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पाक हा भारताचा प्रश्न असेल, तर तैवान ही अमेरिकेची वैयक्तिक समस्या आहे, अशी भूमिका भविष्यात भारताने घेतली तर वावगे वाटता कामा नये.
ट्रंप के साथ बैठक में मोदी द्विपक्षीय संबंधों के लिए अगले चार साल की रूपरेखा तैयार करेंगे.
सरकारने कितीही स्वस्तुती केली, सरकारधार्जिण्या माध्यमांनी कितीही कौतुक केले, तरीही मोदींच्या अमेरिका दौऱ्याचे फलित ना धड चांगले आहे, ना धड वाईट आहे.
अगर अमेरिका नाटो से बाहर चला गया तो गठबंधन को अपनी न्यूक्लियर-पॉलिसी को नए सिरे से आकार देना होगा.
युक्रेनमधील रशियन लष्करी मोहिमेला विरोध करणारे देश अथवा समर्थन करणारे देश असे जगाचे ध्रुवीकरण झालेले दिसते. असे असले तरीही भारताने या मुद्द्यावर तटस्थ भूमिका राखून, कुण
रशिया आणि अमेरिका यांच्यात मध्यस्थी करण्याचे आणि युक्रेनचा संघर्ष संपुष्टात आणण्याचे काम भारताशिवाय कदाचित दुसरा कोणताच देश करू शकणार नाही.
रूस भी अमेरिकी विदेश नीति को व्यावहारिक बताते हुए उसे अपने हितों के अनुरूप बता रहा है. स्वाभाविक है कि इससे यूरोप की चिंता बढ़ेंगी.
यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष ने चीन के प्रधानमंत्री के साथ फोन पर बातचीत की और दोनों ने अमेरिकी संरक्षणवाद की निंदा करते हुए मुक्त और खुले व्यापार का आह्वान किया.
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने अमेरिकी समकक्ष भारतीय हितों को इस तरह से रखा कि अमेरिका की बोलती बंद हो गई. उन्होंने अपने तर्कों और भारतीय विदेश नीति के बुनियादी सिद
अमेरिका लंबे समय से ताइवान के मुद्दे को लेकर उलझा हुआ है. उसकी 'रणनीतिक अस्पष्टता' की नीति ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) द्वारा बल प्रयोग को अब तक रोका है. यह एक विचार क�
बाइडेन प्रशासन, अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के अंतर्गत एक विस्तृत साइबर सिक्योरिटी रणनीति विकसित करने का प्रयास कर रहा है. इस इश्यू ब्रीफ में US के साइबर ख़तरे के परिदृश्य क�
अफगाणिस्तान आणि पाकिस्तान मधील चीनचा प्रभाव हे इंडो पॅसिफिक मधील महत्वाचे आव्हान आहे, हे अमेरिकेने वेळीच ओळखणे गरजेचे आहे.
G7 और NATO की बैठक के बीच कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या इस युद्ध को रोकने के लिए कोई कूटनीतिक पहल हो सकती है. एक और सवाल कि क्या इसकी आंच भारत तक आ सकती है. इन तमाम सवालों पर क्या कहते �
हो सकता है कि ट्रंप अपने क़दमों से दुनिया को हैरान करें. पर, ट्रंप के चौंकाने वाले फ़ैसलों के बीच भी एक ऐसी व्यापक नीतिगत रूप-रेखा मौजूद है, जिस पर नीति-निर्माता चल सकते हैं.
पुतिन बेलारूस को रूस में शामिल होने के लिए दबाव बनाते रहे हैं. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के इस नजरिए के बाद बेलारूस ने चीन और पश्चिम देशों के साथ निकटता भी बढ़ाई. बेलारूस नेटो स
पुतिन बेलारूस को रूस में शामिल होने के लिए दबाव बनाते रहे हैं. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के इस नजरिए के बाद बेलारूस ने चीन और पश्चिम देशों के साथ निकटता भी बढ़ाई. बेलारूस नेटो स
हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका को मात देने के लिए चीन कुछ भी करने को तैयार है. वह ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को भी गले लगाने का तैयार है. इस तरह चीन ने अपनी कूटनीति को धार
श्रीलंका में भारतीय और चीनी राजनयिक मिशन के बीच एक चीनी मिलिट्री रिसर्च पोत के वहां पहुंचने को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई.
सवाल यह है कि क्या क्वॉड या इस तरह का कोई प्लैटफॉर्म एशियन नेटो की तरह उभर सकता है?
अध्यक्ष मार्कोस यांच्या नेतृत्वाखाली, मनिला देशाच्या सागरी सुरक्षा क्षमतांना बळकट करण्यासाठी आणि प्रदेशातील संरक्षण नेटवर्क सुधारण्यासाठी उत्सुक आहे.
G20 देशों में स्थित छोटे द्वीपों को अलगाव, सीमित संसाधनों के साथ ही साफ तौर पर जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित विभिन्न प्रकार की विशिष्ट चुनौतियों का सामना �
Modi Speaks in G20 रूस यूक्रेन जंग को समाप्त का मामला ऐसे समय उठाया है जब अमेरिका व पश्चिमी देश रूस के प्रति भारत की तटस्थता नीति की निंदा कर चुके हैं. हालांकि भारत यह साफ कर चुका है क�
आम्ही इंडो-पॅसिफिकमध्ये तंत्रज्ञानाची घोडदौड पाहत असताना, iCET चे उद्दिष्ट दोन्ही देशांना गंभीर आणि उदयोन्मुख तंत्रज्ञानामध्ये भागीदारी वाढविण्यात मदत करणे आहे.
अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-16 युद्धक विमान को अपग्रेड करने का फैसला भारत के खिलाफ है. ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि बाइडेन प्रशासन का भारत के प्रति क्या नजरिया है. क्या बाइडे
अमेरिका ने पाकिस्तान को एफ-16 युद्धक विमान को अपग्रेड करने का फैसला भारत के खिलाफ है. ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि बाइडेन प्रशासन का भारत के प्रति क्या नजरिया है. क्या बाइडे
S Jaishankar visit to Moscow ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई भारतीय विदेश मंत्री की इस यात्रा में जंग खत्म करने की पहल हो सकती है. अमेरिका व पश्चिमी देश भारत से इस तरह की उम्मीद क्यों कर �
यूएसएड का भविष्य अब उलझ गया है. रिपब्लिकन जहां इसे बंद करने पर आमादा हैं, तो वहीं डेमोक्रेट राष्ट्रपति ट्रंप के इस कदम को असांविधानिक बता रहे हैं.
इंडो-पॅसिफिकवरून, अमेरिका-चीनमध्ये तणाव वाढतोय. त्यामुळे अफगाणिस्तानातील घडामोडींच्या पार्श्वभूमीवर भारताने सावध राहायला हवे.
अफगाणिस्तानच्या पुनर्बांधणीमधून अमेरिका बाहेर पडली तरीही, स्थिर अफगाणिस्तानाचे उद्दिष्ट साध्य करण्यासाठी, भारताने प्रयत्न करणे आवश्यक आहे.
डोनाल्ड ट्रम्प के जीतने पर सबसे बड़ा बदलाव यूक्रेन में हो सकता है..
दुनिया एक बार फिर एक ऐसे नाटकीयता से रूबरू होने जा रही है जिसमें राजनीति और क़ानून का टकराव देखा जाएगा. इसका असर अमेरिका की राजनीति और उसके संस्थागत ताने-बाने पर भी होगा.
लोकशाहीसंदर्भात अमेरिका जागतिक पातळीवर जे दाखवते आणि प्रत्यक्ष आपल्या देशात जे वागते यातली दरी रुंदावत चालली आहे.
अफगाणिस्तान मुद्दा, भारत-अमेरिका व्यापार आणि ट्रम्प सरकारची देशांतर्गत कोंडी या पार्श्वभूमीवर अमेरिकेची पुलवामाबद्दलची प्रतिक्रिया तोंडदेखली वाटते.
अमेरिकेने केलेल्या चीनी कापूसबंदीकडे भारताने इष्टापत्ती म्हणूनच पाहायला हवे. भारत-अमेरिका संवाद वाढवून, चीनच्या शिंजियागमधील कारवाया रोखायला हव्यात.
ट्रम्प यांच्यामुळे ‘अमेरिका फर्स्ट’च्या संकुचिततेत अडकेलेली अमेरिका, बायडन यांच्या विजयाने पुन्हा जागतिक राजकीय-आर्थिक व्यवहारात परतेल, अशी आशा आहे.
अमेरिकन सैन्य आणि CIA द्वारे वारंवार दहशतवादी नेत्यांना लक्ष्य केल्याने एक मूलभूत प्रश्न निर्माण झाला आहे - OTH CT क्षमता खरोखरच दहशतवादी चळवळीचा नाश सुनिश्चित करू शकते का.
अमेरिका, चीन आणि रशिया यांच्या अवकाशमोहिमा आणि त्याभोवती सुरू असलेल्या जागतिक राजकारणात येत्या काही काळात नवे चढउतार दिसणार आहेत.
अमेरिका आणि रशिया यांच्यातील 'इंटरमिजिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स ट्रीटी' (आयएनएफ) हा शस्त्रकरार संपुष्टात आल्याने नवी शस्त्रास्त्र स्पर्धा निर्माण होऊ शकते.
विश्व की कुछ दिग्गज कंपनियों द्वारा स्थापित आपूर्ति शृंखला इससे चरमरा सकती है.
इंडो–पॅसिफिक क्षेत्राबाबत एशियान देशांनी नवे धोरण स्वीकारण्यामागे अमेरिका-चीनमधले वाढते व्यापारी युद्ध हे महत्वाचे कारण असल्याचे मानले जाते.
अमेरिका इजराइल और सऊदी अरब के बीच ऐतिहासिक डील कराने के बहुत करीब पहुंच गया था. लेकिन इजराइल और हमास के बीच छिड़े युद्ध के बाद सब गड़बड़ हो गया है. इसने दुनिया की भू-राजनीति म�
नेतन्याहू के हाल के दौरे का मक़सद अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन से निपटने की रणनीति बनाना भी था जो सऊदी अरब के आलोचक और फिलिस्तीनी आकांक्षाओं को लेकर ज़्यादा �
आज़ादी के बाद से ही भू-राजनीति की वजह से बुरी तरह बंटी हुई दुनिया में तमाम देशों के साथ साझेदारी करना भारतीय कूटनीति की एक ख़ूबी रही है. भारत और रूस के संबंधों का फ़ायदा न केव�
इराणसोबतच्या अणुकरारातून अमेरिका बाहेर पडल्याने आंतरराष्ट्रीय व्यापारात इराणची मजबूत गोची झाली आहे. युरोप, चीनची सहानुभूतीही इराणला पुरेशी ठरणारी नाही.