इस लेख में अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हर्ष पंत ने भारत और अमेरिका के आर्थिक, सामरिक, और आप्रवासन संबंधों पर विचार प्रस्तुत किए हैं.
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टैरिफ में बढ़ोतरी संभव
ट्रेड और इकोनॉमी के मोर्चे पर अमेरिका लगातार चीन का नाम लेता आया है, लेकिन ट्रंप भारत के उत्पादों पर भी टैरिफ बढ़ा सकते हैं और भारत में ज़्यादा मार्केट की मांग कर सकते हैं. उस समय उन्होंने डेविडसन पर बड़ा टैरिफ का मुद्दा उठाया था. हालांकि यह छोटा-सा मामला था, लेकिन इस बार वे ऐसे छोटे-छोटे मसलों पर भारत को कुछ बड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं.
छोटे-छोटे मसलों पर भारत को कुछ बड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं.
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ट्रेड वॉर: भारत को लाभ
अगर चीन के साथ अमेरिका का ट्रेड वॉर बढ़ता है तो यह देखने वाला दिलचस्प होगा कि भारत इसका किस तरह अपने हित में इस्तेमाल करता है. अगर अमेरिकी कंपनियां चीन के साथ काम न करने का दबाव बढ़ाती हैं, तो इससे भारत की भूमिका अहम हो जाएगी. इसका फायदा भारत को मिल सकता है. अब भारत इसका फायदा किस तरह से उठा पाता है, यह देश की नीतियों पर निर्भर करेगा.
भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के लिए 'क्वाड' पर ज्यादा ध्यान देंगे. गौरतलब है कि साल 2017 में 'क्वाड' को डोनाल्ड ट्रंप ने ही पुनर्जीवित किया था.
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सामरिक संबंधों में सुधार
चीन आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, सामरिक दृष्टि से भी अमेरिका के निशाने पर रहेगा. ट्रंप ने अपने पहले चुनाव प्रचार में 'क्वाड' के निर्माण की बात कही थी. भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के लिए 'क्वाड' पर ज्यादा ध्यान देंगे. गौरतलब है कि साल 2017 में 'क्वाड' को डोनाल्ड ट्रंप ने ही पुनर्जीवित किया था.
अमेरिका की विदेशियों को लेकर मान्यताएं पहले से ही बढ़ी हुई हैं. अब H1B वीजा के खिलाफ भारत को कुछ नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना होगा.
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H-1B: भारत बैकफुट पर
आप्रवासन के मसले पर ट्रंप प्रशासन का सख्त रवैया रहेगा. इसके अलावा H-1B वीजा का मामला भी भारत के लिए संवेदनशील है. अमेरिका की विदेशियों को लेकर मान्यताएं पहले से ही बढ़ी हुई हैं. अब H1B वीजा के खिलाफ भारत को कुछ नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना होगा.
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