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राजनीतिक और आर्थिक तौर पर घिसी-पिटी सोच के शिकार हैं ‘भारत के शहर’
2020-21 के लिए अस्थायी जीडीपी अनुमान उपभोक्ता मांग में लगातार कमी की पुष्टि करता है
कुशलता और समानता बढ़ाने के लिए विकेंद्रीकरण ज़रूरी है
भारत में कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी में राजनीति और बदलाव के लिए क्या गुंजाइश है?
कोरोना की दूसरी विनाशकारी लहर का भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और महिलाओं पर प्रभाव
कोविड-19 महामारी के बाद उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव
महत्वाकांक्षी जिला कार्यक्रम (ADP): ग्रामीण भारत के लिए उम्मीद की एक किरण
महामारी के बाद: तय समय के भीतर निर्यात में बढ़त दर्ज करने के लिये बननी चाहिये नई रणनीति
आर्थिक सुधारों का एजेंडा: पी. एन. धर, एम. नरसिम्हन, आई. जी. पटेल और आर. एन. मल्होत्रा का साझा बयान
पी वी नरसिम्हाराव से नरेंद्र मोदी तक: आर्थिक सुधारों पर देश का बढ़ता भरोसा
आर्थिक सुधारों से आगे की दुनिया: क्या संस्थानों में रिफॉर्म का वक्त आ गया?
तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था को ‘रीबूट’ करने की ज़रूरत
भारत के आर्थिक सुधारों को देखने-समझने की आठ खिड़कियां: अतीत, वर्तमान और भविष्य
1991 के इतिहास को पूरा करना: चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए सुधार
सुर्ख़ियों में मुद्रास्फीति की बढ़ती दर: एक अस्थायी स्थिति
1991के आर्थिक सुधार के 30 सालों के बाद, ‘आईये, भविष्य को गले लगाएं!’
आर्थिक सुधारों ने भारत की ‘विदेश नीति’ संबंधी संवाद को कैसे प्रभावित किया है
अर्थव्यवस्था में तेज़ी के लिये सरकार करे वित्तीय हस्तक्षेप: सरकारी खज़ाने से मिले मदद
भारत में विशेष इकॉनमिक जोन: डब्ल्यूटीओ के तहत शामिल पक्षों को लेकर विवाद
दूसरी लहर: भारत के ग़रीबों के लिए “अभी नहीं तो शायद कभी नहीं” का क्षण
भारत की औपचारिक अर्थव्यवस्था में महिलाओं के लापता होने का मामला
ब्लू इकॉनमी की ओर बढ़ता भारत और फिलीपींस के सहयोग का दायरा
भारत की 3 ट्रिलियन डॉलर वाली इंडस्ट्री, दुनिया के लिए बनाई गई तानाशाही
निर्यात में बढ़ोतरी उत्साहवर्द्धक है
विश्व बैंक को ईज़ ऑफ़ डुइंग बीजिंग रैंकिंग क्यों नहीं करनी चाहिए?
2021 के बज़ट में शहरों के लिए क्या है?
जीडीपी के पहले एडवांस एस्टिमेट्स की उम्मीदों में पिछले नवंबर के औद्योगिक उत्पादन आंकड़ों का साया
वो पाँच वजहें जिसके कारण भारत की पहचान एक ‘उदास और निराश’ आबादी वाले देश की बनती जा रही है!