Author : Shreyans Jain

Published on May 06, 2020 Updated 0 Hours ago

संकट गुज़र जाने के बाद जो अर्थव्यवस्था क़ुदरती आपदा और स्वास्थ्य इमरजेंसी से निपटने में ज़्यादा सक्षम होंगी उसको वैश्विक निवेशक प्राथमिकता देंगे. ऐसा प्रोत्साहन पैकेज जो जलवायु और स्वास्थ्य को सबसे आगे रखता है वो टिकाऊ भविष्य, नौकरियों और बाहरी झटकों से निपटने में बेहतर तैयारी को लेकर भारत की वचनबद्धता को दिखाएगा.

कोविड-19 के लिए कितना ज़रूरी है इकोनॉमिक टास्क फोर्स

कोविड-19 को लेकर भारत में अभी तक हालात साफ़ नहीं हुए हैं और ये कहना मुश्किल है कि मामला कहां तक जाएगा. लेकिन जो चीज़ बिल्कुल साफ़ है वो ये कि भारत की पहले से सुस्त अर्थव्यवस्था पर इसका महत्वपूर्ण असर होगा. डन एंड ब्रैडस्ट्रीट के ताज़ा आर्थिक अनुमान के मुताबिक़ कई देशों में मंदी आने और कंपनियों के दिवालिया होने की आशंका बढ़ गई है और इस मामले में भारत दुनिया के दूसरे देशों से अलग नहीं रहेगा. ब्रिटेन के बार्कलेज़ ने लॉकडाउन की वजह से 120 अरब डॉलर (क़रीब 9 लाख करोड़ रुपये) या GDP के 4 प्रतिशत के नुक़सान का अनुमान लगाया है. अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडी ने 2020 के लिए भारत के विकास की दर के अनुमान में ज़बरदस्त कटौती करते हुए इसे 5.3% से घटाकर 2.5% कर दिया है. हर सेक्टर में कारोबार को नुक़सान हो रहा है और ये मध्यम और लघु उद्योगों के लिए ख़ास तौर पर कष्टदायक है.

इस हालत में बुरी तरह प्रभावित सेक्टर को वित्तीय समर्थन, वित्तीय सिस्टम को बचाने के लिए नकदी डालना और वित्तीय बाज़ार को बचाना सरकार की तात्कालिक प्राथमिकता है. सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों के लिए वित्तमंत्री पहले ही 1.7 लाख करोड़ रुपये की राहत का एलान कर चुकी हैं. उम्मीद की जा रही है कि इस राहत पैकेज से क़रीब 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त दाल और खाना बनाने के लिए 3 महीने तक गैस सिलेंडर मिलेंगे. RBI ने भी कई क़दमों का एलान किया है जिनमें बैंकों की लिक्विडिटी बढ़ाने के अलावा ब्याज दर कम करके कर्ज़दारों को राहत और कर्ज-EMI के भुगतान पर रोक लगाई गई है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संदेश में एक इकॉनमिक रिस्पॉन्स टास्क फोर्स का ज़िक्र किया. एक बार गठित होने के बाद टास्क फोर्स के सामने विकास के नये प्रतिमान को विकसित करने की चुनौती होगी, ऐसा प्रतिमान जो झटकों को आसानी से झेल सके

हालांकि आर्थिक उथल-पुथल से लड़ने के लिए तात्कालिक उपायों के अलावा सरकार को लंबे वक़्त के क़दमों पर भी ध्यान देना होगा ताकि अर्थव्यवस्था में ज़्यादा लचीलापन आ सके. इसी के मुताबिक़ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संदेश में एक इकॉनमिक रिस्पॉन्स टास्क फोर्स का ज़िक्र किया. एक बार गठित होने के बाद टास्क फोर्स के सामने विकास के नये प्रतिमान को विकसित करने की चुनौती होगी, ऐसा प्रतिमान जो झटकों को आसानी से झेल सके. ऐसा करने से निवेशकों का भरोसा हासिल करने और अर्थव्यवस्था को फिर से विकास के रास्ते पर लाने में मदद मिलेगी. फिलहाल टिकाऊ विकास के लिए दो सबसे विकट चुनौतियां जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में कमी है. जलवायु परिवर्तन से अर्थव्यवस्था को पहले से नुक़सान हो रहा है. कोविड-19 के ख़िलाफ़ लंबे वक़्त के जवाब में सेहत और मौसम को केंद्र में रखकर भारत दुनिया के सामने विकास का नया मॉडल पेश कर सकता है.

कोविड-19 संकट के ख़िलाफ़ तात्कालिक जवाब के तौर पर भारत सरकार ने टेस्टिंग सेंटर और आइसोलेशन बेड बनाने के साथ पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट और वेंटिलेटर ख़रीदने के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये (2 अरब डॉलर) आवंटित किए हैं. लेकिन एक बार हालात स्थिर होने के बाद भारत को प्राथमिक स्वास्थ्य का मज़बूत ढांचा बनाने के लिए काफ़ी खर्च करना होगा ताकि आपातकाल में अच्छा जवाब दिया जा सके. OECD के मुताबिक़ 1000 लोगों के लिए भारत में अस्पताल का सिर्फ़ एक बिस्तर है जबकि चीन में 1000 लोगों पर 4 और जापान, दक्षिण कोरिया में 12 बिस्तर हैं. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़ 1000 की आबादी पर चीन में 1.8 डॉक्टर हैं जबकि भारत में सिर्फ़ 0.8 और जापान, दक्षिण कोरिया में 2.4 डॉक्टर हैं. ये तय नतीजा है कि अस्पताल, टेस्टिंग के केंद्र, मेडिकल कॉलेज और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए ट्रेनिंग सेंटर वक़्त की ज़रूरत हैं. लेकिन बुनियादी ढांचे से आगे एक और क्षेत्र जिसे काफ़ी पैसे की ज़रूरत है वो है मेडिकल हेल्थ रिसर्च. अध्ययन से पता चला है कि रिसर्च और डेवलपमेंट से अर्थव्यवस्था पर अच्छा असर पड़ता है. उदाहरण के तौर पर मार्टिन ग्रुएबर और टिम स्टड्ट का अनुमान है कि वैज्ञानिक रिसर्च और डेवलपमेंट से आर्थिक उत्पादन में 2.8 गुना जबकि रोज़गार पर 3.4 गुना का असर पड़ता है. हालांकि, भारत में रिसर्च और डेवपलमेंट पर राष्ट्रीय सकल खर्च GDP का सिर्फ़ 0.7% है. चीन में ये खर्च 2.1% और दक्षिण कोरिया में 4.2% है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को महामारी रोकने के लिए डेवलपमेंट टूल्स के नाम पर इस साल सिर्फ़ 7 करोड़ रुपये मिले.

निवेश की ज़रूरत को देखते हुए ऐसा लगता नहीं कि हेल्थ रिसर्च के लिए सरकारी क्षेत्र का पैसा पर्याप्त होगा. ऐसे में निजी क्षेत्र की तरफ़ से ज़्यादा-से-ज़्यादा निवेश करना होगा. भारत में निजी क्षेत्र के निवेश के लिए सबसे बड़ी चुनौती सीमित बाज़ार और निवेश से मुनाफ़े को लेकर डाटा की कमी है. दूसरी तरफ़ पश्चिमी देशों के मुक़ाबले दवा के विकास में कम लागत एक अवसर पेश करता है. ब्रुकिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अलग तरह के वित्तीय मॉडल जैसे पब्लिक प्राइवेट साझेदारी और सरकारी, परोपकारी संसाधनों और वेंचर कैपिटल से मिला पैसा निजी निवेश को बढ़ा सकता है. इससे एक रिस्क-रिटर्न प्रोफ़ाइल बनेगा जो प्राइवेट सेक्टर को मंज़ूर होगा.

जब इकनॉमिक रेस्पॉन्स टास्क फोर्स प्रोत्साहन पैकेज पर विचार करने के लिए बैठेगी तो एक महत्वपूर्ण सवाल होगा कि प्राइवेट सेक्टर को समर्थन का तरीक़ा क्या होगा.

हाल के दिनों में विश्व की अर्थव्यवस्थाओं की तरफ़ से घोषित किए जा रहे प्रोत्साहन पैकेज में जलवायु को मुख्यधारा में लाने का महत्व अंतर्राष्ट्रीय प्रेस के लिए बढ़ गया है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के फतीह बिरोल ने इसे, “आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज के साथ कोरोना वायरस की महामारी का मुक़ाबला करने के लिए वैश्विक जलवायु कार्यवाही के नये युग का एक ऐतिहासिक अवसर” बताया है. रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन में कोविड-19 का मुक़ाबला करने के लिए उठाए गए लॉकडाउन के क़दमों के कारण फरवरी से औद्योगिक उत्पादन में 40% तक और कार्बन एमिशन में एक-चौथाई तक की कमी आई है. वैसे आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं लेकिन यही बात भारत में भी देखी जा सकती है. कार्बन एमिशन में कमी अस्थायी है लेकिन औद्योगिक गतिविधि में कमी का ख़राब असर लोगों की जीविका पर पड़ेगा क्योंकि इससे नौकरियों में कमी होगी. स्वच्छ ऊर्जा और प्रदूषण रहित निर्माण समेत क्लाइमेट एक्शन में निवेश से नौकरियां मिलेंगी और पर्यावरण में सुधार होगा. जब इकनॉमिक रेस्पॉन्स टास्क फोर्स का गठन होगा तो ज़रूरी है कि इसमें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का प्रतिनिधित्व भी हो ताकि पेरिस समझौते के तहत भारत ने जलवायु को लेकर जो संकल्प लिया है, उसकी तरफ़ ज़्यादा निवेश को सुनिश्चित किया जा सके.

जब इकनॉमिक रेस्पॉन्स टास्क फोर्स प्रोत्साहन पैकेज पर विचार करने के लिए बैठेगी तो एक महत्वपूर्ण सवाल होगा कि प्राइवेट सेक्टर को समर्थन का तरीक़ा क्या होगा. NPA समस्या की वजह से पहले ही बैंकों की बैलेंस शीट ख़राब है. ऐसे में और बोझ बढ़ने से उनकी दिक़्क़त और बढ़ेगी. इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को लंबे वक़्त के लिए पैसे की ज़रूरत होती है. संपत्ति और दायित्व में मेल न होने की वजह से ऐसा करना बैंकों के लिए ठीक नहीं होगा. एक तरीक़ा है भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास प्राधिकरण (IREDA) की तरफ़ से विशेष फंड. ये फंड हाई इन्वेस्टमेंट ग्रेड कंपनी के कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश कर सकता है या उनकी भागीदारी ख़रीद सकता है.

संकट गुज़र जाने के बाद जो अर्थव्यवस्था क़ुदरती आपदा और स्वास्थ्य इमरजेंसी से निपटने में ज़्यादा सक्षम होंगी उसको वैश्विक निवेशक प्राथमिकता देंगे. ऐसा प्रोत्साहन पैकेज जो जलवायु और स्वास्थ्य को सबसे आगे रखता है वो टिकाऊ भविष्य, नौकरियों और बाहरी झटकों से निपटने में बेहतर तैयारी को लेकर भारत की वचनबद्धता को दिखाएगा.

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