Author : Khalid Shah

Published on May 07, 2020 Updated 0 Hours ago

वैसे तो सामाजिक दूरी के नतीजों के लिए लोगों को पूरी तरह से आईसोलेशन में रहना चाहिए लेकिन ऐसा समाज के ग़रीब और कमज़ोर लोगों को भगवान के भरोसे या ताक़त का इस्तेमाल करने की फिराक में लगे बेपरवाह पुलिसवाले के हवाले करके नहीं हो सकता.

कोविड-19: जम्मू-कश्मीर से लॉकडाउन का सबक़

कोविड-19 महामारी को काबू करने के लिए विश्व के सबसे बड़े लॉकडाउन से गुज़र रहे भारत की केंद्र और राज्य सरकारों को कुछ महत्वपूर्ण सबक़ सीखने की ज़रूरत है ताकि इसे कामयाब बनाया जा सके. लॉकडाउन ने कुछ ही दिनों के भीतर भारत में आंतरिक सुरक्षा के अगले मोर्चे में दरार का पर्दाफ़ाश कर दिया है जिसकी वजह से पूरी कोशिश बेकार हो जाने का ख़तरा है.

कश्मीर को छोड़ दें तो देश के बाक़ी हिस्से के लोगों ने हर साल कई हफ़्तों तक कर्फ्यू नहीं देखा है. ज़्यादातर लोग तो शायद ये भी नहीं जानते होंगे कि कर्फ्यू का मतलब क्या होता है और इससे कैसे निपटें. कश्मीर में लोगों को लॉकडाउन में रहने की आदत हो गई है

देशव्यापी लॉकडाउन एक सुरक्षा ऑपरेशन है- शायद भारत के इतिहास में सबसे बड़ा. इतने व्यापक स्तर की देशबंदी जहां 130 करोड़ लोग अपने-अपने घरों में क़ैद हैं, बिना मुनासिब सुरक्षा योजना के लागू नहीं की जा सकती. तथाकथित ‘जनता कर्फ्यू’ एक या दो दिनों के लिए सफल हो सकती है लेकिन लॉकडाउन जो कई हफ़्तों तक लागू रह सकता है, शायद कुछ महीनों के लिए भी, वहां सरकार के पास दीर्घकालीन रणनीति होनी चाहिए जिसमें कुछ नीतिगत नरमी की जगह भी होनी चाहिए. अभी तक हमने जो देखा है वो क़रीब-क़रीब कर्फ्यू की तरह है जिसमें लोगों की भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है.

कश्मीर को छोड़ दें तो देश के बाक़ी हिस्से के लोगों ने हर साल कई हफ़्तों तक कर्फ्यू नहीं देखा है. ज़्यादातर लोग तो शायद ये भी नहीं जानते होंगे कि कर्फ्यू का मतलब क्या होता है और इससे कैसे निपटें. कश्मीर में लोगों को लॉकडाउन में रहने की आदत हो गई है. यही हाल सुरक्षा बलों का भी है जो पूरी आबादी को लॉकडाउन में रखने की कला में पारंगत हो गए हैं. इसमें चेक प्वाइंट पर नाकेबंदी लगाने की रणनीति, किसी इलाक़े में दिक़्क़त वाली जगह की पहचान और ज़रूरी सेवाओं को इजाज़त देने की तरकीब शामिल है. ऐसे में देश के दूसरे हिस्से के लोगों से लॉकडाउन का पूरी तरह पालन करने की उम्मीद लगाना बेमानी है.

जितनी अधिक पुलिस की कार्रवाई होगी उतना आने वाले दिनों में क़ानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर बनेगा. वायरस के कारण दहशत के अलावा घर पर रहने की वजह से बेचैनी और तनाव लोगों को शारीरिक और मानसिक तौर पर एक कोने में धकेल देगी. इस हालत में लोगों को ललकारना सरकार को महंगा पड़ सकता है.

इसी वजह से हम पूरे देश में पुलिस बल को लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों की पिटाई करते देख रहे हैं. सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो सामने आए हैं जहां पुलिस ग़रीब और दीन-हीन प्रवासी मज़दूरों को लोगों के सामने पीटती हुई दिख रही है. ताक़त के ज़ोर पर कुछ समय के लिए लोगों को घरों में बंद रखा जा सकता है लेकिन एक सीमा के बाद इसमें दिक़्क़त आने लगती है. जितनी अधिक पुलिस की कार्रवाई होगी उतना आने वाले दिनों में क़ानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर बनेगा. वायरस के कारण दहशत के अलावा घर पर रहने की वजह से बेचैनी और तनाव लोगों को शारीरिक और मानसिक तौर पर एक कोने में धकेल देगी. इस हालत में लोगों को ललकारना सरकार को महंगा पड़ सकता है.

लॉकडाउन 130 करोड़ लोगों के लिए सामूहिक सज़ा नहीं बनना चाहिए. ये ज़रूरी है कि क़ानून को लागू करने में इंसानियत का ख़्याल रखा जाए. बेकार में हिंसा के इस्तेमाल से परहेज करना चाहिए क्योंकि लॉकडाउन तोड़ने वाले किसी व्यक्ति से गंभीर ख़तरा नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे लोगों को घर से निकलने के नतीजे की जानकारी नहीं होती या फिर उन्हें लंबे वक़्त तक घर में रहने की आदत नहीं होती.

साफ़ है कि लॉकडाउन को लेकर अच्छी तरह से सोचा नहीं गया. सिर्फ़ लोगों को उनके घरों में क़ैद करने पर ध्यान देकर सरकार ने अप्रत्याशित संकट खड़ा कर दिया है. सैकड़ों-हज़ारों प्रवासी मज़दूर देश के बड़े नेशनल हाइवे पर हैं और बिना खाना-पानी के पैदल चलकर सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. इसकी वजह ये है कि या तो मज़दूरों का रोज़गार छिन गया है या घर या फिर दोनों.

दिल्ली की सीमा से जो वीडियो और तस्वीरें आई हैं, उनसे पता चलता है कि सामाजिक दूरी की धज्जियां उड़ गई हैं जो कि लॉकडाउन का मुख्य उद्देश्य था. इन मज़दूरों को न सिर्फ़ वायरस के संक्रमण का ख़तरा है बल्कि अपने गांव पहुंचकर वो वहां भी संक्रमण फैला सकते हैं. प्रवासी मज़दूरों के पलायन की वजह से पैदा ये संकट एक गंभीर सवाल खड़ा करता है- क्या लॉकडाउन पहले ही नाकाम हो चुका है ?

भारत इस मामले में दोतरफा चुनौतियों से जूझ रहा है. विशाल आबादी होने की वजह से कुछ दर्जन ज़िलों में भी कम्युनिटी ट्रांसमिशन मानवीय तबाही की वजह बन जाएगा. भारत को ऐसी बर्बादी रोकने के लिए कम्युनिटी ट्रांसमिशन को हर हाल में रोकना होगा. इटली, ईरान, स्पेन और दूसरे देशों में कुछ हज़ार मौतों के साथ वायरस ने ताक़त दिखा दी है.

ऐसे में लॉकडाउन को कामयाब बनाने के लिए गृह मंत्रालय को सभी राज्यों के पुलिस बलों के लिए नये सिरे से दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए. इन दिशा-निर्देशों में ये बुनियादी बात शामिल होनी चाहिए कि लॉकडाउन क़ानून-व्यवस्था लागू करने के लिए नहीं बल्कि सामाजिक दूरी के लिए लागू किया गया है और इसमें बुनियादी इंसानी ज़रूरतों जैसे खाना, स्वास्थ्य सुविधा और रहने की जगह को लेकर कोई खलल नहीं आएगा.

दिशा-निर्देश में निचले स्तर के पुलिस अधिकारियों को साफ़-साफ़ कहा जाए कि अगर कोई घर के ज़रूरी सामानों को लाने के लिए बाहर निकले तो उसे जाने दें. लॉकडाउन की हालत में एक अधिकारी की ग़लती का ख़ामियाज़ा उस इलाक़े में रहने वाले सब लोगों को उठाना पड़ सकता है. ये साफ़-साफ़ कहना चाहिए कि मौजूदा लॉकडाउन सैन्य कर्फ्यू नहीं बल्कि लोगों को एक साथ जमा होने से रोकने और एक-दूसरे से दूरी बनाये रखने के लिए एहतियाती क़दम है. इसलिए बल प्रयोग से परहेज करना चाहिए. इसकी जगह नियम तोड़ने वालों के ख़िलाफ केस करना, जो दुकानें या दफ़्तर लॉकडाउन का उल्लंघन कर खुले उनको सील करना बेहतर उपाय हैं. इसी तरह सड़कों पर सीमा रेखा खींच देनी चाहिए जैसा कि देश के कुछ हिस्सों में किया जा रहा है ताकि रियायत के समय लोग सामाजिक दूरी बनाए रख सकें. ऐसा करने से लोगों के व्यवहार में बदलाव आएगा और इस कोशिश का नेतृत्व पुलिस और स्थानीय प्रशासन को करना चाहिए.

मौजूदा लॉकडाउन की वजह से उठे ज़्यादातर मुद्दों को जम्मू-कश्मीर में बेहतर ढंग से सुलझाया गया है. लॉकडाउन को बिना किसी दिक़्क़त के लागू करने के लिए केंद्र और दूसरे राज्य की सरकारों को जम्मू-कश्मीर प्रशासन से मदद लेनी चाहिए.

राज्य सरकारें सिर्फ सीमाओं को बंद करके ग़रीबों और असहाय लोगों को सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ नहीं दें. जिन लोगों का रोज़गार छूट गया है वो ज़रूर अपने-अपने गांव जाने की कोशिश करेंगे ताकि उन्हें शहरों में किराया और दूसरे घर की देखभाल पर खर्च न करना पड़े. राज्यों की सीमाओं पर फंसे लोगों को निकालने के लिए देशव्यापी क़दम उठाने की ज़रूरत है जिसके बाद उनको क्वॉरन्टीन करना चाहिए. जम्मू-कश्मीर पहले ही सीमा पर क्वॉरन्टीन की सुविधा दे चुका है. जम्मू-कश्मीर में लोगों को तभी जाने की इजाज़त मिलती है जब वो 14 दिनों के लिए क्वॉरन्टीन में रहने को तैयार होते हैं. ऐसी सुविधा हर राज्य की सीमा पर होनी चाहिए. जम्मू-कश्मीर का श्रीनगर ज़िला पहला पॉज़िटिव केस मिलने के बाद भारत में लॉकडाउन लागू करने वाला पहला ज़िला था. इसके बाद भी ज़रूरी सामानों की सप्लाई पर कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि प्रशासन ने पहले लगाए गए कर्फ्यू से सबक़ सीखा था. ज़रूरी सामानों के ट्रकों की आवाजाही के लिए टैक्स बिल को कर्फ्यू पास की तरह माना गया. साथ ही ट्रकों की आवाजाही रात में हो सकती है जैसा कि आम तौर पर जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू के वक़्त होता है.

मौजूदा लॉकडाउन की वजह से उठे ज़्यादातर मुद्दों को जम्मू-कश्मीर में बेहतर ढंग से सुलझाया गया है. लॉकडाउन को बिना किसी दिक़्क़त के लागू करने के लिए केंद्र और दूसरे राज्य की सरकारों को जम्मू-कश्मीर प्रशासन से मदद लेनी चाहिए.

सरकार की योजना में सामुदायिक भागीदारी को भी ज़रूर शामिल करना चाहिए. लॉकडाउन की हालत में हर व्यक्ति दूसरे के लिए सहारा होता है. सामाजिक दूरी के नियमों को तोड़े बिना ये महत्वपूर्ण है कि ऐसे रास्तों की तलाश हो जहां लोग एक-दूसरे की मदद कर सकें. वैसे तो सामाजिक दूरी के नतीजों के लिए लोगों को पूरी तरह से आईसोलेशन में रहना चाहिए लेकिन ऐसा समाज के ग़रीब और कमज़ोर लोगों को भगवान के भरोसे या ताक़त का इस्तेमाल करने की फिराक में लगे बेपरवाह पुलिसवाले के हवाले करके नहीं हो सकता.

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