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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर बहुत उत्साह जताया जा रहा है. कुछ कह रहे हैं कि यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की अभी तक की सबसे महत्वपूर्ण अमेरिका यात्रा है. इसे हाल के समय में किसी भी विदेशी नेता की सबसे महत्वपूर्ण वॉशिंगटन डीसी यात्रा तक बताया जा रहा है, क्योंकि यह भारत की भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक सम्भावनाओं को बदल सकती है.
यात्रा का प्रमुख उद्देश्य है भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंधों की बुनियाद को मजबूत बनाना, विशेषकर डिफेंस टेक्नोलॉजी सेक्टर में. इसके सम्बंध में प्रमुख वार्ताएं जनवरी में ही हो चुकी थीं, जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल वॉशिंगटन पहुंचे थे.
यात्रा का प्रमुख उद्देश्य है भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंधों की बुनियाद को मजबूत बनाना, विशेषकर डिफेंस टेक्नोलॉजी सेक्टर में. इसके सम्बंध में प्रमुख वार्ताएं जनवरी में ही हो चुकी थीं, जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल वॉशिंगटन पहुंचे थे.
उन्होंने अपने अमेरिकी समकक्ष जैक सुलीवन के साथ इनिशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड एमर्जिंग टेक्नोलॉजीज़ (आईसेट) को लॉन्च किया था. इसकी घोषणा मई 2022 में तब की गई थी, जब टोक्यो में मोदी की बाइडन से भेंट हुई थी.
आईसेट की लॉन्चिंग पर व्हाइट हाउस से जारी बयान में कहा गया था कि ‘इसके बाद अब दोनों देश अपनी स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप और डिफेंस इंडस्ट्रीयल को-ऑपरेशन को न केवल सरकारों, बल्कि कारोबारी और शैक्षिक संस्थानों के स्तर तक बढ़ाने को तैयार हैं.’
पीएम की यात्रा में एलसीटी तेजस एमके2 और एएमसीए जैसे भारतीय लड़ाकू विमानों को और सशक्त बनाने के लिए जीई-414 जेट इंजिन के लाइसेंस मैन्युफेक्चर हेतु एक प्रोजेक्ट की घोषणा की जा सकती है. वर्तमान में इन दोनों लड़ाकू विमानों का निर्माण जारी है. तेजस के मौजूदा एमके1 वर्जन में पुराने जीई 404 इंजन का उपयोग किया जा रहा है.
भारत और अमेरिका दोनों देशों के डिफेंस इनोवेशन सेक्शन के बीच सहभागिता को बढ़ाने के लिए इंडस एक्स इनिशिएटिव भी औपचारिक रूप से लॉन्च करेंगे. साथ ही 18-30 एमक्यू-9 रीपर आर्म्ड ड्रोन्स के अधिग्रहण सम्बंधी घोषणा भी की जाएगी. पिछले सप्ताह भारत सरकार ने इनके क्रय की अनुमति दे दी है.
आईसेट भारत-अमेरिका सम्बंधों के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा.
इस यात्रा के लिए बड़े पैमाने पर योजनाएं बनाई गई हैं और अथक प्रयास किए गए हैं. इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन नई दिल्ली आए थे. उन्होंने यहां अपने भारतीय समकक्ष राजनाथ सिंह के साथ इंडो-यूएस डिफेंस इंडस्ट्रियल को-ऑपरेशन के लिए रोडमैप बनाने पर चर्चा की.
दोनों ने मई में हुए एडवांस्ड डोमेन्स डिफेंस डायलॉग पर भी चर्चा की. उसमें सुरक्षा से संबंधित सभी डोमेन्स- विशेषकर स्पेस व एआई के क्षेत्र में सहभागिता बढ़ाने पर बात की गई थी. 6 जून को एक और महत्वपूर्ण घटना तब घटी, जब वॉशिंगटन डीसी में भारत-अमेरिका स्ट्रैटेजिक ट्रेड डायलॉग की स्थापना की गई.
भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई विदेश सचिव वी.एम. क्वात्रा कर रहे थे. भारत का लक्ष्य सेमीकंडक्टर्स, स्पेस, टेलीकॉम, क्वांटम टेक्नोलॉजी, एआई, डिफेंस, बायोटेक जैसे महत्वपूर्ण डोमेन्स में विकास और व्यापार को बढ़ावा देना है. अच्छी बात यह है कि अमेरिका के निर्यातों पर नियंत्रण रखने वाली उसकी ताकतवर ब्यूरोक्रेसी भारत-अमेरिका तकनीकी सम्बंधों को आगे बढ़ाने को लेकर अपने राजनेताओं से सहमत है.
मोदी की यात्रा से एक सप्ताह पहले जैक सुलीवन नई दिल्ली आए थे, ताकि यात्रा की तैयारियों को अंतिम रूप दे सकें. इसके बाद उन्होंने अजित डोभाल से मिलकर आईसेट को आगे बढ़ाने के लिए कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में भाग लिया.
डोभाल ने इस अवसर पर कहा कि शुरू में वे निश्चित नहीं थे कि यह विचार कारगर साबित होगा या नहीं, लेकिन दोनों देशों की सरकारों, उद्योग-समूहों, वैज्ञानिकों और शोध संस्थाओं का रिस्पॉन्स देखकर मैं उत्साह से भर गया हूं और मेरा विश्वास बढ़ा है. आईसेट भारत-अमेरिका सम्बंधों के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा.
यह सब तब हो रहा है, जब खुद अमेरिका सेमीकंडक्टर्स की मैन्युफेक्चरिंग को सब्सिडाइज्ड करके, अपने जर्जर होते बुनियादी ढांचे के कायाकल्प के लिए बड़े पैमाने पर पैसे देकर और ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देते हुए अपनी घरेलू नीति को बदलने की कोशिश कर रहा है.
अब अमेरिका ओपन ट्रेड के अपने परम्परागत रुख से दूर हो गया है. वह अपने बाजारों को दुनिया के लिए खोलने से संकोच करने लगा है और डब्ल्यूटीओ जैसे संस्थानों को शक की नजर से देखता है. लेकिन चीन पर अंकुश लगाने के लिए वह भारत को एक डिफेंस व सिक्योरिटी पार्टनर की तरह देखता है.
अमेरिका पहले ही भारत का प्रमुख ट्रेड पार्टनर है. अब वह हमसे अपनी डिफेंस टेक्नोलॉजी भी शेयर करना चाहता है. भारत और चीन की ताकत में आज जितना अंतर है, उसे पाटने के लिए हमें भी अमेरिकी टेक्नोलॉजी की जरूरत है.
यह लेख मूलरूप से दैनिक भास्कर में प्रकाशित हो चुका हैं.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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