ये निबंध, हमारी सीरीज़, वर्ल्ड हेल्थ डे 2024: मेरी सेहत, मेरा अधिकार का एक भाग है
आज जब विश्व स्वास्थ्य दिवस 2024 दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धियों और उसकी चुनौतियों पर रौशनी डाल रहा है, तो भारत अपनी स्वास्थ्य सेवा के सफर में बेहद निर्णायक मुकाम पर खड़ा हुआ है. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का नैरेटिव विरोधाभासों और जटिलताओं से भरा हुआ है. ऐसे माहौल में सबको बराबरी से स्वास्थ्य की सेवाएं उपलब्ध कराना एक बहुआयामी चुनौती है. और, ये टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने और सामाजिक ताने-बाने को मज़बूत करने का भी एक प्रमुख ज़रिया है. अपने नागरिकों की सेहत बेहतर करने के लिए भारत ने पिछले एक दशक के दौरान तमाम क्षेत्रों के ज़रिए कोशिशें की हैं. स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों (SDOH) की व्यापक रूप-रेखा के अंतर्गत इन सभी प्रयासों को काफ़ी तवज्जो दी जा रही है.
भारत में स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था की मौजूदा स्थिति
भारत में दो तिहाई सरकारी अस्पताल शहरी इलाक़ों में बने हुए हैं, और ये एक तिहाई आबादी को अपनी सेवाएं उपलब्ध कराते हैं. इस मामले में निजी क्षेत्र तो और भी सघनता से शहरों में ही केंद्रित है. क्योंकि, निजी क्षेत्र का मूलभूत ढांचा उन्हीं इलाक़ों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, जहां वित्तीय संसाधन अधिक होते हैं. हालांकि, शहर के ज़्यादातर अस्पतालों में आने वाले मरीज़ों का दायरा बहुत व्यापक होता है. ये मरीज़ आस-पास के ज़िलों और राज्यों से तो आते ही हैं. यहां तक कि बड़े शहरों के अस्पतालों में तो दूसरे देशों तक से मरीज़ अपना इलाज कराने आते हैं. ये मरीज़ अक्सर ऐसी बीमारियों की वजह से आते हैं, जिन्हें शुरुआत में ही ठीक किया जा सकता था, अगर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की प्राथमिक सेवा के मूलभूत ढांचे काम कर रहे होते. ख़ुशक़िस्मती से अब, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं वेलनेस केंद्रों (AB-HWC), जिसे अब आयुष्मान आरोग्य मंदिर का नाम दिया गया है, के ज़रिए भारत में इस मसले पर काफ़ी ध्यान दिया जा रहा है.
अगर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की प्राथमिक सेवा के मूलभूत ढांचे काम कर रहे होते. ख़ुशक़िस्मती से अब, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत स्वास्थ्य एवं वेलनेस केंद्रों (AB-HWC), जिसे अब आयुष्मान आरोग्य मंदिर का नाम दिया गया है, के ज़रिए भारत में इस मसले पर काफ़ी ध्यान दिया जा रहा है.
यही नहीं, ऐतिहासिक रूप से शहरी केंद्रों पर ज़्यादा तवज्जो दिए जाने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं के मंज़र के सामने अपनी अलग तरह की चुनौतियां खड़ी हैं. स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच, ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने को लेकर अनिच्छा या प्रोत्साहन की कमी की वजह से मेडिकल के पेशेवर कर्मचारियों की कमी, और अपर्याप्त मूलभूत ढांचे की वजह से भारत में ग्रामीण क्षेत्र की स्वास्थ्य व्यवस्था अपनी आबादी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष करती रहती है. ऐसे में शहरों में स्थित स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत सी चुनौतियां तो असल में ग्रामीण क्षेत्र की सेवाओं की चुनौतियों का ही नतीजा होती हैं.
चूंकि, कर की तुलना में स्वास्थ्य के क्षेत्र मे GDP के ख़र्च और स्वास्थ्य सेवा के मुख्य रूप से राज्यों का विषय होने की वजह से, इस क्षेत्र में कोई भी नाटकीय बदलाव आना तब तक असंभव नहीं होगा, जब तक अन्य कोशिशों के अलावा ज़बरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन न किया जाए. हम पीने के पानी, साफ़ सफ़ाई और मकानों के मामले में ऐसा होते देख चुके हैं. सीमित संसाधनों के साथ काम कर रहे स्वास्थ्य क्षेत्र के भीतर भी हमने बड़ी तरक़्क़ियां होते देखी हैं. फिर चाहे वो जन औषधि (PMBJP) हो, या फिर आयुष्मान भारत को लागू करना. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सब-डिवीज़न स्तर के अस्पतालों में 2014 में दस हज़ार डॉक्टर उपलब्ध थे. वहीं, 2022 में इसमें सुधार के साथ 19 हज़ार डॉक्टर हो गए थे. 2014 में जहां ज़िला अस्पतालों में 18 हज़ार 500 डॉक्टर उपलब्ध थे, वहीं, 2022 में ये संख्या सुधरकर 30 हज़ार पहुंच गई थी. इन आकंड़ों में अभी और सुधार आ रहा है. मेडिकल की शिक्षा के लिए मूलभूत सरकारी ढांचे में भी व्यापक निर्माण के ज़रिए सुधार किया जा रहा है, और बहुत जल्दी ये व्यवस्था अच्छे परिणाम देने लगेगी.
आयुष्मान भारत: तृतीय स्तर के उपचार से आगे
भारत में स्वास्थ्य सेवा के सुधार के प्रयासों केंद्र में आयुष्मान भारत है. ये कार्यक्रम भारत में स्वास्थ्य के मंज़र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की सरकार की महत्वाकांक्षा का प्रतीक है. अस्पतालों में भर्ती की सुविधा के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY). प्राथमिक सेवा के लिए स्वास्थ्य और बेहतरी के केंद्रों (HWC) की स्थापना, स्वास्थ्य के क्षेत्र में तकनीक का लाभ उठाने के लिए आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, और स्वास्थ्य क्षेत्र के मूलभूत ढांचे को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री- आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन- ये सब मिलकर भारत की स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था के सामने खड़ी बहुआयामी चुनौतियों से पार पाने की कोशिशें कर रहे हैं. हालांकि, हम देख रहे हैं कि पिछले एक दशक के दौरान सबको स्वास्थ्य सेवा देने (UHC) की एक मज़बूत बुनियाद तैयार करने और तकनीकी ढांचा खड़ा करने के ठोस प्रयास किए जा रहे हैं. पर, हम अभी भी साफ़-सफ़ाई, पीने के साफ़ पानी और मकान जैसे अन्य क्षेत्रों में अतिरिक्त संसाधन लगाए जाने पर ध्यान केंद्रित किए जाने का इंतज़ार कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत किए गए आधे से ज़्यादा दावे दक्षिणी भारत से आए थे, जहां देश की केवल 20 फ़ीसद आबादी रहती है. बदक़िस्मती से भारत में सबसे अधिक ज़रूरत वाले इलाक़ों के लाभ लेने लायक़ बहुत से लोगों को तो अब तक यही पता नहीं है कि वो अपनी स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों के लिए पांच लाख रुपए सरकार से ले सकते हैं.
अहम बात ये है कि आज भारत के करोड़ों परिवारों के पास ये सुविधा है कि वो हर साल अपनी सेहत के मद में पांच लाख रुपए ख़र्च कर सकते हैं, और अपनी पसंद के अस्पताल में अपना इलाज करा सकते हैं. पिछले एक दशक के दौरान, मरीज़ों द्वारा इलाज के लिए अपनी जेब से किए जाने वाले ख़र्च में भी नाटकीय ढंग से गिरावट आई है; भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था के नज़रिए से देखें, तो ये प्रगति का सबसे विश्वसनीय संकेत है. आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में ये संभावना है कि वो देश के तमाम छोटे शहरों और क़स्बों में अच्छी क्वालिटी की स्वास्थ्य सेवा लाने में मदद करे. इसके समानांतर ही, नए एम्स भी स्थापित किए जा रहे हैं. इनमें 18 हज़ार मरीज़ों को भर्ती करने की सुविधा होगी. इनमें से लगभग छह हज़ार बेड की सुविधा तो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में काम भी करने लगी है. इसके साथ साथ सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी बेड की संख्या बढ़ाई जा रही है. चूंकि आयुष्मान भारत के तहत हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर्स के ज़रिए प्राथमिक स्तर की व्यापक सेवा भी दी जा रही है, तो समय के साथ हालात सुधरने तय हैं.
आगे का रास्ता: चुनौतियां और अवसर
आयुष्मान भारत की वजह से हुई प्रगति के बावजूद, भारत में स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था बहुत बड़ी बड़ी चुनौतियों से जूझ रही है. मूलभूत ढांचे की कमी और स्वास्थ्य सेवा के उपलब्ध लाभों की जानकारी का अभाव, सबको अच्छी सेहत की सेवा (UHC) देने की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है. स्वास्थ्य कर्मचारियों और सुविधाओं के वितरण में असमानता, विशेष रूप से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का अंतर, इन चुनौतियों को और बढ़ा देता है.
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत किए गए आधे से ज़्यादा दावे दक्षिणी भारत से आए थे, जहां देश की केवल 20 फ़ीसद आबादी रहती है. बदक़िस्मती से भारत में सबसे अधिक ज़रूरत वाले इलाक़ों के लाभ लेने लायक़ बहुत से लोगों को तो अब तक यही पता नहीं है कि वो अपनी स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों के लिए पांच लाख रुपए सरकार से ले सकते हैं. ये रक़म काफ़ी अधिक है और कई लोगों के मामलों में तो उनकी सालाना आमदनी से भी ज़्यादा है. नेशनल हेल्थ एकाउंट्स ने दिखाया है कि मरीज़ों द्वारा इलाज में अपनी जेब से ख़र्च की जाने वाली रक़म में भी काफ़ी कमी आई है. प्रधानमंत्री जन औषधि (PMBJP) कार्यक्रम जैसी योजनाओं का बड़ी तेज़ी से विस्तार हुआ है. 2015 में जहां देश में केवल 80 जन औषधि केंद्र थे, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर लगभग 11 हज़ार पहुंच चुकी है, और ये योजना करोड़ों परिवारों में सेहत पर होने वाले रोज़मर्रा के ख़र्च को कम करने में मदद कर रही है. आयुष्मान भारत के हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर और नए सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों के काडर से भी सिर्फ़ डॉक्टर को दिखाने में मरीज़ द्वारा ख़ुद किए जाने वाले ख़र्च में काफ़ी कमी आएगी. इन योजना में अधिक पैसे लगाने और इनके बारे में जागरूकता फैलाने से इसके लाभों में वृद्धि की जा सकती है.
आगे चलकर स्वास्थ्य के बजट को GDP के 2.5 प्रतिशत के बराबर करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य ये संकेत देता है कि सरकार स्वास्थ्य सेवा में स्थायी और ठोस निवेश करने की ज़रूरत को समझती है.
आगे चलकर स्वास्थ्य के बजट को GDP के 2.5 प्रतिशत के बराबर करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य ये संकेत देता है कि सरकार स्वास्थ्य सेवा में स्थायी और ठोस निवेश करने की ज़रूरत को समझती है. बुनियादी ढांचे के विकास, देख-रेख की सुविधा में सुधार और भारत की आबादी के सभी तबक़ों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सहज और सुगम बनाने का विस्तार करने के लिए ऐसे निवेश ज़रूरी हैं. भारत इस वक़्त आबादी के मामले में बड़े बदलाव से गुज़र रहा है. इसलिए, चुनौतियों के और भी जटिल होने की आशंका है.
पिछले एक दशक के दौरान जो सबसे अहम प्रगति हुई है, वो स्वास्थ्य सेवा के एक नीतिगत मसले के तौर पर सियासी हलकों में जगह पाने की है. ये चलन अब बदलनेवाला नहीं है और इससे सबको स्वास्थ्य सेवा देने का लक्ष्य अधिक तेज़ी से पाया जा सकेगा. विपक्षी दल भी ये देख रहे हैं कि सेहत के मसले ने किस तरह NDA को चुनाव में फ़ायदा पहुंचाया है. पिछली बार कांग्रेस के घोषणापत्र में ’स्वास्थ्य के अधिकार’ को काफ़ी अहमियत दी गई थी. भारत में एक टिकाऊ और लचीली स्वास्थ्य व्यवस्था विकसित करने के लिहाज़ से ये चुनावी होड़ काफ़ी अच्छी है.
हमने जिन बातों की चर्चा की, इससे इतर 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को स्वास्थ्य के मद में दी गई सहायता से आज सौ बिस्तरों वाले 200 से अधिक और पचास बिस्तरों वाले 150 से ज़्यादा अस्पतालों का निर्माण पूरे देश में हो रहा है. हालिया इतिहास में ऐसा अभूतपूर्व विकास होते नहीं देखा गया है. हालांकि, भारत के मानक कम होने की वजह से, पीने के पानी, साफ़-सफ़ाई और हाउसिंग में पूंजीगत व्यय को केंद्रीकृत तरीक़े से बढ़ाते रहना ज़रूरी है, ताकि स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी की ऐतिहासिक ग़लतियों को सुधारा जा सके. पिछले एक दशक के दौरान पानी, साफ़-सफ़ाई और हाउसिंग सेक्टर में इतने भारी निवेश का पूर्वानुमान किसी ने भी नहीं लगाया था. जानकारों के मुताबिक़ इन कोशिशों से देश पर बीमारियों का बोझ कम करने में मदद मिलेगी. यही नहीं, इन बीमारियों से जुड़े अन्य मसलों को देखते हुए सबको स्वास्थ्य सेवा (UHC) देने के लिए इसके मूलभूत ढांचे में काफ़ी निवेश किया जा रहा है. इसका चुनाव में भी बहुत लाभ मिल रहा है. ऐसे में अब हम ये कह सकते हैं कि स्वास्थ्य के क्षेत्र का वक़्त आ गया है.
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