Author : Prithvi Iyer

Published on Jun 25, 2020 Updated 0 Hours ago

बेशक तकनीकी चीज़ें हमारी ज़िंदगी आसान बनाती हैं. लेकिन महामारी के दौरान इनकी वजह से हमें जिस तरह मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती का सामना करना पड़ा ,है उसे नीतिगत तौर पर जांचने की ज़रूरत है.

कोविड-19: हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर हावी होते मूड ट्रैकिंग ऐप

कोविड-19 महामारी पर क़ाबू पाने के लिए दुनिया में कई देशों ने लॉकडाउन लगाने का तरीक़ा अपनाया. लेकिन इस लॉकडाउन ने हमारे जीवन और बातचीत के अंदाज़ पर बहुत गहरा असर डाला. इस दौरान संचार का तरीक़ा पूरी तरह डिजिटल हो चुका है. लॉकडाउन के दौरान लोग घर से भी काम कर रहे थे. जिसके कारण हमारा बहुत सा समय या तो मोबाइल या फिर लैपटॉप या कंप्यूटर स्क्रीन पर गुज़र रहा था. इन सब ने हमारी मानसिक सेहत पर बहुत गहरा और बुरा प्रभाव डाला है. मूड में जल्दी-जल्दी उतार-चढ़ाव मानसिक स्वास्थ्य मापने और उसे ट्रैक करने का एक तरीक़ा हो सकता है. बेशक तकनीकी चीज़ें हमारी ज़िंदगी आसान बनाती हैं. लेकिन महामारी के दौरान इनकी वजह से हमें जिस तरह मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती का सामना करना पड़ा ,है उसे नीतिगत तौर पर जांचने की ज़रूरत है.

मूड ट्रैकिंग के जितने भी एप्लिकेशन हैं, वो आर्टिफ़िशयल इंटेलिजेंस और मानसिक स्वास्थ्य के बीच की कड़ी हैं. अमेज़न और गूगल जैसी बड़ी तकनीकी कंपनियां इसका भरपूर फ़ायदा उठाती हैं

मूड ट्रैकिंग के जितने भी एप्लिकेशन हैं, वो आर्टिफ़िशयल इंटेलिजेंस और मानसिक स्वास्थ्य के बीच की कड़ी हैं. अमेज़न और गूगल जैसी बड़ी तकनीकी कंपनियां इसका भरपूर फ़ायदा उठाती हैं. इस डोमेन में प्रमुख सेवा प्रदान कराने वाली कंपनियां आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से मानसिक प्रक्रिया पर नज़र रखते हैं. इसे माइंडस्ट्रॉन्ग कहते हैं. इस एप्लिकेशन ने पहले ही 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर की क्राउड फंडिंग हासिल कर ली है. इसमें एक प्रमुख निवेशक जेफ बेजोस की वेंचर कैपिटल कंपनी है. इन एप्लिकेशन की बढ़ती मांग को देखते हुए अमेरिका की मशहूर सिलिकॉन वैली ने भी इस क्षेत्र में रुचि दिखाई है. लेकिन महामारी के संदर्भ में इस तरह की एप्लिकेशन के फ़ायदे, नुक़सान और ख़तरों की जांच होना बहुत ज़रूरी है.

मूड ट्रैकिंग के फ़ायदे

मूड ट्रैकिंग एप्लिकेशन इस सहमति के साथ बनाई गई हैं कि ये मानसिक स्वास्थ्य के सेल्फ मैनेजमेंट में मदद करेगा. शुरूआती रिसर्च में पाया गया है कि सेल्फ़-ट्रैकिंग मूड ऐप्स ने मूड के सुधार में अच्छा काम किया है जोकि मानसिक स्वास्थ्य कि दिशा में होने वाले कामों की दिशा में एक अच्छा क़दम है. इस तरह की ऐप के नतीजे ज़्यादातर इनका इस्तेमाल करने वालों की सेल्फ-रिपोर्टिंग पर निर्भर करते हैं. इन एप्स का संचालन करने वाली कंपनियां इस रिपोर्टिंग पर नज़र रखती हैं और रिपोर्टिंग की विश्वसनीयता और सटीकता निर्धारित करती हैं. इस तरह की मूड ट्रैकिंग ऐप मानसिक स्वास्थ्य और किसी भी प्रकार की मानसिक परेशानी में भी अपनी सेवाएं प्रदान कराती हैं.

इन एप्स का संचालन करने वाली कंपनियां इस रिपोर्टिंग पर नज़र रखती हैं और रिपोर्टिंग की विश्वसनीयता और सटीकता निर्धारित करती हैं.

मूड ट्रैकिंग की कई ऐप ऐसी भी हैं जिसमें मूड ट्रैक करने के लिए मशीन का इस्तेमाल होता है. इसमें ऐप इस्तेमाल करने वाले को रिपोर्ट करने की ज़रूरत नहीं होती. ये मशीनें मानसिक स्वास्थ्य मापने के लिए बायोमार्कर का इस्तेमाल करती हैं जैसे माइक्रो-फ़ेशियल एक्सप्रेशन, स्वाइप करना और पैटर्न पर क्लिक करना आदि. दिनभर मशीन पर जिस तरह की गतिविधियां की जाती है उससे ही मूड और मानसिक सेहत का पता लगा लिया जाता है. मानसिक सेहत की परख करने वाले तकनीकी हल की ख़ूबियों और ख़ामियों पर रिसर्च जारी है. उम्मीद है कि इसके सकारात्मक परिणाम होंगे.

इस तरह की ऐप का सबसे बड़ा फ़ायदा तो यही है कि ये लोगों को अपनी मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी करने लिए आत्मनिर्भर बनाती हैं. हम इंटरनेट का इस्तेमाल कैस करते हैं उसे जांच परख कर ये ऐप हमें सूचित करते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए हम इंटरनेट का बेहतर इस्तेमाल कैसे करें. बेहतर नतीजों के लिए सेल्फ रिपोर्टिंग वाली मूड ट्रैकिंग ऐप में नियमित तौर पर जानकारी अपडेट करने की ज़रूरत होती है. ऐसे स्वचालित ऐप उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो अपने मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी के लिए समय और ऊर्जा नहीं दे पाते. मूड ट्रैकिंग ऐप के एक उपयोगकर्ता ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि इस तरह की ऐप से उन्हें अपनी खुशी का स्तर ऊंचा करने में कितनी मदद मिली है. मानसिक स्वास्थ्य के आत्म-प्रबंधन को बढ़ावा देने के साथ चिकित्सक भी इसका फ़ायदा उठा सकते हैं. चिकित्सकों को अक्सर अपने मूड पर नज़र रखने के लिए अपने मरीज़ों की आवश्यकता होती है. और इस तरह की ऐप में सुधार के लिए चिकित्सकों का भी बड़ा योगदान रहा है.

भारत जैसे देशों में जहां मानसिक स्वास्थ्य को हौव्वा समझा जाता है वहां इस तरह के ऐप काफ़ी मददगार हो सकते हैं. हमारे यहां मानसिक सेहत के लिए किसी थेरेपिस्ट के पास जाना एक सामाजिक बुराई समझा जाता है. ऐसे में इस तरह की ऐप के माध्यम से लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है और ज़्यादा से ज़्यादा लोग इन ऐप से फ़ायदा उठा सकते हैं. थेरेपी के लिए बाहर जाने की तुलना में एक स्मार्ट फ़ोन तक पहुंच बनाना ज़्यादा आसान है. लिहाज़ा इस तरह की ऐप से भारत जैसे देश में मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के क्षेत्र में बड़ी मदद मिलेगी. इसमें कोई शक नहीं कि ये ऐप चिकित्सा थेरेपी की जगह नहीं ले सकते लेकिन थेरेपी के साथ इनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. माना जा रहा है कि जो लोग समाज का ख़्याल करते हुए अपनी मानसिक स्थिति का इलाज नहीं करा पाते ऐसे लोगों के लिए तो ये ऐप बहुत ही प्रभावी हैं. उनके व्यवहार पर ऑनलाइन निगरानी करके बेहतर इलाज दिया जा सकता है.

भविष्य से कमज़ोरियां और उम्मीदें

मूड ट्रैकिंग ऐप के पास बहुत सी निजी जानकारियां जमा हो जाती हैं. हाल के वर्षों में डेटा उल्लंघनों से जुड़े कई घोटाले सामने आने के बाद तो शक की गुजाइंश और भी बढ़ गई है. हालांकि, कुछ ऐप बेहतर गोपनीयता मानकों की ओर काम कर रही हैं लेकिन कुछ ऐप पारदर्शिता और सहमति के मुद्दों पर संदेह करते हैं. मूड ट्रैकिंग ऐप की अपनी कुछ कमजोरियां भी हैं जिनके बारे में चर्चा होनी चाहिए.

भारत जैसे देशों में जहां मानसिक स्वास्थ्य को हौव्वा समझा जाता है वहां इस तरह के ऐप काफ़ी मददगार हो सकते हैं. हमारे यहां मानसिक सेहत के लिए किसी थेरेपिस्ट के पास जाना एक सामाजिक बुराई समझा जाता है

एक चिंता इन ऐप के हावर्थोन प्रभाव को लेकर भी है. यानि जब किसी को ये पता चल जाता है कि उसकी निगरानी की जा रही है तो वो अपने व्यवहार में परिवर्तन ले आता है. वो सहज नहीं रह पाता. ऐसे में किसी की मानसिक स्थिति का सही आंकलन करना भी मुश्किल होता है.

रिसर्च से ये भी पता चलता है कि सांस्कृतिक और सामाजिक अंतर काफ़ी बड़े पैमाने पर है. जिस तरह से भावनाओं की अभिव्यक्ति की जाती है उसमें भी कई तरह की बारीकियां छिपी होती हैं. ये बारीकियां सांस्कृतिक रूप से काफ़ी संवेदनशील हैं. लिहाज़ा मूड ट्रैकर्स को विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय संदर्भ में ख़ुद को ढालना चाहिए ताकि अलग-अलग समाज और संस्कृति के लोगों तक पहुंचा जा सके. चूंकि इस क्षेत्र में रिसर्च अभी शुरूआती दौर में हैं इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह के ऐप मूड परिवर्तन में सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए क्या और कितना योगदान कर पाएंगे.

नतीजा

कोविड-19 महामारी के कारण डिजिटल संचार पर बढ़ता ज़ोर निश्चित रूप से स्क्रीन पर ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताने को बाध्य कर रहा है. लेकिन इसके परिणाम अच्छे नहीं हैं. इसके बाद ही मूड ट्रैकर्स के बारे में चर्चा बढ़ गई है. इस महामारी के बाद दुनिया को इन ऐप का ज़्यादा फ़ायदा मिल सकता है. हालांकि, इस तरह के ऐप के प्रभावों पर सभी के दिल में दुविधा भी है. सवाल उठता है कि क्या हमें मानसिक परेशानी को कम करने के लिए तकनीकी समाधानों का उपयोग करना चाहिए.  क्या तकनीक मानसिक स्वास्थ्य संकट का स्रोत और समाधान दोनों है. ये ऐसे मुश्किल सवाल हैं जिनका जवाब दिया जाना ज़रूरी है. फिर भी मानसिक सेहत के मामले में हमें आत्मनिर्भर बनाने में मूड ट्रैकर्स ऐप का बड़ा योगदान हो सकता है और भविष्य में ये हमारे लिए आशा की एक किरण है. उम्मीद है इस तकनीक से सहायता ही मिलेगी.

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