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Published on Apr 09, 2024 Updated 0 Hours ago

ग्लोबल साउथ की आवाज़ के रूप में भारत की मान्यता के साथ मातृ मृत्यु अनुपात और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में उसकी प्रगति दूसरे विकासशील देशों के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में काम कर सकती है.

माताओं की सेहत के लिए विकासशील देशों के बीच सहयोग: भारत की भूमिका को आगे बढ़ाना

ये लेख 'विश्व स्वास्थ्य दिवस 2024: मेरा स्वास्थ्य, मेरा अधिकार' शीर्षक वाली श्रृंखला का हिस्सा है.


मातृत्व स्वास्थ्य की पहेली

गर्भावस्था या बच्चे के जन्म के दौरान समस्याओं की वजह से हर रोज़ लगभग 800 महिलाओं की मौत के आंकड़े के साथ मातृ मृत्यु दुनिया भर में एक महत्वपूर्ण चिंता है. मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) एक प्रमुख सूचक के तौर पर काम करता है, ये एक ख़ास समय सीमा के भीतर प्रति 1,00,000 जन्म पर मातृ मृत्यु की संख्या के बारे में बताता है. 2015 से 2020 (रेखाचित्र 1 देखें) के बीच दुनिया भर में MMR में मामूली कमी के बावजूद, जो प्रति 1,00,000 जन्म पर 227 से घटकर 223 हो गया, ये अभी भी SDG (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल) 3.1 के द्वारा निर्धारित लक्ष्य से तीन गुना ज़्यादा है. सबसे चिंताजनक बात ये है कि लगभग 95 प्रतिशत माताओं की मौत सब-सहारन अफ्रीका (सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित इलाका) और दक्षिण एशिया के निम्न और निम्न मध्यम आय (लोअर मिडिल इनकम) वाले देशों में होती है.

रेखाचित्र 1: क्षेत्र के हिसाब से मातृ मृत्यु अनुपात और कमी की औसत वार्षिक दर (2000-2020)

स्रोत: WHO

MMR पर ध्यान देना सिर्फ SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण) हासिल करने के लिए बल्कि स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) के दूसरे लक्ष्यों के साथ इसके मेलजोल के लिए भी ज़रूरी है. ये एक अहम व्यापक तत्व (क्रॉस-कटिंग एलिमेंट) है जो स्वास्थ्य के मानक से आगे तक जाता है. मिसाल के तौर पर MMR SDG 1 (ग़रीबी नहीं होना) से मिलता है क्योंकि स्वास्थ्य सेवा की ज़्यादा लागत लोगों को काफी ग़रीबी में धकेल सकती है जिसकी वजह से मातृ स्वास्थ्य सेवाओं का कम इस्तेमाल होता है. इसके अलावा मातृ स्वास्थ्य पर ध्यान देना SDG 2.2 से मेल खाता है जिसका उद्देश्य गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करना है. इसके अलावा मातृ स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता को सुनिश्चित करना SDG 5 (लैंगिक समानता) के साथ मेल खाता है, विशेष रूप से SDG के टारगेट 5.6 में जिक्र किए गए यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार तक हर किसी की पहुंच हासिल करने में. इस तरह MMR में कमी केवल मातृ स्वास्थ्य के नतीजों को बेहतर करने में योगदान देती है बल्कि लोगों के व्यापक टिकाऊ कल्याण की तरफ प्रगति को आगे बढ़ाने में भी. 

MMR में कमी न केवल मातृ स्वास्थ्य के नतीजों को बेहतर करने में योगदान देती है बल्कि लोगों के व्यापक टिकाऊ कल्याण की तरफ प्रगति को आगे बढ़ाने में भी. 

मातृ, नवजात और शिशु स्वास्थ्य (MNCH) पर वैश्विक विकास साझेदारी

2017 से 2021 के बीच MNCH के लिए आवंटित आधिकारिक विकास सहायता (ODA) स्थिर रहते हुए लगभग 10 अरब अमेरिकी डॉलर रही. लेकिन 2020 और 2021 में ODA और MNCH के लिए वैश्विक स्वास्थ्य ODA के अनुपात में गिरावट आई. इसकी वजह कोविड-19 महामारी के ख़िलाफ़ फंडिंग में बढ़ोतरी थी. हालांकि 2023 के बाद इसमें बढ़ोतरी की उम्मीद है. 2021 में 42 प्रतिशत ODA बहुपक्षीय संस्थानों से मिली जिसमें GAVI, विश्व बैंक IBRD और विश्व बैंक IDA बड़े दानकर्ता थे. MNCH के लिए आवंटित कुल ODA में 53 प्रतिशत हिस्सा द्विपक्षीय योगदान रहा. इसमें बहुपक्षीय संगठनों के माध्यम से की गई फंडिंग शामिल है. अमेरिका सबसे बड़ा दानकर्ता रहा जिसने MNCH के लिए कुल विकास सहायता समिति (DAC) में 29 प्रतिशत योगदान दिया. जर्मनी, यूरोपियन यूनियन इंस्टीट्यूशन (EUI) और जापान ने मिलकर द्विपक्षीय MNCH फंडिंग का 31 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सा दिया. फ्रांस ने फ्रेंच मुसकोका फंड की स्थापना के माध्यम से अफ्रीका में MNCH का महत्वपूर्ण समर्थन किया है

विकासशील देशों के द्वारा प्रेरित साझेदारी के बढ़ते महत्व के साथ मौजूदा संसाधनों को लगाना और MNCH से जुड़े मुद्दों का समाधान करने के लिए नए रास्ते तलाशना ज़रूरी है. 

विकासशील देशों के द्वारा प्रेरित साझेदारी के बढ़ते महत्व के साथ मौजूदा संसाधनों को लगाना और MNCH से जुड़े मुद्दों का समाधान करने के लिए नए रास्ते तलाशना ज़रूरी है. उदाहरण के लिए, चीन ने अपने साउथ-साउथ कोऑपरेशन असिस्टेंस फंड (SSCAF) के ज़रिए MCH (मातृ और शिशु स्वास्थ्य) के लिए अपनी विकास सहायता का काफी विस्तार किया है. ध्यान देने की बात है कि अफ्रीका के देशों के साथ चीन की साझेदारी इस वादे पर ज़ोर देती है. ये पिछले दिनों यूनिसेफ को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के डोनेशन से पता चलता है जिसका उद्देश्य नाइजर जैसे देशों में MCH से जुड़े प्रयासों को बढ़ाना है. ये कदम सब-सहारन अफ्रीकी देशों के साथ चीन के कूटनीतिक संबंधों को और गहरा करता है. दूसरी तरफ, पारंपरिक डोनर जैसे कि जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA), यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID), EU का डायरेक्टोरेट जनरल फॉर इंटरनेशनल पार्टनरशिप (DG INTPA), डॉयचे गेज़ेलशैफ्ट फॉर इंटरनेशनल शुज़ामेनअबायट (GIZ) और फ्रेंच डेवलपमेंट एजेंसी (AFD) माताओं और बच्चों- दोनों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता को सुधारने पर ध्यान दे रही हैं. MCH से जुड़ी परियोजनाएं बांग्लादेश, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, थाईलैंड, फिलीपींस इत्यादि देशों में हैं. 2019 में JICA ने यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज पर चर्चा को बढ़ावा देने और जागरूकता फैलाने के लिए अपनी तरह का अकेला हैंडबुक जारी किया. JICA सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट 2023 के अनुसार उसने उन 34 देशों में हैंडबुक की 90 लाख प्रतियां बांटी है जहां वो सक्रिय रूप से हिस्सेदार है. वित्तीय वर्ष 2020 के लिए USAID ने MCH के नाम पर 874 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आवंटन किया जो 2019 के 849 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आवंटन से थोड़ा ज़्यादा है. EU ने EU आयोग और EU के सदस्य देशों के बीच एक व्यापक दृष्टिकोण तैयार करके अपने साझेदार देशों में सभी तरह के कुपोषण से मुकाबले के लिए न्यूट्रिशन फॉर डेवलपमेंट (N4D) कार्यक्रम शुरू किया. 2021 में टोक्यो न्यूट्रिशन फॉर ग्रोथ समिट में EU आयोग ने 2021-2024 की अवधि के लिए लगभग 2.5 अरब यूरो का वादा किया

MCH पर भारत और विकासशील देशों के बीच सहयोग

भारत ने MCH मानकों में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की है और 2030 तक प्रति एक लाख जन्म पर 70 मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) के SDG 3.1 के लक्ष्य को हासिल करने की तरफ बढ़ रहा है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा शुरू प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) जैसी योजनाओं के ज़रिए भारत सरकार देशव्यापी स्वास्थ्य प्रणाली को बढ़ाने के लिए मुफ्त प्रसवपूर्व देखभाल (एंटीनेटल केयर) और मातृ सेवाओं तक पहुंच का विस्तार कर रही है. ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) की आवाज़ के तौर पर भारत की मान्यता के साथ MMR और MCH में उसकी प्रगति दूसरे विकासशील देशों के लिए ब्लूप्रिंट के रूप में काम कर सकती है. भारत अपनी सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को विकासशील देशों में इसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे कमज़ोर क्षेत्रों के साथ साझा कर सकता है. इंडियन टेक्निकल एंड कोऑपरेशन प्रोग्राम (ITEC) के ज़रिए भारत तालमेल को बढ़ावा देने और सीमा पार जानकारी साझा करने के लिए जाना जाता है. इस मामले में वो दुनिया भर में MCH की तरफ प्रयासों को संभवत: तेज़ कर सकता है

दो कामयाब चरणों के बाद एक समझौता ज्ञापन (MoU) के ज़रिए तीसरे चरण का विस्तार आकांक्षी ज़िलों तक होगा और एक इनोवेशन केंद्र की स्थापना की जाएगी जो ग्लोबल साउथ के दूसरे विकासशील देशों में सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को और बढ़ावा देगा.

इसके अलावा MNCH को लेकर भारत की प्रगति को मान्यता दी गई है और इसका फायदा उठाया जा रहा है, विशेष रूप से त्रिकोणीय सहयोग की पहल के माध्यम से. उदाहरण के लिए, नॉर्वे-इंडिया पार्टनरशिप इनिशिएटिव (NIPI) का मक़सद भारत के सफल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के ज़रिए भारत में मातृ, नवजात और शिशु मृत्यु को कम करना है. दो कामयाब चरणों के बाद एक समझौता ज्ञापन (MoU) के ज़रिए तीसरे चरण का विस्तार आकांक्षी ज़िलों तक होगा और एक इनोवेशन केंद्र की स्थापना की जाएगी जो ग्लोबल साउथ के दूसरे विकासशील देशों में सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को और बढ़ावा देगा. इसके अलावा, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर अमेरिका-भारत-अफ़ग़ानिस्तान त्रिकोणीय सहयोग परिवार नियोजन और MCH में अफ़ग़ानिस्तान पर प्राथमिक ध्यान के साथ चुनिंदा अफ्रीकी और एशियाई देशों तक भारतीय इनोवेशन और सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों के ट्रांसफर की सुविधा देता है

भारत की अपनी द्विपक्षीय साझेदारी के मामले में विदेश मंत्रालय ने भारत कीपड़ोस सर्वप्रथमनीति के तहत वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 22,154 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. ये भारत के द्वारा अपने आस-पड़ोस के देशों के साथ द्विपक्षीय विकास साझेदारी को बढ़ाने की प्रतिबद्धता के बारे में बताता है जिसमें स्वास्थ्य एक प्राथमिकता है. स्वास्थ्य में एक प्रमुख विकास साझेदार होने के बावजूद भारत का हस्तक्षेप काफी हद तक अच्छी क्वालिटी की दवाइयों और मेडिकल सप्लाई के निर्यात के साथ-साथ विदेश में स्वास्थ्य सेवा के इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना पर केंद्रित रहा है. वहीं MCH को लेकर भारत का विकास से जुड़ा हस्तक्षेप अपेक्षाकृत काफी कम बना हुआ है. अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान कमज़ोर क्षेत्रों की चिंताओं पर ज़ोर देने के बाद भारत को सकारात्मक और सक्रिय रूप से इस स्थिति का उपयोग करना चाहिए और दुनिया भर में MCH के उद्देश्य से एक सक्षम वातावरण तैयार करने के लिए व्यावहारिक साझेदारी बनाने की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित करना चाहिए


स्वाति प्रभु ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी (CNED) में एसोसिएट फेलो हैं.

शैरॉन सारा थवानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन, कोलकाता के डायरेक्टर की एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट हैं

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