Published on Apr 18, 2024

संकलन - ऊमेन कूरियन, शोबा सूरी

विश्व स्वास्थ्य दिवस 2024, जिसकी थीम “मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार” था, वो लोगों से इस दिशा में कदम उठाने के लिए एक अपील के तौर पर काम करता है, ये हमसे अनुरोध करता है कि हम एक मौलिक मानवाधिकार के रूप में स्वास्थ्य के गंभीर निहितार्थों पर विचार करें. भारत जैसे मिश्रित और विविध देश में हर किसी तक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करना न केवल एक कर्तव्य है बल्कि सतत विकास और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए एक ज़रूरत भी है.

ORF के स्कॉलर्स के द्वारा विचार को उभारने वाले लेखों की ये श्रृंखला इस महत्वपूर्ण अवसर को पहचानती है और भारत के हेल्थकेयर सिस्टम के केंद्र तक जाती है. इस तरह जो समाज अभी भी घोर असमानताओं से पार पाने की प्रक्रिया से गुज़र रहा है, वहां सतत विकास लक्ष्य 3, विशेष रूप से यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (UHC), को हासिल करने में आने वाली मुश्किलों को ये सीरीज़ उजागर करती है. 

हम जिन मुद्दों की खोजबीन कर रहे हैं वो विशाल और तरह-तरह के हैं जो बहुआयामी अधिकार के रूप में स्वास्थ्य की जटिलता के बारे में बताते हैं. हम भारत के बुजुर्गों की सेहत को प्राथमिकता देने की गंभीर ज़रूरत पर प्रकाश डालने से शुरुआत करते हैं क्योंकि ये ऐसा समूह है जिसे स्वास्थ्य को लेकर संवाद में अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है. हेल्थकेयर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के विश्वास और ख़तरों का विश्लेषण किया गया है जो ऐसे भविष्य के बारे में बताता है जहां तकनीक़ स्वास्थ्य प्रणाली में क्रांति ला सकती है या उसे अस्थिर कर सकती है. इसके बाद नैरेटिव स्वास्थ्य से जुड़े डेटा की इंटरऑपरेबिलिटी और हेल्थकेयर की उपलब्धता को सुधारने में इसकी भूमिका की आलोचनात्मक समीक्षा के साथ भारत की इनोवेटिव नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर करने के स्पष्ट दृष्टिकोण की ओर चली जाती है.

इस सीरीज़ के ज़रिए हमारी यात्रा हमें विकासशील देशों के बीच सहयोग (साउथ-साउथ कोऑपरेशन) की रूप-रेखा के भीतर मातृ और शिशु स्वास्थ्य (MCH) पर चर्चा और G20 एवं इंडो-पैसिफिक में डिजिटल हेल्थ इनिशिएटिव में भारत की निर्णायक भूमिका के साथ वैश्विक मंच पर ले जाती है. जेंडर, स्वास्थ्य अधिकारों और जलवायु परिवर्तन का एक-दूसरे से जुड़ना पर्यावरण संकटों के सामने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एकीकृत दृष्टिकोण की तत्काल आवश्यकता पर आकर्षक नैरेटिव पेश करता है. हम भारत के सामाजिक कल्याण की प्रणाली में स्वास्थ्य देखभाल के प्रगतिशील एकीकरण की खोजबीन भी करते हैं. ये सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य देखभाल की समान उपलब्धता को सुनिश्चित करने के मक़सद से संवैधानिक प्रावधानों, न्यायिक व्याख्याओं और व्यापक स्वास्थ्य एवं सामाजिक कल्याण की पहल को अमल में लाने के ज़रिए स्वास्थ्य को एक अधिकार के रूप में मान्यता देने की भारत की प्रतिबद्धता पर ज़ोर देती है. 

जैसे-जैसे हम “वन हेल्थ” के सिद्धांतों में गहराई से उतरते हैं, वैसे-वैसे ये सीरीज़ मानव, पशु और पर्यावरण की भलाई को शामिल करने वाले स्वास्थ्य की पूरी तरह से समझ के साथ-साथ स्वास्थ्य समानता के लिए जलवायु न्याय की वकालत करती है. स्वास्थ्य के अधिकार के कानूनी और संवैधानिक पहलुओं के बारे में पता लगाया गया है, एक सामंजस्यपूर्ण रूप-रेखा के लिए अनुरोध किया गया है जो मानवीय और धरती के स्वास्थ्य से जुड़ी सोच को एकीकृत करती है. आख़िर में ये सीरीज़ कदम उठाने के लिए एक शक्तिशाली अपील के साथ ख़त्म होती है. इसमें ये प्रस्ताव दिया गया है कि भारत में स्वास्थ्य सेवा को महत्वपूर्ण बढ़ावा देने का सही समय आ गया है. स्वास्थ्य और संघवाद की गतिशीलता का पता लगाकर ये सीरीज़ सामूहिक हिसाब-किताब को बढ़ावा देती है कि कैसे शासन व्यवस्था और स्वास्थ्य नीतियां “मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार” के वादे को पूरा करने में मिल सकती हैं.

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