Author : Shoba Suri

Published on May 28, 2020 Updated 0 Hours ago

कोरोना वायरस जिस तेज़ी से बढ़ रहा है, उससे विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा, कुपोषण और ग़रीबी बढ़ने की आशंका है. ख़ास तौर पर समाज के कमज़ोर तबक़े के लोगों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए ये बीमारी गंभीर चुनौती लेकर आई है.

कोविड-19 के दौरान बच्चों की खाद्य सुरक्षा: चिंता का एक विषय

संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में जारी किए गए नीतिगत दस्तावेज़ के अनुसार, हालांकि इस समय बच्चों में कोरोना वायरस की महामारी उस तेज़ी से नहीं फैल रही है. लेकिन, इसकी रोकथाम के लिए जो लॉकडाउन लगाए जा रहे हैं, उनके आर्थिक दुष्प्रभावों के कारण वर्ष 2020 में पिछले कुछ वर्षों के मुक़ाबले ज़्यादा बच्चों की मौत हो सकती है. इस कारण से हमने पिछले कुछ वर्षों में बच्चों की मौत की रफ़्तार रोकने में जो सफलता प्राप्त की है, वो हमारे हाथ से निकल सकती है.

भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. साथ ही साथ इस वायरस से मरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. अब तक देश में इसके मरीज़ों की संख्या एक लाख से अधिक हो चुकी है. जबकि मरने वालों का आंकड़ा तीन हज़ार को पार कर चुका है. बहुत सी रिसर्च में ये बात कही जा चुकी है कि कोविड-19 की वजह से बुज़ुर्गों की जान जाने की आशंका अधिक होती है. क्योंकि उन्हें पहले से भी कई अन्य बीमारियां हो सकती हैं. ये सभी व्यक्तियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है. जिनका इम्यून सिस्टम कमज़ोर होता है, उनके इस वायरस के शिकार होने की आशंका अधिक होती है. लोगों के पोषक तत्व खाने और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता के बीच भी गहरा संबंध पाया गया है. इसी कारण से जो लोग कुपोषण के शिकार हैं, उनके कोविड-19 का शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है. कोविड-19 एक दुधारी तलवार है. ये कुपोषित लोगों को भी प्रभावित करता है और मोटे और ज़्यादा वज़न वाले लोगों को भी अपना शिकार बनाता है. ये लोग ऐसी बीमारियों के भी शिकार होते हैं, जो संक्रामक नहीं होती हैं. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘कोरोना वायरस जिस तेज़ी से बढ़ रहा है, उससे विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा, कुपोषण और ग़रीबी बढ़ने की आशंका है. ख़ास तौर पर समाज के कमज़ोर तबक़े के लोगों और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए ये बीमारी गंभीर चुनौती लेकर आई है.’

अब ये बात समझना महत्वपूर्ण है कि ये वायरस किस तरह से कमज़ोर बच्चों, गर्भवती और बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं को अपना शिकार बना रहा है.

चीन में कोरोना वायरस के शिकार अधिकतर बच्चों में इस वायरस के संक्रमण के लक्षण या तो बिल्कुल ही नहीं होते, या बहुत हल्के लक्षण दिखते हैं. जिन बच्चों में इस वायरस का संक्रमण हुआ उनकी औसत आयु 6.7 वर्ष थी

एक समीक्षा के अनुसार, कोरोना वायरस से बच्चों के बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका कम ही है. बच्चों में इसके संक्रमण के लक्षण बहुत हल्के होते हैं और उनमें इससे भयंकर बीमारी होने का डर कम ही होता है. एक अन्य अध्ययन इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि हर उम्र के बच्चे कोरोना वायरस के संक्रमण के शिकार होते हैं. लेकिन, उनमें इनके व्यापक लक्षण, वयस्कों के मुक़ाबले कम ही देखने को मिलते हैं. चीन में कोरोना वायरस के शिकार अधिकतर बच्चों में इस वायरस के संक्रमण के लक्षण या तो बिल्कुल ही नहीं होते, या बहुत हल्के लक्षण दिखते हैं. जिन बच्चों में इस वायरस का संक्रमण हुआ उनकी औसत आयु 6.7 वर्ष थी. बच्चों में इस बात की संभावना अधिक होती है कि वो वायरस से संक्रमित होने के बाद एंटीबॉडी विकसित कर लेते हैं, ताकि तरह तरह की सांस संबंधी बीमारियों के शिकार होने से ख़ुद को बचा लें. लेकिन, इन सब तथ्यों के बावजूद इस आशंका को ख़ारिज नहीं किया जा सकता है कि बच्चों को भी कोरोना वायरस अपना शिकार बना सकता है.

अपनी कमज़ोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण कुपोषित बच्चों के, संक्रामक रोगों के शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है. उनके बीच मौत की दर भी अधिक होती है. बच्चों के पोषण का स्तर और संक्रमण से लड़ने की क्षमता का आपस में मज़बूत संबंध होता है और बच्चों में इस पर विशेष रूप से ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है. कुपोषण के कारण संक्रमण होने का ख़तरा बढ़ जाता है. और संक्रमण के कारण खान पान कम हो जाता है, जिससे कुपोषण की स्थिति और भी ख़राब हो जाती है. भारत में बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं. जैसे कि समेकित बाल विकास सेवाएं और मिड डे मील योजना. फिर भी यहां पर बच्चों के बीच कुपोषण की समस्या बहुत अधिक है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) के अनुसार पांच साल से कम उम्र के बच्चों में विकास न होने की समस्या 38.4 प्रतिशत है. तो उनके थकान के शिकार होने की समस्या 21 प्रतिशत बच्चों में है. और उम्र के अनुपात में वज़न कम होने की समस्या 35.8 फ़ीसद बच्चों में देखी गई है. बच्चों का विकास रुकने के मामले में अफ्रीका के बाद भारत का नंबर दूसरा है. थकान के शिकार बच्चों की संख्या के मामले में भी अफ्रीका के बाद भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आता है.

भारत में भुखमरी की समस्या की स्थिति भयंकर है. इस बात की आशंका अधिक है कि लॉकडाउन के दौरान लोग कोरोना वायरस से कम और भुखमरी से अधिक मरेंगे.

कुपोषण की दिक़्क़त के साथ साथ भुखमरी की समस्या भारत के लिए इस चुनौती को और बढ़ा देती है. 2019 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार, भारत में भुखमरी की समस्या की स्थिति भयंकर है. इस बात की आशंका अधिक है कि लॉकडाउन के दौरान लोग कोरोना वायरस से कम और भुखमरी से अधिक मरेंगे. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की ख़राब स्थिति इस बात को प्रदर्शित करती है कि छह से 23 महीने की उम्र वाले बच्चों में केवल 9.6 प्रतिशत को न्यूनतम स्वीकार्य भोजन प्राप्त हो पाता है. और वो पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण के शिकार होते हैं.

भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी, मरीज़ों के भारी दबाव और शहरी व ग्रामीण क्षेत्र के फ़र्क़ जैसी चुनौतियों की शिकार है. बच्चों का उचित विकास न होने के मामले में भी भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर स्पष्ट दिखता है. ग्रामीण क्षेत्रों में अविकसित बच्चों की संख्या ज़्यादा है. इसकी वजह शायद ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति है. जिस कारण से उनके संक्रमणों के शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है. किसी भी स्वास्थ्य केंद्र पर भीड़ होने को बीमारियां फैलने और स्वास्थ्य को ख़तरे का बड़ा कारण माना जाता है. जिन जगहों पर आबादी का घनत्व अधिक है और साफ सफाई की सुविधाओं की कमी है, वहां पर किसी महामारी के फैलने का सबसे अधिक दुष्प्रभाव दिखता है. धारावी में तेज़ी से फैला कोविड-19 का संक्रमण इस बात का प्रतीक है कि ऐसी जगहों में संक्रमण को फैलने से रोकना कितनी बड़ी चुनौती बन सकता है.

कोरोना वायरस के प्रकोप और इसकी रोकथाम के लिए लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन का भारत के कमज़ोर तबक़े के लोगों पर बहुत बुरा असर देखने को मिला है. कोविड-19 की महामारी ने लोगों की ज़िंदगियों और उनकी रोज़ी रोटी को ख़तरे में डाल दिया है. खाने पीने के सामान की कमी, लॉकडाउन की वजह से आपूर्ति श्रृंखला की राह में आ रही बाधाओं ने खाने पीने के सामान पर पहुंच को दूभर बना दिया. इससे ख़ाद्य सुरक्षा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है. भारत में पहले से मौजूद ग़रीबी और कुपोषण की समस्या के कारण, कोरोना वायरस के प्रकोप और लॉकडाउन का आर्थिक दुष्प्रभाव और भी गहरा हो सकता है. इससे असंगठित क्षेत्र के कामगारो की आमदनी ख़त्म हो सकती है.

आमदनी का खाने पीने के सामान की मांग से सीधा संबंध है. और कोविड-19 की महामारी के कारण लोगों की आमदनी को क्षति पहुंची है. इससे खपत भी कम हुई है. कृषि क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का रीढ़ रहा है. कृषि क्षेत्र में देश की आधी से अधिक कामकाजी आबादी को रोज़गार मिलता है. और ये देश की जीडीपी में 17 प्रतिशत का योगदान करती है. कोविड-19 ने कृषि और खाद्य क्षेत्र को विशेष तौर पर प्रभावित किया है. कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने और उसके बाद लगे लॉकडाउन का देश के पोल्ट्री उद्योग पर बहुत बुरा असर पड़ा है.

अपनी 1.3 अरब की आबादी के चलते भारत में सबसे अधिक कम पोषण वाली जनसंख्या रहती है. ये लोग खाने के लिहाज़ से असुरक्षित हैं. कोविड-19 के कारण इन लोगों की चुनौतियां और भी बढ़ गई हैं. कोविड-19 के कारण आर्थिक स्थिति में गिरावट देखी जा रही है. और ग़रीबी के मौजूदा स्तर के कारण भारत में खाद्य असुरक्षा की स्थिति और विकराल हो सकती है. लॉकडाउन के कारण भारत के खाद्य सुरक्षा प्रदान करने वाले कार्यक्रमों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है. समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) के तहत तीन से छह वर्ष की आयु वाले बच्चों को पूरक पोषक पदार्थ उपलब्ध कराए जाते हैं. ये बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों में आते हैं. इसके अलावा इस योजना के तहत बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं और तीन साल से कम उम्र के बच्चों को घर ले जाने के लिए राशन उपलब्ध कराया जाता है जो उनकी रोज़ाना के पोषण की ज़रूरतों के एक हिस्से को पूरा करता है. लेकिन, लॉकडाउन के कारण आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को जो खाना पका कर गर्म परोसा जाता है, उस योजना में बाधाएं खड़ी हो गई हैं.

अगर हम अभी सक्रिय नहीं हुए, तो विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि आगे चलकर देश में भयंकर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि हो सकती है. इस कारण से उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रभावित होगी. भारत पर इसका दूरगामी सामाजिक आर्थिक दुष्प्रभाव देखने को मिलेगा

ओडिशा, तेलंगाना, उत्तराखंड और केरल में महिला और बाल विकास विभाग ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से कहा है कि वो खाने के हक़दार लोगों को राशन उनके घर पर उपलब्ध कराएं. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी है कि वो लोगों को उपलब्ध कराया जाने वाला गर्म मिड डे मील या सुरक्षा भत्ता मुहैया कराएं ताकि लॉकडाउन के दौरान छात्रों की पोषण की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके. लेकिन, इन दिशा निर्देशों के अनुपालन में एक बड़ी कमी देखी जा रही है. आदेशों और नागरिक संगठनों के आगे आकर पूरक पोषण वाली चीज़ें (पंजीरी, पौष्टिक लड्डू) उपलब्ध कराने का प्रयास करने के बावजूद इन सामानों की आपूर्ति में कमी महसूस की जा रही है. सरकार ने ग़रीबों को राहत देने के लिए 1.70 लाख करोड़ के पैकेज का एलान किया है. इसके अंतर्गत ग़रीब परिवारों की प्रोटीन की ज़रूरत पूरी करने के लिए दालें मुहैया कराने का विकल्प भी शामिल है.

कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण बच्चे पोषक तत्वों की उपलब्धता से महरूम हो रहे हैं. और परिवारों की आमदनी ख़त्म हो जाने से बच्चो को पेट भर खाना भी मुहैया नहीं हो पा रहा है. इसीलिए आज ज़रूरत इस बात की है कि खाने की उपलब्धता सुनिश्चित करने वाली मौजूदा व्यवस्था को मज़बूत किए जाने की ज़रूरत है. इसके अलावा ग़रीब तबक़े के लोगों को हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रति लगातार जागरूक करने रहने की आवश्यकता है. अगर हम अभी सक्रिय नहीं हुए, तो विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि आगे चलकर देश में भयंकर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि हो सकती है. इस कारण से उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रभावित होगी. भारत पर इसका दूरगामी सामाजिक आर्थिक दुष्प्रभाव देखने को मिलेगा.

हमें त्वरित रूप से क़दम उठाने होंगे जैसा कि कोविड-19 की महामारी को लेकर एशिया और प्रशांत क्षेत्र में पोषण पर साझा बयान में भी कहा गया है. इस बयान में स्वस्थ भोजन उपलब्ध कराने की दिशा में छह प्रमुख उपाय सुझाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं. बच्चों में थकान की समस्या का प्रबंधन, छोटे पोषक तत्वों की उपलब्धता, स्कूलों में बच्चों को खाना और पोषक तत्व उपलब्ध कराना और पोषण को लेकर निगरानी शामिल है.

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