Author : Manoj Joshi

Published on Mar 22, 2024 Commentaries 0 Hours ago

अगर अमेरिका नाटो से बाहर चला गया तो गठबंधन को अपनी न्यूक्लियर-पॉलिसी को नए सिरे से आकार देना होगा.

यदि अमेरिका ‘नाटो’ से बाहर चला गया तो क्या?

Image Source: दैनिक भास्कर

गत 74 वर्षों से नाटो पश्चिम के सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक गठबंधनों में से एक है. इसके अनुच्छेद 5 के तहत सहभागी-देश एक-दूसरे की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और इससे यह अटलांटिक के दोनों किनारों पर मौजूद देशों को एकजुट करता है. लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प शीत युद्ध में सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए बनाए इस गठबंधन को समय और धन की बर्बादी समझते हैं.

उनका मानना है कि यूरोपियन मूलतः अमेरिका के खर्च पर नाटो की सुविधाएं भोग रहे हैं. 2000 से ही ट्रम्प अमेरिका के लाखों डॉलर बचाने के लिए नाटो से बाहर निकलने की वकालत कर रहे हैं. 2016 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने कहा था कि यदि रूस बाल्टिक देशों पर हमला करता है, तो वे यह देखने के बाद ही मदद करेंगे कि क्या उन्होंने अमेरिका के प्रति अपने दायित्व निभाए हैं. 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद तो उन्होंने नाटो से निकलने की धमकी ही दे दी थी.

अमेरिका के खर्च पर नाटो की सुविधाएं भोग रहे हैं. 2000 से ही ट्रम्प अमेरिका के लाखों डॉलर बचाने के लिए नाटो से बाहर निकलने की वकालत कर रहे हैं.

गत दिसंबर में, जैसे ही ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव अभियान शुरू किया, उन्होंने घोषणा कर दी कि यदि वे चुने गए तो उनका प्रशासन ‘नाटो के उद्देश्य और उसके मिशन की फिर से नापजोख करने की पिछले कार्यकाल के दौरान शुरू की गई प्रक्रिया को पूरा करेगा.’

यूरोपियन देशों का अब मानना है कि अगर ट्रम्प दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए तो अमेरिका नाटो से बाहर हो जाएगा. यह गत 10 फरवरी को स्पष्ट भी हो गया जब ट्रम्प से पूछा गया कि क्या वे किसी ऐसे नाटो सहयोगी की रक्षा करेंगे, जिसने डिफेंस पर अपने कुल जीडीपी का 2 प्रतिशत भी खर्च न किया हो?

उन्होंने जवाब दिया, ‘नहीं, मैं नहीं करूंगा!’ बताया जाता है कि ट्रम्प ने कहा था, ‘वास्तव में, मैं उन्हें (यानी रूसियों को) जो कुछ भी वे चाहते हैं, उसे करने के लिए प्रोत्साहित करूंगा.’ यूरोप पर ट्रम्प की इस सोच का सबसे तात्कालिक प्रभाव यूक्रेन पर पड़ेगा.

रूसी आक्रमण के बाद से पिछले दो वर्षों में नाटो ने यूक्रेन को अपनी रक्षा में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जबकि यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है. वास्तव में, माना जाता है कि यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की संभावनाओं ने ही फरवरी 2022 में रूस को उस पर चढ़ाई करने के लिए उकसाया था. अमेरिका ने यूक्रेन को भारी मात्रा में सैन्य सहायता प्रदान की है, जबकि यूरोपियनों ने उसे बड़े पैमाने पर आर्थिक सहायता दी है.

ट्रम्प का दावा

ट्रम्प का दावा है कि अगर वे राष्ट्रपति होते तो 24 घंटे में यूक्रेन युद्ध का समाधान कर देते. इससे उनका क्या अभिप्राय है, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन उनकी अन्य टिप्पणियों से पता चलता है कि उन्होंने यूक्रेन पर अपनी पूर्वी भूमि को रूस को सौंप देने के लिए दबाव डाला होगा.

राष्ट्रपति जेलेंस्की का विचार है कि यूक्रेन रूसियों द्वारा कब्जा की गई सभी जमीनों को फिर से हासिल कर लेगा. लेकिन अमेरिकी सैन्य सहायता के बिना ऐसा होने की संभावना नहीं है. 2024 में यूक्रेन में युद्ध की फंडिंग के लिए 50 अरब डॉलर के बिल को पारित करने से रिपब्लिकन पार्टी के इनकार में पहले से ही ट्रम्प के प्रभाव के संकेत हैं.

इससे उनका क्या अभिप्राय है, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन उनकी अन्य टिप्पणियों से पता चलता है कि उन्होंने यूक्रेन पर अपनी पूर्वी भूमि को रूस को सौंप देने के लिए दबाव डाला होगा.

आज यूक्रेनी गोला-बारूद की कमी से जूझ रहे हैं, क्योंकि अमेरिकी मदद का कुछ हिस्सा इजराइल की ओर भेज दिया गया है. दूसरी तरफ रूस का हथियार उद्योग पिछले दो वर्षों में नाटकीय रूप से आगे बढ़ा है.

तब आगे क्या?

यूक्रेन के पतन का यूरोप में व्यापक असर होगा और एस्टोनिया और लातविया जैसे बाल्टिक देशों पर रूसी आक्रामकता की आशंका और बढ़ जाएगी. इन देशों में 25 प्रतिशत रूसी लोग रहते हैं. इस तरह से यूरोपियनों को चेतावनी दी गई है और उन्हें अपनी हिफाजत की पूरी जिम्मेदारी खुद ही उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए.

फिनलैंड और स्वीडन के शामिल होने से नाटो काफी मजबूत हुआ है, क्योंकि इन दोनों ही देशों के पास मजबूत रक्षा प्रणालियां हैं. लेकिन आज उसके कई सदस्य-देश डिफेंस पर अपने जीडीपी का 2 प्रतिशत खर्च करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनकी सेनाएं इतनी कमजोर हो गई हैं कि उन्हें उबरने में समय लगेगा.

अगर अमेरिका गठबंधन छोड़ देता है तो यूरोपियनों को अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए और खर्च करने की आवश्यकता होगी- शायद 3 प्रतिशत. उन्हें गोला-बारूद, परिवहन, ईंधन भरने वाले विमान, कमांड और नियंत्रण प्रणाली, उपग्रह, ड्रोन इत्यादि की कमी को पाटना होगा, जो वर्तमान में अमेरिका द्वारा मुहैया कराए जाते हैं. 27 देशों (साथ ही सहयोगी सदस्य नॉर्वे) का संघ होने के नाते ईयू को अपने किसी भी सदस्य-देश की उपेक्षा किए बिना धन खर्च करने में सक्षम होना चाहिए.

यूके और फ्रांस जैसे नाटो सदस्य-देशों के पास 500 एटमी हथियार हैं, जबकि अकेले रूस के पास 6000 हैं. अगर अमेरिका नाटो से बाहर चला गया तो गठबंधन को अपनी न्यूक्लियर-पॉलिसी को नए सिरे से आकार देना होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.