Author : Harsh V. Pant

Originally Published मिंट Published on Jan 23, 2025 Commentaries 0 Hours ago

हो सकता है कि ट्रंप अपने क़दमों से दुनिया को हैरान करें. पर, ट्रंप के चौंकाने वाले फ़ैसलों के बीच भी एक ऐसी व्यापक नीतिगत रूप-रेखा मौजूद है, जिस पर नीति-निर्माता चल सकते हैं.

#Trump 2.0: ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के लिए हमें ऐसे तैयार रहना होगा!

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ट्रंप का दूसरा कार्यकाल शुरू हो गया है और हर कोई ये समझने की कोशिश में मसरूफ़ है कि ट्रंप ने पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद अपने तरकश से जो तीर छोड़े हैं, उनके मायने क्या हैं. चाहे ट्रंप प्रशासन में नियुक्त किए गए लोग हों, उनके अपने बयान हों और सोशल मीडिया पर किए जा रहे एलान हों या फिर अब उनके एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर. अगर इस पागलपन के पीछे कोई सोची समझी रणनीति है, तो किसी को पक्के तौर पर इसका अंदाज़ा नहीं है. लेकिन, विश्व के तमाम नीति निर्माता जो पहले से ही वैश्विक राजनीति में मची उथल-पुथल से जूझ रहे हैं, उनके लिए ट्रंप के उठा-पटक भरे फ़ैसलों से निपटना आने वाले महीनों में एक प्रमुख नीतिगत लक्ष्य होगा.

विश्व के तमाम नीति निर्माता जो पहले से ही वैश्विक राजनीति में मची उथल-पुथल से जूझ रहे हैं, उनके लिए ट्रंप के उठा-पटक भरे फ़ैसलों से निपटना आने वाले महीनों में एक प्रमुख नीतिगत लक्ष्य होगा.

ट्रंप की सबसे अहम सार्वजनिक घोषणाओं में से एक वो है, जिसमें उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए विदेश नीति के एजेंडे का एलान किया है. उन्होंने एक बार फिर से दूसरे देशों पर क़ब्ज़ा करने और प्रभाव क्षेत्र क़ायम करने के युग में वापसी की बात की है और साथ ही साथ साझीदारों के साथ भागीदारी और आर्थिक रूप से एक दूसरे के पूरक बनने की पाबंदियों को भी ख़ारिज कर दिया है. ट्रंप ने सैन्य ताक़त के दम पर पनामा नहर और ग्रीनलैड पर क़ब्ज़ा करने की बात की है और उन्होंने कनाडा से उसकी संप्रभुता छीन लेने की भी धमकी दी है. आधुनिक दौर में किसी भी अमेरिकी नीति निर्माता की तरफ़ से ऐसा बयान आना बेहद हैरान करने वाला है. क्योंकि अगर कोई और देश इसी तरह की घोषणआएं करना, तो अब तक ख़ुद अमेरिका ही उसे ‘अराजक’ और दुनिया के लिए ख़तरा घोषित कर चुका होता.

 

हालांकि, ट्रंप ने ऐसी अनसुनी परिचर्चाओं को इतनी सामान्य बात बना दिया है कि अब उनके ऐसे बयान अहम वार्ताकारों के साथ मोल-भाव की लंबे समय तक चलने वाली वार्ता की दिशा में पहला वार माने जाने लगे हैं. जब ट्रंप से ये पूछा गया कि क्या वो ग्रीनलैंड और पनामा नहर को सैन्य या फिर आर्थिक ताक़त के दम पर छीन लेने की आशंकाओं को दूर कर सकते हैं, तो उन्होंने दो-टूक लहजे में कहा कि, ‘नहीं. मैं इन दोनों ही मसलों पर आपको कोई भरोसा नहीं दे सकता हूं. लेकिन, मैं ये ज़रूर कह सकता हूं कि हमें उनकी ज़रूरत हमारी आर्थिक सुरक्षा के लिए है.’ कनाडा के मामले में ट्रंप ने ये संकेत दिया है कि वो कनाडा को अमेरिका में मिलाने के लिए सैन्य ताक़त का तो इस्तेमाल नहीं करने जा रहे हैं. लेकिन, उन्होंने रक्षा पर कम व्यय के लिए कनाडा की आलोचना की, और कनाडा से अमेरिका निर्यात होने वाले सामान पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी देते हुए उसे अमेरिका का 51वां राज्य बता दिया.

 

बुनियादी तौर-तरीकों को चुनौती

 

अमेरिका के मूल हितों को लेकर वहां की दोनों पार्टियों के बीच आम सहमति की तमाम परिचर्चाओं के लिए, ट्रंप इतनी बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं, जैसी पहले कभी नहीं देखी गई. वो अमेरिका में राजनीतिक आम सहमति के बुनियादी उसूलों को चुनौती दे रहे हैं. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी ऐसा ही किया था. सत्ता संभालने से पहले चीन को लेकर ट्रंप के बयानों की या तो अनदेखी की गई, या फिर उनका मज़ाक़ उड़ाया गया था. ट्रंप के इन बयानों को अमेरिका की मुख्यधारा से इतना अलग समझा जाता था कि बहुत से लोगों को ये यक़ीन था कि अमेरिका का सत्ता तंत्र ये सुनिश्चित करेगा कि ट्रंप, चीन को लेकर अमेरिका की पारंपरिक नीति पर चलते रहे हैं. लेकिन, ट्रंप ने ऐसा नहीं किया. इसके बजाय उन्होंने चीन को लेकर घरेलू आम सहमति की जड़ें हिला दीं और लगभग अकेले अपने दम पर चीन को लेकर पूरे पश्चिमी जगत की परिचर्चाओं को ही नए सांचे में ढाल दिया. ये मान लेने में कोई हर्ज़ नहीं है कि रिपब्लिकन या फिर डेमोक्रेटिक पार्टी का कोई पारंपरिक राष्ट्रपति ऐसा नहीं कर सकता था.

 

ट्रंप ने चीन को लेकर इतना बड़ा बदलाव किया कि न केवल उनके बाद राष्ट्रपति बने जो बाइडेन उन्हीं नीतियों पर चलते रहे, बल्कि उन्हें और रफ़्तार भी दी. जबकि अन्य पश्चिमी देशों ने भी ये स्वीकार किया कि चीन को लेकर उन्हें अपनी नीति बदलने की ज़रूरत है. इसी तरह ट्रंप ने नैटो के सहयोगी देशों को जो धमकी दी, उससे ग़ैर अमेरिकी सदस्यों को इस बात पर पुनर्विचार करना पड़ा कि गठबंधन की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए उन्हें रक्षा ख़र्च को लेकर अपने वादे पूरे करने ही होंगे.

 आज अमेरिका के भीतर खुलकर ये सोच दिखती है कि अपने पास पड़ोस में अमेरिका कमज़ोर हो रहा है और इलाक़े के बाहर की ताक़तें, ख़ास तौर से चीन की भूमिका बहुत तेज़ी से बढ़ती जा रही है. 

आज ट्रंप अमेरिका के आस-पास के इलाको़ं को लेकर अमेरिकी तंत्र की व्यापक आम सहमति को चुनौती दे रहे हैं. आज अमेरिका के भीतर खुलकर ये सोच दिखती है कि अपने पास पड़ोस में अमेरिका कमज़ोर हो रहा है और इलाक़े के बाहर की ताक़तें, ख़ास तौर से चीन की भूमिका बहुत तेज़ी से बढ़ती जा रही है. पनामा नहर के प्रबंधन में चीन की भूमिका, लंबे समय से अमेरिका के लिए फ़िक्र का कारण रही है. हो सकता है कि ट्रंप, इस नहर से गुज़रने वाले अमेरिका के कारोबारी और नौसैनिक जहाज़ों से वसूली जाने वाली फीस के ढांचे पर फिर से वार्ता करने के लिए उत्सुक हों. पनामा नहर पर चीन के दबदबे को लेकर चिंताएं असल में उसके नियंत्रण वाले दो बंदरगाह हैं, जो नहर के दोनों छोरों पर हैं. इन बंदरगाहों का संचालन हॉन्ग कॉन्ग स्थित कंपनी सीके हचिसन होल्डिंग्स करती है.

 

ग्रीनलैंड को ख़रीदने का विचार ट्रंप के दिमाग़ में कम से कम 2019 से ही चल रहा है. पर आज जबकि आर्टकिट क्षेत्र पर दावेदारी के विवाद बढ़ रहे हैं, तो वो शायद ग्रीनलैंड में मौजूद दुर्लभ खनिजों तक अमेरिका की पहुंच और बढ़ाने का इरादा रखते हों. वो कनाडा के साथ व्यापार के लिए बेहतर शर्तें और कनाडा की सीमा से होने वाले अप्रवास को लेकर सख़्त नीति की अपेक्षा रखते हैं.


ट्रंप के अब तक के एलानों के पीछे बहुत सोचे समझे भू-राजनीतिक समीकरण नज़र आते हैं. अब ट्रंप और उनकी टीम इनको कैसे लागू करती है, उसी से उनकी विदेश नीति की विरासत निर्धारित होगी. लेकिन, दुनिया को चौंकाने का ट्रंप का अंदाज़ ही उनके काम करने का असली तौर-तरीक़ा है.

निष्कर्ष

 

ट्रंप के अब तक के एलानों के पीछे बहुत सोचे समझे भू-राजनीतिक समीकरण नज़र आते हैं. अब ट्रंप और उनकी टीम इनको कैसे लागू करती है, उसी से उनकी विदेश नीति की विरासत निर्धारित होगी. लेकिन, दुनिया को चौंकाने का ट्रंप का अंदाज़ ही उनके काम करने का असली तौर-तरीक़ा है. अपने पूरे प्रचार अभियान के दौरान चीन की ऐसी-तैसी करने के बाद, पिछले हफ़्ते अचानक उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ‘फोन पर बहुत अच्छी’ बातचीत भी कर ली, और ये उम्मीद जता दी कि वो चीन के साथ ‘मिलकर बहुत सी समस्याओं का समाधान करेंगे और इसकी शुरुआत तुरंत होगी’. इसके साथ ही साथ विदेश नीति के मोर्चे पर ट्रंप प्रशासन का पहला क़दम अमेरिका के तीन क्वॉड साझीदारों- भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक करना भी रहा.

 

बुनियादी तौर पर ट्रंप की विश्व दृष्टि की सबसे अच्छी परिभाषा शायद, 2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिये गये उनके भाषण में दिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘राष्ट्रपति के तौर पर मैंने पुराने और नाकाम हो चुके तौर-तरीक़ों को ख़ारिज कर दिया है और मैं गर्व से अमेरिका को पहली पायदान पर रख रहा हूं, इसी तरह आप सबको भी अपने देशों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए. इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. ये बिल्कुल ठीक है. आपको यही करना भी चाहिए.’

भारत और बाक़ी दुनिया को इसी हिसाब से तैयारी करनी चाहिए.


ये लेख मूल रूप से मिंट में प्रकाशित हुआ था.

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