Author : Prachi Mittal

Published on Jun 04, 2020 Updated 0 Hours ago

इबोला वायरस ने प्राथमिक तौर पर विकासशील अफ्रीकी देशों पर असर डाला लेकिन कोविड19 महामारी ने अमीर और विकसित देशों को भी प्रभावित किया. इसने असरदार और पर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की अहमियत को दोहराया है, ख़ासतौर से परमाणु हथियार वाले देशों में.

क्या वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड-19 के झटकों को झेल पाएगी?

कोविड19 महामारी के फैलने और लॉकडाउन लागू करने के दौरान दुनिया अचानक ठहर गई है और वैश्विक अर्थव्यवस्था नीचे की ओर गिर गई है. इस मंदी की तुलना 1930 के ग्रेट डिप्रेशन और 2008 के वित्तीय संकट से की जा रही है. संक्रमण और मरने वाले लोगों के बढ़ते मामलों ने जहां अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, स्थानीय नेताओं और प्रशासकों को हैरान कर दिया है लेकिन इसके बावजूद इस महामारी के असर का पता लगाने और इससे निपटने के लिए योजना की ज़रूरत है.

अचानक आर्थिक मंदी, एक साथ कई झटकों की तीव्रता को झेलने की वजह से भविष्य में सभी बाज़ारों और प्रोडक्ट कैटेगरी में उत्पादन और क़ीमत का नया संतुलन बनेगा. वैश्विक लॉकडाउन ने कारोबारियों और कर्मचारियों को रोज़ की ज़रूरत पूरी करने के लिए अपनी बचत का इस्तेमाल करने को मजबूर कर दिया है. आमदनी के वैकल्पिक स्रोत के अभाव में निवेश और कम होने की उम्मीद है. अर्थव्यवस्था में ये उतार-चढ़ाव वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता को बताता है.

ठीक होने का रास्ता

घरेलू अर्थव्यवस्थाओं के ठीक होने के कई रास्ते हैं- U शेप, V शेप और L शेप. V कर्व विकास दर के गिरने और संकट से पहले के स्तर पर आकर GDP पहले की तरह आने को बताता है. U कर्व बताता है कि भले ही वास्तविक विकास दर धीमा हो और फिर संकट से पहले के स्तर पर आ जाए लेकिन GDP तब भी पहले के मुक़ाबले कम ही होगी. L शेप का रास्ता सबसे खराब है. इसमें V औप U शेप से अलग विकास दर गिरती है और पहले के मुक़ाबले नीचे ही रहती है, आम तौर पर काफ़ी लंबे वक़्त तक. संकट से पहले के समय के मुक़ाबले GDP काफ़ी नीचे रहती है और वहीं पर बनी रहती है. उदाहरण के तौर पर 2008 के वित्तीय संकट के दौरान कनाडा ने ठीक होने का V शेप का रास्ता महसूस किया था जबकि अमेरिका ने U शेप का और ग्रीस ने L शेप का आर्थिक विकास महसूस किया था.


IMF के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (WEO) के मुताबिक़ 2020 में विश्व की अर्थव्यवस्था 3 प्रतिशत गिरने की उम्मीद है और विकसित अर्थव्यवस्था, उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. ये अनुमान सबसे आशावादी हालात हैं वो भी तब जब महामारी मई-जून तक काबू में आ जाएगी

सात उभरते हुए बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्था (ब्राज़ील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, रूस और दक्षिण अफ्रीका) और सात विकसित अर्थव्यवस्था (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका) की तुलना बताती है कि 2020 में इटली पर सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा. इटली का वास्तविक GDP विकास 9.1 प्रतिशत गिर जाएगा (आंकड़ा 2). अमेरिका की रिकवरी का रास्ता इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां की सरकार किस तरह के सुधार की शुरुआत करती है क्योंकि उसके वास्तविक GDP विकास दर में 5.9 प्रतिशत की कमी आएगी. 14 अप्रैल को प्रकाशित IMF के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (WEO) के मुताबिक़ 2020 में विश्व की अर्थव्यवस्था 3 प्रतिशत गिरने की उम्मीद है और विकसित अर्थव्यवस्था, उभरते बाज़ारों और विकासशील अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. ये अनुमान सबसे आशावादी हालात हैं वो भी तब जब महामारी मई-जून तक काबू में आ जाएगी. कम आशावादी हालात में हम संभवत: L शेप रिकवरी की तरफ़ चले जाएंगे. वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक ने 2021 से आगे का अनुमान नहीं लगाया है लेकिन अगर दो लगातार साल में GDP गिरती है तो L शेप रिकवरी की आशंका है.

भारत के लिए आगे क्या है

भारत के वास्तविक GDP विकास का अनुमान 1.9 प्रतिशत लगाया गया है जो चीन और इंडोनिशिया दोनों से आगे है. हालांकि ऐसा लगता है कि चीन महामारी के झटके से उबर रहा है और वो आर्थिक हालात ठीक होने के लिए U शेप रास्ता अख्तियार कर सकता है. लेकिन चीन को अपने मूल विकास की दर हासिल करने में चुनौती का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उसका अंतर्राष्ट्रीय निर्यात बाज़ार बंधनों में जकड़ा हुआ है. भारत में वायरस बहुत बाद में सक्रिय हुआ लेकिन तेज़ी से फैल रहा है. सरकार का ध्यान अभी भी सोशल डिस्टेंसिंग और सख़्त लॉकडाउन उपायों के ज़रिए बीमारी की रोकथाम पर है. लेकिन भारत के सामने एक और चुनौती है. यहां डॉक्टर-मरीज़ का अनुपात बेहद खराब है. 1445 मरीज़ों के लिए सिर्फ़ एक डॉक्टर है. इस डरावने हालात ने ध्यान और प्राथमिकता ज़िंदगी बचाने की तरफ़ मोड़ दिया है. इसकी वजह से देश की आर्थिक रिकवरी का रास्ता क्या होगा, इसका अनुमान लगाने में मुश्किल हो रही है. आने वाले कुछ दिनों में वैक्सीन की खोज की संभावना दिख नहीं रही है, ऐसे में वायरस के फैलने को काबू करना ज़रूरी हो गया है.

भारतीय संदर्भ में इनमें से किसी एक नतीजे की संभावना है. अगर कोविड19 संकट कुछ दिन तक रहा और लोग अपना काम-काज फ़ौरन शुरू करते हैं तो ये कुछ समय के लिए मांग के नुक़सान में तब्दील होगा. भारत इससे लॉकडाउन हटाकर और कुछ आर्थिक पैकेज देकर निपट सकता है. ये V शेप रिकवरी होगी. दूसरी तरफ़, अगर लॉकडाउन की वजह से लेबर फोर्स या व्यवसाय के काम-काज में बदलाव होता है (उदाहरण के लिए अगर प्रवासी मज़दूर लेबर फोर्स से बाहर हो जाते हैं या SME बंद होने के लिए मजबूर होते हैं) तो इससे GDP का नुक़सान हो सकता है. आपूर्ति में रुकावट के आकार को देखते हुए आर्थिक रिकवरी U या L शेप हो सकती है.

सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इन प्रभावित उद्योगों में काम करने वाले लोगों को कम-से-कम मूलभूत चीज़ें जैसे वेतन, बीमा और नौकरी की सुरक्षा मिले. इस तरह के उपाय न सिर्फ़ कर्मचारियों को मुश्किल समय से उबारने में मदद करेंगे बल्कि कारोबार पर दबाव भी हल्का करेंगे.

इस हालात से परहेज करने के लिए फ्री-मार्केट मॉडल की जगह सरकारी दखल को ज़रूर तरजीह देना चाहिए. सरकार को ‘हेलीकॉप्टर मनी’ की अवधारण का इस्तेमाल करना चाहिए जहां दैनिक मज़दूरों समेत ज़रूरतमंदों के खाते में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर किया जाता है. इस समय जैसे अजीब हालात सरकार को इस बात की इजाज़त देते हैं कि ग़रीबी रेखा और राशन कार्ड के तय मानकों से हटकर काम करे. लॉकडाउन की वजह से शून्य मांग के कारण होटल और पर्यटन उद्योग पर इसका ख़ासा असर पड़ने की आशंका है. सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इन प्रभावित उद्योगों में काम करने वाले लोगों को कम-से-कम मूलभूत चीज़ें जैसे वेतन, बीमा और नौकरी की सुरक्षा मिले. इस तरह के उपाय न सिर्फ़ कर्मचारियों को मुश्किल समय से उबारने में मदद करेंगे बल्कि कारोबार पर दबाव भी हल्का करेंगे. इस क़दम से वित्तीय घाटा दबाव में आएगा लेकिन कठिन समय में कठिन क़दम उठाने पड़ते हैं. कारोबार और लेबर फोर्स में रुकावट को रोकना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि लॉकडाउन की वजह से भारत में संरचनागत समस्या नहीं आए और V शेप रिकवरी के लिए ज़रूरी माहौल तैयार किया जा सके.

इबोला वायरस ने प्राथमिक तौर पर विकासशील अफ्रीकी देशों पर असर डाला लेकिन कोविड19 महामारी ने अमीर और विकसित देशों को भी प्रभावित किया. इसने असरदार और पर्याप्त प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की अहमियत को दोहराया है, ख़ासतौर से परमाणु हथियार वाले देशों में. भविष्य में इस तरह की महामारी का सामना करने के लिए सरकार मास्क, बेड, वेंटिलेटर और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए ज़रूरी दूसरे सामान की लगातार सप्लाई को सुनिश्चित करे. तैयारी वैश्विक महामारी पर निर्भर नहीं रहनी चाहिए. ऐसे हालात में आम तौर पर लोग ज़रूरी सामानों की जमाखोरी करते हैं. मांग में अचानक बढ़ोतरी को पूरा करने के लिए सरकार को दखल देना चाहिए और किसी भी तरह की कमी को पूरा करने के लिए सप्लाई चेन को सुनिश्चित करना चाहिए. इस तरह के कष्टदायक क्षणों में काम करने पर ज़ोर देना चाहिए न कि सलाह-मशविरे पर. इसलिए सरकार को फ़ौरन फ़ैसला लेना चाहिए और युद्ध स्तर पर उसे लागू करना चाहिए.

महामारी के बाद की दुनिया में वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालत- कई देशों में फिर से चालू करने की रफ़्तार, फ़ैसले लेने और उसे लागू करने पर निर्भर करेगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.