Published on May 08, 2020 Updated 0 Hours ago

हेल्थकेयर सेक्टर में तकनीक का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल ख़ासतौर पर टेलीमेडिसिन सेंटर की स्थापना नई शुरुआत का पहला व्यावहारिक क़दम हो सकता है.

कोविड-19: पूर्वोत्तर भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल

भारत में कोविड-19 महामारी फैलने के साथ ये वक़्त है पूर्वोत्तर भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के हालात का जायज़ा लेने का. पूर्वोत्तर भारत में 8 सीमावर्ती राज्य हैं जिनमें असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम शामिल हैं. किसी भी स्वास्थ्य आपदा से निपटने में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं लेकिन पूर्वोत्तर के लोग सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा के बुनियादी ढांचे को लेकर चिंतित हैं. लोगों का आमतौर पर मानना है कि मौजूदा सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं और क्वालिटी भी ठीक नहीं है. देश में कोविड-19 के मामले बढ़ने के बाद लोगों का अविश्वास और बढ़ गया और ये इलाक़ा महामारी के जोखिम से अलग नहीं है. सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल देखते हुए लोगों को डर है कि कोविड-19 का असर विनाशकारी हो सकता है.

इस इलाक़े में वायरस का पहला मामला उस वक़्त आया जब एक कोविड-19 पॉज़िटिव अमेरिकी पर्यटक ने असम का दौरा किया. पर्यटक के संपर्क में आए क़रीब 400 लोगों को क्वॉरन्टीन किया गया और एहतियात बरतते हुए उनका टेस्ट हुआ. अच्छी बात ये है कि सभी टेस्ट के नतीजे निगेटिव आए. इसके बावजूद इस घटना ने इलाक़े के ख़तरे को उजागर किया और राज्य सरकारों ने सक्रिय रूप से एहतियाती क़दम उठाए. चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल जैसे दूसरे देशों के साथ इस क्षेत्र की सीमा लगने की वजह से अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर को सील कर दिया गया ताकि दूसरे देशों से वायरस नहीं आ पाए. ध्यान देने की बात है कि चीन पूरी दुनिया में कोविड-19 से सबसे प्रभावित देशों में शामिल है. हवाई अड्डों पर कड़ी निगरानी की जा रही है ख़ासतौर पर इलाक़े से बाहर से आने वाले लोगों के लिए. इसके अलावा मणिपुर, मिज़ोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों- जहां इनर लाइन परमिट सिस्टम लागू है- ने इलाक़े के बाहर के लोगों को एंट्री परमिट देने पर रोक लगा दी है. इन क़दमों के शुरुआती नतीजे सफल रहे हैं और काफ़ी हद तक बीमारी को फैलने से रोक दिया गया है.

टेस्टिंग की सुविधा वाले प्रमुख अस्पतालों में असम के गुवाहाटी का गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज, असम के डिब्रूगढ़ का रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर, मेघालय के शिलांग का NEIGRI हेल्थ एंड मेडिकल साइंस (NEIGRIMS), मणिपुर के इंफाल का JN इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस हॉस्पिटल और त्रिपुरा के अगरतला का गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज शामिल हैं. लेकिन क्षेत्र के लोगों का मानना है कि अगर संकट बढ़ा तो उससे निपटने में ये क़दम पर्याप्त नहीं होंगे

इस क्षेत्र में वायरस संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए विशेष स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था की गई है. जो क़दम उठाए गए हैं उनमें स्पेशल आइसोलेशन वार्ड शुरू करना और अस्पतालों में टेस्टिंग की सुविधा शामिल है. टेस्टिंग की सुविधा वाले प्रमुख अस्पतालों में असम के गुवाहाटी का गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज, असम के डिब्रूगढ़ का रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर, मेघालय के शिलांग का NEIGRI हेल्थ एंड मेडिकल साइंस (NEIGRIMS), मणिपुर के इंफाल का JN इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस हॉस्पिटल और त्रिपुरा के अगरतला का गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज शामिल हैं. लेकिन क्षेत्र के लोगों का मानना है कि अगर संकट बढ़ा तो उससे निपटने में ये क़दम पर्याप्त नहीं होंगे. उनके डर की मुख्य वजह सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत है ख़ासतौर पर गंभीर बीमारी की हालत में.

कुछ प्रमुख मेडिकल संस्थानों जैसे गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज, NEIGRIMS और क्षेत्र के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेज डिब्रूगढ़ के असम मेडिकल कॉलेज (जिसे मेडिकल स्कूल के तौर पर 1870 में शुरू किया गया था) को छोड़ दें तो यहां सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं देश में सबसे कम विकसित हैं. भारत में किसी व्यक्ति को स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए तीन स्तर का सिस्टम (प्राथमिक, ज़िला स्तर और राज्य स्तर) है. प्राथमिक सिस्टम में स्वास्थ्य उपकेंद्र पहले आता है जहां लोग इलाज के लिए सबसे पहले जाते हैं. किसी स्वास्थ्य उपकेंद्र को चलाने का काम एक महिला नर्स (ANM) और एक पुरुष स्वास्थ्यकर्मी करता है. इस सिस्टम में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) दूसरे नंबर पर है जो 6 उपकेंद्रों पर नियंत्रण रखता है. PHC में तुरंत इलाज और बुनियादी स्वास्थ्य ज़रूरत के लिए 4-6 बेड होने चाहिए. प्राथमिक सिस्टम में तीसरा नंबर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का आता है. यहां कम-से-कम 4-6 डॉक्टर जिनमें 1 सर्जन, 1 फिज़िशियन, 1 स्त्री रोग विशेषज्ञ और 1 बाल रोग विशेषज्ञ के अलावा कम-से-कम 21 स्वास्थ्यकर्मी होने चाहिए. सेहत से जुड़ी किसी भी ज़रूरत के लिए लोगों को सबसे पहले इन सुविधाओं पर निर्भर होना चाहिए. यहां से लोगों को दूसरे स्तर के संस्थानों में रेफर किया जा सकता है जो आमतौर पर बड़े शहरों में होते हैं जैसे गुवाहाटी, शिलांग या डिब्रूगढ़. लेकिन पूर्वोत्तर में इन बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है. असम में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ज़रूरत से 50% कम हैं. इसी तरह त्रिपुरा में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ज़रूरत से 17% कम है. 

पूर्वोतर में ज़रूरत से 36,009 डॉक्टर कम हैं. प्रशिक्षित नर्स की कमी भी 66% है. 1,483 लोगों पर 1 नर्स है जो राष्ट्रीय औसत 890 से ज़्यादा है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1000 लोगों पर 2 नर्स होने चाहिए

इन परेशानियों में बढ़ोतरी कुशल स्वास्थ्यकर्मियों जैसे डॉक्टर, विशेषज्ञ, महिला स्वास्थ्य कर्मी की कमी से भी होती है. पूर्वोतर में ज़रूरत से 36,009 डॉक्टर कम हैं. प्रशिक्षित नर्स की कमी भी 66% है. 1,483 लोगों पर 1 नर्स है जो राष्ट्रीय औसत 890 से ज़्यादा है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1000 लोगों पर 2 नर्स होने चाहिए.

इसके अलावा जांच-पड़ताल की भी दिक़्क़तें हैं क्योंकि कई ज़िला मुख्यालयों में डायग्नोस्टिक सुविधा नहीं है. इसके अलावा ज़िला अस्पतालों में हमेशा संतोषजनक सुविधाएं नहीं रहती हैं. इन संस्थानों में से कई ऐसे हैं जहां जान बचाने के लिए ज़रूरी चीज़ें जैसे वेंटिलेटर और विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी है. उदाहरण के लिए दक्षिण असम के बड़े रेफरल अस्पताल सिलचर मेडिकल कॉलेज में कार्डियोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन नहीं हैं जबकि यहां इलाज कराने के लिए असम की सीमा से सटे त्रिपुरा, मिज़ोरम और मणिपुर के इलाक़ों से भी लोग आते हैं.

पूर्वोत्तर की पहाड़ी भौगोलिक स्थिति की वजह से अक्सर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच मुश्किल हो जाती है. अक्सर इलाज कराने के लिए जाने में काफ़ी समय लगता है और ये दुखदायक होता है. इसकी वजह से गुवाहाटी और शिलांग जाकर अच्छा इलाज कराना एक चुनौती है. लॉकडाउन की वजह से डर है कि मुश्किल हालात में इलाज के लिए बड़े शहर जाना अब और भी कठिन हो जाएगा.

प्राइवेट सेक्टर में भी अच्छे स्वास्थ्यकर्मियों, बुनियादी ढांचे और भरोसे की कमी है. पूर्वोत्तर में स्वास्थ्य सेवा की हालत ख़स्ता होने की वजह से तबियत बेहद ख़राब होने पर यहां के लोगों को अक्सर दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है ख़ासतौर पर दक्षिण भारतीय राज्यों में

हाल में पूर्वोत्तर की स्वास्थ्य सुविधा में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है. प्राइवेट सेक्टर के कुछ अस्पताल अच्छी सेवाएं दे रहे हैं लेकिन इसके बावजूद समस्याएं और बाधाएं बनी हुई हैं. प्राइवेट सेक्टर के अस्पताल मुख्य रूप से बड़े शहरों में हैं. इसकी वजह से वो आम लोगों की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते. प्राइवेट सेक्टर में भी अच्छे स्वास्थ्यकर्मियों, बुनियादी ढांचे और भरोसे की कमी है. पूर्वोत्तर में स्वास्थ्य सेवा की हालत ख़स्ता होने की वजह से तबियत बेहद ख़राब होने पर यहां के लोगों को अक्सर दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है ख़ासतौर पर दक्षिण भारतीय राज्यों में.

उम्मीद की जानी चाहिए कि कोविड-19 त्रासदी से राज्य सरकारें सबक़ सीखेंगी और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने पर काम करेंगी. हेल्थकेयर सेक्टर में तकनीक का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल ख़ासतौर पर टेलीमेडिसिन सेंटर की स्थापना नई शुरुआत का पहला व्यावहारिक क़दम हो सकता है. 

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