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बेशक तकनीकी चीज़ें हमारी ज़िंदगी आसान बनाती हैं. लेकिन म�
आज वैश्विक संस्थाओं में लोकतांत्रिक सुधार अति आवश्यक हो
हम एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़े हैं. और आने वाले कुछ वर्षों म
चीन जहां मुख्य रूप से अफ़्रीकी देशों में स्वयं का राजनीति�
विश्व व्यापार संगठन के नियम महामारी से परे नहीं हैं. यही क
भारत और अफ्रीका के लिए आज कम कार्बन उत्सर्जन वाले, स्थायी,
राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा के लिए फंड में कमी नहीं आनी चाहि�
लद्दाख की सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प
आज़ादी के बाद से भारत में तीन बार मंदी आ चुकी है और यह मंदी
जब तक हम ये पक्के तौर पर नहीं जान जाते कि बीसीजी या कोई और द
कोविड-19 की महामारी के बाद किसान और मज़दूर जब अपनी ज़िंदगी �
पर्यावरण में जो बदलाव हम आज देख रहे हैं क्या वो हमेशा के ल�
यह दुनिया सेठ साहूकारों की दुनिया है. यहां लोग पैसा मोक्ष
जहां तक शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, खाद्य सुरक्षा और पे
हो सकता है कि चीन मंदी से बच जाए या हल्के रूप में मंदी को मह
कोई भी जन नीति असरदार हो इसके लिए स्वस्थ सार्वजनिक परिचर�
इस तरह से उथल-पुथल का समय जब आता है और ऐसे में जो सरकारें है
दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी – 55 प्रतिशत- शहरों में रहती
इबोला वायरस ने प्राथमिक तौर पर विकासशील अफ्रीकी देशों पर
इतिहास उठा लीजिये हर महामारी की मार सर्वाधिक आम और गरीब त�
सरकार के लिए दीर्घकालीन चुनौती महामारी का सामना करने वाल
चीनी घोटाले की रिपोर्ट में जिन लोगों का नाम है, उनमें से ए�
कोरोना वायरस जिस तेज़ी से बढ़ रहा है, उससे विकासशील देशों
रोबोटिक्स और वियरेबल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अस्पतालों �
क्या अंतरराष्ट्रीय क़ानून में कोई ऐसी व्यवस्था है जिसके
आज भारत को एक ऐसे देश से चुनौती मिल रही है, जिसके नेतृत्व क�
ज़रूरत है कि अपनी सोच बदले. आत्मनिर्भर भारत के लिए ज़रूरी है
भारतीय सेना पहले भी महामारी से निपट चुकी है और कोलरा, चेचक
मूल मुद्दा आधुनिकीकरण के लिए आवंटित फंड है. अर्थव्यवस्था
भारत के थल सेनाध्यक्ष ये कहकर नहीं बच सकते हैं कि उनका बया
गुट निरपेक्षता का एक दौर था. भारत उसका हिस्सा था. वो गुट नि�
कोरोना वायरस के असर के कारण अधिकतर भारतीय कंपनियों के शे�
हेल्थकेयर सेक्टर में तकनीक का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेम�
वैसे तो सामाजिक दूरी के नतीजों के लिए लोगों को पूरी तरह से
वैसे तो सामाजिक दूरी के नतीजों के लिए लोगों को पूरी तरह से
संकट गुज़र जाने के बाद जो अर्थव्यवस्था क़ुदरती आपदा और स�
जब अमेरिकी सामाजिक दूरी के नियमों के पहले चरण को लेकर उधे�
भारत बड़ी ख़ामोशी से कोविड-19 के बाद के विश्व परिदृश्य से न�
सरकारें और कंपनियां ये समझती हैं कि वायरस के असर से निपटन�
ऑस्ट्रेलिया की अप्रवासन नीति यहां के राजनेताओं के लिए या
लग्ज़ेमबर्ग की रियासत अपनी मर्ज़ी से भी और हालात के कारण �
केवल सूचनाओं की सेंसरशिप के दायरे से आगे जाकर, मौजूदा संक�
जिस समय पूरी दुनिया इस महामारी के संकट से उबरने का प्रयास
नए कोरोना वायरस की महामारी के लिए कौन ज़िम्मेदार है, इस मु
दुनिया भर के राष्ट्र स्वाभाविक तौर पर अपनी वैश्विक आपूर्
सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों को चाहिए कि वो इस चुन�
भारत सरकार और आपदा प्रबंधन से जुड़े सभी मंत्रालयों को चा�
जब-जब तब्लीग़ी जमात जैसे संगठन को खुली छूट मिलती है, उसका �
उम्मीद करनी चाहिए कि अगली बार जब चीन बहुपक्षीय मंचों पर अ�
वायरस एक तार है जो आप सबको जोड़ता है, तोड़ता नहीं है. इसलिए