Author : Pratnashree Basu

Expert Speak Health Express
Published on Apr 09, 2024 Updated 0 Hours ago

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देश स्वास्थ्य के साझा ख़तरों से जूझ रहे हैं. ऐसे में इस क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य के उद्देश्यों को हासिल करने में स्वास्थ्य कूटनीति एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्वास्थ्य कूटनीति और रोगों से निपटने की क्षमता में स्वस्थ संतुलन कैसे बनाया जाए?

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्वास्थ्य कूटनीति इस वक्त ऐसे अहम मोड़ पर है, जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर की जा रही पहल का असर भू-राजनीतिक हितों और आर्थिक विषमताओं पर भी पड़ता है. इंडो-पैसिफिक एक बहुत बड़ा और ऊर्जा से भरा हुआ क्षेत्र है. यहां के देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र की चुनौतियों अनूठी भी हैं और साझा भी. इस क्षेत्र में संक्रामक बीमारियां भी दिखती हैं और गैर संक्रामक भी. ऐसे में इस क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लक्ष्य हासिल करने और स्वास्थ्य सेवाओं को सबकी पहुंच में लाने में स्वास्थ्य कूटनीति एक अहम भूमिका निभा सकती है. इससे ना सिर्फ क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा बल्कि बीमारियों के प्रकोप को कम करके क्षेत्रीय स्थिरता लाने में भी मदद मिल सकती है. आजकल विदेश नीति में स्वास्थ्य पर ज़ोर बढ़ता जा रहा है. कई अन्तर्राष्ट्रीय घोषणापत्रों और समझौतों से ये साबित हो चुका है कि स्वास्थ्य और विदेश नीति की परस्पर निर्भरता से दुनियाभर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सकारात्मक नतीजे मिल रहे हैं.

आजकल विदेश नीति में स्वास्थ्य पर ज़ोर बढ़ता जा रहा है. कई अन्तर्राष्ट्रीय घोषणापत्रों और समझौतों से ये साबित हो चुका है कि स्वास्थ्य और विदेश नीति की परस्पर निर्भरता से दुनियाभर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सकारात्मक नतीजे मिल रहे हैं.

कोरोना महामारी से क्या सबक सीखे?

बीसवीं सदी के आखिर में और इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्वास्थ्य कूटनीति के परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं. भूमंडलीकरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उभरते नए ख़तरों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है. पिछले कुछ दशकों में वैश्विक स्तर पर जो भी स्वास्थ्य संकट आए हैं, उनका मुकाबला करने में ये क्षेत्र अग्रणी रहा है. फिर चाहे वो 2003 में आई सार्स महामारी हो. 2009 में आया स्वाइन फ्लू (H1N1)का संकट हो या फिर कुछ साल पहले आई कोरोना महामारी. इन महामारियों ने यह दिखाया कि अगर इनका मुकाबला करना है तो फिर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग ज़रूरी है. इतना ही नहीं इन घटनाओं ने स्वास्थ्य कूटनीति को भू-राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में भी ला दिया. वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को लेकर जो भी नई पहल हो रही हैं, उनमें इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अहम खिलाड़ी बनकर उभरा है. बौद्धिक संपदा पर चर्चा, वैक्सीन हिस्सेदारी और पारम्परिक चिकित्सा पद्धति का मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकीकरण में इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है.

हाल के वर्षों में क्वाडिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (QUAD) ने स्वास्थ्य कूटनीति पर ध्यान देना शुरू किया है. खासकर कोरोना महामारी ने जो चुनौतियां पेश की, उसके बाद विदेश नीति में स्वास्थ्य की सामरिक अहमियत पर ज़ोर दिया जा रहा है. QUAD देश अब ये सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि दुनिया भर में वैक्सीन तक लोगों की पहुंच हो. खासकर वो लोग, जो निम्न और मध्यम आय वर्ग से हैं. क्वाड वैक्सीन पार्टनरशिप जैसी पहल और ग्लोबल पेनडेमिक रडार जैसी योजनाओं की मदद करके ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि वैक्सीन के शोध में सबका सहयोग ज़रूरी है. इसके अतिरिक्त QUAD ने जन जागरूकता अभियान और वैज्ञानिक चर्चाओं के ज़रिए वैक्सीन को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों और वैक्सीन को लेकर जो हिचकिचाहट थी, उसे भी दूर करने का काम किया. इससे लोगों का वैक्सीन पर भरोसा बढ़ा. इतना ही नहीं QUAD ने सभी सदस्य देशों की नीतियों को इस तरह सुगम बनाया कि वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य को लेकर सबकी हिस्सेदारी हो. इसके साथ ही वैक्सीन की आपूर्ति और इसके वितरण में जो कमियां थीं, उन्हें भी दूर करने की कोशिश की गई. हालांकि वैक्सीन की आपूर्ति को लेकर जो वादे किए गए थे, वो पूरी तरह पूरे नहीं हो सके. इसके बावजूद QUAD ने ऐसी व्यवस्था की है कि अगर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भविष्य में स्वास्थ्य को लेकर कोई आपातकालीन संकट खड़ा होता है, कोई महामारी आती है तो उस वक्त वैक्सीन निर्माण क्षमता को बढ़ाया जा सके.

क्वाड वैक्सीन पार्टनरशिप जैसी पहल और ग्लोबल पेनडेमिक रडार जैसी योजनाओं की मदद करके ये संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि वैक्सीन के शोध में सबका सहयोग ज़रूरी है.


कोरोना वैक्सीन के 60 प्रतिशत उत्पादन और आपूर्ति और वैश्विक स्तर पर कोविड वैक्सीन की वितरण करग्लोबल फार्मेसी डिपोने इस महामारी का मुकाबला करने में अहम भूमिका निभाई लेकिन भारत ने भी स्वास्थ्य कूटनीति के ज़रिए स्वास्थ्य सेवाओं को सबकी पहुंच में लाने की वकालत की. भारत ने दवाइयों और वैक्सीन के निर्माण की अपनी क्षमता का फायदा उठाते हुए ना सिर्फ अपने लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीन बनाई बल्कि वैक्सीन मैत्री प्रोग्राम के ज़रिए दुनियाभर में वैक्सीन भेजी. भारत की इस पहल से अलग-अलग महाद्वीपों के 90 से ज्यादा देशों को कोरोना वैक्सीन मिली. इसमें हिंद महासागर क्षेत्र, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई द्वीपों के देश शामिल हैं. हालांकि कोरोना वैक्सीन को बाहर भेजने से घरेलू मोर्चे पर कुछ चुनौतियां भी आईं. कोरोना की तीसरी लहर में उछाल के दौरान देश में वैक्सीन की कमी हुई, जिसके बाद वैक्सीन के निर्यात पर अस्थायी तौर पर प्रभाव पड़ा. इन बाधाओं के बावजूद भारत ने अपने वैक्सीन मैत्री प्रोग्राम में थोड़ा बहुत बदलाव करते हुए वैश्विक स्तर पर वैक्सीन की आपूर्ति जारी रखी. इतना ही नहीं भारत ने वैक्सीन के न्यायसंगत वितरण के COVAX सुविधा प्रोग्राम में भी मदद की.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के दूसरे देशों जैसे कि दक्षिण कोरिया, ताइवान, न्यूज़ीलैंड और वियतनाम ने भी ये दिखाया कि कोरोना महामारी के दौरान तेज़ और प्रभावी कदम उठाने के क्या फायदे हो सकते हैं. इन देशों ने अपनी तकनीकी में बदलाव किए, लोगों का भरोसा जीता. इस संकट से जूझने के लिए संवाद का पारदर्शी तरीका अपनाया. दक्षिण कोरिया ने बहुत बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की. कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के अनोखे तरीकों का इस्तेमाल किया. पूरी तरह लॉकडाउन करने की बजाए साउथ कोरिया ने अपनी मज़बूत स्वास्थ्य सेवाओं और लोगों के सहयोग पर भरोसा किया. ताइवान ने भी इसे लेकर सक्रिय कदम उठाए. यात्रा संबंधी पाबंदियों को सख्ती से लागू किया. सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों को सही संदेश दिए. स्वास्थ्य और आव्रजन के आंकड़ों का एकीकरण किया. इन कदमों के ज़रिए ताइवान इस महामारी पर काफी हद तक काबू पाने में कामयाब रहा. न्यूजीलैंड ने भी गो हार्ड, गो अर्लीनीति के तहत इसे लेकर सख्त और निर्णायक फैसले लिए. लॉकडाउन को कड़ाई से लागू किया गया. सीमा पर आवाजाही बंद की गई. वियतनाम ने भी ऐसे ही कदम उठाए. उसने भी अपनी सीमाएं बंद की. सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर जनता से स्पष्ट संवाद किया. ज़मीनी स्तर पर अपने स्वास्थ्य नेटवर्क का इस्तेमाल किया. इसी का ये नतीजा रहा कि कोरोना महामारी की उत्पत्ति वाले देश चीन के करीब होने के बावजूद वियतनाम में इस बीमारी से पीड़ित और मृतकों की संख्या काफी कम रही.

इन देशों ने यह दिखाया कि अगर सही वक्त पर सीमा बंद करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य को तैयार रखकर, टेस्टिंग और ट्रैसिंग के लिए तकनीकी का मुस्तैदी से इस्तेमाल किया जाए तो फिर महामारी के ख़तरों का काफी हद तक सामना किया जा सकता है. इस महामारी ने ये भी दिखाया कि स्वास्थ्य नीति और विदेश नीति किस तरह एक-दूसरे से जुड़ी हैं. इससे ये संदेश भी मिला कि भविष्य में इस तरह के संकटों का सामना करने के लिए सभी देशों को मिलकर बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत है. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों का अनुभव भविष्य के लिए ये रूपरेखा पेश करता है किस तरह वैश्विक स्तर पर एकजुटता, तैयारियों और एक-दूसरे से सीखने की इच्छा से हम इस तरह की महामारियों से निपटने के लिए एक मज़बूत स्वास्थ्य तंत्र तैयार कर सकते हैं.

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मुख्य स्वास्थ्य कूटनीतिक पहल


चुनौतियों से निपटना

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्वास्थ्य कूटनीति को चुनौती इस इलाके के देशों में विविधता, भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक असमानता और सीमा पार के स्वास्थ्य के ख़तरों से भी मिलती है. इन देशों के बीच जो सियासी मतभेद और ऐतिहासिक तनाव हैं, वो स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिलकर काम करने की राह में रुकावट खड़ी करते हैं. आर्थिक असमानताओं की वजह से स्वास्थ्य सेवाएं सभी की पहुंच में नहीं हैं. संक्रामक रोगों, पर्यावरण के ख़तरों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की दृष्टि से ये क्षेत्र बहुत संवेदनशील है. लेकिन इस क्षेत्र के देशों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में जिस तरह की विषमता है, वो एकीकृत स्वास्थ्य रणनीति बनाने के रास्ते में और जटिलताएं पैदा करती है.

ऐसे में आसियान, विश्व स्वास्थ्य संगठनों के क्षेत्रीय कार्यालयों और QUAD जैसे संगठनों को आपस में सहयोग बढ़ाना चाहिए. ये ना सिर्फ निकट भविष्य में पैदा होने वाले स्वास्थ्य संकटों से निपटने में मदद करेंगे बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली को लंबे वक्त तक मज़बूत रखने में भी कामयाब होंगे. कमज़ोर स्वास्थ्य तंत्र को मज़बूत करने और स्वास्थ्य सेवाओं को सबकी पहुंच में लाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश को बढ़ाएं, स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षण दें और स्वास्थ्य क्षेत्र की क्षमताओं का विस्तार करें. स्वास्थ्य क्षेत्र के ख़तरों से निपटने के लिए ये भी ज़रूरी है कि हम राष्ट्रों की संप्रभुता और निजता के अधिकार का सम्मान करते हुए एक-दूसरे देशों से डेटा को साझा करें. सही वक्त पर ख़तरे की चेतावनी दें. इसके अलावा स्थानीय समुदाय को इसमें शामिल करना, उनकी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का सम्मान करना और संवाद के तंत्र को बेहतर बनाकर भी हम स्वास्थ्य को लेकर लोगों को जागरूक और शिक्षित कर सकते हैं.

ज़मीनी स्तर पर अपने स्वास्थ्य नेटवर्क का इस्तेमाल किया. इसी का ये नतीजा रहा कि कोरोना महामारी की उत्पत्ति वाले देश चीन के करीब होने के बावजूद वियतनाम में इस बीमारी से पीड़ित और मृतकों की संख्या काफी कम रही.


कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्वास्थ्य कूटनीति में ना सिर्फ इस इलाके के देशों की स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से निपटने की क्षमता है बल्कि वो सतत विकास और समावेशी समाज के लक्ष्यों को हासिल करने में भी अपना योगदान दे सकती है. स्वास्थ्य के दृष्टि से कमज़ोर मानी जाने वाली आबादी को प्राथमिकता देकर और स्वास्थ्य क्षेत्र में विषमताओं को दूर करने में स्वास्थ्य कूटनीति एक आधारशिला के तौर पर काम कर सकती है.

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