Author : Anulekha Nandi

Expert Speak Health Express
Published on Apr 08, 2024 Updated 0 Hours ago

हितधारकों की विविधता और तकनीकी आवश्यकताओं को देखते हुए आगे बढ़ने और डिजिटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को अपनाने में तेज़ी के लिए लचीले मानकों की ज़रूरत है.

भारत में राष्ट्रीय डिजिटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण!

भारत में हेल्थकेयर (स्वास्थ्य देखभाल) की उपलब्धता संस्थागत और व्यवस्थात्मक चुनौतियों से भरी हुई है. इन चुनौतियों में पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की कमी से शहरी-ग्रामीण असमानताएं, वित्तीय बाधाएं और अलग-अलग किरदारों एवं मानकों के साथ एक खंडित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली शामिल हैं जो बिना किसी दिक्कत के सूचना को साझा करने से रोकती है. मौजूदा समय में 47.1 प्रतिशत लोगों को सामर्थ्य, स्वास्थ्य सेवाओं से दूरी और हेल्थकेयर सिस्टम के भीतर व्यवस्थात्मक स्थितियों जैसे मुद्दों के कारण इलाज के लिए अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है जिसकी वजह से स्वास्थ्य के मामले में असमानताएं बढ़ती हैं. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB PM-JAY) का उद्देश्य स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों (हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर) और स्वास्थ्य बीमा कवरेज के दो परस्पर संबंधित घटकों के माध्यम से यूनिवर्सिल हेल्थ कवरेज (हर किसी तक अच्छी स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता) का विस्तार करना है. पहला घटक मौजूदा उप केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के परिवर्तन पर आधारित है ताकि गैर-संचारी रोगों (नॉन-कम्युनिकेबल डिज़ीज़) का इलाज, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएं (मैटरनल एंड चाइल्ड हेल्थ सर्विसेज़) और मुफ्त ज़रूरी दवाइयां एवं डायग्नोस्टिक सेवाएं व्यापक रूप से पहुंचाई जा सके. दूसरे घटक का उद्देश्य भारत के 50 प्रतिशत लोगों को प्राइमरी और सेकेंडरी हेल्थकेयर के लिए हर परिवार के हिसाब से 5,00,000 रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवरेज मुहैया कराना है. इस तरह ये दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक बीमा योजना बन जाती है. 

मौजूदा समय में 47.1 प्रतिशत लोगों को सामर्थ्य, स्वास्थ्य सेवाओं से दूरी और हेल्थकेयर सिस्टम के भीतर व्यवस्थात्मक स्थितियों जैसे मुद्दों के कारण इलाज के लिए अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है जिसकी वजह से स्वास्थ्य के मामले में असमानताएं बढ़ती हैं.

हालांकि स्वास्थ्य कवरेज के विस्तार के लिए आयुष्मान भारत योजना एक डिजिटल बुनियाद पर टिकी हुई है जिसका नाम है आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM). इसके तहत पहल को बढ़ाने, क्वालिटी की निगरानी करने और जवाबदेही तय करने के लिए तकनीक का प्रभावी इस्तेमाल शामिल है. डिजिटल हेल्थकेयर में लोगों की पुरानी बीमारी पर नज़र रखने में मदद करने के साथ बीमारियों की रोकथाम और इलाज पर खर्च कम करने की क्षमता है. इसका उद्देश्य स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता और क्वालिटी में सुधार करके हेल्थकेयर से जुड़ी व्यवस्थात्मक दिक्कतों से पार पाना है. हालांकि शुरुआत और इस्तेमाल से आगे बढ़ें तो इसे बढ़ाना और जोड़ना प्रमुख मुद्दों में से एक बन गए हैं. डिजिटल पहुंच बढ़ने के बावजूद डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम अभी भी शुरुआती चरण में है और इसे आगे बढ़ाने के लिए एक उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) की आवश्यकता है. वैसे तो ABDM इसके लिए प्रोत्साहन मुहैया कराता है लेकिन भारत में स्वास्थ्य से जुड़े डेटा को डिजिटाइज़, स्टैंडर्डाइज़ (मानकीकृत) या इंटरऑपरेबल (एक-दूसरे से आदान-प्रदान में सक्षम) नहीं बनाया गया है और ये रिसर्च करने वालों, डॉक्टरों और नीति निर्माताओं के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं है.

लोगों और तकनीक के चौराहे पर प्रगति

एक डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम बनाना आधार की तुलना में ज़्यादा मुश्किल है क्योंकि इस प्रक्रिया में अलग-अलग स्तर की हिस्सेदारी वाले हितधारक शामिल हैं. ABDM की संरचना (आर्किटेक्चर) भारत के अलग-अलग कार्यक्षेत्रों के डिजिटल पब्लिक गुड्स जैसे कि आधार, UPI, डिजिलॉकर और कंसेंट आर्टिफैक्ट पर तैयार की गई है और इसका मक़सद मॉड्यूलर और इंटरऑपरेबल होना है. इसके ऊपर हेल्थ डेटा एक्सचेंज होता है जिसमें डिजिटल रजिस्ट्री, स्वास्थ्य रिकॉर्ड और स्वास्थ्य बीमा के दावे शामिल होते हैं. फिर ये बीमारियों की रोकथाम (प्रिवेंटिव केयर), डायग्नोस्टिक और इलाज के उद्देश्य से टेलीमेडिसिन और दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए यूनिफाइड हेल्थ इंटरफेस के ज़रिए उपलब्ध कराया जाता है जो सार्वजनिक और निजी इनोवेशन और एप्लिकेशन डिज़ाइन के लिए प्लैटफॉर्म मुहैया कराता है. 

 

स्रोत: राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय

इसलिए ABDM इकोसिस्टम में अलग-अलग प्रकार के हितधारक होते हैं जिनमें केंद्र और राज्य सरकारों जैसे नीति निर्माता; स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने वाले एवं प्रोफेशनल्स जैसे कि अस्पताल, क्लिनिक, स्वास्थ्य केंद्र, डॉक्टर, लैब एवं फार्मेसी; जुड़े हुए प्राइवेट संस्थान जैसे कि बीमा प्रदान करने वाले; गैर-लाभकारी संगठन और रेगुलेटर एवं प्रोग्राम मैनेजर जैसे प्रशासक शामिल होते हैं. ये अलग-अलग हितधारक समूह डेटा मैनेजमेंट, नियम और एकीकरण के लिए जवाबदेह हैं जो डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है. डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम में बीमा कंपनियों, ड्रग रजिस्ट्री और अस्पतालों के लिए इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड एवं स्वास्थ्य बीमा के दावों का आदान-प्रदान शामिल है जो इस तरह का डेटा जेनरेट, इस्तेमाल और प्रोसेस करते हैं. रिसर्च, इनोवेशन, स्वास्थ्य सेवा में सुधार और किसी मरीज़ की देखभाल से आगे दूसरे इस्तेमालों के लिए स्वास्थ्य डेटा कैसे उपलब्ध हो सकता है, उसको लेकर मुश्किल नियमों से ये और जटिल हो जाता है. इसके अलावा एक डिजिटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने और डेटा एवं सेवाओं के एकीकरण के लिए प्राथमिक, माध्यमिक (सेकेंडरी) और तीसरे (टर्शियरी) स्तर की देखभाल में वर्टिकल मज़बूती के साथ-साथ स्वास्थ्य, समुदाय और सामाजिक देखभाल में हॉरिज़ोंटल एकीकरण की ज़रूरत होती है.

यूनाइटेड किंगडम (UK) और अमेरिका जैसे देशों में राष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने की इसी तरह की पहल को हितधारक की अपर्याप्त भागीदारी, ख़राब संचार और हितों का मेलजोल नहीं होने की बाधाओं का सामना करना पड़ा है.

यूनाइटेड किंगडम (UK) और अमेरिका जैसे देशों में राष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने की इसी तरह की पहल को हितधारक की अपर्याप्त भागीदारी, ख़राब संचार और हितों का मेलजोल नहीं होने की बाधाओं का सामना करना पड़ा है. स्वास्थ्य सेवा में डिजिटल बदलाव अक्सर तकनीक, लोगों, संगठनों और संस्थानों के मेलजोल की जगह (इंटरसेक्शन) पर होता है जो साथ मिलकर उपयोग और परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं. डिजिटल स्वास्थ्य सेवा की पृष्ठभूमि अक्सर गतिशील जटिलताएं पेश करती है. इसमें कई तकनीकें और स्थापित लोग, पद्धतियां और प्रक्रियाएं होती हैं जो उनकी संबंधित सूचना से जुड़ी आवश्यकताओं और डिजिटल तकनीकों की ठोस विशेषताओं से प्रभावित होती हैं. ये संभव चीज़ों की सीमा तय करते हैं और आगे ले जाने के लिए लगातार तनाव बना रहता है यानी बड़े स्तर पर काम-काज की नई क्षमताओं को जोड़ना किसी उपयोगकर्ता (यूज़र) की आवश्यकताओं के विपरीत है जबकि स्थानीय प्रासंगिक स्थितियों को लेकर सामंजस्य स्थापित करते समय जनसंख्या पैमाने के लक्ष्यों (पॉपुलेशन स्केल गोल्स) की क्षमता बाधित होती है. इसके नतीजतन प्रोग्राम और सिस्टम डिज़ाइन को एक साथ इनोवेशन और स्थानीय पद्धतियों के लिए प्रासंगिक होना चाहिए जिसमें इनोवेशन जहां संदर्भ से हटने की बात करे वहीं स्थानीय पद्धतियां फिर से संदर्भ की. इसके लिए शुरुआत से एंड-यूज़र इनपुट के साथ अधूरी ज़रूरतों का समाधान करने की आवश्यकता होती है. इसके साथ हितधारकों की ट्रेनिंग, भागीदारी और प्रेरणा भी होनी चाहिए ताकि नई पहल को लागू किया जा सके जिसमें तकनीकी डिज़ाइन सरलता, इंटरऑपरैबिलिटी और अनूकूलन क्षमता (एडैप्टैबिलिटी) से प्रेरित हो. दीर्घकालीन विकास के लिए व्यापक स्वास्थ्य सेवा की नीति के साथ जुड़ाव और टिकाऊ फंडिंग आधारभूत है. 

आगे का रास्ता

दूसरे देशों में राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण प्रक्रिया और सेवा के विखंडन से पार पाने में सफल नहीं रही है. आयुष्मान भारत के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा की पहुंच के विस्तार के बावजूद ‘लापता मध्यम वर्ग (मिसिंग मिडिल)’ का महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है यानी जनसंख्या का वो वर्ग जो न तो इतना ग़रीब है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा के दायरे में आ सके और न ही इतना अमीर कि प्राइवेट इंश्योरेंस लेने में सक्षम हो सके. ये ‘मिसिंग मिडिल’ जनसंख्या का 30 प्रतिशत है जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना के दायरे में 50 प्रतिशत लोग आते हैं और 20 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो सामाजिक स्वास्थ्य बीमा और प्राइवेट स्वैच्छिक स्वास्थ्य बीमा के तहत आते हैं. 

आयुष्मान भारत के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा की पहुंच के विस्तार के बावजूद ‘लापता मध्यम वर्ग (मिसिंग मिडिल)’ का महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है यानी जनसंख्या का वो वर्ग जो न तो इतना ग़रीब है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा के दायरे में आ सके और न ही इतना अमीर कि प्राइवेट इंश्योरेंस लेने में सक्षम हो सके. 

इसके अलावा अलग-अलग हितधारकों की पद्धतियों और हितों को संभालने और उन्हें डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण से प्रेरित काम-काज के नए तौर-तरीकों और संगठन से जोड़ने के साथ-साथ डेटा स्टोरेज और उपयोग को लेकर प्राइवेसी की चिंताओं के बारे में विचार जारी है. कई तरह की संस्थागत व्यवस्थाओं को देखते हुए पहल लचीले मानकों और एक-दूसरे से आदान-प्रदान में सक्षम (इंटरऑपरेबल) प्रक्रियाओं पर आधारित होना चाहिए. ABDM संरचना एक संगठित, API (एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस)-सक्षम और इंटरऑपरेबल स्वास्थ्य सेवा इकोसिस्टम का प्रस्ताव देती है जो भारत में लगभग हर व्यक्ति के पास मोबाइल और अनूठी पहचान प्रणाली (यूनिक ID सिस्टम) की उपलब्धता का फायदा उठाती है. इस तरह हेल्थ ID, हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की रजिस्ट्री के अलावा एक केंद्रीकृत सर्वर में सभी डेटा के भंडारण और इंटरऑपरैबिलिटी को बढ़ावा देने की सुविधा को रोकती है. इसके लिए इंटरऑपरैबिलिटी के मानकों और इंटरफेस की परिभाषा की आवश्यकता होती है ताकि ABDM की इच्छित मॉड्यूलर संरचना के साथ-साथ पूरे इकोसिस्टम में डेटा संरक्षण की अनिवार्यताओं और मरीजों की सहमति की प्रबंधन प्रणाली (पेशेंट कंसेंट मैनजमेंट सिस्टम) के सामंजस्य एवं एकीकरण का लाभ उठाया जा सके.

शामिल हितधारकों की विविधता को देखते हुए योजना बनाने वालों को मौजूदा हितधारक समूहों के बीच परिवर्तन के प्रबंधन को ध्यान में रखना चाहिए. इसका कारण ये है कि ऐसे हितधारकों के पास रिकॉर्ड रखने और डेटा मैनेजमेंट के मौजूदा तरीके भी हो सकते हैं जिन्हें उचित API के माध्यम से व्यवस्थित और कार्यकुशल करने और सिस्टम के स्तर पर अनुपालन (कम्प्लायेंट) की ज़रूरत हो सकती है. ABDM को बढ़ाने के लिए फीडबैक लूप का एक सिस्टम शामिल करना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि हितधारक की ज़रूरतों को सुना जा रहा है और इसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नए सिस्टम के द्वारा शुरू की गई जवाबदेही और ज़िम्मेदारी के नए क्षेत्रों को स्पष्ट किया गया है. 


अनुलेखा नंदी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में फेलो हैं. 

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