया के अलग-अलग स्तर से जुड़ सके. जो उनकी अपनी तुलनात्मक क्षमता के अनुसार होगा.

अब दुनिया में एक-दूसरे से संपर्क और निर्भरता बढ़ रही है. ऐसे में साझा वैश्विक मानकों, अंतरराष्ट्रीय नियमों, व्यापक श्रम क़ानूनों एवं औद्योगिक कूट नियमों की आवश्यकता उत्पन्न होती है. जो आगे चल कर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संबंध में धन से इतर लागत को कम कर सकेंगे. पर्यावरण के मानकों में विभेद, कई तरह के श्रम क़ानून, उत्पादन के अनगिनत कोड और नियमों से व्यापार की लागत बढ़ती है. इससे उत्पादन के नेटवर्क की कार्यकुशलता की क्षति होती है. इसीलिए समय की मांग ये है कि आज प्रशिक्षण एवं हुनर पर आधारित उच्च शिक्षा को लेकर नई रणनीति बनाई जाए. आज आवश्यकता इस बात की है कि तमाम देश मानवीय पूंजी के विकास में निवेश करें. इसके लिए वो पेशेवर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं, जिससे हुनरमंदर श्रमिक वर्ग का निर्माण हो सके. जो किसी भी वैश्विक उत्पादन नेटवर्क या चेन से लाभप्रद एवं स्थायी रूप से जुड़ने की अनिवार्य शर्त है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.