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Published on Apr 08, 2024 Updated 0 Hours ago

हालांकि सरकार ने सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं लेकिन अब भी समाज का एक बड़ा वर्ग इन योजनाओं से बाहर है. वो स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा उठा पा रहा है.

कल्याणकारी राज्य में स्वास्थ्य का अधिकार: सामाजिक सुरक्षा के लिए अभी क्या करना ज़रूरी है?

सार्वजनिक स्वास्थ्य को समाज का एक बुनियादी अंग माना जाता है. ये सम्मान के साथ जीने के हमारे मूलभूत अधिकार पर असर डालता है. दुनिया के कई देश अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने को सामाजिक कल्याण का अहम हिस्सा मानते हैं. भारत भी खुद को एक मजबूत और जिम्मेदार कल्याणकारी राज्य मानता है. इसलिए सरकार पिछले कई दशकों से अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश कर रही है. हालांकि भारतीय संविधान में स्वास्थ्य के अधिकार को मूलभूत अधिकार नहीं माना गया है लेकिन कई न्यायिक फैसलों में ये बात कही जा चुकी है कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में जीवन के मूलभूत अधिकार की जो बात कही गई है, स्वास्थ्य का अधिकार भी उसी का एक अहम हिस्सा है. हालांकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की सबसे बेहतरीन सुविधा का अधिकार कोई हाल के वर्षों का परिदृश्य नहीं है. कई अंतरराष्ट्रीय मंचों में ये बात दोहराई जा चुकी है स्वास्थ्य भी शासन के लिए एक प्राथमिकता का क्षेत्र है. स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लेख 1946 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के संविधान में भी किया गया है. WHO के संविधान की प्रस्तावना में स्वास्थ्य को की परिभाषित करते हुए कहा गया है कि सिर्फ रोग या कमज़ोरी का ना होना ही स्वस्थ होने का आदर्श मापदंड नहीं हो सकता. व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए. 1948 में मानवाधिकार के सार्वभौमिक घोषणा पत्र के आर्टिकल 25 में स्वास्थ्य के अधिकार को जीवन स्तर के पर्याप्त अधिकार में शामिल किया गया है. 1966 में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को लेकर जो अनुबंध हुए, उसमें भी ये बाद दोहराई गई कि स्वास्थ्य एक बुनियादी मानवाधिकार है

पिछले दो दशकों में WHO के तहत मानवाधिकार की निगरानी करने वाले संगठनों ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि स्वास्थ्य का अधिकार एक मूल अधिकार है. 

पिछले दो दशकों में WHO के तहत मानवाधिकार की निगरानी करने वाले संगठनों ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि स्वास्थ्य का अधिकार एक मूल अधिकार है. मानवाधिकार परिषद ने भी इसे लेकर दुनियाभर में एक जनादेश बनाया है कि हर नागरिक को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरीन सुविधा मिलनी चाहिए. स्वास्थ्य की स्थिति से हमें ये संकेत भी मिलता है कि मानवीय सुरक्षा और विकास को लेकर हम कहां तक पहुंचे हैं. इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र ने जो 17 सतत विकास लक्ष्य तय (SDGs) किए हैं, उसका तीसरा लक्ष्य अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाली से जुड़ा है. भारत ने भी SDGs को पूरा करने का भरोसा दिया है. यानी स्वास्थ्य की अहमियत को लेकर वैश्विक स्तर पर एक व्यापक सहमति बन चुकी है. कोरोना महामारी के बाद भारत ने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं में जिस तरह बढ़ोत्तरी की है, उसका फायदा हमें सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में भी दिख रहा है

 

बेहतर स्वास्थ्य के लिए क्या-क्या चीजें ज़रूरी हैं?

 इसमें कोई शक नहीं कि स्वस्थ जीवन के लिए सस्ती और उच्च गुणवत्ता की स्वास्थ्य सेवाएं सबसे अहम बिंदु है लेकिन मौजूदा दौर में स्वास्थ्य सुविधाओं की परिभाषा बहुत व्यापक हो गई है. पीने का साफ पानी, साफ-सफाई और स्वच्छता, सुरक्षित और पर्याप्त पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता, काम करने का स्वस्थ माहौल, स्वास्थ्य को लेकर खुलकर बात करने का माहौल और उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं के इस्तेमाल को अब स्वास्थ्य को लेकर बनाए जाने वाली समग्र नीतियों में शामिल किया जाने लगा है. हाशिए पर रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना हाल के वर्षों में भारत की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा बन गया है. सरकार की कोशिश है कि स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने के लिए नागरिकों को अपनी जेब से ज्यादा पैसे खर्च करने पड़े. सरकार चाहती है कि नागरिकों को रियासती दरों पर या फिर वहन करने योग्य कीमत पर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें. सामाजिक सुरक्षा और कल्याण की व्यापक परिभाषा के तहत कुपोषण की चुनौती से निपटना और स्वच्छता भी भारत की स्वास्थ्य सेवाओं का अभिन्न अंग बन गया है. 

 सामाजिक सुरक्षा और कल्याण की व्यापक परिभाषा के तहत कुपोषण की चुनौती से निपटना और स्वच्छता भी भारत की स्वास्थ्य सेवाओं का अभिन्न अंग बन गया है. 

सामाजिक सुरक्षा को स्वास्थ्य सेवाओं के तौर पर मज़बूत करना

 हर भारतीय नागरिक को स्वास्थ्य सुविधाओं के तहत लाना राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 का मुख्य लक्ष्य है. आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना जैसी सरकार की योजनाओं से देश की एक बड़ी आबादी को स्वास्थ्य बीमा के तहत लाया जा चुका है. खासकर गरीबों को इससे काफी फायदा हो रहा है. आयुष्मान भारत योजना के तहत हर लाभार्थी परिवार साल में एक बार पांच लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज करा सकता है. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 2022-23 में ही 9.22 करोड़ नए आयुष्मान कार्ड जारी किए गए. इसके अलावा अलग-अलग राज्यों सरकारों ने भी अपनी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं शुरू की हैं, जिनसे लाखों ज़रूरतमंदों को फायदा हो रहा है. इन योजनाओं का सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि गरीबों को इलाज के लिए अपनी जेब से पैसा खर्च नही करना पड़ता. देश की बड़ी आबादी पर ये खर्च एक बहुत बड़ा बोझ था. कोरोना महामारी के दौरान इन योजनाओं से लोगों को बहुत फायदा हुआ. हालांकि इन योजनाओं में कुछ कमियां हैं, जिन्हें शायद भविष्य में दूर कर लिया जाएगा

भारतीय संविधान के मुताबिक स्वास्थ्य राज्य सरकारों से जुड़ा विषय है. इसलिए कई राज्य सरकारों ने भी गरीबों और आर्थिक तौर पर कमज़ोर लोगों को राहत पहुंचाने के लिए इस तरह की स्वास्थ्य योजनाएं शुरू की हैं. इसके तहत गरीबों को मुफ्त में या फिर रियायती दरों पर इलाज और दवाइयां मुहैया कराई जाती हैं. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) के तहत गरीबों के लिए चलाई जा रही मुफ्त अनाज योजना ने भूख और कुपोषण से निपटने में अहम भूमिका निभाई है. केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. ये योजना 2013 की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा नीति का ही विस्तार है. राज्य सरकारों के स्तर पर भी इस तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. इससे भारत की खाद्य सुरक्षा की व्यवस्था मजबूत हो रही है. इस तरह की योजनाएं अब सामाजिक कल्याण का एक अनिवार्य अंग बन गई हैं. इन योजनाओं की वजह से गरीबों को भूख और कुपोषण का शिकार होने से बचाया जा सकता है

कई स्वास्थ्य योजनाएं महिलाओं को केंद्र में रखकर शुरू की गई है, जिससे सामाजिक पूर्वाग्रहों की वजह से महिलाएं स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने से वंचित ना रह जाएं. हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की 49 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं हैं. 

हमारा जैसा सामाजिक ढांचा है, उसमें स्वास्थ्य सुविधाएं का लाभ लेने के मामले में महिलाएं ऐतिहासिक रूप से हमेशा पिछड़ी रही हैं. गरीबी, आर्थिक निर्भरता, घरेलू हिंसा, सामाजिक पूर्वाग्रह, यौन और प्रजनन संबंधित विकल्पों पर अपना नियंत्रण ना हो और फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं होने जैसे कारणों की वजह से महिलाएं स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल करने से वंचित रहीं. यही वजह है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए कई कदम उठाए हैं. मातृत्व मृत्युदर पिछले दशक तक एक बड़ी चुनौती रही थी, लेकिन अब इसमें काफी कमी आई है. केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से कई ऐसी योजनाएं शुरू की गई हैं जिसके तहत महिला को प्रसव पूर्व मुफ्त में या फिर रियायती दरों में स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जाती है. कई स्वास्थ्य योजनाएं महिलाओं को केंद्र में रखकर शुरू की गई है, जिससे सामाजिक पूर्वाग्रहों की वजह से महिलाएं स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने से वंचित ना रह जाएं. हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की 49 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं हैं. यानी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का फायदा लेने वालों में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. उज्जवला योजना से महिलाओं को मुफ्त में या फिर रियायती दरों पर गैस सिलेंडर मिल रहा है. कई महिलाएं पहले लकड़ी या गोबर के उपलों से खाना बनाती थी, इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता था. उज्जवला योजना से इन्हें धुएं से राहत मिली है

 

कल्याणकारी राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करना

 सामाजिक कल्याण की एक योजना के रूप में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के दिशा में अभी काफी काम किए जाने की ज़रूरत है. हालांकि सरकार द्वारा चलाई जा रही स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की वजह से लोगों को अपनी जेब से पैसे खर्च नहीं करने पड़ रहे लेकिन अभी भी कई लोग ऐसे हैं, जो इन योजनाएं से बाहर होने की वजह से स्वास्थ्य सुविधाओं का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. इसके साथ ही स्वास्थ्य के पूरे ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन और डॉक्टरों की संख्या बढ़ाए जाने की ज़रूरत है जिससे तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाई जा सके, खासकर ग्रामीण और अर्द्ध ग्रामीण इलाकों में. कुपोषण की समस्या में हालांकि पिछले कुछ सालों में कमी आई है लेकिन अभी भी कई बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. एक मज़बूत लोकतंत्र और कल्याणकारी राज्य होने के नाते ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो हर नागरिक को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराए. भारत के सामाजिक कल्याण के बहुआयामी परिदृश्य का ये एक अहम हिस्सा है. हाल ही में राजस्थान ने स्वास्थ्य के अधिकार को मूल अधिकार के तौर पर मान्यता देने वाला विधेयक पास किया. राजस्थान ऐसा करने वाला पहला राज्य है. ये विधेयक इसलिए अहम हैं क्योंकि इसकी वजह से स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच को कानूनी वैधता मिली है. इस तरह के फैसलों से स्वास्थ्य सेवाओं के विकास का रास्ता तो आसान होता ही है साथ ही इस बात को भी मान्यता मिलती है कि स्वास्थ्य का अधिकार नागरिकों का एक महत्वपूर्ण अधिकार है.

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