Author : Meenakshi Sharma

Published on May 28, 2020 Updated 0 Hours ago

रोबोटिक्स और वियरेबल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अस्पतालों और लैब में स्क्रीनिंग और इलाज में किया जा सकता है जिससे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को ख़तरनाक रोगाणुओं से बचाया जा सके. इनका इस्तेमाल सार्वजनिक जगहों जैसे मेट्रो स्टेशन, हवाई अड्डों और मॉल को कीटाणुरहित बनाने में भी किया जा सकता है.

कोविड-19 के जवाब में भारत स्वास्थ्य सुरक्षा को तवज्जो दे

संक्रामक बीमारियों का फैलना घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य के लिए लंबे समय से ख़तरा बना रहा है. 1830 और 1847 में कोलरा की वजह से यूरोप के उजड़ने के बाद महामारी के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय जवाब का मज़बूत आधार बना. इसका मक़सद मुख्य रूप से आर्थिक हितों की रक्षा था. इसके बाद इंटरनैशनल सैनिटरी रेगुलेशन ने क्वॉरन्टीन के नियम बनाए और इसकी वजह से इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (IHR) बना ताकि वैश्विक स्तर पर लोगों को स्वास्थ्य की सुरक्षा मिले. 2003 में SARS की रोकथाम में नाकाम होने के बाद 2005 में IHR का कार्यक्षेत्र बढ़ा दिया गया. लेकिन इसके बावजूद H1N1 इन्फ्लुएंजा, पश्चिमी अफ्रीका में इबोला या कोविड-19 जैसी महामारी को रोका नहीं जा सका. ये महामारी अंतर्राष्ट्रीय नियामक रूपरेखा के बावजूद हमारी स्वास्थ्य प्रणाली की कमज़ोरी को सामने लाती हैं.

कोविड-19 के बाद जब हालात सामान्य हो जाएंगे तो स्वास्थ्य सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अहम हिस्सा बन जाएगा. भविष्य के संकट से अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित करने के लिए देश स्वास्थ्य को तरजीह भी दे सकते हैं. अब जब स्वास्थ्य सुरक्षा और आर्थिक विकास का स्वाभाविक रूप से जुड़ा होना साबित हो गया है तो इस बात की सख्त ज़रूरत है कि महामारी का जवाब देने के लिए एक मज़बूत सिस्टम बनाया जाए. कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत बेहतर हालत में दिख रहा है क्योंकि फिलहाल संक्रमण के आंकड़े कम हैं- 19 अप्रैल को भारत में कोरोना के 15,715 मामले थे और 507 लोगों की मौत हो चुकी थी. लेकिन ICMR के सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी के पूर्व प्रमुख डॉक्टर जैकब जॉन के मुताबिक भारत का हेल्थकेयर ढांचा जल्द ही अस्तव्यस्त होने की आशंका है.

2014 में इबोला फैलने के दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अगले वायरल इन्फेक्शन से निपटने के लिए हेल्थकेयर पर ज़्यादा खर्च करने की नसीहत दी थी. स्वास्थ्य सुरक्षा के  ख़तरे में होने का असर हर सेक्टर पर होता है. इसी वजह से भारत को भविष्य में ऐसे संकट से निपटने के लिए बेहतर तैयारी की ज़रूरत है क्योंकि ऐसे ख़तरे की आशंका तकरीबन निश्चित है.

भारत अपने GDP का सिर्फ़ 1.28% स्वास्थ्य पर खर्च करता है, सरकारी अस्पतालों में 1844 मरीज़ों के लिए सिर्फ़ 1 बिस्तर है और डॉक्टर-मरीज़ का अनुपात 1:1445 है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि 1000 मरीज़ पर एक डॉक्टर होना चाहिए

क्षमता में बढ़ोतरी

कोविड-19 के जवाब में भारत सरकार की कमज़ोर तैयारी हमारे हेल्थकेयर के बुनियादी ढांचे में सुराख के बारे में बताता है. भारत अपने GDP का सिर्फ़ 1.28% स्वास्थ्य पर खर्च करता है, सरकारी अस्पतालों में 1844 मरीज़ों के लिए सिर्फ़ 1 बिस्तर है और डॉक्टर-मरीज़ का अनुपात 1:1445 है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि 1000 मरीज़ पर एक डॉक्टर होना चाहिए.

क्षमता में बढ़ोतरी के लिए सालाना स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी करने की सख्त ज़रूरत है तभी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल में फौरन जवाब दिया जा सकेगा. जिन चीज़ों पर ध्यान देने की ज़रूरत है उनमें अस्पताल का निर्माण, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट, टेस्टिंग किट और मास्क का रिज़र्व तैयार करना, स्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण उत्पादों की सप्लाई चेन को बढ़ाना, देश भर की लैब में टेस्टिंग की क्षमता बढ़ाना, इलाज और वैक्सीन बनाने के लिए रिसर्च और डेवलपमेंट को मज़बूत करना शामिल है. सामाजिक दूरी और साफ़-सफ़ाई के ज़रिए जहां संक्रमण को कम करना हर सरकारी पहल का लक्ष्य रहा है, वहीं हमें हेल्थकेयर सिस्टम की क्षमता भी ज़रूर बढ़ानी चाहिए.

ये भी समझदारी भरा फ़ैसला होगा कि अस्थायी रूप से रिटायर्ड स्वास्थ्यकर्मियों को भी काम में लगाना चाहिए ताकि मौजूदा हेल्थकेयर ढांचे पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े. अगर भविष्य में ज़रूरत पड़े तो भारत सरकार को इसकी तैयारी करके रखनी चाहिए.

पब्लिक प्राइवेट साझेदारी

2017-18 के राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के मुताबिक़ प्राइवेट अस्पतालों में 55% लोग भर्ती हुए (52% गांवों में जबकि 61% शहरों में). स्वास्थ्य देखभाल के संसाधनों की मांग में बढ़ोतरी को देखते हुए प्राइवेट सेक्टर के साथ साझेदारी के ज़रिए सरकार को स्वास्थ्य ढांचे को मज़बूत करना चाहिए. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के ज़रिए पहले ही इसका खाका खींचा जा चुका है. प्राइवेट सेक्टर के संसाधनों का इस्तेमाल भारत में हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़्यादा बोझ की आशंका को दूर करेगा, ख़ास तौर पर उस वक़्त जब हम महामारी का सामना कर रहे हैं.

इसके अलावा सरकार को बड़ी प्राइवेट कंपनियों और निचले स्तर तक फैले NGO के साथ भी निश्चित तौर पर साझेदारी करनी चाहिए और उनके नेटवर्क का इस्तेमाल कर दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचना चाहिए.

सामुदायिक स्तर की तैयारी

महामारी के जवाब में सरकार मौजूद सर्विस डिलीवरी मॉडल का इस्तेमाल कर वार्ड और गांव तक पहुंचे.

विकेंद्रीकृत शासन का तरीक़ा अख्तियार करना चाहिए जिसमें ग्राम पंचायतों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप-केंद्रों की देखरेख का अधिकार मिले. ऐसा करने से उनमें मालिकाना हक़ और ज़िम्मेदारी आएगी. गांवों को साथ लेकर लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के क़दमों को सरकार बेहतर ढंग से लागू कर सकती है. कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में केरल ने सामुदायिक स्तर की तैयारी के ज़रिए बेहतरीन मिसाल पेश की है.

रैपिड रेस्पॉन्स टीम

महामारी का प्रकोप कुदरत की ज़रूरी चेतावनी है. ये प्रकोप अनिश्चित ढंग से आते रहेंगे. देश के किसी एक हिस्से में महामारी दूसरे हिस्से से सिर्फ़ एक हवाई/ट्रेन यात्रा दूर है. इसलिए ज़रूरी है कि महामारी को तुरंत काबू किया जाए. महामारी विशेषज्ञ, लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, विषाणु विशेषज्ञ और स्वास्थ्यकर्मियों की निगरानी टीम को फौरन तैनात करके वायरस के संक्रमण को रोका जा सकता है. विशेषज्ञों की ये टीम जल्दी से तैनात करने पर महामारी को काबू में करने की कोशिश शुरू हो सकती है. महामारी को काबू करना उस वक़्त आसान होता है जब जल्दी पता लग जाए.

तकनीक का इस्तेमाल

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डाटा एनेलिटिक्स के ज़रिए वायरस के संक्रमण का सटीक अनुमान लगाने से कई तरह के फ़ायदे हैं. सरकार नई खोज को बढ़ावा दे और तकनीकी कंपनियों के साथ मिलकर निगरानी की क्षमता को बढ़ाए. इससे सरकार को ख़तरे का पता जल्दी चल जाएगा और इसका सामना करने के लिए बहुमूल्य जानकारी भी मिलेगी.

ये भी समझदारी भरा फ़ैसला होगा कि अस्थायी रूप से रिटायर्ड स्वास्थ्यकर्मियों को भी काम में लगाना चाहिए ताकि मौजूदा हेल्थकेयर ढांचे पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े. अगर भविष्य में ज़रूरत पड़े तो भारत सरकार को इसकी तैयारी करके रखनी चाहिए

रोबोटिक्स और वियरेबल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अस्पतालों और लैब में स्क्रीनिंग और इलाज में किया जा सकता है जिससे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को ख़तरनाक रोगाणुओं से बचाया जा सके. इनका इस्तेमाल सार्वजनिक जगहों जैसे मेट्रो स्टेशन, हवाई अड्डों और मॉल को कीटाणुरहित बनाने में भी किया जा सकता है. भीड़भाड़ वाली जगहों की निगरानी और महत्वपूर्ण मेडिकल सप्लाई की  डिलीवरी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकता है. कोविड-19 संक्रमित मरीज़ का पता लगाने के लिए सरकार का आरोग्य सेतु ऐप प्राइवेसी की चिंताओं के बावजूद सही दिशा में उठाया गया क़दम है.

महामारी को लेकर नीति आयोग को समर्थ बनाना

महामारी के आपातकाल में नीति आयोग के नेतृत्व में जवाब देने की तैयारी हो. नीति आयोग न सिर्फ़ एजेंडा बनाए बल्कि नीतिगत सिफ़ारिश भी करे. साथ ही नियमों का सख्त पालन भी सुनिश्चित करे.

2018-2019 के दौरान केंद्र और राज्य स्तर पर लोक स्वास्थ्य कैडर विकसित करने की तैयारी की  गई थी. पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी पर विकसित एक मॉडल स्वास्थ्य आपातकाल का जवाब दे सकता है.

स्वास्थ्य सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा का एक अहम हिस्सा

दुनिया भर में 23 लाख से ज़्यादा कोविड-19 के मामले और 1 लाख 60 ह़ज़ार से ज़्यादा मौतों के बाद आगे आने वाले वक़्त में कई देशों में राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे में स्वास्थ्य सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय होगा.

स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महामारी के ख़िलाफ़ रणनीति ज़रूरी है. कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत ख़तरनाक हाल में है और लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद भारत का जवाब देश में कोविड-19 संक्रमण का रुख़ तय करेगा. देश में एक मज़बूत स्वास्थ्य ढांचे की ज़रूरत है. सरकार हेल्थकेयर की क्षमता, महामारी की निगरानी और डिजिटल हेल्थ टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर ज़्यादा ज़ोर दे. साथ ही उसे सामुदायिक स्तर पर तैयारी को भी बढ़ावा देना चाहिए और सभी को मिलकर एकजुट तरीक़े से भविष्य में किसी स्वास्थ्य आपातकाल का जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए.

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