Author : R V Bhavani

Published on Jun 16, 2020 Updated 0 Hours ago

कोविड-19 की महामारी के बाद किसान और मज़दूर जब अपनी ज़िंदगी और रोज़ी रोटी के ढांचे को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास करेंगे, तो हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी.

कोविड-19 का ग्रामीण ज़िंदगी और भारत में रोज़ी-रोटी पर असर

25 मार्च 2020 से पूरे देश में लागू हुए लॉकडाउन ने पूरे ग्रामीण क्षेत्र की रीढ़ तोड़ दी है. आजीविका के संसाधनों को ख़त्म कर दिया है. भारत में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों में देश के आधे से अधिक कामकाजी लोग काम करते हैं. भारत के ज़्यादातर किसान (85 प्रतिशत) छोटे काश्तकार और अत्यंत निर्धन हैं. इनमें से ज़्यादातर के पास दो हेक्टेयर से भी कम ज़मीन है. भारत में 90 लाख से ज़्यादा मत्स्य पालक अपनी आजीविका के लिए मछली पालन पर निर्भर हैं. इनमें से 80 प्रतिशत छोटे स्तर के मत्स्य पालक हैं. मत्स्य पालन उद्योग में लगभग एक करोड़ चालीस लाख लोग काम करते हैं.

जिस वक़्त कोविड-19 की महामारी ने भारत पर हमला बोला, उस समय रबी की फ़सल पक कर कटने के लिए तैयार थी. तभी लॉकडाउन का एलान कर दिया गया और सब कुछ ठहर गया. ये सीज़न बाग़बानी उत्पादों जैसे कि काली मिर्च, कॉफ़ी और केले की फ़सल तैयार होने का भी होता है. लॉकडाउन के बाद रबी की फ़सल काटने में देर हुई. क्योंकि मज़दूर और संयंत्र (हार्वेस्टर, थ्रेशर और ट्रैक्टर) उपलब्ध नहीं थे. इसके अलावा यातायात और लोगों की आवाजाही पर तरह तरह की पाबंदियां लग चुकी थीं. फलों, सब्ज़ियों और फूलों जैसे जल्द ख़राब होने वाले उत्पादों की खेती करने वाले किसानों को तो ख़ास तौर से लॉकडाउन का सबसे अधिक ख़ामियाज़ा  भुगतना पड़ा था. ये फूलों की खेती का पीक सीज़न होता है. इस समय फूलों की मांग भी बहुत अधिक होती है. तमिलनाडु में ऐसे बहुत से किसान हैं जो नक़दी के लिए छोटे स्तर पर फूलों की खेती करते हैं, उन्हें इस फूलों की बिक्री के भारी मांग वाले सीज़न में भी भारी घाटा उठाना पड़ा है. बाग़बानी वाले उत्पादों के लिए मशहूर केरल और तमिलनाडु में भी उत्पादों की कटाई के काम में देरी हुई है. इस कारण से किसानों और मज़दूरों तक पैसे की आमद में दिक़्क़तें पेश आईं. यातायात के साधन बंद होने के कारण कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों को काम करने के लिए कहीं जाने में भी मुश्किल थी. वो कहीं भी आ जा नहीं सकते थे. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MNREGS) के तहत होने वाला काम भी बंद पड़ा है.

भारत में ग्रामीण क्षेत्र में पूंजी का महत्वपूर्ण स्रोत असंगठित क्षेत्र है. अब इस संकट से निपटने के लिए लोग ऊंची ब्याज़ दरों पर क़र्ज़ लेने को मजबूर होंगे. ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि क़र्ज़ बांटने वाले एजेंट एडवांस रक़म के लिए 24 प्रतिशत तक ब्याज़ वसूल रहे हैं

जिस वक़्त कोविड-19 की महामारी ने भारत पर हमला बोला, उस समय रबी की फ़सल पक कर कटने के लिए तैयार थी. तभी लॉकडाउन का एलान कर दिया गया और सब कुछ ठहर गया.

लॉकडाउन के कारण अंडों की क़ीमतों में भी ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई. भारत में पोल्ट्री के व्यापार के सबसे बड़े केंद्र नमक्कल में एक अंडे की क़ीमत 1.95 रुपए प्रति अंडे तक गिर गई. इस कारण से अंडों की भारी खेप बिकने के इंतज़ार में नष्ट हो गई. डेयरी और पोल्ट्री के छोटे पैमाने पर काम करने वाले किसान, जो तमिलनाडु में ठेके पर काम करते हैं, उन्हें भारी नुक़सान उठाना पड़ा है. क्योंकि बहुत से निजी ठेकेदारों ने उनके उत्पाद को लेने से इनकार कर दिया. मार्च के आख़िरी हफ़्ते से ही मछली पकड़ने वाले समंदर में नहीं जा पा रहे हैं. इस कारण से उन्हें अब इस बात की चिंता हो रही है कि हर साल मछली पकड़ने पर लगने वाला 45 दिनों का प्रतिबंध भी लगा, तो उनका क्या होगा. ये प्रतिबंध, भारत के पूर्वी तट पर अप्रैल के मध्य में लगाया जाता है. समुद्र तटीय इलाक़ों और झीलों व तालाबों में मछली पालने वालों पर भी लॉकडाउन का बेहद बुरा असर पड़ा है. क्योंकि मज़दूरों की अनुपलब्धता के कारण उत्पाद बाज़ार में नहीं जा सके. बाज़ार बंद होने और आवाजाही पर पाबंदियों का भी इन पर बुरा असर पड़ा है. यूरोप और अमेरिका को केकड़ों का निर्यात बंद हो गया है. और स्थानीय स्तर पर मछली की क़ीमत में भारी गिरावट दर्ज की गई है. इस कारण से इनका कारोबार करने वालों को बहुत घाटा उठाना पड़ रहा है.

राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश के आदिवासी समुदाय खान पान और पोषण के मामले में सबसे कमज़ोर तबक़े हैं. खेती किसानी के अलावा जंगल के अन्य उत्पादों जैसे कि केंडू के पत्ते और और महुआ के फूलों को बीन कर बेचने वाले ओडिशा के आदिवासी समुदाय के लोगों को लॉकडाउन के कारण बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि बाज़ार बंद हैं और उनके द्वारा बेचे जाने वाले सामान के ख़रीदार आ नहीं रहे हैं. भारत में ग्रामीण क्षेत्र में पूंजी का महत्वपूर्ण स्रोत असंगठित क्षेत्र है. अब इस संकट से निपटने के लिए लोग ऊंची ब्याज़ दरों पर क़र्ज़ लेने को मजबूर होंगे. ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि क़र्ज़ बांटने वाले एजेंट एडवांस रक़म के लिए 24 प्रतिशत तक ब्याज़ वसूल रहे हैं. ये रक़म फलों और सब्जियों की खेती के बाद लौटानी थी. लेकिन, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा पड़ने की वजह से किसान अपने उत्पाद बेच नहीं पाए और अब वो समय पर क़र्ज़ नहीं चुका पा रहे हैं.

भारत में ग्रामीण क्षेत्र में पूंजी का महत्वपूर्ण स्रोत असंगठित क्षेत्र है. अब इस संकट से निपटने के लिए लोग ऊंची ब्याज़ दरों पर क़र्ज़ लेने को मजबूर होंगे. ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि क़र्ज़ बांटने वाले एजेंट एडवांस रक़म के लिए 24 प्रतिशत तक ब्याज़ वसूल रहे हैं

हालांकि सरकार ने मार्च महीने के आख़िर में खेती और मत्स्य पालन करने वालों को लॉकडाउन से कई तरह की रियायतें देने का एलान किया था. लेकिन, ज़मीनी स्तर पर इन रियायतों के पहुंच पाने और उन्हें लागू करने में कई कमियां देखने को मिली हैं. इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्र के ग़रीबों और ज़रूरतमंद लोगों तक नक़द और दूसरी तरह की मदद पहुंच पाने में काफ़ी मुश्किलें आ रही हैं. तमाम मीडिया रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती हैं. नागरिक क्षेत्र को तमाम संगठन और ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन इन हालात में कमज़ोर तबक़े के लोगों को हर मुमकिन मदद पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. जैसे कि एम. एस. स्वामीनाथ रिसर्च फ़ाउंडेशन इन मुश्किल वक़्तों में तमाम कमज़ोर समुदायों को मदद पहुंचा रहा है. तकनीक की मदद से खेती के बारे में सलाह दे रहा है. फ़ोन के माध्यम से किसानों के सवालों के जवाब दे रहा है. उन्हें अपने उत्पाद बाज़ार तक पहुंचाने और बेचने में मदद कर रहा है. इसके लिए ये फ़ाउंडेशन किसान उत्पादक संगठनों की मदद ले रहा है. कोविड-19 को लेकर जागरूकता के अभियान भी चलाए जा रहे हैं. साथ ही साथ बहुत से गांवों में सावधानी बरतने की जानकारी देने वाले अभियान भी चलाए गए हैं.

लॉकडाउन बढ़ाने के बाद भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों में कृषि, बाग़बानी, पशुपालन, पोल्ट्री, मत्स्य पालन और इनसे जुड़े कामों को लॉकडाउन की पाबंदियों के रियायतें दी गई हैं. इन क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूर काम के लिए जा सकते हैं. इनके बाज़ार खोले जा सकते हैं. उत्पादों की ख़रीद फ़रोख़्त का काम हो सकता है. कृषि क्षेत्र के लिए आवश्यक सामान और एग्रो प्रोसेसिंग सेंटर भी काम कर सकते हैं. इसके अलावा मनरेगा के तहत काम भी शुरू किया गया है. गृह मंत्रालय के इन दिशा निर्देशों की जानकारी ज़मीनी स्तर पर पहुंचाना और उसे लागू करना बेहद महत्वपूर्ण है. ताकि किसान रबी की फ़सल को खेतों से बाज़ार तक पहुंचा सकें और ख़रीफ़ सीज़न की तैयारी शुरू कर सकें.

कोविड-19 की महामारी के बाद किसान और मज़दूर जब अपनी ज़िंदगी और रोज़ी रोटी के ढांचे को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास करेंगे, तो हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी. जो प्रवासी मज़दूर शहरों से सुरक्षित लौट पाने में सफल रहे हैं, उन्हें भी वापस जाने में आसानी होगी. हो सकता है कि कई मज़दूर वापस जाना ही न चाहें

कोविड-19 की महामारी के बाद किसान और मज़दूर जब अपनी ज़िंदगी और रोज़ी रोटी के ढांचे को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास करेंगे, तो हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी. जो प्रवासी मज़दूर शहरों से सुरक्षित लौट पाने में सफल रहे हैं, उन्हें भी वापस जाने में आसानी होगी. हो सकता है कि कई मज़दूर वापस जाना ही न चाहें. क्योंकि उन्हें लॉकडाउन के दौरान बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. आज ज़रूरत राहत और पुनर्वास के कार्यक्रमों की है. ताकि प्रभावित लोग फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकें और सम्मान की ज़िंदगी जी सकें. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और नियमित रूप से हाथ धोने जैसे रोकथाम वाले उपाय आगे भी जारी रखने होंगे, ताकि कोविड-19 की महामारी की रोकथाम हो सके. अब जब हम कुछ प्रतिबंधों और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ जीवन जीने की आदत डाल रहे हैं, तो राज्य सरकारों को मानवीय दृष्टि वाले उपायों को लागू करने का प्रयास सघनता से करना होगा. इसके अलावा मदद के कुछ उपायों जैसे कि (सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सबसे लिए लागू करना, हर ज़रूरतमंद को मदद उपलब्ध कराना ताकि कोई भी भूखा न मरे और अफ़सरशाही की बाधाओं को दूर करना, ताकि राशन कार्ड के बिना भी कोई अन्न प्राप्त कर सके). इसके अलावा ज़रूरतमंद लोगों को नक़द राशन उपलब्ध कराने की भी ज़रूरत होगी जैसे कि पीएम किसान सम्मान निधि की रक़म बढ़ाना. इसे अभी के छह हज़ार रुपए सालाना से बढ़ा कर पंद्रह हज़ार रुपए सालाना किए जाने की ज़रूरत है. और इसकी पहली किस्त ख़रीफ़ के सीज़न से पहले किसानों तक पहुंचाई जानी चाहिए. इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र के साहूकारों द्वारा किसानों और दूसरे लोगों से बहुत ब्याज़ वसूलने पर भी रोक लगाने की ज़रूरत है. कृषि एवं लघु, मध्यम व सूक्ष्म उद्योगों को एक तिमाही के क़र्ज़ पर ब्याज़ माफ़ किया जाना चाहिए. उन्हें अधिक रक़म उपलब्ध कराना चाहिए. साथ ही फूलों, फलों, सब्ज़ियों और मछली के उत्पादों के नष्ट होने से हुए नुक़सान की भरपाई करने का भी प्रयास किया जाना चाहिए. इसके अलावा सरकार को चाहिए कि वो मनरेगा का दायरा बढ़ाए ताकि इस योजना के तहत लोग किसानों के खेतों में खड़ी फसल की कटाई में भी काम कर सकें. इसके अलावा, ऐसे प्रयास भी होने चाहिए कि मनरेगा के तहत काम करने वाले लोग, महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों में भी मदद कर सकें.


यह लेख एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फ़ाउंडेशन द्वारा ज़मीनी अध्ययन पर आधारित है. और अधिक जानकारी यहां उपलब्ध है:

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