प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह अमेरिका की यात्रा पर जाएंगे. उन्हें डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा न्योता गया है. मोदी उन कुछ नेताओं में शामिल होंगे, जिन्हें ट्रम्प की ताजपोशी के बाद अमेरिका बुलाया गया है. यह ट्रम्प प्रशासन की इन नेताओं के साथ सम्बंध बढ़ाने की रुचि को दर्शाता है.
माना जा रहा है कि अब्दुल्ला से मुलाकात में ट्रम्प गाजा पट्टी पर कब्जा करके उसे पुनर्विकसित करने की अपनी अजीबोगरीब योजना पर चर्चा करेंगे.
आश्चर्य नहीं कि जिस विदेशी नेता से ट्रम्प ने सबसे पहले मुलाकात की, वो इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू थे. इसके बाद वे जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला से मिलेंगे. माना जा रहा है कि अब्दुल्ला से मुलाकात में ट्रम्प गाजा पट्टी पर कब्जा करके उसे पुनर्विकसित करने की अपनी अजीबोगरीब योजना पर चर्चा करेंगे.
मोदी की यात्रा इसके बाद होगी, जिनके ट्रम्प से उनके पहले कार्यकाल से ही मैत्रीपूर्ण सम्बंध रहे हैं. अलबत्ता ट्रम्प के शपथ-ग्रहण समारोह में मोदी मौजूद नहीं थे. जबकि उसमें इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और अर्जेंटीना के राष्ट्रपति हावियर माईली मौजूद रहे थे. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भी न्योता दिया गया था, लेकिन उन्होंने अपने प्रतिनिधि के रूप में उपराष्ट्रपति हान झेंग को भेजा था.
उस समारोह में मोदी के बजाय विदेश मंत्री एस. जयशंकर को बुलाया गया था और उन्हें ट्रम्प के सामने अग्रिम पंक्ति में बैठाया गया. यह कोई संयोग नहीं था. जयशंकर ने ट्रम्प प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात कर मोदी की यात्रा के लिए जमीन तैयार की है.
भारत की अपेक्षाएं
उन्होंने यह भी संकेत दिया कि 18 हजार अवैध भारतीय प्रवासियों को अमेरिका से डिपोर्ट करने की ट्रम्प की योजना पर भी भारत को कोई आपत्ति नहीं है. भारत का रुख एच1बी वीज़ा पर जोर देने का है. ये वीज़ा अमेरिका द्वारा हर साल जारी किए जाते हैं और इनमें से 70 प्रतिशत भारतीयों के लिए होते हैं.
ट्रम्प ने स्पष्ट कर दिया था कि अगले सप्ताह मोदी से मुलाकात में उन्हें उनसे क्या अपेक्षा होगी. मोदी से फोन पर बातचीत में उन्होंने अमेरिका में निर्मित सुरक्षा उपकरणों की खरीद बढ़ाने और दोनों देशों के बीच व्यापारिक सम्बंधों को संतुलित करने पर जोर दिया था.
दोनों नेताओं ने परस्पर रणनीतिक सहयोग और इंडो-पैसिफिक क्वाड साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रतिबद्धता जताई. भारत इस साल के अंत में क्वाड शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा और उसे उम्मीद है कि ट्रम्प इसमें व्यक्तिगत रूप से शामिल होने का समय निकालेंगे. भारत पहले ही अमेरिका से सैन्य उपकरण खरीद रहा है, लेकिन ट्रम्प को संतुष्ट करने के लिए कई अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क घटाने की जरूरत होगी.
ट्रम्प की रणनीति में भारत की नई भूमिका
चूंकि मोदी की यात्रा नेतन्याहू और अब्दुल्ला के ठीक बाद हो रही है, इसलिए हो सकता है कि मध्य-पूर्व को लेकर अपनी हैरान कर देने वाली योजनाओं में ट्रम्प भारत की भी कुछ भूमिका देखते हों. 2022 में भारत ने अमेरिका, इजराइल और यूएई के साथ आई2यू2 समूह में शामिल होकर ऊर्जा परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य, जल और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में नई पहल की थी.
चूंकि मोदी की यात्रा नेतन्याहू और अब्दुल्ला के ठीक बाद हो रही है, इसलिए हो सकता है कि मध्य-पूर्व को लेकर अपनी हैरान कर देने वाली योजनाओं में ट्रम्प भारत की भी कुछ भूमिका देखते हों.
भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) में भी भारत भागीदार है. इसकी घोषणा 2023 की जी-20 समिट में दक्षिण एशिया, मध्य-पूर्व और यूरोप के आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए की गई थी. इस कॉरिडोर में बंदरगाह, रेलवे, शिपिंग नेटवर्क और सड़कों पर भी काम किया जाएगा. गौर करने वाली बात यह है कि इजराइल का हैफा इस कॉरिडोर का एक महत्वपूर्ण टर्मिनस होगा और उसे अदाणी समूह द्वारा विकसित किया जा रहा है.
राजीव गांधी पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने अमेरिका से सम्बंधों को उत्साहपूर्वक अपनाया था. जबकि उनकी मां इंदिरा गांधी अमेरिका को लेकर कुछ हद तक संदेह में रहती थीं, हालांकि, 1981 में मैक्सिको के कानकुन में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मुलाकात के बाद उनका नजरिया कुछ बदला.
राजीव ने तीन बार अमेरिका का दौरा किया था. 1985 में प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले ही वर्ष में वे दो बार अमेरिका गए थे. अमेरिकी प्रभाव में ही राजीव ने भारत की श्रीलंका-नीति में बदलाव किया था और आधुनिक भारत के अपने विजन को आगे बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका से संपर्क किया था.
लेकिन मोदी आज जिस भारत का नेतृत्व कर रहे हैं, वह राजीव गांधी के समय के भारत की तुलना में कहीं अधिक मजबूत है. आज भारत एक प्रमुख स्विंग-स्टेट के रूप में उभरा है और अमेरिका के साथ-साथ उसके प्रमुख विरोधी रूस के साथ सम्बंध बनाए रखने में भी सक्षम है. नई दिल्ली ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय हित उसकी नीतियों की प्रेरक शक्ति होगी. लेकिन ट्रम्प के राज में भारत के दृढ़ संकल्प की परीक्षा हो सकती है.
चूंकि नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा बेंजामिन नेतन्याहू और किंग अब्दुल्ला के ठीक बाद हो रही है, इसलिए हो सकता है कि मध्य-पूर्व को लेकर अपनी हैरान कर देने वाली योजनाओं में ट्रम्प भारत की भी कुछ भूमिका देखते हों.
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