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एडटेक इंडस्ट्री पर नए सिरे से ध्यान देने की ज़रूरत है जिससे शिक्षा तक महिलाओं की पहुंच में जेंडर गैप को दूर किया जा सके.
जैसे-जैसे दुनिया भर में कोरोना महामारी के बाद हालात सामान्य हो रहे हैं और दुनिया हरित और समान अर्थव्यवस्थाओं के एक नए युग में लौट रही है, विकास के लिए पोस्ट माध्यमिक स्तर की शिक्षा का महत्व तेज़ी से बढ़ता जा रहा है. यह इनोवेशन को बढ़ावा देता है और नेतृत्व और प्रतिभा के पूल को विकसित करता है साथ ही यह ग्लोबल नॉलेज इकोनॉमी में योगदान और हिस्सा लेने के लिए बेहद अहम है. क्वॉलिटी शिक्षा विकास के लिए सबसे अहम है. विश्व बैंक का कहना है कि माध्यमिक शिक्षा के बाद की शिक्षा में निवेश “असमान” रिटर्न देता है, क्योंकि यह रोज़गार दरों, स्वास्थ्य परिणामों और उत्पादकता और इनोवेशन में बढ़ोतरी करता है.
कोरोना महामारी के दौरान जैसे-जैसे शिक्षा हासिल करना आसान नहीं रहा, वैसे-वैसे भारतीय एडटेक उद्योग के ज़रिए शिक्षा का डिजिटल विस्तार, जिसका साल 2020 में वैल्यू क़रीब 750 मिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, एक उम्मीद के रूप में उभरा है.
कोरोना महामारी के दौरान जैसे-जैसे शिक्षा हासिल करना आसान नहीं रहा, वैसे-वैसे भारतीय एडटेक उद्योग के ज़रिए शिक्षा का डिजिटल विस्तार, जिसका साल 2020 में वैल्यू क़रीब 750 मिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, एक उम्मीद के रूप में उभरा है. शिक्षा के तेजी से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होने की इस रफ़्तार ने भारत को दुनिया की शैक्षणिक तकनीक (एडटेक) की राजधानी बनने की राह पर ला खड़ा कर दिया है और इस उद्योग के 2025 तक 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है.
उच्च शिक्षा में छात्राओं के ज़्यादा नामांकन और आर्थिक विकास के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है. यहां तक कि जब एडटेक में 2021 में वैश्विक निवेश का लगभग 65 प्रतिशत माध्यमिक शिक्षा में होता है, तब भी उभरते बाज़ारों में महिलाओं के लिए इसकी पहुंच अभी भी बहस का विषय है. कोरोना ने असमान रूप से महिला शिक्षार्थियों को प्रभावित किया क्योंकि पहले से मौज़ूद सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों और वित्त को लेकर सीमित पहुंच ने इसे और बढ़ाया है. उदाहरण के लिए भारत में, जहां पहले से कहीं अधिक महिलाएं उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं, वहीं शिक्षा प्राप्ति के पारंपरिक तरीक़ों में जेंडर गैप अभी भी मौज़ूद हैं. तृतीयक शिक्षा तक महिलाओं की पहुंच में जेंडर गैप को दूर करने के लिए एडटेक उद्योग पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से एक समान परिस्थितियां बनाने का रास्ता साफ हो सकेगा.
कोरसेरा के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में मौज़ूदा समय में 4.8 मिलियन ऑनलाइन महिला शिक्षार्थी हैं, जो ऐप पर पंजीकृत हैं, जो विश्व स्तर पर 190 देशों में दूसरे स्थान पर हैं. 2016 के बाद से अकेले कौरसेरा पर महिला ऑनलाइन शिक्षा हासिल करने वालों की तादाद में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कामकाज का भविष्य काफी बदल गया है लिहाज़ा अपेक्षित स्किल सेट, वर्क लोकेशन, करियर क्रेडेंशियल और जॉब मार्केट में बदलाव हुए हैं, कोरोना महामारी के कारण शिक्षा प्राप्ति के वर्चुअल तरीक़ों में अचानक बदलाव के साथ, सस्ती, सुलभ तृतीयक शिक्षा की ज़रूरत बढ़ी है जो बाज़ार की मांगों के साथ जुड़ती है और आर्थिक विकास का रास्ता खोलती है. इतना ही नहीं यह तेज़ी से बदलती आर्थिक परिस्थितियों के बीच समानता के मानकों को बढ़ाकर महिलाओं के लिए परिस्थितियों को और बेहतर करती है. तृतीयक शिक्षा तक पहुंचने में महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली बाधाओं को समझने से एजुकेशन इकोसिस्टम की सप्लाई साइड बैरियर को दूर करने में मदद मिलेगी, ऑनलाइन बदलावों और दूरस्थ शिक्षा में गैप की पुनरावृत्ति को भी इससे रोका जा सकेगा.
दिल्ली में साल 2018 के एक केस स्टडी में कहा गया है कि महिलाओं ने शिक्षा की गुणवत्ता के मुक़ाबले कॉलेज जाने के सुरक्षित रास्तों को प्राथमिकता दी. 26 प्रतिशत महिलाओं ने निर्णय लेते समय सुरक्षा को चिंता का विषय बताया. ऑनलाइन नामांकन के लिए महिलाओं की दिलचस्पी पर इन कारणों का भारी असर होता है.
भारत में माध्यमिक शिक्षा के बाद महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है. कोरोना महामारी की शुरुआत से इसे और तेज़ कर दिया गया है जिसने शारीरिक गतिशीलता को कुछ हद तक रोक दिया है. आईएफसी की वुमेन एंड ऑनलाइन लर्निंग इन इमर्जिंग मार्केट्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च शिक्षा के लिए महिलाओं का निर्णय, सुरक्षा और पारिवारिक दायित्वों की चिंताओं से प्रभावित होती है. आईएफसी रिपोर्ट में प्रस्तुत एक सर्वेक्षण में 22 प्रतिशत महिलाओं ने मोबिलिटी को यह तय करने में अहम फैक्टर बताया कि कहां अध्ययन करना है. सुरक्षा की चिंता और हमलों के डर के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे कि कम उम्र में शादी के कारण महिलाओं की तृतीयक शिक्षा तक पहुंच सीमित हो जाती है. दिल्ली में साल 2018 के एक केस स्टडी में कहा गया है कि महिलाओं ने शिक्षा की गुणवत्ता के मुक़ाबले कॉलेज जाने के सुरक्षित रास्तों को प्राथमिकता दी. 26 प्रतिशत महिलाओं ने निर्णय लेते समय सुरक्षा को चिंता का विषय बताया. ऑनलाइन नामांकन के लिए महिलाओं की दिलचस्पी पर इन कारणों का भारी असर होता है. शिक्षा तक ऑनलाइन पहुंच को अफोर्डेबल बनाने से ज़्यादा महिलाओं को उच्च शिक्षा हासिल करने में मदद मिलेगी. भले ही ऑनलाइन शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए महिलाओं की तृतीयक शिक्षा तक पहुंच सुरक्षा चिंताओं के कारण बाधित नहीं होती है लेकिन यह महिलाओं के लिए शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए सुरक्षित वातावरण की मांग को कम नहीं करती है.
केवल 12 प्रतिशत पुरुषों के विरोध में 22 प्रतिशत महिलाओं ने पारिवारिक दायित्व को चिंता का विषय बताया. महिलाओं की शिक्षा पर रिटर्न कम होने की वज़ह से पुरुषों की स्कूली शिक्षा में निवेश को प्राथमिकता देने की वज़ह से महिलाओं को उभरती अर्थव्यवस्थाओं में जॉब मार्केट के हाशिये पर रखा जाता है. महिलाओं के लिए नियम बदल जाते हैं, ख़ास तौर पर दक्षिण एशिया में बड़े पैमाने पर जेंडर गैप के साथ, संभावित कमाई में प्रगति और महिला श्रम बल की भागीदारी में लगातार गिरावट स्थितियों को साफ करती है. सुरक्षित परिवहन और सकारात्मक एक्शन को सुनिश्चित करने से महिलाओं को अपने शैक्षिक प्रयासों को बढ़ाने के लिए जेंडर पैरिटी (लैंगिक समानता) को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. ये फैक्टर्स संयुक्त रूप से ऑनलाइन शिक्षा के लिए लोकतांत्रिक पहुंच की दिशा में निश्चित कदम के तौर पर बेहतर मामला बनाते हैं जो महिलाओं को बेहतर आजीविका के मौकों की ओर ले जा सकता है, हालांकि, यह जेंडर पहुंच डिजिटल दुनिया में भी व्यापक तौर पर फैली हुई है.
उभरती अर्थव्यवस्थाओं में डिजिटल डिवाइड जेंडर शेप लेता है और तेज़ी से फलते-फूलते Edtech परिदृश्य के लिए प्रमुख बाधाओं में से एक है. उदाहरण के लिए, भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास मोबाइल फोन होने की संभावना 15 प्रतिशत कम है और मोबाइल इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने की 33 प्रतिशत कम संभावना है. इसी तरह, 41 प्रतिशत पुरुष और केवल 25 फीसदी महिलाओं के पास मोबाइल फोन थे. उच्च लागत, कम गुणवत्ता वाले कनेक्शन और कम पहुंच महिलाओं के लिए माध्यमिक शिक्षा में शामिल होने के लिए बाधाएं पैदा करती है जिससे श्रम बाज़ारों में उनकी एंट्री और रिटेंशन पर प्रभाव पड़ता है. भारत में 48 प्रतिशत की वैश्विक औसत तुलना में 62 प्रतिशत महिलाएं ऑनलाइन पाठ्यक्रम सीखने के लिए मोबाइल का उपयोग करती हैं. डिजिटल साक्षरता दर और ऑनलाइन लर्निंग के बीच एक मज़बूत संबंध है. महिलाओं में डिजिटल साक्षरता बेहद कम है; सामाजिक अनुकूलन, सामर्थ्य और डिजिटल कौशल की कमी इसके प्राथमिक कारण हैं. ऑनलाइन सुरक्षा, मॉनिटरिंग और परिवार द्वारा प्रतिबंध और नकारात्मक धारणाओं के कारण गेटकीपिंग तकनीक के उदाहरण ऐसे मुद्दे हैं जो डिजिटल वर्ल्ड में दोहराए जाते हैं और जहां महिलाओं की सौदेबाजी की शक्ति असमान है. डिजिटल उपकरणों की सामर्थ्य और पहुंच में बढ़ोतरी के साथ महिला द्वारा महिलाओं के बीच डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए मेंटरिंग सेशन आयोजित करने से महिलाओं के लिए किसी भी स्किल को सीखना आसान होगा.
गति, समय सीमा और लोकेशन में लचीलेपन के कारण महिलाएं तृतीयक शिक्षा ऑनलाइन हासिल करने के लिए प्रेरित होती हैं लेकिन अक्सर उन चुनिंदा क्षेत्रों में इसका अधिक प्रतिनिधित्व किया जा सकता है जो अपने दायरे और कमाई की क्षमता में सीमित हैं. एसटीईएम क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी के बावज़ूद इस प्रवृत्ति को ऑनलाइन एजुकेशन इकोसिस्टम में बहुत आसानी से दोहराया जा सकता है. हालांकि भारत में, एसटीईएम पाठ्यक्रमों में जेंडर गैप में गिरावट देखी गई है, जिसमें नामांकन 2019 और 2021 के बीच 23 प्रतिशत से बढ़कर 32 प्रतिशत हो गया है. भारतीय महिलाएं डिजिटल और ह्यूमन स्किल हासिल करने के लिए प्रेरित हैं. कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, मशीन लर्निंग, लीडरशिप एंड मैनेजमेंट और कम्युनिकेशन में बड़ी तादाद में महिलाओं की भागीदारी देखी जा सकती है. ऑनलाइन तृतीयक शिक्षा में महिला रोल मॉडल के प्रभाव का लाभ उठाने वाले क्षेत्रों में जहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व सबसे कम है, वहां इसका महिला शिक्षार्थियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
कोरोना महामारी ने हमें ह्यूमन कैपिटल (मानव पूंजी) के विकास को संचालित करने वाली शिक्षा प्रणालियों को दोबारा से शुरू करने का मौक़ा प्रदान किया है, इसलिए शिक्षा तक पहुंच में गैप और इसे कैसे सुधारा जा सकता है यह ज़रूरी है.
भारत में तेज़ी से बदलते एडटेक परिदृश्य को गेमीफिकेशन, डिजिटल डिलीवरी, और रिमोट लर्निंग में प्रगति द्वारा देश की वंचित आबादी के लिए न्यायसंगत भविष्य का मार्ग तैयार किया जा सकता है. महिलाओं के लिए समान रूप से ऑनलाइन शिक्षा में शामिल होने के लिए इन अंतरों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करने वाला दृष्टिकोण बेहतर परिणाम दे सकता है. ऐसी नीतियां जो महिलाओं के शैक्षिक फैसले को प्रभावित करने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक जेंडर गैप को समझती हैं, ऑनलाइन दुनिया में समान बाधाओं को दूर करने में बेहद कारगर साबित हो सकते हैं. कोरोना महामारी ने हमें ह्यूमन कैपिटल (मानव पूंजी) के विकास को संचालित करने वाली शिक्षा प्रणालियों को दोबारा से शुरू करने का मौक़ा प्रदान किया है, इसलिए शिक्षा तक पहुंच में गैप और इसे कैसे सुधारा जा सकता है यह ज़रूरी है.
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Avni Arora was a Research Assistant with the Center for New Economic Diplomacy at ORF. Her key areas of research are Gender Development Policy and ...
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